Kota - 25 in Hindi Fiction Stories by महेश रौतेला books and stories PDF | कोट - २५

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कोट - २५

कोट-२५
नींद में रहस्य:
जाड़ों के दिनों की बात थी। पहाड़ी गाँव में रात का सन्नाटा छा चुका था। ठंडा था लेकिन बहुत अधिक नहीं था। घड़ी देखकर तब कोई सोया नहीं करता था। खाना लगभग शाम ७-८ बजे तक हो जाया करता था। खाना खाने के बाद किस्से-कहानियां कही जाती थीं। रहस्यमय, डरावनी, भूतों की, सामाजिक। महाभारत और रामायण की कहानियां लोक कथाओं के रूप में कही जाती थीं। रामलीला लोग बड़े चाव से देखने जाते थे। सभी कार्य करने के बाद सबको चैन की नींद लेने की आदत होती थी। उस दिन दोनों भाई अलग -अलग चारपाई पर लेट गये और उनके पिता तीसरी चारपाई पर जो कुछ दूरी पर थी। दोनों भाई लेटे-लेटे बातें कर रहे थे। रात गहरी होते जा रही थी।
इस बीच दोनों भाइयों को नींद आ गयी लेकिन उनकी बातें जारी थीं।बातों का क्रम टूटा नहीं था।नींद में हो रहीं बातें उनके पिता सुन रहे थे। बड़ा भाई कह रहा था-
" पिता जी कहते हैं उनके बचपन में उन्होंने एक अद्भुत घटना देखी थी, हमारे बूबू (दादा) के साथ। हमारे घर से तीन सौ मीटर की दूरी पर एक लड़की बाल फैलाये रो रही थी। वह गाँव की लड़की तुलसी जैसी लग रही थी।बहुत सुन्दर, बड़ी-बड़ी आँखों वाली। बूबू ने पुकारा," तुलसी, ओ तुलसी तू क्यों रो रही है?" वह कुछ नहीं बोली और रोते-रोते गाँव के चारों ओर रूप बदलते जाती रही, कभी कैसी दिखती, कभी कैसी। कभी रमा,कभी नन्दा, कभी सुशीला जैसी दिख रही थी। तो कोई कहता तुलसी है, कोई कहता मीरा है, कोई कहता राधा है और कोई कहता देबकी लग रही है। अनेक रूप दिखाती वह, फिर नीचे नदी की ओर गयी और चलते-चलते खो गयी। लोग उसे खोजने बहुत दूर तक गये लेकिन ढूंढ नहीं पाये। वह अन्तर्धान हो चुकी थी। सात दिन बाद फिर गाँव वालों ने उसे वहीं देखा। उसके बाल फैले थे। वह अपने बालों को सुलझा रही थी और फिर फैला दे रही थी। वह रो रही थी। वातावरण बहुत उदास लग रहा था।पास में गूल में पानी तेजी से बह रहा था। उसने गूल से पानी पिया और बैठ गयी।
गाँव के कुछ लोग उसकी ओर बढ़े
लेकिन वह अन्तर्धान हो गयी। गाँव वालों ने देखा जहाँ वह बैठी थी, वहाँ कमल का फूल खिल रहा था।पूरे गाँव को ये घटनायें चकित कर गयी थीं। फिर सबने अनुमान लगाया कि देवी नाराज है ,अतः पूजा का आयोजन किया गया।" छोटा भाई कहानी के बीच-बीच में हूंगर देता रहा और बोला ऐसा हो सकता है क्या? इतने में पिताजी जोर से बोले ," अरे, तुम सोये नहीं अभी क्या? सो जाओ। बहुत समय हो गया है। सुबह फिर उठोगे नहीं। रातभर बातें करते रहोगे क्या? समय से सोना चाहिए और समय से उठना चाहिए, स्वास्थ्य के लिये अच्छा रहता है।" पिताजी की जोर की आवाज सुनकर दोनों भाई जाग गये। और नींद में हुई आपस की बातचीत से अचंभित थे। आखिर नींद में बातों का सिलसिला कैसे जारी रहा! यह न सुलझने वाली गुत्थी जीवनभर उनके साथ बनी रही। कुछ अद्भुत घटनाएं ऐसे ही जन्म लेती हैं और सिलसिला जारी रहता है, जन्म और मृत्यु की तरह।

* महेश रौतेला