Mamta ki Pariksha - 74 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | ममता की परीक्षा - 74

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ममता की परीक्षा - 74



भोर होते ही बिरजू ,चौधरी और बसंती सहित लगभग पच्चीस गाँव वाले भी थाने पर हाजिर थे।

दरोगा शायद अभी तक नहीं आया था। सिपाही भी बदले हुए लग रहे थे। भारी भीड़ देखकर एक सिपाही बाहर आया और सबसे आगे खड़े बिरजू से पूछा, "सुजानपुर से आये हो ? रात को हुए बलात्कार के सिलसिले में ?"

"जी साहब !" बिरजू ने झट से जवाब दिया।

"लड़की कहाँ है ?" सिपाही ने फिर पूछा।

बसंती को आगे करते हुए बिरजू ने भोलेपन से कहा, "ये खड़ी है साहब !"

बसंती को सिपाही की भूखी निगाहें अपने जिस्म में चुभती हुई सी महसूस हुईं जब उसने उसको अपनी तरफ घूर कर देखते हुए पाया।

"ठीक है ! सबको बाहर ही रहने दो और तुम दोनों अंदर आओ।" कहते हुए उस सिपाही ने बसंती और बिरजू को अंदर आने का इशारा किया।

सिपाही के पीछे चलते हुए दोनों थाने के मुख्य कमरे के बराबर में बने हुए सींखचों वाले हवालात के सामने पहुँच गए जिसमें चार पांच अपराधी लेटे हुए थे और तीन शहरी दिख रहे लड़के सींखचों को पकड़े हुए खड़े थे। सींखचों के पास पहुँच कर अंदर लेटे हुए कैदियों को भद्दी सी गाली देते हुए वह सिपाही बोला, "सब लोग उठकर एक लाइन में खड़े हो जाओ फटाफट।"

कुछ ही मिनटों में सभी कैदी एक कतार में खड़े हो गए। तब तक एक दूसरा सिपाही वहाँ पहुँच गया जिसने सींखचों वाला दरवाजा खोल दिया।

पहले सिपाही ने बिरजू से कहा ,"देखो, इस लड़की से कहो कि वह इन सब लड़कों को ध्यान से देखे और पहचाने कि इनमें से किन लड़कों ने उसके साथ गलत हरकत की थी। चलो फटाफट, जल्दी !"

उसकी बात समझकर बसंती और बिरजू दोनों हवालात में अंदर कतार में खड़े सभी अपराधियों को एक एक कर गौर से देखने लगे। कुछ लड़के घबराए हुए थे जबकि अधिकांश अपराधियों के चेहरे पर कुत्सित मुस्कान फैली हुई थी। दुबारा सबको ध्यान से देखने पर बसंती ने एक लड़के की तरफ इशारा किया।

वह सुक्खी था, रॉकी का साथी। जबकि उसके बगल में ही खड़े उसके साथी रॉकी और राजू मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।
सुक्खी की पहचान होते ही बिरजू ने उसका गिरेबान पकड़ लिया लेकिन तत्परता से दोनों सिपाहियों ने उसपर काबू पा लिया और उसे हवालात से बाहर धकेल कर हवालात के सींखचों वाले दरवाजे पर ताला लगा दिया।

बिरजू अभी तक क्रोध के आवेग से काँप रहा था और सुक्खी को देखते हुए अनापशनाप बके जा रहा था। तभी बाहर जीप रुकने की आवाज सुनाई पड़ी और दरोगा विजय ने एक हाथ में रूल और दूसरे हाथ में अपनी टोपी सँभालते हुए थाने के इस कक्ष में प्रवेश किया।

बिरजू पर नजर पड़ते ही वह खुशी दिखाते हुए बोला ,"आ गए तुम ? और वो लड़की भी आई है ? बहुत बढ़िया ! देखो हमने कहा था न कानून के हाथ लंबे होते हैं। देखो पकड़े गए सब स्साले ! ये शहरी लौंडे यहीं पास के गेस्ट हाउस में रंगरेलियाँ मनाने शहर से यहाँ आये हुए थे। मुखबिर से खबर मिलते ही रात को ही उठाया है तीनों को।"
फिर सिपाही से मुखातिब होते हुए बोला, "अरे यादव ! पहचान करा दी उन हरामियों की इनके सामने ?"

"जी साहब, लेकिन इन्होंने एक को ही पहचाना है। " सिपाही यादव ने तुरंत ही मुस्तैदी से जवाब दिया।

"काहें ?" कहते हुए अब दरोगा विजय की सवालिया निगाहें बसंती पर केंद्रित हो गईं।

डरते हुए बड़ी धीमे स्वर में बसंती इतना ही कह पाई ,"वो इसलिए साहब कि बाकी के दोनों हमसे थोड़ी दूर खड़े थे और अँधेरा भी था इसलिए हम उनका चेहरा ठीक से नहीं देख पाए थे। लेकिन इसको तो हम कभी नहीं भूल पाएंगे, क्योंकि इससे पहले कि ये आदमी हमको अपनी गिरफ्त में मजबूती से पकड़ता , हमने इसको अच्छी तरह से देख लिया था।"

" हुँ .." कहने के बाद दरोगा की नजरें कुछ सोचने के अंदाज में सिकुड़ गईं। कुछ सोचते हुए उसने सिपाही को निर्देश दिया, "इस लड़की का बयान लिख कर इसका अँगूठा ले लो और इसको दवाखाने जाँच के लिए भेज दो।"

"जी साहब !" कहकर वह यादव नामका सिपाही उसके निर्देशानुसार बसंती का बयान लिखने लगा।

इस बीच बिरजू बराबर उसके साथ बैठा रहा। इससे पहले वह बाहर जाकर गाँववालों को आश्वस्त कर आया था कि चिंता की कोई बात नहीं है , आरोपी पकड़े गए हैं और अदालत से सख्त से सख्त सजा उनको दिलवाई जाएगी।
बसंती के बयान के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई और एक कागज बिरजू को पकड़ाते हुए सिपाही यादव ने कहा ,"जिला अस्पताल चले जाओ ! वहाँ यह कागज दिखाना। वो इस लड़की की जाँच करेंगे और उसके बाद एक सीलबंद लिफाफा देंगे जो तुम्हें वापस लाकर यहाँ जमा कराना है। समझे ? अब जाओ सब लोग।"

बिरजू उसे सलाम करते हुए थाने से बाहर निकल ही रहा था कि तभी पुलिस की जीप के पास खड़ा एक सिपाही उसके नजदीक आया, "कहाँ जा रहे हो ? अस्पताल न ? वहाँ तुमको इतना दौड़ाएंगे कि नानी याद आ जायेगी। मेरी मानो तो उन्हीं सिपाही जी से कहकर किसी सिपाही को अपने साथ ले जाओ। तुम्हारा सब काम फटाफट हो जाएगा। देखो तुम सीधेसादे और अपने गाँववाले लगे इसके लिए तुमको समझा रहा हूँ। आगे तुम्हारी मर्जी !"

सरकारी अस्पतालों में धक्के खाने की बातों का बिरजू प्रत्यक्षदर्शी था अतः उसे सिपाही की बात सही लगी। बसंती को वहीं छोड़कर वह सिपाही यादव से मिला और उससे सहयोग करने का निवेदन किया। उसकी बात सुनकर यादव मुस्कुराया और फिर बोला, "देखो, तुम भले मानस दिख रहे हो। हम तुम्हारी मदद करेंगे भी लेकिन खर्चा तो तुम्हें ही करना पड़ेगा। मंजूर है तो बोलो साहब से पूछकर थाने की गाड़ी तुम्हारे साथ भिजवा देते हैं।"

मरता क्या न करता ? काफी गिड़गिड़ाने के बाद आखिर एक हजार रुपये में बात तय हो गई।

बिरजू समझ ही नहीं पाया कि उसके हाथ में कागज थमाना और अस्पताल जाने के लिए कहना मात्र एक नाटक था जो उसे फाँसने के लिए सिपाहियों द्वारा मिल कर खेला गया था। पीड़िता को स्वयं अस्पताल जाने की सलाह भी नहीं दे सकते थे कानूनन लेकिन गाँववालों की इन्हीं अज्ञानताओं का तो ये पढ़े लिखे लोग फायदा उठाते हैं। बहुत कम पैसे में मान जाने का अहसान जताने का मौका मिल जाता है सो अलग।

डॉक्टरी मुआयने में बसंती से बलात्कार की पुष्टि हो गई और कुछ घंटे बाद सीलबंद लिफाफे में अस्पताल की जाँच रिपोर्ट दरोगा विजय की मेज पर पहुँच चुका था।

बिरजू और बसंती को आश्वस्त कराकर दरोगा विजय ने उन्हें घर भेज दिया। जाने से पहले उन्हें यह समझाना नहीं भूला कि, "देखो ! कितनी तत्परता से मुखबिर की निशानदेही पर हमने आरोपियों को पकड़ा है। हमें तो कुछ नहीं लेकिन मुखबिर को कुछ बख्शीश अवश्य दे देना और चिंता न करना अभी हम कागज पत्र तैयार करके आरोपियों को अदालत में पेश करेंगे और उन्हें सख्त से सख्त सजा दिलवाएंगे। बेफिक्र रहो , बस थोड़े पैसे के इंतजाम में लगे रहो।"

उन्हें सलाम करके बिरजू व बसंती सभी गाँववालों के साथ वहाँ से गाँव की तरफ चल दिये। अभी उन्हें गए हुए आधा घंटा भी नहीं हुआ था कि एक लंबी सी गाड़ी थाने के प्रांगण में आकर रुकी।

क्रमशः