BOYS school WASHROOM - 23 in Hindi Moral Stories by Akash Saxena "Ansh" books and stories PDF | BOYS school WASHROOM - 23

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BOYS school WASHROOM - 23

वॉचमैन को किसी क्लासरूम में कुछ रौशनी सी लगती है….वो आँखें चौड़ाकर और घूरता है तो एक बार फ़िर उसे रौशनी जलती-बंद होती हुई दिखाई देती है...वो तुरंत पीछे हटकर वो ….'सर मुझे किसी क्लास में रौशनी सी दिखी अभी' अविनाश को बताता है…..


रौशनी! कैसी रौशनी! इतनी तेज़ बिजली दमक रही है इसी की चमक होगी…वैसे भी हम एक एक क्लासरूम छान चुके हैं अब हमारे अलावा यहाँ कोई नहीं...अविनाश ये कहकर उसकी बात को टाल देता है।


नहीं साहब मैंने सच में टॉर्च की रौशनी देखी…...वॉचमैन की बात को यहीं काटते हुए, नील भी तंज सा कसते हुए 'तुम्हारा वहम होगा, ऐसा होता है अक्सर, ऐसे मौसम में….और शराब के नशे में भी, हर जगह रौशनी सी दिखाई देने ही लगती है।' ये सुनकर वॉचमैन भी कुछ भुनभुनाते हुए होकर एक कोने में जगह पकड़ लेता है।….



'अरे हाँ, मै तो भूल ही गया!' अविनाश को एकदम से कुछ याद आता है और वो तुरंत अपनी जेब से फ़ोन निकालकर नील के आगे रखता है। नील एक पल मे ही वो फ़ोन हाथ में उठाकर खड़ा होते हुए पूछता है…'ये फ़ोन तुम्हें कहाँ मिला अविनाश? ये तो अमन का फ़ोन है!'


"यहीं स्कूल के वाशरूम में पड़ा था।"


"अम्मू तो एक सेकंड के लिए भी अपने फ़ोन को इस तरह नहीं छोड़ सकता...इसका मतलब कुछ तो गलत है।' ऐसा कहते हुए गुंजन फ़ोन अपने हाथों में ले लेती है और उसे खोलने की कोशिश करने लगती है।


तभी प्रज्ञा बोल पड़ती है''नहीं गुन्नू ऐसे नहीं कहते बेटा! सब ठीक होगा...दोनों बच्चे बहुत समझदार हैँ...दोनों सेफ होंगे कहीं'।



अविनाश और नील इधर-उधर टेंशन में घूमने लगते हैँ और प्रज्ञा बेचारी अपनी सोच में खोई हुई होती है। ऑडिटोरियम के अंदर सभी का कुछ समय एक सवालिया खमोशी में गुजरता है….और बाहर के मौसम में भी तेज़ हवा शांत हो चुकी होती है। लेकिन बारिश अभी भी अपने पूरे ज़ोर पर हो रही होती है।


"कितना टाइम हुआ है अवि?...बाहर देखो ना मौसम कुछ शांत हुआ की नहीं'प्रज्ञा, सो रही गुंजन का सर सेहलाते हुए धीरे से पूछती है।


"चार बजने वाले हैं प्रज्ञा!" कहकर अविनाश टॉर्च उठाकर साइड से हल्का सा गेट खोलता है और फ़िर बाहर टॉर्च हिलाकर देखता है।

'मौसम तो कुछ शांत लगता है...लेकिन ये बादल आज किसके ग़म में इतना रोये जा रहे है।'कहता हुआ नील भी उसके पीछे खड़े होकर देखने लगता है।


"हम लोग क्या ऐसे ही हाथ पर हाथ रख कर कब तक बैठे रहेंगे।" गुंजन भी हलचल से जागकर पूछ पड़ती है।

"हाँ अवि! और कब तक हम बस इंतज़ार ही करते रहेंगे।" प्रज्ञा भी गुंजन की बात समझते हुए बोल पड़ती है।


इस सबसे अब चैन से सोया हुआ वॉचमैन भी उठ ही जाता है और पर्दे को कसकर लपेटते हुए वो उठकर सबसे कहता है "आप सब लोग बहुत थके हुए हैं और शायद आप लोगों ने काफ़ी टाइम से कुछ खाया भी नहीं है..तो अगर आप लोगों को कोई आपत्ति ना हो तो मेरे कमरे में बाहर कुछ खाने का सामान रखा है और मै आपके लिए चाय का इंतजाम कर सकता हूँ।'


"नहीं भईया इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" प्रज्ञा झट से कहती है।


"नहीं भईया आप ले आओ ठीक रहेगा….प्रज्ञा ने कल से कुछ नहीं खाया है।"अविनाश उसे कहता है।


"हाँ कुछ खा लेना ठीक रहेगा सबका...वैसे भी उजाला होने ही वाला है….उजाला होते ही हम तुरंत बच्चों को ढूंढ़ने निकलेंगे" नील भी वॉचमैन की बात मान लेता है। और वॉचमैन वहां से निकलकर स्कूल गेट के पास अपने कमरे की तरफ़ भीगते हुए निकलने लगता है। तभी नील "तुम्हारा नाम क्या है वैसे" आवाज़ लगाते हुए वॉचमैन से पूछता है।


"प्रकाश!" वॉचमैन बारिश के बीच चिल्ला कर बोलता है…"प्रकाश नाम है हमारा।" और वो अपने कमरे की तरफ़ निकल पड़ता है।


"हुह! प्रकाश! तभी इसे हर कहीं रौशनी नज़र आती है" कहते हुए नील वापस अंदर आकर बैठ जाता है।

"क्या हुआ नील कोई बात"

"मुझे तो इस पर ही कुछ शक सा हो रहा है अविनाश...हुलिया देखा है तुमने इसका आँखें नशे से लाल हो रखी हैं...ये रखवाली करता होगा स्कूल की बेवड़ा साला।"

"क्या पता कौन कैसा है आज के समय मै लेकिन ऐसा भी मत बोलो उसे, उसने जस्ट अभी हमें खाने के लिए ऑफर किया है।"


"अरे छोड़ो ना तुम दोनों……" प्रज्ञा दोनों को वहीं चुप कराकर…..बाहर बारिश की तरफ़ देखने लगती है।