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योगेश उर्मिला को लेकर उस संस्था में आए थे जहाँ अल्ज़ाइमर्स से पीड़ित लोगों की देखभाल की जाती थी। उन्होंने संस्था का मुआयना कर लिया था। उन्हें वहाँ मिलने वाली सुविधाएं अच्छी लगी थीं। इस समय वह संस्था की प्रमुख श्रीमती ईशा सचान के ऑफिस में बैठे थे। श्रीमती ईशा ने पूछा,
"मिस्टर योगेश शर्मा आपको हमारी संस्था की व्यवस्था कैसी लगी ?"
योगेश ने उर्मिला की तरफ देखकर कहा,
"बहुत अच्छी लगी। मैं चाहता था कि जब अपने इलाज के दौरान मैं उर्मिला की देखभाल करने में असमर्थ रहूँ तो इस बात की निश्चिंतता रहे कि कोई उसे देखने वाला है। मुझे लगता है कि उर्मिला को यहाँ रखकर मैं निश्चिंत हो सकूँगा।"
"मिस्टर योगेश शर्मा आप अपनी पत्नी को हमारे साथ छोड़कर पूरी तरह निश्चिंत हो सकते हैं। हमारे यहाँ इस काम के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित व्यक्ति रखे गए हैं। बाकी सुविधाएं भी आपने देखी ही हैं।"
"परसों मुझे अपने इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होना है। अभी मैं उर्मिला को घर ले जा रहा हूँ। कल शाम को आकर आप लोगों की देखभाल में छोड़ जाऊंँगा।"
योगेश उठकर खड़े हो गए। उन्होंने उर्मिला का हाथ पकड़ा उन्हें बाहर खड़ी कैब तक ले गए। उन्हें कैब में बैठाकर खुद भी बैठ गए। कैब चल दी। बाहर देखते हुए उर्मिला ने कहा,
"आज फिल्म देखने के बाद रामदयाल की चाय पिएंगे और वहाँ का समोसा खाएंगे।"
योगेश ने उन्हें अपनी तरफ खींचकर सीने से लगा लिया। उन्हें सीने से लगाए वह उन पुराने खुबसूरत दिनों को याद करने लगे। अक्सर वह और उर्मिला फिल्म देखने जाते थे। फिल्म अक्सर उसी थिएटर में देखते थे जिसके पास रामदयाल की प्रसिद्ध दुकान थी। उसकी चाय और समोसे का स्वाद लेने के लिए लोग दूर दूर से आते थे। उर्मिला को उसकी दुकान पर चाय के साथ समोसा खाना बहुत पसंद था। योगेश की आँखें नम थीं। रामदयाल की दुकान बंद हुए एक अर्सा हो गया था। उन्होंने कैब ड्राइवर से कहा कि रास्ते में किसी दुकान पर रोक दे जहाँ समोसे मिलते हों।
कैब एक स्वीट शॉप के सामने रुकी। मिठाइयों के साथ साथ यहाँ चाट और खस्ते समोसे मिलते थे। योगेश उर्मिला को छोड़कर जाना नहीं चाहते थे। कैब ड्राइवर एक नौजवान था। उन्होंने कैब ड्राइवर से कहा,
"बेटा आंटी को छोड़कर मैं जा नहीं सकता हूँ। तुम पैसे ले लो। हमारे लिए दो और अपने लिए समोसे खरीद लाओगे।"
कैब ड्राइवर ने मुस्कुरा कर कहा,
"अंकल मुझे समोसा नहीं खाना है। पर आपके लिए ले आता हूँ।"
योगेश ने पैसे देते हुए कहा,
"तुम अपने लिए जो चाहो ले लेना।"
कैब ड्राइवर पैसे लेकर चला गया। उर्मिला बाहर देख रही थीं। उन्होंने कहा,
"हम लोग घूमने आ गए। विशाल कोचिंग से लौट आया होगा। जल्दी घर चलिए।"
योगेश ने उन्हें समझाया कि बस कुछ ही देर में घर पहुँच जाएंगे। कैब ड्राइवर दो समोसे पैक करवा कर ले आया था। उसने बाकी के पैसे वापस कर दिए। योगेश ने कहा,
"अपने लिए कुछ नहीं लिया बेटा।"
कैब ड्राइवर ने कहा,
"धन्यवाद अंकल पर मुझे कुछ नहीं चाहिए।"
वह कैब में बैठा। कैब आगे बढ़ गई।
कैब ने सोसाइटी के अंदर जाकर योगेश और उर्मिला को उनके ब्लॉक के सामने उतारा। पैसे देकर योगेश उर्मिला का हाथ पकड़ कर लिफ्ट की तरफ बढ़ गए। वह लिफ्ट में घुस रहे थे तभी नंदिता आ गई। वह भी उनके साथ लिफ्ट में घुस गई। योगेश उसी बिल्डिंग में एक फ्लोर ऊपर रहते थे। नंदिता ने उनसे पूछा,
"मैंने आपको और आंटी को कैब से उतरते देखा था। आंटी को लेकर कहाँ गए थे अंकल ?"
योगेश ने टालते हुए कहा,
"बस थोड़ी सैर कराने ले गया था।"
नंदिता को ऐसा लगा कि बात कुछ और है। लेकिन उसने कुछ और नहीं कहा। वह देख रही थी कि योगेश ने कितने प्यार से उर्मिला को पकड़ रखा है। उर्मिला एक मासूम बच्ची की तरह उनसे चिपक कर खड़ी थीं। नंदिता का फ्लोर आ गया। वह लिफ्ट से उतर गई।
उर्मिला सो रही थीं। योगेश अपने विचारों में खोए उनके पास बैठे थे। घर आकर उन्होंने चाय बनाई। चाय और समोसे लेकर उर्मिला के पास आए। समोसे की प्लेट उनके सामने करके बोले,
"तुम्हें अच्छे लगते हैं ना....."
उर्मिला ने एक नज़र समोसे की प्लेट पर डाली। वह ऐसे देख रही थीं जैसे जीवन में पहली बार समोसा देखा हो। कुछ देर समोसे की प्लेट को देखने के बाद उन्होंने अपनी नज़रें उस पर से हटा लीं। योगेश ने उन्हें समोसा खिलाने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने नहीं खाया। चाय भी नहीं पी। बिस्तर पर लेट गईं और सो गईं।
योगेश सोती हुई उर्मिला को देखकर दुखी हो रहे थे। कल शाम उन्हें उर्मिला को संस्था की देखरेख में छोड़ने जाना था। उसके बाद वह अपने इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होने वाले थे। पिछले छह सालों से वह एक बच्चे की तरह उर्मिला की देखभाल कर रहे थे। वह सोच रहे थे कि इलाज के बाद पता नहीं वह इस लायक हो पाएंगे या नहीं कि उर्मिला की देखभाल पहले की तरह कर सकें। यह सोचकर उनकी आँखों से झर झर आंसू बह रहे थे कि क्या इतना पुराना उनका साथ बस कुछ ही घंटों का बचा है।
उनके आंसू रुक नहीं रहे थे। वह उर्मिला के बगल में लेट गए। प्यार से उनके सर पर हाथ फेरा। उसके बाद उन्हें सीने से लगाकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगे। उर्मिला जाग गईं। योगेश को रोते हुए देखकर चिल्लाईं,
"विशाल......"
वह बिस्तर से उठकर बाहर की तरफ भागीं। योगेश भी फौरन उठकर उनके पीछे भागे। उर्मिला विशाल विशाल करती इधर उधर देखने लगीं। योगेश ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया। वह परेशान थीं। शायद योगेश को रोते हुए देखकर उस दिन में पहुँच गई थीं जब विशाल की लाश अस्पताल से घर आई थी। इसलिए वह खुद भी रो रही थीं। कुछ ही क्षणों में वह शांत हो गईं। उन्होंने कहा,
"विशाल अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने गया है। आता ही होगा। अगले हफ्ते दिल्ली जाना है। पर इस लड़के ने अभी तक कोई तैयारी नहीं की है। मुझे ही करना होगा। नहीं तो बाद में मुझे परेशान करेगा।"
उन्होंने खुद को योगेश की बाहों से छुड़ाया। कबर्ड खोलकर देखने लगीं। वह असमंजस में खड़ी थीं। कुछ ही देर में सब भूलकर वापस बिस्तर पर जाकर बैठ गईं।
योगेश बड़े ध्यान से उन्हें देख रहे थे और सोच रहे थे कि बीमारी ने उर्मिला को क्या बना दिया है। वर्तमान का होश नहीं रहता है। लेकिन बीते समय की बातें ऐसे याद रहती हैं जैसे इसी समय सब घट रहा हो। फिर अचानक दिमाग ऐसा हो जाता जैसे कि लिखी हुई स्लेट को किसी ने कपड़े से पोंछ दिया हो। सब एकदम से दिमाग से निकल जाता है। उन्होंने एक आह भरकर कहा,
"भगवान कम से कम मुझे इस लायक रखते कि जब तक सांस चलती इसकी देखभाल कर पाता।"
वह उठे और खुले हुए कबर्ड को बंद कर दिया।
लिफ्ट में जबसे नंदिता योगोश से मिली थी तबसे उसके दिमाग में उन दोनों का रिश्ता घूम रहा था। वह उर्मिला की हालत के बारे में जानती थी। यह भी जानती थी कि योगेश कितने प्यार से उनकी देखभाल करते हैं। उसने कई बार उन्हें उर्मिला को सोसाइटी के पार्क में टहलाते देखा था। उस समय वह उनका पूरा ध्यान रखते थे। वह सोच रही थी कि योगेश कितने अच्छे जीवनसाथी हैं। क्या मकरंद भी एक उम्र के बाद उसके लिए ऐसा ही जीवनसाथी साबित होगा। वह भी उसका साथ इसी तरह निभाएगा।
इस सवाल के साथ ही मन ने एक और सवाल किया। क्या वह मकरंद के लिए अच्छी जीवनसाथी साबित होगी। उसके बुरे समय में उसका साथ निभाएगी। मकरंद आने वाले समय को लेकर परेशान है। उसकी परवरिश जिस मुश्किल हालात में हुई है उसके कारण वह ज़िंदगी को खुलकर नहीं जी पाता है। यह उसका दायित्व है कि उसके मन में विश्वास जगाए कि कठिनाई आने पर वह उसका पूरा साथ देगी। अपने प्यार से उसके मन में भविष्य को लेकर जो चिंता है उसे दूर कर दे।
डोरबेल बजी। उसने जाकर दरवाज़ा खोला। मकरंद था। इधर कई दिनों से उसे आने में देर हो जाती थी। वह थका हुआ था। नंदिता ने मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया। वह कुछ देर आराम करने के लिए सोफे पर बैठ गया। नंदिता ने उससे पूछा,
"कैसा रहा आज का दिन ?"
"ठीक रहा....काम बहुत ज्यादा है आजकल। थकावट हो जाती है।"
"तुम फ्रेश हो लो तो मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूँ। अच्छा लगेगा।"
मकरंद ने कुछ सोचकर कहा,
"ठीक है....वैसे भी अभी खाना खाने का मन नहीं है।"
कुछ देर आराम करके मकरंद फ्रेश होने चला गया। नंदिता ने चाय बनाकर उसे बालकनी में आने को कहा। मकरंद और वह बालकनी में बैठकर चाय पीने लगे। दोनों कुछ बात नहीं कर रहे थे। लेकिन मकरंद को इस तरह नंदिता के साथ बालकनी में बैठना अच्छा लग रहा था। कुछ देर में नंदिता ने अपना पसंदीदा गाना गुनगुनाना शुरू कर दिया। मकरंद ध्यान से उसका गाना सुन रहा था। जब नंदिता ने गाना बंद किया तो वह बोला,
"थैंक्यू नंदिता....आज बहुत दिनों के बाद मन कुछ हल्का महसूस कर रहा है। इधर कई दिनों से दिमाग बहुत परेशान था।"
नंदिता ने मुस्कुरा कर कहा,
"मकरंद मैं ऐसी ही छोटी छोटी खुशियों की बात करती हूँ। यह सही है कि इनसे हमारे जीवन की समस्याएं सुलझ नहीं जाती हैं। लेकिन ये खुशियां हमें उन्हें सुलझाने की ताकत ज़रूर देती हैं।"
मकरंद उसकी बात को समझने की कोशिश कर रहा था। उसे इस समय उसकी बात से खीझ नहीं हो रही थी जैसे उस दिन हुई थी। नंदिता ने कहा,
"मकरंद हमारे जीवन में जो समस्याएं हैं या आएंगी उन सभी में मैं तुम्हारे साथ रहूँगी।"
मकरंद ने चाय का प्याला रखकर उसका हाथ थाम लिया।