Apang - 52 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 52

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अपंग - 52

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अगले दिन अपने समय पर भानु ऑफ़िस पहुँच गई थी लेकिन कुछ अनमनी सी थी । आजकल रिचार्ड को देखकर उसका दिल घड़कने लगता और पेट में कुछ गुड़गुड़ होने लगती । कितना समझदार था रिचार्ड जो उसने राजेश और रुक का उस ब्रांच से कहीं और ट्रांसफर कर दिया था । वैसे वह उसे फ़ायर भी कर सकता था, कोई भी बहाना बनाकर। वह मालिक था, अपनी फ़र्म का, उससे कोई क्या पूछ सकता था?

आफ़िस में सब कुछ ऐसा ही रहता, नार्मल --जैसे और सब एम्प्लॉई रहते, वैसे ही वह भानु के साथ रहता। वहाँ जब आता शोफ़र ड्रिवन कार में आता। जब भानु से मिलने जाता अपने आप गाड़ी चलाकर जाता। वहाँ के लोकल लोगों को तो इन सब बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन अपने भारतीय भाई-बंधुओं की आँखों में तो एक अजीब सी उत्सुकता, आँखों में एक अजीब सा भाव भरा ही रहता । कोई कुछ न कहकर भी अपनी आँखों, अपने व्यवहार के माध्यम से कुछ तो कह ही जाता है। 

ऑफ़िस का काम समाप्त हो गया था, भानुमति अपनी कार की और बढ़ गई । लगभग वह हर दिन ही रिचार्ड से मिलकर आती थी लेकिन न जाने क्यों आज वह उससे बिना मिले घर के लिए निकल आई । 

घर आकर उसने मुँह-हाथ धोया और बेटे को लेकर खेलने लगी । जैनी उसके लिए कॉफ़ी बनाने चली गई थी । भानु पुनीत के साथ खेल तो रही थी लेकिन उसके दिल में रिचार्ड धड़क रहा था और दिमाग में राजेश ! आज वह रुक के साथ किसी काम से उसकी ब्रांच में आया था | वह जानता तो था ही कि भानु उस ब्रांच में आती है । उसको एक केबिन दी गई थी जिसकी नेम-प्लेट पर लिखा था Ms.Bhanumti, उस पर कोई सरनेम या उसे जुड़ा कोई नाम नहीं था । 

उसके दिल में सूईयाँ चुभने लगीं लेकिन वह एवॉयड करके रुक के हाथों में हाथ डाले आगे बढ़ गया । भानु में अंदर से उसके चेहरे के भाव देख लिए थे । उन दोनों का सामना नहीं हुआ फिर भी दोनों के मनों में एक अजीब सी उलझन तो आ ही गई ही । उसका मन अजीब सा हो उठा था, इस आदमी के कारण वह आज इस स्थिति में थी। 

जैनी अभी कॉफ़ी बना ही रही थी कि राजेश पहुँच गया । 

"गुड़ इवनिंग सर ---" जैनी ने दरवाज़ा खोला । 

"स्मैलिंग कॉफ़ी ---मी टू ---जैनी --" उसने अंदर आते हुए जैनी से कहा । 

"यस सर...." कहकर वह अंदर जाने लगी। 

"एवरीथिंग इज़ ओ.के....? आर यू कंफ़र्टेबल हीयर?"उसने जैनी से पूछा। 

"ओ!यस...वैरी मच सर...थैंक्यू। "उत्तर देकर मुस्कुराती हुई जैनी किचन की ओर बढ़ गई। 

"हाय--एवरीबडी --"सिटिंग रूम में भानु ने नीचे कार्पेट पर बच्चे के खिलौने फैला रखे थे । 

"हैलो, पुनीत डार्लिंग ---" रिचार्ड ने आगे बढ़कर उसे प्यार किया । अब बच्चा उसे देखकर उछलने लगा था । 

रिचार्ड ने उसे गोदी में उठा लिया और उछालने लगा । पुनीत खिलखिलाकर हँस रहा था जैसे बाप-बेटे आपस में खेल रहे हों । भानु के मुँह से एक लंबी आह निकल गई और दिमाग सोचने लगा कि कैसा बंदा है राजेश जिसे अपने बेटे को देखने का मन ही नहीं करता। उसकी कोई भी चिंता नहीं है । आख़िर कैसा बाप है?

शायद उसका यही स्वभाव है कि अपने अलावा वह और किसी के लिए सोच भी नहीं सकता !

आख़िर क्यों वह उसके बारे में सोचती है?