रोना पड़ता है!
कौन यक़ीन करता है?
दिल की हालत पे
यहाँ जीते जाते है मुकद्दमें
आँसुओं के दस्तावेज़ पे।
उसे अचानक से याद आया उसकी मां ने लिफ़ाफे के उपर किसी सुलेमान ख़ान का नाम लिखा था और पता किसी ख़ान विल्ला का था जो के कोलकाता में था।
वह लम्हें में पहचान गयी थी, घूर फीर कर वह लिफ़फ़ा उसके हाथ में था। उसने झट से पलट कर देखा लिफ़ाफे का सील खुला हुआ था। उसके हाथ बड़ी तेजी से काम कर रहे थे जैसे वह एक लम्हा भी बर्बाद करना नहीं चाहती हो, उसे जानना था कि उसकी मां ने आख़िर इसमें क्या डाला था और यह किसको भेजा था। लिफ़ाफे के अन्दर एक चिट्ठी थी, उसके मां और बाबा की मैरिज सर्टिफिकेट थी और तीन तस्वीरें थीं, एक में उसके मां और बाबा के निकाह के वक़्त की तस्वीर थी, एक में वह और अज़ीन अपने मां और बाबा के साथ थे जिसमें अज़ीन एक साल की थी और तीसरी तस्वीर में भी वह चारों ही थे मगर यह वाली लगभग तीन साल पुरानी थी जिसमें अरीज १५ साल की थी।
फिर उसने वह चिट्ठी खोली, उसमें लिखा था।
अस्सलामो अलैकुम बाबा,
मैं ज़िन्दगी में आज दुसरी दफ़ा आप की शान में गुस्ताख़ी कर रही हूं, पहली दफ़ा तब की थी जब आपके बेटे से आपकी मर्ज़ी के बग़ैर निकाह किया था। गुस्ताख़ी, गलतियां और गुनाह माफ़ी मांगने पर माफ़ कर दिए जाते हैं मगर यह सिर्फ़ ख़ुदा की बारगाह में होता है, इन्सानों के दरबार में नहीं, अगर इन्सान भी माफ़ करना जानते तो यह दुनिया, दुनिया नहीं जन्नत बन जाती। रोज़े महशर (day of judgement) में हम तीनों गुनाहगार ठहराये जायेंगे। मेरा और इब्राहिम का गुनाह यह नहीं होगा कि हमने हमारी मुहब्बत को निकाह के पाक बन्धन में बांधा बल्कि हमारा गुनाह यह होगा कि हमने मां और बाप की नाफ़रमानी की और आप का गुनाह यह नहीं होगा कि आपने अपनी औलाद को बेदखल कर दिया बल्कि यह होगी कि आपने अल्लाह की ज़मीन पर अपना क़ानून बनाया। अल्लाह के इन्सानों में भेदभाव बढ़ाया, रंग और नस्ल का भेदभाव। गुनाहगार तो हम तीनों थे तो फिर सज़ा हमारे बच्चे क्यों झेल रहे हैं। इब्राहिम अपनी दुनिया की सज़ा काट चुके हैं आप सब से अलग रहकर और अब रोज़े महशर के इन्तज़ार के लिए कब्र में उतार दिए गए हैं और मुझे लगता है मेरा वक़्त भी बहुत क़रीब है इसलिए बड़ी उम्मीद के साथ यह ख़त लिख रही हूं। आप के ख़ून की खोटी नस्ल अरीज और अज़ीन को आपके हवाले कर के जा रही हूं। इनके मुस्तकबिल (आने वाला कल, फ़्युचर) की सारी ज़िम्मेदारी आपको सोंप रहीं हूं। आप इन दोनों को दर-बदर की ठोकरें खाने नहीं देंगे, अपनी तहफ़्फ़ुज़ (रक्षा) का साया इन दोनों के सर पे रखेंगे। उम्मीद करती हूं एक मजबूर मां की गुज़ारिश को रद्द नहीं की जाएगी।
आपकी मुआफ़ी की तलबगार,
इन्शा ज़हूर।
दिनांक_ १९ जनवरी २०१०
पता................
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अरीज के हाथों से वह फ़ाइल फ़र्श पर गिर गई थी और साथ में उनमें रखें कुछ और तस्वीरें भी मगर अरीज को इसकी कोई परवाह नहीं थी। वह उस लिफ़ाफे के साथ मैरिज सर्टिफिकेट, चिट्ठी और उन तस्वीरों को अपने सीने से लगा कर फूट-फूट कर रोने लगी और फ़र्श पर बैठती चली गई। उसके पास खड़ी अज़ीन को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसे रोता देखकर उस से लिपट गई और डरी हुई नज़रों से ज़मान ख़ान को देखने लगी, उसे लग रहा था उसकी बहन को इस आदमी ने रूला दिया है।
ज़मान ख़ान ने ख़ुद पर ज़ब्त किया हुआ था जिसकी वजह से उनका चेहरा सूर्ख़ हो गया था।
उन्होंने उसे रोने से रोका नहीं था, वह चाहते थे कि अरीज अपना दिल हल्का कर लें। उन्होंने झुक कर वह फ़ाइल और तस्वीरें फ़र्श से उठाई थी और उसके बाद अरीज के सर पर शफ़क़त भरा हाथ फेरा था। अरीज ने सर उठाकर भीगी आंखों से उन्हें देखा था। ज़मान ख़ान ने अपने हाथ में रखी तस्वीरें उसके सामने बढ़ाई थी। उस तस्वीर में उसके बाबा और ज़मान ख़ान थे। यह सबूत के तौर पर वह लाएं थे ताकि अरीज को उन पर भरोसा हो सके कि वह उसके बाबा के कज़िन हैं। दुसरी तस्वीर पूरी ख़ान फ़ैमिली की थी जिसमें सुलेमान ख़ान और उनके भाई शौकत ख़ान थे साथ में उन दोनों की बेगम और दोनो के बच्चे यानि ज़मान ख़ान और इब्राहिम ख़ान थे। यह बहुत पुरानी तस्वीर थी। अरीज ने तस्वीर को देखा और फिर ज़मान ख़ान को, किसी अपने को देखकर उसे और ज़्यादा रोना आ गया इस मुश्किल वक़्त में उसे किसी अपने की ज़रूरत थी अपना दिल हल्का करने के लिए उसे कोई कन्धा चाहिए था जिस पर सह रखकर वो जी भर कर रो लेती। उसने ज़मान ख़ान का हाथ पकड़ा और अपनी पेशानी उसपर टिका कर जी भर कर रो पड़ी। ज़मान ख़ान एक हाथ से उसका सर सहलाते रहे।
वह कैसे सोच सकती थी कि उसकी मां उसे बेयारो मददगार छोड़ कर चली जाएगी। वह मां थी और उसने साबित कर दिया था कि एक मां अपने बच्चों को तहफ़्फ़ुज़ दिए बग़ैर सुकून से मर भी नहीं सकती। मरते वक़्त भी मां को अपने बच्चे की फ़िक्र रहती है। यूं ही नहीं अल्लाह ने जन्नत मां के क़दमों तले बताया है।
“उठ जाओ बेटा, अपना ज़रूरी समान पैक कर लिजिए मैं आप दोनों को लेने आया हूं।“ ज़मान ख़ान ने उसे बाज़ूओं से उठाते हुए कहा था। वह उनका सहारा लेकर उठ गयी थी।
अन्दर कमरे में ही दो स्लैब बनें हुए थे जिसके उपर गैस स्टोव रखा हुआ था, उसने पैकिंग करने से पहले उन्हें चाय बनाकर दी थी, ज़मान ख़ान चाय का कप लेते हुए मुस्कुरा उठे थे बदले में अरीज ने भी एक फीकी मुस्कान दी थी। वह मुड़ने ही वाली थी के ज़मान ख़ान ने उसे रोका था। “अरीज आप थोड़ी देर मेरे पास बैठें, आप से कुछ ज़रूरी बातें करनी हैं।“
अरीज गुमसुम सी उनके सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई थी। ज़मान ख़ान को समझ नहीं आ रहा था कि बात की शुरूआत कैसे करें। उन्होंने चाय की दो सिप ली थी और फिर चाय को साईड में रखे हुए छोटे से स्टूल पर रख दिया था। थोड़ी देर सोचने के बाद उन्होंने बोलना शुरू किया और अरीज ने अदब से अपनी नज़रें झुका ली।
“बेटा आपकी मां ने जो ख़त लिखा था वो आपके दादा जान यानी कि मेरे छोटे बाबा को लिखा था, मगर अफ़सोस की अब वह इस दुनिया में नहीं रहे। तो बेटा उनके जाने के बाद अब आपकी सारी ज़िम्मेदारी मुझ पर है तो क्या आप मुझे इस बात की इजाज़त देती है कि मैं आपकी ज़िंदगी के कुछ बड़े फ़ैसले कर सकूं?” उनकी आख़री बात पर अरीज ने नज़रें उठा कर उन्हें देखा मगर कुछ कहा नहीं।
“देखो बेटा, इब्राहिम मेरा सगा भाई तो नहीं था मगर वह मुझे सगे भाई से भी ज़्यादा अज़ीज़ था।“ ज़मान साहब ने एक ठंडी सांस भरी थी और फिर से कहने लगे थे।
“घर छोड़कर जाने के तीन साल बाद जब वह आपको अपनी गोद में लेकर आया था उस वक़्त मैं मुल्क से बाहर था वरना उसे कभी जाने नहीं देता, मैंने उसे बहुत तलाश किया और एक दिन वह मुझे मिल भी गया था, उसने मुझे गले लगाया हम दोनों की आंखें भीगी हुई थी मगर होंठ मुस्कुरा रहे थे। मैंने उस से कहा कि घर चलो लेकिन उस ने इनकार कर दिया उसके घर का पता मांगा तो उसने देने से भी इंकार कर दिया और कहा कि अगर मैं बाबा के लिए मर चुका हूं तो उसे मरा हुआ ही समझूं।“ ज़मान साहब खोए खोए हुए से कह रहे थे जैसे वह उस गुज़रे हुए पल को दुबारा से जी रहे थे।
“इब्राहिम जब पैदा हुआ था तभी छोटी अम्मी इस दुनिया से चली गई थी। दिनों के बाद सब ने बहुत समझाया छोटे बाबा को दूसरी शादी के लिए मगर वह नहीं माने। वह नहीं चाहते थे कि इब्राहिम पर सौतेली मां का साया पड़े। देखा जाए तो उन्होंने बहुत बड़ी कुर्बानी दी थी इब्राहिम के लिए। शायद इसीलिए उन्होंने इब्राहिम से बहुत ज़्यादा उम्मीदें लगा ली थी। जब इब्राहिम अपनी ज़िद पर बाग़ी हो गया तो छोटे बाबा अन्दर से टूट गये और उन्होंने भी अपनी ज़िद ठान ली।“ वह रूके थे, चाय बिल्कुल ठंडी हो चुकी थी। अरीज उन्हें गौर से सुन रही थी। उनके पीछे लगे चारपाई पर अज़ीन सो रही थी।
“मेरी अम्मी ने उसकी परवरिश की थी, उसे दुध पिलाया था। इस तरह हम सगे भाई ना हो कर भी सगे जैसे थे। ख़ून के रिश्ते के साथ साथ दुध का भी रिश्ता था। यह सब आपको बताने का मेरा सिर्फ़ यह मक़सद है कि आप मुझे कोई पराया ना समझें। आज से मेरे लिए आप इब्राहिम की नहीं मेरी औलाद होगी, इब्राहिम के जाने के बाद आप मेरे लिए इब्राहिम की परछाई की तरह होगी, आप मुझे उसी की तरह अज़ीज़ हैं। मैं आपके हक़ में कभी कोई ग़लत फ़ैसला नहीं करूंगा। बेटा क्या आप मुझे यह हक़ दिजिएगा?” वह बहुत आस लेकर उस से पूछ रहे थे।
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