सातवीं शताब्दी के दौरान प्रतिहारो के एक सामंत वासुदेव ने शाकंभरी में चौहान वंश की स्थापना की थी। शाकंभरी नगर सांभर और अजमेर के निकट अवस्थित है। चौहान शासकों का प्राचीन भारत के इतिहास में विशेष स्थान है। पहले चौहान शासक, प्रतिहार शासकों के सामंत थे। प्रतिहार साम्राज्य के सामंत चौहान सामंतो में वासुदेव ,गुवक प्रथम ,दुर्लभ राज द्वितीय,विग्रहराज द्वितीय (ईस्वी ९७१-९९८)गोविन्दराज तृतीय इत्यादि का उल्लेख मिलता है।१०वीं शताब्दी की शुरूआत में वाक्पतिराज प्रथम ने प्रतिहारों से अपने आपको स्वतंत्र कर लिया। इसके बाद चौहानों ने अपनी स्वयं की सत्ता स्थापित कर ली थी।
शाकंभरी चौहान स्वतंत्रत शासक :
पृथ्वीराज प्रथम--->अजयराज
(शासन ईस्वी १११३-११३३)--->विग्रह राज तृतीय ----->अर्णोराज (शासन ईस्वी ११३३-११५५)----->
विग्रहराज चतुर्थ /विशलदेव(शासन ईस्वी ११५०-११६४)------->सोमेश्वर विग्रहराज चतुर्थ के भाई(शासन ईस्वी ११६९-११७८)-------> पृथ्वी राज तृतीय /राय पिथौरा(शासन ईस्वी ११७८-११९२)-----> गोविन्द राय चतुर्थ (ईस्वी ११९३)।
पृथ्वीराज का जन्म चौहान राजा सोमेश्वर और रानी कर्पूरादेवी के घर हुआ था। पृथ्वीराज और उनके छोटे भाई हरिराज दोनों का जन्म गुजरात में हुआ था जहाँ उनके पिता सोमेश्वर को अणहिलवाडा के चालुक्य दरबार में पाला था।
अजयराज चौहान :
(शासन ईस१११३-११३३ )
पृथ्वीराज चौहान (प्रथम)चौहान वंश के प्रथम प्रतापी शासक’थे। अजयराज चौहान ‘चौहान वंश के दूसरे प्रतापी शासक थे। वे पृथ्वीराज चौहान प्रथम के पुत्र थे।अजयराज चौहान वंश के सबसे महान शासक और चौहान वंश के संस्थापक थे। अजयराज के शासन काल को ‘चौहानों के साम्राज्य का निर्माण का काल’ मानते हैं। पृथ्वीराज विजय के अनुसार अजयराज ने ईस्वी.११३३ में अजयमेरू (अजमेर) बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया और बीठली नामक पहाड़ी पर अजयमेरू दुर्ग का निर्माण करवाया। उन्होंने ईस्वी ११३३ में अजयमेरु (अजमेर)शहर की स्थापना की और बाद में इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया।
अर्णोराज चौहान:
शासनकाल ईस ११३३-११५५ था। वे शैवमतानुयायी थे। येे शाकम्बरी के चौहान राजवंश के राजा थे। अर्णोराज द्वारा पुष्कर का सुप्रसिद्ध वराहमन्दिर निर्मित किया गया। ईस्वी ११३७ में आनासागर झील का निर्माण करवाया था।
कर्णदेव के पुत्र,जयसिंह (शासन ईस १०९२-११४२) जिन्होंने सिद्धराज की उपाधि धारण की थी,वे एक महान पराक्रमी भारतीय राजा थे जिन्होंने भारत के पश्चिमी भागों पर शासन किया था। वह चालुक्य (सोलंकी ) वंश के शासक थे। जयसिंह की राजधानी वर्तमान गुजरात में अनाहिलपताका (आधुनिक पाटन) में स्थित थी । गुजरात के बड़े हिस्से के अलावा, उनका नियंत्रण राजस्थान के कुछ हिस्सों तक भी बढ़ा , उन्होंने शाकंभरी चाहमना राजा अर्नोराजा को वश में कर लिया , और पूर्व नड्डुला चाहमना शासक अशराजा ने उनकी आधिपत्य को स्वीकार किया था।सिद्धराज जयसिंह नेअर्णोराज को ईस्वी ११३४ में हराया था। अन्हिलवाड़ा और अजमेर के राजकीय संबंध मजबूत करने के हेतु से सिद्धराज जयसिंह ने अपनी एक मात्र संतान पुत्री कंचनादेवी की शादी अजमेर के अर्णोराज चौहान से रचायीथी। इस दंपति के बेटे और सिद्ध राज जयसिंह के दोहित्र सोमेश्वर चौहान ( पृथ्वीराज चौहान के पिता ) को सिद्धराज जयसिंह ने चालुक्य दरबार में अन्हिलवाड़ा/ अनाहिलपताका पाटण में पाला था।इस तरह सिद्धराज जयसिंह पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर चौहान के नाना लगते थे।
अर्णोराज चौहान,विग्रह राज तृतीय के पुत्र थे। ईस्वी ११३४ में सोलंकी शासक सिद्धराज जयसिंह उपरांत उनके अनुगामी और भतीजे कुमारपाल ने अर्णोराज चौहान को ईस्वी ११४५ और ईस्वी ११५० में आबु के निकट युद्ध में दो बार हराया था।अर्णोराज चौहान की बहन देवलगिरी की शादी कुमारपाल के साथ हुई थी।इस तरह अर्णोराज चौहान , सिद्धराज जयसिंह के दामाद (son in law) और कुमारपाल सोलंकी के साले ( brother in law) लगते थे।इस का मतलब चालुक्य व शाकंभरी चौहान दोनों शासक एकदूसरे के रिश्तेदार होते हुए भी अपने साम्राज्य का विस्तार करने हेतु एक दुसरे से लड़ते रहते थे।
अर्णोराज के ज्येष्ठपुत्र जगद्देव ने अपने पिता की हत्या कर दी थी। उसने स्वयं राजरूप में सिंहासन पर आधिपत्य किया। परन्तु अर्णोराज के दूसरे पुत्र विग्रहराज चतुर्थ ने जगद्देव को पराजित किया। विग्रहराज चतुर्थ के आधिपत्य में समादलक्ष-प्रदेश का सम्पूर्ण राज्य अन्तर्निहित हुआ।
विग्रहराज चतुर्थ (विसलदेव)(शासन ईस ११५०-११६४): वे अर्णोराज के पुत्र थे। उन्होंने ईस्वी ११५० से ईस्वी ११६४ तक शासन किया था। विग्रहराज चतुर्थ एक बहुत बड़े विजेता थे।जिन्हें विशालदेव के नाम से भी जाना जाता है , उत्तर-पश्चिमी भारत में चौहान वंश के एक शासक थे ।उन्होंने तोमर शासकों को युद्ध में पराजित कर उनकी स्वाधीनता समाप्त कर दिया था। इसके बाद उन्होंने तोमरों को अपना सामंत बना लिया। उन्होंने लगभग सभी पड़ोसी राजाओं को वश में करके चाहमान साम्राज्य को एक साम्राज्य में बदल दिया। उनके राज्य में वर्तमान राजस्थान , हरियाणा और दिल्ली के प्रमुख हिस्से शामिल थे ; और संभवत: पंजाब और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी।विग्रहराज चतुर्थ के पिता अर्नोराज को गुजरात के चालुक्य राजा कुमारपाल के हाथों दो बार युद्ध में हारना पड़ा था।
चौहान विग्रहराज चतुर्थ ने अपने पिता की हार का बदला लेने के लिए चालुक्यों के खिलाफ कई अभियान चलाए थे।ऐसा प्रतीत होता है कि विग्रहराज चतुर्थ ने कुमारपाल सोलंकी के कुछ क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।
अन्हिलवाड़ा/अनहिलपताका गुजरात के शासक भीमदेव द्वितीय और शाकंभरी चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय के बीच नागौर और आबु पर्वत के पास दो बार युद्ध हुआ था। काव्य मेरूतुंगा के अनुसार पृथ्वीराज ने भीमदेव द्वितीय नहीं बल्कि उनके सेनापति जगदेव प्रतिहार को हराया था। चौहान और चालुक्य राजाओं के बीच ईस्वी ११८७ में शांति समझौता हुआ था।
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच युद्ध:
तराइन का प्रथम युद्ध ईस्वी ११९१ में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच हुआ था।परिणाम स्वरूप
तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद गोरी की हार हुई और भारत के राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान ने विजय की पताका फहराई। लेकिन ये तराइन के युद्ध का अंत नहीं था इसके बाद भी मोहम्मद गोरी ने अपनी ईस्वी ११९२में भारत पर आक्रमण किया और अंत में पृथ्वीराज चौहान को हराकर ही दम लिया।तराइन का द्वितीय युद्ध वर्ष २२९२ ई. में पृथ्वीराज चौहान और शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी के मध्य लड़ा गया। तराइन के इस युद्ध को 'भारतीय इतिहास' का एक विशेष मोड़ (Turning point of Indian history) माना जाता है। इस युद्ध में मुस्लिमों की विजय और राजपूतों की पराजय हुई।मोहम्मद गोरी ने चंदावर के युद्ध (११९२ ई.) में दिल्ली के गहड़वाल वंश के शासक जयचंद को पराजित किया।
इतिहासकारों की सम्राट जयचंद के प्रति राय निम्नानुसार है।
(१)इस कथन में कोई सत्यता नहीं है कि महाराज जयचंद ने पृथ्वीराज पर अक्रमण करने के लिए मोहम्मद गौरी को आमंत्रित किया हो। - डॉ. आर.सी. मजूददार (एन्सेन्ट इण्डिया)
(2) यह बात आधारहीन है कि महाराज जयचंद ने मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया। - जे.सी. पोवल (हिस्ट्री ऑफ इण्डिया)
(3) जयचंद पर यह आरोप गलत है। समकालीन मुसलमान इतिहासकार इस बात पर पूर्णतया मौन है कि जयचंद ने ऐसा कोई निमंत्रण भेजा हो। - डॉ. रामशंकर त्रिपाठी मुहम्मद ग़ौरी ने भारत में विजित साम्राज्य का अपने सेनापतियों को सौंप दिया और वह ग़ज़नी चला गया। बाद में ग़ोरी के ग़ुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने ग़ुलाम वंशतराईन के द्वितीय युद्ध में राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद ऐबक को भारतीय प्रदेशों का सूबेदार नियुक्त किया गया। वह दिल्ली, लाहौर तथा कुछ अन्य क्षेत्रों का उत्तराधिकारी बना।उसने विषम परिस्थितियों में कुशलता पूर्वक काम किया और अंततः दिल्ली की सत्ता का शासक बना। गोरी की हत्या (१५ मार्च ईस्वी १२०६ ) के बाद २४ जून १२०६ को कुतुबुद्दीन ने अपना राज्याभिषेक किया पर उसने सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की। क़ुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली सल्तनत का स्थापक और ग़ुलाम वंश का पहला सुल्तान था। यह ग़ौरी साम्राज्य का सुल्तान मुहम्मद ग़ौरी का एक ग़ुलाम था। ग़ुलामों को सैनिक सेवा के लिए ख़रीदा जाता था। यह पहले ग़ौरी के सैन्य अभियानों का सहायक बना और फिर दिल्ली का सुल्तान। इसने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया था।इसने केवल चार साल (ईस्वी १२०६ –१२१०) ही राज किया।
दिल्ली सल्तनत का शासनकाल ईस्वी १२०६-१५२६ अर्थात ३२० वर्ष का था। दिल्ली सल्तनत में पाँच वंश थे- गुलाम वंश (१२०६-१२९०), ख़िलजी वंश (१२९०-१३२०), तुग़लक़ वंश (१३२०-१४१४), सैयद वंश (१४१४-१४५१), तथा लोदी वंश (१४५१-१५२६)। इनमें से पहले चार वंश मूल रूप से तुर्क थे और आखरी अफगान था।
तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार के परिणाम स्वरूप भारत में विशेषतः उत्तर भारत में ६२२ वर्ष तक प्रथम दिल्ली सल्तनत (४२० वर्ष)और फिर मुगल शासन(३२२) रहा।
मध्य-सोलहवीं शताब्दी और १७-वीं शताब्दी के अंत के बीच मुग़ल साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप में प्रमुख शक्ति थी। ईस्वी १५२६ में स्थापित, यह नाममात्र ईस्वी १८५७ करीब ३२२ वर्ष तक बचा रहा, जब वह ब्रिटिश राज द्वारा हटाया गया। यह राजवंश कभी कभी तिमुरिड राजवंश के नाम से जाना जाता है क्योंकि बाबर तैमूर का वंशज था।
माहिती संकलन:डॉ भैरवसिंह राओल