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नंदिता और मकरंद डॉ. नगमा सिद्दीकी की क्लीनिक में बैठे थे। डॉ. नगमा सिद्दीकी ने उन्हें समझाते हुए कहा,
"अब आप दोनों को ही मिलकर बच्चे की ज़िम्मेदारी उठानी है। नंदिता को अपने खाने पीने और स्वास्थ का खयाल रखना पड़ेगा। मकरंद आपको ध्यान रखना पड़ेगा कि नंदिता की सेहत अच्छी रहे। उसे समय समय पर चेकअप के लिए लाना आपकी ज़िम्मेदारी है। वैसे अभी परेशान होने की कोई बात नहीं है। सब ठीक है।"
नंदिता और मकरंद ने एक दूसरे की तरफ देखा। उसके बाद डॉ. नगमा सिद्दीकी की बातों से सहमति जताई। डॉ. नगमा सिद्दीकी ने कुछ दवाएं लिखकर दीं। मकरंद ने पर्चा अपने हाथ में ले लिया। क्लीनिक से निकल कर दोनों दवाएं लेते हुए घर वापस लौटे। घर आने पर नंदिता आराम करने लगी। मकरंद अपनी डायरी में आज खरीदी गई दवाओं का हिसाब लिखने लगा।
नंदिता और मकरंद ने अपने अपने तरीके से बच्चे के आने की तैयारी शुरू कर दी थी। नंदिता ने तय किया था कि जब तक संभव हो पाएगा वह काम पर जाती रहेगी। उसने अपने बॉस से मेटरनिटी लीव के अलावा विदाउट पे लीव के लिए पहले ही बात कर ली थी। मकरंद भी बच्चे के जन्म और उसके बाद की परिस्थितियों के लिए खुद को तैयार कर रहा था। उसने और नंदिता ने तय किया था कि अब खर्चों को कम करके जितना अधिक हो सकेगा बचत करेंगे।
मकरंद बेडरूम में गया तो नंदिता सो रही थी। उसने उसके सर पर हाथ रखकर कहा,
"नंदिता उठो....।"
आवाज़ सुनकर नंदिता ने आँख खोली। फिर उठते हुए बोली,
"ना जाने कैसे आँख लग गई। तुम चलो मैं आकर खाना लगाती हूँ।"
"खाना मैंने टेबल पर लगा दिया है। तुम चलकर खाना खा लो।"
नंदिता ने आश्चर्य से उसकी तरफ देखा। मकरंद ने कहा,
"ऐसे क्यों देख रही हो। तुम्हें क्या लगता है कि मैं कुछ कर नहीं सकता हूँ।"
नंदिता उठकर खड़ी हो गई। उसने कहा,
"मैंने ऐसा कब कहा। पर इतने दिनों में पहले कभी तुमने ऐसा किया नहीं था।"
"हाँ....पहले नहीं किया पर अब आदत डालनी पड़ेगी। कुछ दिनों बाद तुम्हारे लिए चीज़ें मुश्किल हो जाएंगी। तब तुम्हारी मदद कर पाऊँगा।"
नंदिता कुछ बोली नहीं। लेकिन उसे मकरंद का जवाब अच्छा लगा। वह खाना खाने के लिए चली गई। खाना खाते हुए मकरंद ने कहा,
"मैंने मौसी जी को फोन पर बच्चे की खबर दे दी है। उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। चुपचाप सुन लिया। तुम भी अपने घर पर बता दो।"
नंदिता ने उसकी बात पर धीरे से हाँ कह दिया। उसके बाद दोनों चुपचाप खाना खाने लगे।
मकरंद किसी काम से बाहर गया था। नंदिता दोपहर में उसके साथ हुई बातचीत के बारे में सोच रही थी। मकरंद ने उसे अपने घरवालों को बच्चे की खबर देने को कहा था। वह भी चाहती थी कि यह खबर अपने मम्मी पापा को सुनाए। लेकिन मन में एक संकोच था। उसने उन दोनों की मर्ज़ी के खिलाफ जाकर मकरंद से शादी की थी। उसके मम्मी पापा इस रिश्ते के खिलाफ थे क्योंकी मकरंद का अपना कोई परिवार नहीं था। वह अपनी मौसी के घर पला था। उसकी आर्थिक स्थिति भी बहुत मज़बूत नहीं थी। इसलिए उन्होंने नंदिता को समझाया कि वह उसके लिए बहुत अच्छा रिश्ता खोजेंगे। जहाँ वह हमेशा खुश रहेगी। लेकिन नंदिता की खुशी मकरंद के साथ थी।
मकरंद से शादी करके जब वह अपने मम्मी पापा से मिलने गई थी तो उसके पापा बहुत नाराज़ थे। उन्होंने उससे कहा था कि जब अपनी मर्ज़ी से शादी की है तो अपने हिसाब से निभाना। हमसे कोई उम्मीद मत रखना। उस समय नंदिता ने अपनी मम्मी की तरफ देखा था। पर उनके चेहरे पर जो भाव थे उनसे स्पष्ट था कि वह उसके पापा की बात का समर्थन कर रही हैं।
उस दिन के बाद से ही नंदिता ना तो उनसे मिली थी और ना ही उनसे कभी बात की थी। उसे लग रहा था कि अगर अब वह बच्चे की खबर दे तो उसके मम्मी पापा को ऐसा ना लगे कि वह उनसे कोई उम्मीद कर रही है। बहुत सोचने के बाद उसने तय किया कि फिलहाल वह उन्हें इस विषय में नहीं बताएगी।
वैसे तो डॉ. नगमा सिद्दीकी ने उसे आवश्यक हिदायतें दे दी थीं। पर वह अपनी तरफ से भी कुछ जानकारियां चाहती थी। उसने अपना लैपटॉप उठाया। सर्च इंजन में जाकर टाइप किया 'गर्भावस्था के समय क्या सावधानियां बरतें'। सर्च बटन दबाते ही कुछ आर्टिकल उसके सामने आए। वह एक एक करके उन्हें पढ़ने लगी।
डॉक्टर ने योगेश से कहा था कि उनका कैंसर अभी प्रथम अवस्था में है। उन्हें घबराने की ज़रूरत नहीं है। उनका उपचार संभव है। पर अपनी बीमारी के बारे में जान लेने के बाद वह उर्मिला के विषय में चिंतित थे। बार बार उन्हें यही खयाल आता था कि अगर उनकी बीमारी गंभीर हो गई या उनकी मृत्यु हो गई तो उर्मिला को कौन संभालेगा। यह बात कैंसर से भी अधिक उन्हें परेशान कर रही थी।
डॉक्टर ने कहा था कि आगे उपचार के लिए उन्हें समय समय पर अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा। वह सोच रहे थे कि अभी तक तो कुछ समय की बात होती थी। वह सुदर्शन को उर्मिला की देखभाल करने का जिम्मा सौंप जाते थे। परंतु इलाज के समय तो उन्हें ऐसा कोई चाहिए होगा जो स्थाई रूप से उर्मिला के साथ रह सके। वह ऐसी किसी व्यवस्था के विषय में सोचकर परेशान थे।
अभी तक योगेश ने किसी को भी अपनी बीमारी के बारे में नहीं बताया था। वह सोच रहे थे कि अगर मदद चाहिए तो उन्हें इस विषय में उन लोगों को बताना पड़ेगा जिनसे उन्हें सहायता की उम्मीद है। सबसे पहला शख्स तो सुदर्शन ही था जिससे वह अक्सर सहायता लेते थे। उन्होंने सुदर्शन को फोन करके कहा कि उन्हें ज़रूरी बात करनी है। समय निकाल कर उनसे मिलने आ जाए। सुदर्शन एक कोचिंग सेंटर में पढ़ाता था। उसने उनसे कहा था कि वह कोचिंग से छूटने के बाद उनसे मिलने आएगा।
उर्मिला बेडरूम में थीं। योगेश लिविंग रूम में बैठे टीवी देख रहे थे। उन्हें सुदर्शन का इंतज़ार था। टीवी पर न्यूज़ देखकर वह ऊब गए थे। इसलिए रिमोट उठाकर चैनल बदलने लगे। एक फिल्म चैनल पर पुरानी मूवी आ रही थी। वह उसे देखने लगे। अचानक बेडरूम का दरवाज़ा खुला। उर्मिला तेज़ी से मेनडोर की तरफ बढ़ीं। योगेश फौरन सतर्क हो गए। वह उठकर उनके पास गए। उन्हें रोककर बोले,
"कहाँ जा रही हो उर्मिला ?"
उर्मिला ने उन्हें एक तरफ करते हुए कहा,
"विशाल को स्कूल से लेने जा रही हूँ। हटिए देर हो गई तो परेशान होगा। उसके हाथ में प्लास्टर है।"
"उसे मैं स्कूल से ले आऊँगा। तुम घर पर रुको।"
योगेश ने उनका हाथ पकड़ा और सोफे पर बैठा दिया। उर्मिला परेशान सी इधर उधर देखने लगीं। इतनी देर में वह भूल गई थीं कि बाहर किस लिए आई थीं। अक्सर उनके साथ ऐसा होता था। अचानक किसी बहुत पुरानी बात का ज़िक्र करती थीं और कुछ ही क्षणों में भूल जाती थीं। आज वह उस समय की बात याद कर रही थीं जब विशाल पांचवी कक्षा में था और उसके हाथ में फ्रैक्चर हो गया था। तब प्लास्टर कटने तक उन्होंने उसे स्कूल वैन से नहीं भेजा था। सुबह योगेश उसे छोड़कर आते थे। छुट्टी में वह खुद उसे लेने जाती थीं। कुछ देर बैठने के बाद उर्मिला उठीं और अपने आप ही बेडरूम में चली गईं।
कुछ देर में सुदर्शन आया तो योगेश ने उसे अपनी बीमारी के बारे में बताया। सुनकर वह दुखी हुआ। उसने कहा,
"उस दिन मुझे लगा था कि कोई समस्या है। पर आपने बताया नहीं। अंकल आप परेशान ना हों। मैं आपकी मदद करूँगा।"
योगेश ने समझाया,
"मैं तुम्हारी भावनाओं को समझता हूँ। पर यह इतना आसान नहीं होगा। तुम्हारे पास पढ़ाई और दूसरे काम हैं। फिर कुछ देर के लिए उर्मिला के साथ रहने और उसकी देखभाल करने में बहुत फर्क है। उसके लिए ऐसा व्यक्ति चाहिए जो इस काम को जानता हो। तुम मेरी इतनी मदद करो कि ऐसी किसी संस्था या व्यक्ति के बारे में पता करके बंता दो।"
सुदर्शन को उनकी बात समझ आ गई। वह मदद का आश्वासन देकर चला गया।
समीर ने अब अमृता से भी बात करना छोड़ दिया था। इस बात से अमृता और अधिक परेशान हो गई थी। वह जानती थी कि समीर उसके अलावा किसी से भी खुलकर बात नहीं करता था। उसके कोई दोस्त नहीं थे। अब उसने उसके साथ भी बात करना बंद कर दिया था। वह सोच रही थी कि इस तरह वह बहुत अकेला पड़ गया होगा। यह बात उसके लिए ठीक नहीं थी। उसने तय किया कि वह खुद ही उससे बात करेगी।
समीर लोगों से कटा हुआ था। उसके कोई दोस्त नहीं थे। उसे यह बात बहुत दुख देती थी। वह चाहता था कि उसके भी कुछ दोस्त हों। वास्तविक दुनिया में लोगों से दोस्ती करना उसे कठिन लगता था। उसे लगता था कि जिसके साथ वह दोस्ती करने की कोशिश करेगा वह उसका मज़ाक उड़ाएगा। इसलिए उसने आभासी दुनिया में अपने लिए दोस्त खोजने का निर्णय लिया। उसने प्रसिद्ध सोशल नेटवर्किंग साइट पर अपना अकाउंट बनाया। कुछ लोगों को दोस्ती का आमंत्रण भेजा था।
उसने अपने सोशल अकाउंट पर जाकर चेक किया। पाँच लोगों ने उसकी मित्रता स्वीकार की थी। उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।
उसी समय अमृता ने उसके कमरे के दरवाज़े पर दस्तक दी। समीर ने दरवाज़ा खोला। अमृता बिना कुछ बोले अंदर चली गई। वह उसके बिस्तर पर बैठ गई और समीर को अपने पास बैठने का इशारा किया। समीर कुर्सी लेकर उसके सामने बैठ गया। वह इंतज़ार कर रहा था कि अमृता कुछ कहे।
अमृता ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और अपनी बाहें फैला दीं। समीर अपनी मम्मी के सीने से लगकर रोने लगा।
अमृता भी उसे सीने से लगाए रो रही थी। बिना कुछ कहे सारी शिकायतें आंसुओं में धुल गई थीं।