Mere Ghar aana Jindagi - 13 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | मेरे घर आना ज़िंदगी - 13

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 13


(13)

योगेश उर्मिला का हाथ थामे बैठे थे। बड़े प्यार से उनके सर पर हाथ फेर रहे थे। रह रह कर उनकी आँखें भरी जा रही थीं। पंद्रह मिनट हो गए थे। पर उर्मिला ने योगेश को देखकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। वह बस खोई खोई सी इधर उधर देख रही थीं। योगेश ने उनसे कहा,
"उर्मिला क्या मुझे नहीं पहचान रही हो ?"
उर्मिला ने उनकी तरफ देखा। उसके बाद बोलीं,
"आप तो दो दिन में ही शादी से लौटने वाले थे। चार दिन लगा दिए। विशाल रोज़ आपके बारे में पूछता था। अभी कुछ देर पहले ही खेलने के लिए निकला है।"
योगेश को अच्छा लगा कि भले ही पुरानी यादों में ही सही पर वह उर्मिला के ज़ेहन में हैं। उन्होंने उर्मिला को सीने से लगा लिया। कुछ देर बाद उर्मिला एकदम से उठकर खड़ी हो गईं। योगेश का हाथ पकड़ कर बोलीं,
"जाइए बाज़ार से मिठाई ले आइए। विशाल इतने अच्छे नंबरों से पास हुआ है। लोग आएंगे तो मुंह मीठा कराना पड़ेगा।"
योगेश ने उन्हें बैठाते हुए कहा,
"ले आऊँगा। तुम बताओ तुम्हारे लिए कलाकंद लेकर आऊँ।"
कलाकंद उर्मिला को बहुत पसंद था। योगेश कोई भी मिठाई लेकर आते पर साथ में उर्मिला के लिए कलाकंद अलग से लेते थे। इसलिए उन्होंने कलाकंद की बात छेड़ी थी। लेकिन उर्मिला की प्रतिक्रिया ऐसी रही जैसे कि उन्हें कलाकंद से या योगेश से कोई मतलब ना हो। वह उठकर कमरे के बाहर बने बरामदे में जाकर बैठ गईं। उनकी देखभाल करने वाले हेल्पर ने बताया कि वह बहुत सा समय इसी बरामदे में बिताती हैं।
योगेश के पास मिलने के लिए बहुत कम समय था। वह उठकर बरामदे में गए। वहाँ पड़ी बेंच पर उर्मिला बैठी हुई थीं। वह उनके बगल में बैठ गए। एकबार फिर उनका सर अपने सीने पर टिका लिया। बिना कुछ बोले वह उर्मिला के साथ मिले उन क्षणों को अपने मन में उसी तरह संजो रहे थे जैसे कोई आने वाले समय के लिए दौलत सहेजता है। उर्मिला के साथ यह कुछ पल आने वाले वक्त में उनकी पूंजी साबित होने वाले थे। इनके दम पर ही वह‌ कीमियोथैरिपी की तकलीफ़ को सहने वाले थे।
सुदर्शन उन्हें उर्मिला से मिलाने के लिए लाया था। वह बाहर कैब में बैठा था। उसने घड़ी देखी। वापस जाने का समय हो रहा था। वह उन्हें लेने के लिए आया तो वह सीने पर रखे उर्मिला के सर को प्यार से चूम रहे थे। सुदर्शन संकोच में कुछ क्षण चुप रहा। लेकिन समय हो रहा था। उसने कहा,
"अंकल अब चलने का समय हो गया है।"
योगेश ने उसकी तरफ देखा। उनके चेहरे पर वैसे ही भाव थे जैसे उस बच्चे के होते हैं जो अपने दोस्त को छोड़कर जाना नहीं चाहता है। पर योगेश समझते थे कि उनका जाना ज़रूरी है। उन्होंने उर्मिला को कसकर गले लगा लिया। रुंधे हुए गले से बोले,
"चलता हूँ उर्मिला। अब पता नहीं कब मिलना हो।"
उन्होंने पास खड़े हेल्पर से कहा,
"खयाल रखना इसका...."
हेल्पर ने कहा,
"आप निश्चिंत रहिए। इन्हें कोई परेशानी नहीं होगी।"
योगेश चलने के लिए खड़े हुए तो उर्मिला ने कहा,
"दो दिन कहा है तो दो दिन में ही लौट आइएगा। आपके बिना मुझे और विशाल को अच्छा नहीं लगता है।"
योगेश की आँखों में सैलाब आ गया। सुदर्शन ने आगे बढ़कर उन्हें थाम लिया। उसका सहारा लेकर वह कैब तक आए। कैब में बैठते ही वह फफक फफक कर रोने लगे। कैब का ड्राइवर आश्चर्य से उनकी तरफ देख रहा था। सुदर्शन ने उसे गाड़ी चलाने को कहा। कैब अस्पताल की तरफ बढ़ गई।

इधर कुछ दिनों से नंदिता के सर में दर्द रहने लगा था। उसका पेट भी साफ नहीं रहता था। मकरंद उसे लेकर डॉ. नगमा सिद्दीकी के पास गया था। डॉ. नगमा सिद्दीकी ने जांच करके बताया कि नंदिता ठीक है। थोड़ी बहुत जो समस्याएं हैं वह इस अवस्था में सामान्य हैं। उन्होंने बताया कि बच्चा भी पूरी तरह से स्वस्थ है। घबराने की बात नहीं है। उन्होंने पुरानी दवाओं को चालू रखने के लिए कहा था। इसके अलावा एक नई दवा भी लिखी थीं।
नंदिता के सर में दर्द था। मकरंद ने उसे आराम करने जाने को कहा। आज की दवाओं का हिसाब डायरी में लिखने के बाद वह किचन में चाय बनाने लगा। चाय लेकर जब वह बेडरूम में पहुँचा तो नंदिता अपना सर पकड़ कर बैठी थी। डॉ. नगमा सिद्दीकी ने इस स्थिति के लिए एक दवा यह कहकर लिखी थी कि बहुत ना खाए। बहुत आवश्यक होने पर ही ले। नंदिता इस समय बहुत दर्द में थी। मकरंद ने उसे एक टैबलेट खिला दी। नंदिता लेट गई। अभी उसका चाय पीने का मन नहीं था। मकरंद ने चाय ढककर रख दी और उसका सर दबाने लगा। कुछ देर में नंदिता को आराम मिल गया।
मकरंद और नंदिता चाय पीते हुए बातें कर रहे थे। नंदिता ने कहा,
"इतनी जल्दी दो महीने बीत गए। कुछ और दिनों के बाद मेरा पेट दिखने लगेगा। फिर तो सभी को पता चल जाएगा कि मैं प्रेग्नेंट हूँ। अभी तो सिर्फ भावना को पता है। बॉस को इसलिए बताना पड़ा क्योंकी छुट्टी की बात करनी थी। बाकी ना तो ऑफिस में किसी को पता है और ना ही सोसाइटी में।"
मकरंद ने कहा,
"बताया तो तुमने अपने घर पर भी नहीं है। कम से कम उन्हें खबर दे देती। बाकी उनकी इच्छा थी।"
मकरंद की बात सुनकर नंदिता ने कहा,
"मुझे पूरा यकीन है कि खबर सुनकर पापा का यही रिएक्शन होगा कि कोई ज़रूरत होगी। इसलिए बता रही है।"
"यह तुम्हारे मन का वहम है। भले ही आज वह तुमसे नाराज़ हों। पर बचपन से उन्होंने ही तुम्हें प्यार से पाला था। तुम्हें क्या कभी उनके प्यार में कोई कमी महसूस हुई थी।"
मकरंद के इस सवाल पर नंदिता बीते दिनों को याद करने लगी। सभी कहते थे कि वह अपने पापा की लाडली है। वह थी भी अपने पापा की लाडली। उसे कुछ चाहिए होता था तो कभी अपनी मम्मी को नहीं बताती थी। वह जानती थी कि मम्मी दस बातें करके उसकी डिमांड को खारिज कर देंगी। इसलिए अपनी हर इच्छा वह पापा के सामने ही प्रकट करती थी। तब मम्मी की हर दलील को पापा यह कहकर काट देते थे कि कर लेने दो उसे अपनी इच्छा पूरी। मम्मी के पास अंत में यही कहने को रह जाता था कि अभी बिगाड़ लीजिए। बाद में मुझे मत कहिएगा। बाद में जब वह मकरंद से शादी करने की अपनी इच्छा को लेकर अड़ गई तो पापा मम्मी को कुछ नहीं बोल पाए। लेकिन उससे ऐसे नाराज़ हुए कि अपनी लाडली को भूल ही गए।
नंदिता को खोए हुए देखकर मकरंद ने कहा,
"उन्होंने तुम्हेंं जो प्यार दिया है उसे ध्यान में रखकर वह नाना बनने वाले हैं यह खबर तो दे दो।"
मकरंद की बात सुनकर नंदिता उठी। अपना फोन लेकर आई और अपने पापा का नंबर मिलाया। कुछ देर घंटी बजने के बाद उधर से कॉल उठी पर कोई आवाज़ नहीं आई।‌ नंदिता समझ गई कि जैसे भावनाओं का समंदर उसके मन में उमड़ रहा है उसके पापा के मन में भी उमड़ रहा होगा।‌ अपने आप को काबू में करके उसने कहा,
"पापा...."
उस तरफ का मौन सिसकियों में बदल गया। भर्राए गले से आवाज़ आई,
"बिट्टो......"
फिर कुछ देर तक दोनों तरफ आंसुओं की बरसात होती रही। मकरंद इस सबके बीच किसी भी तरह से व्यवधान नहीं डालना चाहता था। इसलिए वह चुपचाप रोती हुई नंदिता को देख रहा था। कुछ देर बाद बातचीत आगे बढ़ी। हालचाल पूछने के बाद नंदिता ने अपने प्रेग्नेंट होने की खबर सुनाई। इस खबर ने बची हुई शिकायतों को दूर कर दिया। नंदिता के चेहरे की मुस्कान बता रही थी कि उसके पापा यह खबर सुनकर बहुत खुश हुए थे। कुछ देर बाद नंदिता अपनी मम्मी से बात कर रही थी। चेहरे पर आंसुओं और मुस्कान का अनोखा संगम था। बात करते हुए नंदिता ने फोन मकरंद की तरफ बढ़ाकर कहा,
"पापा बात करना चाहते हैं।"
मकरंद ने संकोच के साथ फोन पकड़ लिया। इससे पहले नंदिता के पापा से उसकी बातचीत शादी के पहले हुई थी। तब वह उससे खुश नहीं हुए थे। मकरंद ने सकुचाते हुए हैलो कहा। उसके बाद नमस्ते। फिर उनकी बात सुनने लगा। धीरे धीरे वह भी सामान्य हो गया। एक अपनापन उसके चेहरे पर उभरा। अंत में उसने मुस्कुराते हुए कहा,
"बस कुछ ही देर में मैं और नंदिता पहुँच जाएंगे।"
उसने नंदिता से कहा कि वह जल्दी तैयार हो जाए। उन्हें उसके मम्मी पापा से मिलने जाना है। यह सुनकर नंदिता खुशी से उछल पड़ी।

नंदिता जब अपने घर पहुंँची तो पता चला कि उसके पापा पिछले हफ्ते ही अस्पताल से डिस्चार्ज होकर आए हैं। उन्हें माइल्ड हार्ट अटैक आया था। डॉक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी है। अस्पताल में रहने के दौरान उन्होंने महसूस किया कि इस ज़िंदगी में कब क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता है। ऐसे में अपनों से नाराज़गी रखना ठीक नहीं है। डिस्चार्ज होने के बाद उन्होंने तय किया था कि ठीक होने पर नंदिता से बात करेंगे। उसे मनाने उसके घर जाएंगे। जब नंदिता ने फोन करके इतनी बड़ी खुशखबरी सुनाई तो उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने नंदिता और मकरंद को मिलने के लिए बुला लिया।
अपनी बेटी और दामाद से मिलकर नंदिता के पिता बहुत खुश हुए। उत्साह में बार बार वह भूल जाते थे कि कुछ दिन पहले अस्पताल से डिस्चार्ज होकर आए हैं। नंदिता की मम्मी उन्हें याद दिलाती थीं कि डॉक्टर ने उन्हें आराम करने को कहा है।
अपने मम्मी पापा से मिलकर लौटते हुए नंदिता का दिल खुशी से फूला नहीं समा रहा था।