मध्य कालीन युग में गुजरात में चावड़ा राजवंश के राजपूतों राजाओं ने ६९० से ९४० (२५०वर्ष) तक; चालुक्य राजवंश के राजाओ ने ईस्वी ९४० से १२४३(३०३ वर्ष ) और बघेला राजाओं ने १२४४ से १३०४ (६० वर्ष)तक शासन किया था। इस प्रकार यह तीन राजवंशों ने ६५३ साल तक शासन किया था। गुजरात के इतिहास में मध्य कालीन राजपूत युग स्वर्ण युग था। इस समय में परदेशी आक्रमण से गुजरात सुरक्षित रहा था। व्यापार वाणिज्य का बहुत विकास हुआ था। स्थिर एवं मज़बूत शासन था। प्रजाजन सुरक्षित एवं सुखी थे।
चालुक्य (सोलंकी) वंश का अधिकार पाटन और काठियावाड़ (सौराष्ट्र) राज्यों तक था। ये ९वीं शताब्दी से १३वीं शताब्दी तक शासन करते रहे। इन्हें चालुक्य भी कहा जाता था। यह मूलत: अग्निवंश व्रात्य क्षत्रिय हैं और दक्षिणापंथ के हैं।
गुजरात के चालुक्य वंश के शासन की स्थापना मूलराज प्रथम ( ईस्वी ९४१-९९५) ने की थी । मूलराज प्रथम ने चापोत्कट वंश के अंतिम शासक और अपने मामा सामंत सिंह चावड़ा ( चापोत्कट) से ईस्वी ९५०-९४१ में राज्यसत्ता छीन ली थी। उन्होंने प्रतिहारों तथा राष्ट्रकूटों के पतन का लाभ उठाते हुए सरस्वती घाटी में अपने लिये एक स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया ।
मूलराज प्रथम के बाद उनके पुत्र चामुण्डराय ( ई.९९५-१००८) अन्हिलवाड़ के शासक रहे थे।
चामुंडराय के बाद उनके पुत्र दुर्लभ राज ( ई.१००८-१०२१) अन्हिलवाड़ के शासक रहे थे।
दुर्लभ राज के पश्चात भीमदेव (प्रथम) गुजरात के सोलंकी वंश के शासक हुए थे। उन्होंने पाटण पर ईस्वी १०२१-१०६३ तक शासन किया। वे नागराज सोलंकी के पुत्र एवं दुर्लभराज के भतीजे थे।दुर्लभराज के पुत्रहीन होने पर उनके छोटे भाई नागराज के पुत्र भीमदेव वि.सं. १०७९ (ई.स. १०२२) में राजगद्दी पर बैठे। जब वे सिंहासन पर बैठे तब उनकी उम्र कम थी। भीमदेव सोलंकी ने वि.सं. ११२१ (ई.स. १०६४) तक गौरवपूर्ण राज्य किया। भीमदेव प्रथम गुजरात के सबसे प्रतापी शासक थे। गुजरात के इतिहास में भीमदेव का समय गौरवशाली रहा है। उस समय गजनी का शासक महमूद गजनवी था। वह एक शक्तिशाली मुस्लिम शासक था। उसने भारत पर कई बार आक्रमण कर, यहाँ से अथाह सम्पत्ति लूटकर ले गया था। काठियावाड़( सौराष्ट्र )में सोमनाथ का शिव मन्दिर सुप्रसिद्ध था। महमूद गजनवी ने वि.सं. १०८१ (ई.स. १०२५) में सोमनाथ के मन्दिर पर आक्रमण करने के लिए गजनी से प्रस्थान किया।ईस्वी १०२५ में महमूद ने गुजरात पर छापा मारा, सोमनाथ मंदिर को लूट लिया और उसका ज्योतिर्लिंग तोड़ दिया । उसने २० लाख दीनार की लूंट की थी। सोमनाथ की विजय के बाद अन्हिलवाड़ा पर दंडात्मक आक्रमण हुआ । कुछ इतिहासकारों का दावा है कि ईस्वी १०३८ में मंदिर की तीर्थयात्रा के रिकॉर्ड हैं जो मंदिर को नुकसान का उल्लेख नहीं करते हैं। इसके पहले महमूद गजनवी ने इतनी बड़ी सेना का संचालन कभी नहीं किया था। गजनी से वह मुलतान आया और मुलतान से राजपूताना के विशाल मरुस्थल (रामप्रदेश)को पार कर उसने काठियावाड़ जाने का निश्चय किया। यहाँ के छोटे-छोटे राज्यों ने अपनी सेना के साथ उसका विरोध किया। महमूद गजनवी के अचानक आक्रमण की खबर पाकर भीमदेव( प्रथम)भी अपनी सेना के साथ, जो उस समय उपलब्ध थी; युद्ध के लिए आगे आये। गजनवी सेना बहुत अधिक होने के कारण भीमदेव को कन्थकोट (कच्छ) के किले में शरण लेनी पड़ी थी। महमूद गजनवी ने सोमनाथ मन्दिर को नष्ट किया और वहाँ से धन सम्पति लूट कर वापस रवाना हुआ।
भीमदेव ने और सेना एकत्र कर महमूद गजनवी को रोकना चाहा। वापस जाते समय महमूद गजनवी भीमदेव की सेना से भिड़ना उचित नहीं समझता था। अत: उसने रास्ता बदल कर सिन्ध से होकर गजनी की ओर कूच किया।
भीमदेव ने सिन्ध के राजा हम्मुक पर आक्रमण कर उसे पराजित किया। जब वह सिन्ध में युद्ध कर रहे थे, तब मालवा के राजा भोज के सेनापति ने अणहिलवाड़ा पर आक्रमण किया। राजधानी में राजा भीमदेव के अनुपस्थित रहने के कारण मालव सेना ने पाटण नगर को लूटा। इस युद्ध से गुजरात की बहुत अधिक क्षति हुई। सिन्ध से लौटने के बाद भीमदेव, राजा भोज की शक्ति को नष्ट करने में पूर्णतः जुट गये थे। उस समय आबू पर मालवा के परमारों की शाखा के धन्धु का शासन था। भीमदेव ने आबू पर आक्रमण कर दिया। धन्धु पराजित होकर मालवा के राजा भोज की शरण में मालवा चला गया। भीमदेव ने आबू को सरलतापूर्वक जीत कर अपने राज्य में मिला लिया। विमलशाह को अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया।भीमदेव ने मालवा पर भी आक्रमण किया।मालवा (धारा) के राजा भोज को युद्ध में परास्त किया था। अपने पड़ोसियों से निरन्तर युद्ध से भोज की सामरिक शक्ति कमजोर हो गई थी।
कर्णदेव( ईस्वी १०६४-१०९२)
गुजरात के चालुक्य (सोलंकी) वंश के शासक थे । उन्होंने अपनी राजधानी अनाहिलपताका (आधुनिक पाटन) से वर्तमान गुजरात और आसपास के क्षेत्रों पर शासन किया । कर्णदेव अपने पिता भीमदेव प्रथम के उत्तराधिकारी बने, जिन्होंने राजा भोज की मृत्यु के समय मालवा के परमार साम्राज्य पर आक्रमण किया था । राजा भोज के भाई उदयादित्य द्वारा कर्ण को मालवा से पीछे हटने के लिए मजबूर किया गया था । उन्होंने कलचुरी सेनापति को हराकर लता को चालुक्य क्षेत्र में मिला लिया , लेकिन कुछ वर्षों के भीतर इसे खो दिया। उन्हें नड्डुला के चाहमानों के खिलाफ भी हार का सामना करना पड़ा , जिन्होंने उनके शासनकाल के दौरान चालुक्य राजधानी पाटण पर छापा मारा था।
महाराजा कर्णदेव को आशापल्ली के एक भील प्रमुख को हराने और गुजरात में आधुनिक अहमदाबाद के साथ पहचाने जाने वाले कर्णावती नगर की नींव रखने का श्रेय दिया जाता है । कर्णदेव ने मायानल्लादेवी से शादी की, जो उनके पुत्र और उत्तराधिकारी जयसिंह सिद्धराज की माता थी ।
कर्णदेव के पुत्र,जयसिंह (शासन ईस्वी
१०९२-११४२) जिन्होंने सिद्धराज की उपाधि धारण की थी,वे एक महान पराक्रमी राजा थे, जिन्होंने भारत के पश्चिमी भागों पर शासन किया था। वह चालुक्य (सोलंकी ) वंश के शासक थे। जयसिंह की राजधानी वर्तमान गुजरात में अनाहिलपताका (आधुनिक पाटन) में स्थित थी । गुजरात के बड़े हिस्से के अलावा, उनका नियंत्रण राजस्थान के कुछ हिस्सों तक भी बढ़ा , उन्होंने अजमेर के शाकंभरी चाहमना(चौहान) राजा अर्नोराजा को वश में कर लिया , और पूर्व नड्डुला चाहमना शासक अशराजा ने उनकी आधिपत्य को स्वीकार किया था। जयसिंह ने परमारों को हराकर मालवा (वर्तमान मध्य प्रदेश में) के एक हिस्से पर भी कब्जा कर लिया था।उन्होंने चंदेल राजा मदनवर्मन के खिलाफ एक अनिर्णायक युद्ध भी किया था ।सिद्धराज जयसिंह नेअर्णोराज को ईस्वी ११३४ में हराया था। अन्हिलवाड़ा और अजमेर के राजकीय संबंध मजबूत करने के हेतु से सिद्धराज जयसिंह ने अपनी एक मात्र संतान पुत्री कंचनादेवी की शादी अजमेर के अर्णोराज चौहान से रचायी थी। इस दंपति के बेटे और सिद्धराज जयसिंह के दोहित्र सोमेश्वर चौहान ( पृथ्वीराज चौहान के पिता ) को सिद्धराज जयसिंह ने चालुक्य दरबार में अन्हिलवाड़ा/ अनाहिलपताका पाटण में पाला था।पृथ्वीराज का जन्म चौहान राजा सोमेश्वर और रानी कर्पूरादेवी(अनंगपाल तोमर की पुत्री) के घर हुआ था। पृथ्वीराज और उनके छोटे भाई हरिराज दोनों का जन्म गुजरात में हुआ था जहाँ उनके पिता सोमेश्वर को अणहिलवाडा
के चालुक्य दरबार में पाला था।इस तरह सिद्धराज जयसिंह, पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर चौहान के नाना लगते थे।
अर्णोराज चौहान,विग्रह राज तृतीय के पुत्र थे। ईस्वी ११३४ में सोलंकी शासक सिद्धराज जयसिंह उपरांत उनके अनुगामी और भतीजे कुमारपाल ने अर्णोराज चौहान को ईस्वी११४५ और ११५० में आबु के निकट युद्ध में दो बार हराया था।अर्णोराज चौहान की बहन देवलगिरी की शादी कुमारपाल के साथ हुई थी।इस तरह अर्णोराज चौहान , सिद्धराज जयसिंह के दामाद और कुमारपाल सोलंकी के साले लगते थे।इस का मतलब दोनों शासक एकदूसरे के रिश्तेदार होते हुए भी अपने साम्राज्य का विस्तार करने हेतु एक दुसरे से लड़ते रहते थे।
कुमारपाल चौलुक्य (सोलंकी) राजवंश के शासक थे।सिद्धराज जयसिंह को पुत्र संतान नहीं थी। अतः सिद्धराज जयसिंह के भतीजे कुमारपाल अनुगामी शासक हुए थे।
इनके राज्य की राजधानी गुजरात के अनहिलवाडा (आधुनिक सिद्धपुर पाटण) में थी। कुमारपाल ने ईस ११४३ से ११७२ करीब २९ वर्षो तक शासन किया था। उन्होंने ने गुजरात में तारंगा हिल जैन मंदिर व राजस्थान के पाली में सोमनाथ मंदिर बनवाया था। चौहान विग्रहराज चतुर्थ ने अपने पिता की हार का बदला लेने के लिए चालुक्यों के खिलाफ कई अभियान चलाए थे।ऐसा प्रतीत होता है कि विग्रहराज चतुर्थ ने कुमारपाल के कुछ क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।
अजयपाल (ईस्वी ११७१ - ११७५) गुजरात के चालुक्य (सोलंकी) वंश के
शासक थे ।चालुक्य शासक अजयपाल, कुमारपाल के अनुगामी व कुमारपाल के भाई महिपाल के पुत्र थे।अजयपाल कुमारपाल के भतीजे व अनुगामी शासक थे। उन्होंने अपनी राजधानी अनाहिलपताका (आधुनिक पाटन) से थोड़े समय के लिए वर्तमान गुजरात और आसपास के क्षेत्रों पर शासन किया।अंगरक्षक द्वारा वर्ष ११७६ में अजयपाल की हत्या के बाद राज्य की बागडोर महारानी नायकी देवी के हाथ में आ गई थी, क्योंकि तब उनके पुत्र मूलराज बाल्य अवस्था में थे।
मुलराज द्वितीय:
चालुक्य शासक अजयपाल के दो पुत्र थे। मूलराज द्वितीय और भीमदेव द्वितीय।इन में मूलराज द्वितीय बड़े पुत्र थे। अतः वे बहुत ही छोटी उम्र में गादी नसीन हुए थे। मूलराज ( शासनकाल ईस्वी ११७५-११७८), जिसे बाल मूलराज के नाम से भी जाना जाता है, वे गुजरात के चालुक्य वंश के शासक
थे । उन्होंने अपनी राजधानी अनाहिलपताका (आधुनिक पाटन) से वर्तमान गुजरात और आसपास के क्षेत्रों पर शासन किया । वह एक बच्चे के रूप में सिंहासन पर चढ़े, और उनकी माँ नायकी देवी ने उनके छोटे शासनकाल के दौरान रीजेंट के रूप में काम किया । जब वह १३ वर्ष का थे, तब नायकीदेवी के नेतृत्व में चालुक्यों ने घुरिद आक्रमण को खदेड़ दिया था।
नायकी देवी चालुक्य वंश की महारानी थी, जिसने ईस्वी ११७८ में मोहम्मद ग़ोरी को परास्त किया था।वीरांगना नायकी देवी परमादी की पुत्री थी। इनका विवाह गुजरात के महाराजा अजयपाल से हुआ था।
मोहम्मद ग़ोरी को जब पता चला कि गुजरात पर एक विधवा रानी का शासन है तो उसने गुजरात पर आक्रमण कर दिया।पूर्व सूचना के आधार पर नायिका देवी की सेना ने गुजरात की राजधानी पाटण से दूर आबू पर्वत की तलहटी में कासिन्द्रा /कायद्रा के निकट पहुँच कर गौरी से युद्ध किया। इस युद्ध में गौरी बुरी तरह से घायल हुआ और उसे प्राण बचा कर भागना पड़ा. इसके बाद गौरी ने कभी गुजरात की ओर मुड़ कर नहीं देखा।जिस महमूद गोरी ने तराई के द्वितीय युद्ध में ईस्वी ११९२ में पराक्रमी पृथ्वीराज (तृतीय)को हराया था ,उसे तो गुजरात की विरांगना नायकी देवी ईस्वी ११७८ में हरा चुकी थी ।तराइन का द्वितीय युद्ध वर्ष ईस्वी ११९२ में पृथ्वीराज चौहान और शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी के मध्य लड़ा गया था। तराइन के इस युद्ध को 'भारतीय इतिहास' का एक विशेष मोड़ माना जाता है। इस युद्ध में मुस्लिमों की विजय और राजपूतों की पराजय हुई।तराइन की दूसरी लड़ाई मुहम्मद गोरी और राजपूत चाहमानों और उनके सहयोगियों के नेतृत्व में ईस्वी ११९२
में पृथ्वीराज चौहान के नेतृत्व में घुरिद सेना के बीच लड़ी गई थी। इस लड़ाई में राजपूतों की हार देखी गई, जिससे उत्तर भारत को भविष्य के आक्रमणों और तुर्किक जनजातियों के वर्चस्व के लिए खोल दिया गया।
अणहिलपताका के चालुक्य शासक मुलराज द्वितीय की बहुत कम उम्र में ईस्वी ११७८ में मृत्यु हो गई, और उनके भाई भीम द्वितीय ने उनका उत्तराधिकारी बना लिया।
भीम देव द्वितीय ने सभी ११ चालुक्य शासकों में सबसे अधिक ६२ वर्षो तक ईस्वी ११७८-१२४० शासन किया था।भीम द्वितीय चालुक्य राजा अजयपाल के छोटे पुत्र थे । वह कम उम्र में अपने भाई मूलराज द्वितीय के उत्तराधिकारी बने। शुरू में उनकी कम उम्र का फायदा उठाकर, उनकी कुछ प्रांतीय राज्यपालो ने स्वतंत्र राज्यों की स्थापना के लिए उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया। उनके वफादार सामंत अर्नोराजा वाघेला उनके बचाव में आये, और विद्रोहियों से लड़ते हुए मारे गये।अन्हिलवाड़ा/अनहिलपताका गुजरात के शासक भीमदेव द्वितीय और शाकंभरी चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय के बीच नागौर और आबु पर्वत के पास दो बार युद्ध हुआ था। काव्य "मेरूतुंगा "के अनुसार पृथ्वीराज ने भीमदेव द्वितीय नहीं बल्कि उनके सेनापति जगदेव प्रतिहार को हराया था। चौहान और चालुक्य राजाओं के बीच ईस्वी ११८७ में शांति समझौता हुआ था।भीम द्वितीय (शासन ईस्वी ११७८-१२४०), जिसे भोला भीम के नाम से भी जाना जाता है , एक भारतीय राजा था जिसने वर्तमान गुजरात के कुछ हिस्सों पर शासन किया था । वह चालुक्य वंश के शासक थे। उनके शासनकाल के दौरान, सामंतों के विद्रोहों के साथ-साथ घुरिदों , परमारों और देवगिरी के यादवों द्वारा बाहरी आक्रमणों के परिणामस्वरूप राजवंश की शक्ति में काफी गिरावट आई । हालाँकि, राज्य को उनके सेनापतियों अर्नोराज, लवणप्रसाद और वीरधवल ने बचा लिया था, जिनके परिवार ने वाघेला वंश की स्थापना की थी । अर्नोराज के वंशज लवणप्रसाद और विरधवल (द्वितीय) भीम द्वितीय के शासनकाल के दौरान शक्तिशाली हो गए, और अंततः संप्रभु वाघेला वंश की स्थापना की ।
चालुक्य वंश के अंतिम शासक त्रिभुवनपाल थे, जिन्होंने ईस्वी १२४०-११४४ तक सिर्फ चार वर्ष शासन किया था।
बाद में वाघेला वंश का शासन शुरू हुआ था।भीम द्वितीय के सेनापति लवनप्रसाद और उनके पुत्र विरधवल ने वाघेला वंश की स्थापना की , जिसने भीम द्वितीय की मृत्यु के कुछ वर्षों बाद गुजरात में चालुक्यों की जगह ली।लेखक उदयप्रभा का दावा है कि भीम द्वितीय ने स्वयं अपना राज्य लवणप्रसाद को सौंपा था, क्योंकि लवणप्रसाद के पिता अर्नोराज वाघेला ने विद्रोही सामंतों को हराकर अपनी जान न्यौछावर करके उन्हें राज सिंहासन पर स्थापित किया था।
गुजरात में बघेला वंश ने सबसे कम समय शासन किया था और कर्णदेव बघेला अंतिम हिन्दू राजपूत राजा था ।उसका शासनकाल सिर्फ छह साल का छोटा परंतु बहुत ही संधर्षभरा था। अल्लाउदीन खिलजी ने भारत के सबसे समृद्ध प्रदेश गुजरात की संपत्ति लूटने, सुप्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर का विध्वंस करके उसे लूंटने और गुजरात के बंदरगाहों पर व्यापार वाणिज्य पर अंकुश प्राप्त करने के उद्देश्य से गुजरात पर दो बार ईस्वी १२९९ व पुनः ईस्वी १३०४ में आक्रमण किया था। ईस्वी १३०४ में बघेल साम्राज्य का विध्वंस करके गुजरात में मुस्लिम शासन की स्थापना हुई थी।
माहिती संकलन:डॉ भैरवसिंह राओल