soi takdeer ki malikayen - 12 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | सोई तकदीर की मलिकाएँ - 12

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 12

 

सोई तकदीर की मलिकाएँ 

 

12

 

शहर के बङे डाक्टर के जवाब दे देने पर भोला के पास कोई चारा ही नहीं था । वह बेबे को घर ले आया । बेबे की इस अज्ञात बीमारी से घर का माहौल उदास हो गया था । गम धुआँ बन कर भीतर फेफङों तक भर गया था । हर पल चिंता बनी रहती । क्या बेबे ... ? इसके आगे सोचने से भी उन्हें डर लगता । वे एक झटके से बुरे ख्यालों को बाहर निकाल फेंकते । मन को ईश्वर के चरणों में लगाने की कोशिश करते ।
सतगुरु मेहर करे । परमात्मा सहाई हो जाय । बेबे जल्दी से ठीक हो जाए – वे बार बार अरदास करते । प्रार्थनाएँ करते । भोला और बसंत कौर एक पल के लिए भी बेबे को अकेला न छोङते । रात को भी बारी बारी से बेबे के सिरहाने बने रहते । बसंत कौर उनके सिरहाने बैठ जपजी साहब , रहरास और भगवत गीता का पाठ करती रहती । केसर थोङी थोङी देर बाद भीतर आती । उन्हें लेटा हुआ देखती । जब कुछ समझ न आता तो बेबे की टांगें या बाहें दबाने लगती ।
केसर का चेहरा देख देख बेबे का रोना निकल जाता । होता तो वही है जो भाग्य में लिखा होता है । पर बेबे की आत्मा उन्हें सौ सौ लाहनत देती । वे खुद को कसूरवार मान बैठी थी । उनके अपने घर में उनके होते इस बच्ची के साथ उनका अपना बेटा , उनका अपना खून , इसे काठ की गुङिया समझ कर खेलता रहा और उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगी । जब वह पाप उजागर हो गया तो खानदान की इज्जत बचाने के चक्कर में उन्होंने काढा कुछ ज्यादा ही पिला दिया कि लङकी का अंदर तक सूख गया ।
सोच कर वे परेशान हो जाती । अपनी उदासी और पश्चाताप के चलते वे चारपाई से लग गयी । किसी की कोई दवा और दुआ काम ही नहीं कर रही थी । बेबे की बीमारी लाइलाज हो गयी थी । रब का कहर यह कि किसी वैद्य , हकीम या अंग्रेजी डाक्टर के पल्ले यह बीमारी पङ ही नहीं रही थी । लोग आते । नब्ज देखते । जीभ , छाती , पेट की जाँच करते और सिर हिला कर चले जाते । दवा तो तब दी जाती न जब मर्ज समझ में आता । तब ज्योतिषी बुलाए जाते , उन्होंने अपने पत्रे बांचे । वे भी तरह तरह के जतन करके थक गये । कोई धागा ताबीज पूजा असर नहीं कर रहे थे । भाई अब तो भगवान ही मालिक है – वे दोनों हाथ ऊपर उठा कर कहते और सिर झुकाए चले जाते । भोला और बसंत कौर बेबसी में यह सब देखते रहते ।
अब जिंदगी की उम्मीद दो पैसे की रह गयी थी । बसंत कौर ने भोला सिंह से सलाह की । उसी समय से दरवाजे पर मीठे केसरी रंग के चावलों का लंगर लगा दिया गया । साथ में मीठा शरबत भी दूध में रूहआफ्जा डाल कर पिलाया जाने लगा । दरवाजे के आगे से किसी को भी बिना खाए पीए जाने न दिया जाता । गुरद्वारे में ओरियंट के चार पंखे लगवा दिये गये । मंदिर में मोटा चढावा चढाया गया । गाय भैंसों को चारा सुबह शाम बेबे का हाथ छुआ कर डाला जाता । जो बन पङता , जितना समझ में आता , उतना दान हर रोज बेबे के हाथों करवाया जा रहा था ।
फिर एक दिन भोले ने अपनी लाड प्यार से पाली तीन साल की बछिया भूरी को बेबे के हाथों पांडे को दान करवा दिया । सजी संवरी स्वस्थ बछिया पाकर राम आसरे पंडित की आत्मा तृप्त हो गयी । वह बेबे और भोला को सौ सौ आशीर्वाद देता हुआ खुशी खुशी विदा हुआ । गेजा भूरी को उसके घर छोङ आया ।
उस दिन शाम को बेबे के गले से एक कटोरी दूध नीचे उतरा । बसंत कौर ने ईश्वर का शुक्र मनाया । आखिर दो महीने बाद बेबे ने कुछ खाया पिया तो सही , बेशक दो घूंट दूध ही सही । शायद यह नामुराद बीमारी पीछा छोङ कर चली जाय । बेबे अब ठीक हो जाए ।
दूध पीते ही बेबे की आँखें बंद हो गयी । वह सो गयी या बेहोश हो गयी । कौन जाने ? भोला और बसंत कौर पायताने बैठे उसकी टांगे दबाते रहे । चार घंटे बाद बेबे ने आँखें खोली । भोला सिंह ने पानी से भरा गिलास बेबे के मुँह से लगाना चाहा पर बेबे ने पानी पीने से मना कर दिया । उसने इशारे से बसंत कौर को अपने पास बुलाया और केसर को बुलाने के लिए कहा । बसंत कौर ने केसर को आवाज दी । केसर बेबे की चारपाई के पैताने आकर खङी हो गयी । बेबे ने अपना कमजोर सा हाथ ऊपर उठाने की असफल कोशिश की । केसर सरक कर हाथ के पास आ गयी । बेबे ने उसके सिर पर प्रेम से हाथ फिराया । फिर बसंत कौर को देखा – बहु ये गरीबनी तेरे घर की कूकर । तू बङे घर की बेटी है । हमेशा बङप्पन दिखाना । इसका ख्याल रखना । इसे कोई तकलीफ न होने देना । तेरी चाकरी करेगी । दो रोटी खाकर पङी रहेगी ।
जी बेबे जी मैं इसका पूरा ध्यान रखूंगी । आप इसकी चिंता न करो । पर आप ऐसे क्यों बोल रहे हो । हम सब का ध्यान रखने के लिए आप हो न । आप बहुत जल्दी ठीक हो जाओगे ।
बेबे को इतना बोलने से सांस चढ गयी थी । वे दो मिनट रूकी । अपने भीतर की सारी शक्ति इकट्ठी की । फिर भोला सिंह को चारपाई के पास बुलाया ।
हाँ बेबे जी , कहो ।
सुन भोले , किया तो तूने गलत । पर जो हो गया , सो हो गया । उसे तो अब बदला नहीं जा सकता । ये बसंत कौर है । घर की बहु । इस घर की इज्जत । इसकी हमेशा इज्जत करना । हर काम इससे पूछ कर करना । जो जगह घर में इसकी है , वह किसी और की हो नहीं सकती । यह मालकिन है इस घर की । तुझे यह बात हमेशा याद रहनी चाहिए ।
जी बेबे जी ।
और इस केसर का तू हाथ पकङ कर लाया है तो इस हाथ पकङे की लाज सारी जिंदगी निभाना । जब तक यह जिए , इसे किसी चीज की कमी न होने देना । न रोटी की , न कपङे की । दो रोटी खाएगी और यहाँ हवेली मे ही रहेगी । गाय भैंसें संभालती रहेगी ।
जी बेबे जी ।
और केसर तू , हमेशा बसंत कौर को बङी बहन समझना । हमेशा इसके कहने में रहना । कभी इसकी हुकमअदूली न करना ।
केसर ने सिर हिलाकर बेबे को आश्वस्त किया ।
बोलते बोलते उन्होंने लंबी सांस ली । अचानक उनकी सांसें भारी होने लगी और दो मिनट में ही उनके हाथ पैर ठंडे होने लग गये । केसर और भोला सिंह उनकी हथेलियाँ और तलवे मलने लगे । बसंत कौर भाग कर गंगाजल और तुलसीदल ले आई । जैसे ही भोला सिंह ने गंगा जल उनके मुँह में डाला , वे अनंत यात्रा पर निकल गयी ।

 

बाकी कहानी फिर ...