रामू एक किसान था। इस साल पड़े सूखे ने उसके खेतों के साथ ही उसे भी सूखा दिया था, लेकिन वह हिम्मती और मेहनती था। आत्महत्या जैसा कायराना विचार भी उसके मन में नहीं आया और अपनी पत्नी और दो छोटे बच्चों के साथ शहर में रोजी रोटी की तलाश में आ गया।
सड़क के किनारे एक झुग्गी बस्ती के नजदीक चार डंडे गाड कर उसपर चद्दर तानकर उसने अपना आशियाना बना लिया।
शहर में आकर वह दिहाड़ी मजदूरी करने लगा।
रोज काम भी नहीं मिल रहा था, फिर भी गृहस्थी की गाड़ी किसी तरह घिसट रही थी। दिवाली फिकी ही रही थी सो गाँव की बहुत याद आ रही थी। दिवाली के बाद से वह चार दिन ही काम पा सका था लेकिन उसके मालिक ने अभी और काम है कहकर उसे पैसा नहीं दिया था।
उस रात हजार और पाँच सौ के नोटों पर प्रतिबन्ध की खबर सुनकर उसे बड़ी ख़ुशी हुई। चलो अब पूरे देश का काला धन बाहर आ जायेगा। सरकार को रकम मिलेगी तो वो गरीबों की मदद कर पायेगी।
अपने साथ काम करनेवाले मित्रों को भी वह यही समझाता कि अब वाकई हमारे अच्छे दिन आनेवाले हैं। कुछ दिन और बस अब काले धन और भ्रष्टाचार का खात्मा ही समझो। कुछ उसकी बात का समर्थन करते तो कुछ हँसी उड़ाते।
उसी रात को जब उसकी पत्नी ने उससे कहा सुबह दूध लेने के लिए उसके पास पैसे नहीं बचे हैं सिर्फ एक पाँच सौ का नोट जो उसने किसी अचानक आई मुसीबत से बचने के लिए छिपा रखे थे वही बचा है तो चिंता की लकीरें उसके चेहरे पर खींच गईं।
सुबह सुबह ही मालिक से अपने पैसे मांगने पहुँच गया। उसे देखते ही मालिक नाराज होता हुआ बोला, ” तुझे बोला था न कुछ दिन रुकने के लिए ? अभी और काम है सब साथ में दे देता।” फिर पाँच सौ के तीन नोट उसके सामने फेंकते हुए गुस्से से बोला ” ले, और फिर कभी मेरे यहाँ काम पर मत आना।"
रामू नोटों को हाथों में भींचे गुस्से पर काबू पाता अपनी झुग्गी पर लौट आया।
बगल में ही रेहड़ीवाले से अपनी मज़बूरी बताकर उसने कुछ ब्रेड और दूध की एक थैली उधार ले ली थी क्योंकि उसने पांच सौ के नोट लेने से मना कर दिया था।
दूसरे दिन सुबह जल्दी रामू अपना आधार कार्ड लेकर बैंक पहुँच गया। लोगों की लम्बी कतार देखकर उसे काफी निराशा हुई, लेकिन और कोई विकल्प नहीं था सो कतार में खड़ा हो गया।
बैंक खुलने में अभी देर था कि तभी उसे किसीने बताया ‘ उन लोगों को पहचानपत्र की फोटोकापी जमा करानी होगी पैसा बदलवाने के लिए जिनके नाम से बैंक में खाता नहीं है ‘। रामू के पीछे भी काफी लोग खड़े हो गए थे। सभी के हाथों में पहचानपत्र की फोटोकापी और एक फॉर्म भी था। कतार से निकलने का मतलब था कि फिर से नए सीरे से कतार लगाना। मरता क्या न करता ? फोटोकापी लेने के लिए गया तो वहाँ भी बीस लोग कतार में थे। अपनी बारी आने पर एक फोटोकापी के एक के बदले दो रुपये देकर वह कतार में लग गया। शाम लगभग सात बजे वह दो हजार की एक नयी नोट लेकर घर पहुँचा।
पत्नी भूखे बच्चों के संग इंतजार कर रही थी। उसे नोट दिखाकर धीरज बंधाकर ‘ अभी आता हूँ ‘ कहकर रामू समीप ही स्थित बाजार में चले गया।
बड़ी देर तक रामू को वापस न आते देख उसकी पत्नी चिंतित हुई। बच्चे भूख से अलग बिलख रहे थे । रात लगभग दस बजे रामू आता दिखा लेकिन उसके दोनों हाथ खाली थे।
रामू नजदीक आकर बच्चों के नजदीक बिछी चादर पर लुढ़क गया और मुँह दबाकर सिसक पड़ा ।
उसकी पत्नी ने देखा और सारा माजरा समझ गयी ।
रामू की मुट्ठी में भींचे हुए नए गुलाबी नोट उसे मुँह चिढाते हुए लगे।