Mere Ghar aana Jindagi - 4 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | मेरे घर आना ज़िंदगी - 4

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 4


(4)

समीर अपने वॉशरूम में लगे आइने में खुद को निहार रहा था। अपने होंठों के ऊपर ‌उभरती पतली सी काली लकीर उसे पसंद नहीं आ रही थी। पिछले कुछ महीनों में उसने ‌अपने शरीर में कुछ बदलाव महसूस किए थे। उनमें अचानक मोटी होती उसकी आवाज़ और चेहरे पर उभरती काली रेखाएं थीं। यह सब उसे बहुत अजीब सा लग रहा था। उसे लग रहा था कि जैसे यह बदलाव उससे उसकी पहचान छीन ले रहे हों। उसके भीतर की कोमलता को समाप्त कर रहे हों।
आइने में खुद को देखते हुए उसका ध्यान अपने बालों पर गया। कंधे तक आ चुके अपने बाल उसे बहुत अच्छे लग रहे थे। ऐसा लगता था कि जैसे यह बाल उसे उसकी पहचान से जोड़े हुए हैं। लेकिन मम्मी ने उन्हें कटवाने की हिदायत कई बार दी थी। सख्त लहज़े में कहा था कि कल संडे है। जाकर बाल कटवा ले। सुबह से ही वह इस बात को लेकर परेशान था। उसने अपनी मम्मी को समझाने की कोशिश की थी कि उसे अपने लंबे बाल पसंद हैं। पर वह मानने को तैयार नहीं थीं। वॉशरूम से निकल कर वह अपने बिस्तर पर आकर लेट गया। उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था।
छह सात साल की उम्र से ही कुछ ऐसा था जो उसे अपने बारे में ठीक नहीं लगता था। सब उसे लड़का कहते थे। लेकिन उसे खुद को लड़की कहलाना पसंद था। जो खिलौने उसकी मम्मी उसके लिए लेकर आती थीं उनमें उसकी दिलचस्पी कम होती थी। उसे अपने मामा की बेटी मिनी की डॉल्स के साथ खेलना अच्छा लगता था। त्यौहार पर खुद को मिले कपड़ों से अधिक उसे मिनी को मिली फ्रॉक आकर्षित करती थी। वह अपनी मम्मी से उसे भी डॉल्स और फ्रॉक दिलाने की ज़िद करता था। उसकी मम्मी उसे समझाते हुए कहती थीं कि यह सब लड़कों के लिए नहीं है। उसे उनका यह तर्क समझ नहीं आता था‌।
समीर को अपने पापा की शक्ल भी याद नहीं थी। जब वह महज़ दो साल का था तब उसकी मम्मी उसे लेकर अपने मायके में रहने चली गई थीं। वहाँ उसकी नानी, मामा, मामी, मिनी और उसका बड़ा भाई राहुल रहते थे। राहुल उससे तीन साल बड़ा था। वह उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं करता था। बात बात में उसे परेशान करता था। उसकी हर बात का मज़ाक उड़ाता था। मिनी लगभग उसकी हमउम्र थी। लेकिन अपने भाई का ही साथ देती थी।
एकबार दीवाली पर मामा मिनी के लिए एक सुंदर सी फ्रॉक लेकर आए थे। वह हल्के गुलाबी रंग की फ्रिल वाली फ्रॉक थी। समीर का मन उस फ्रॉक को पाने के लिए मचल उठा था। वह अपनी मम्मी के पास गया और उनसे कहा कि उसे भी मिनी जैसी फ्रॉक चाहिए। उस समय उसकी मम्मी नानी के कमरे में थीं। मामी भी वहीं आ गई थीं। तीनों किसी बात पर चर्चा कर रही थीं। उसकी मांग सुनकर उसकी मम्मी ने टालते हुए कहा कि जल्दी ही उसके लिए सुंदर सी जींस और टीशर्ट लेकर आएंगी। लेकिन समीर अपनी ज़िद पर अड़ गया कि उसे तो फ्रॉक चाहिए। उसी समय राहुल भी कमरे में आ गया था। उसकी मांग सुनकर वह हंसने लगा। ताली बजाकर बोला,
"बुआ समीर लड़का नहीं लड़की है। इसे फ्रॉक दिला दीजिए।"
पहली बार समीर को राहुल की कोई बात अच्छी लगी थी। उसने कहा,
"भइया सही कह रहा है मम्मी। मैं लड़की हूँ। मुझे जींस टीशर्ट नहीं फ्रॉक चाहिए।"
यह सुनकर राहुल ज़ोर से हंसा। मामी भी मुस्कुरा रही थीं। उसे लग रहा था कि जैसे दोनों को उसकी बात अच्छी लगी है। लेकिन मम्मी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। उन्होंने एक थप्पड़ मारकर कहा,
"तुम लड़की नहीं लड़का हो। इस बात को दिमाग में बैठा लो। तुम्हें फ्रॉक नहीं जींस टीशर्ट ही मिलेगी।"
मम्मी गुस्से से उसका हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले गई थीं। उसके बाद कई दिनों तक उससे नाराज़ रहीं। उसके प्रॉमिस करने पर कि कभी भी वह खुद को लड़की नहीं कहेगा उसकी मम्मी ने उससे दोबारा बात करना शुरू किया था। उसके बाद उसकी मम्मी उसे लेकर एक दूसरे मकान में किराए पर रहने लगीं। चार साल पहले उन्होंने यह फ्लैट ले लिया था।
समीर ने अपनी मम्मी को दिए गए प्रॉमिस के हिसाब से खुद को लड़का मानना शुरू कर दिया। लेकिन फिर भी कुछ ना कुछ ऐसा कर बैठता था जिसके कारण मज़ाक का पात्र बन जाता था। पिछली होली में वह अपनी मम्मी और मौसी के साथ शॉपिंग करने गया था। वहाँ एक कुर्ती पर उसकी नज़र टिक गई। उस कुर्ती पर मिरर वर्क था। उसने अपने लिए वह कुर्ती लेने की इच्छा जताई। दुकानदार ने उसे टोंकते हुए कहा,
"बेटा यह तो लड़कियों का है।"
उसके बाद उसकी मम्मी और मौसी की तरफ देखकर बोला,
"बच्चा है समझ नहीं पाया।"
दुकान में मौजूद बाकी लोग मुस्कुरा रहे थे। शॉपिंग छोड़कर उसकी मम्मी और मौसी घर लौट आई थीं। उस दिन मौसी ने उसे और उसकी मम्मी को खूब डांट लगाई थी।
उसे खुद भी अक्सर लगता था कि उसके साथ कुछ गलत है। वह जो दिखता है वैसा महसूस नहीं करता है। स्कूल में भी उसके क्लासमेट्स उसके चलने के तरीके और हावभाव पर फब्तियां कसते थे। उसके शरीर में हो रहे बदलाव भी उसे रास नहीं आ रहे थे। इन सबसे वह परेशान रहने लगा था। कभी कभी उसे लगता था कि वह मानसिक रूप से सामान्य नहीं है इसलिए ऐसा सोचता है। बीते कुछ महीनों से वह बहुत परेशान रहने लगा था। लोगों से कटता जा रहा था। अपने बनाए हुए दायरे में सिमट रहा था। सिर्फ अपनी मम्मी से ही बात करता था। उसका मन स्कूल ट्रिप में जाने का नहीं था। लेकिन उसकी मम्मी ने ज़ोर देकर उसे ट्रिप पर जाने के लिए तैयार किया था।
समीर को लगता था कि दुनिया में वह अकेला है जिसे इस तरह की समस्या है। यह बात उसे और अधिक परेशान करती थी। दो हफ्ते पहले उसका चौदहवां जन्मदिन था। उसकी मम्मी ने उसे एक लैपटॉप गिफ्ट किया था। उसने इंटरनेट पर अपनी समस्या के बारे में खोजना शुरू किया। तब उसे पता चला कि जो वह महसूस करता है वह उसका दिमागी वहम नहीं है। यह एक हकीकत है। दुनिया में उसके जैसे और भी लोग हैं। उसने इस विषय में इंटरनेट पर उपलब्ध आर्टिकल्स पढ़ने शुरू किए। जो काम का लगता उसे कॉपी करके नोटपैड पर पेस्ट कर लेता था।
यह जान लेने के बाद कि‌ उसके जैसे और भी लोग हैं वह कुछ निश्चिंत हुआ था। वह सोचता था कि भले ही दुनिया कुछ भी कहे पर वह वैसे ही रहेगा जैसे उसे अच्छा लगता है। एक दिन देश का माना हुआ फैसन डिज़ाइनर बनेगा। यह सपना कुछ ही दिनों पहले उसने देखना शुरू किया था। उसे किसी का डर नहीं था। बस चाहता था कि उसकी मम्मी उसका साथ दें।
बिस्तर पर लेटे हुए उसने अपने बालों को छुआ। उसे अपनी मम्मी की हिदायत याद आई। उसी समय कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई। उसकी मम्मी ने आवाज़ दी,
"समीर दरवाज़ा खोलो।"
समीर ने दरवाज़ा खोला। अमृता ने कहा,
"भूल गए.....हेयरकट के लिए जाना है।"
समीर कमरे से बाहर निकल आया। डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठते हुए बोला,
"याद है....लेकिन क्या बाल कटवाना ज़रूरी है।"
अमृता ने कहा,
"हाँ ज़रूरी है। लड़कों पर लंबे बाल नहीं जंचते हैं।"
"मम्मी कई स्पोर्ट्सपर्सन लंबे बाल रखते हैं।"
"रखते होंगे....लेकिन तुम कटवा लो।"
"क्यों मम्मी ?"
अमृता ने गुस्से से कहा,
"बहस मत करो। जो कहा है करो।"
समीर ने कहा,
"सिर्फ इसलिए कि मौसी ने कहा है। मौसी मेरे बारे में आपसे जाने क्या क्या कहती हैं। आप उनकी बातें सुनती हैं।"
अमृता ने उसे घूरकर देखा। उसे समीर की बात बुरी लगी थी। उसने कहा,
"मौसी गलत कहती हैं क्या। तुम अजीब सी हरकतें करते हो। कितनी बार समझाया है कि बच्चे थे तब तक ठीक था। अब तो समझो कि तुम लड़के हो। लड़कियों की चीज़ें तुम पर अच्छी नहीं लगती हैं।"
उसकी बात सुनकर समीर ने कहा,
"आपको लगता है कि मैं जानबूझकर ऐसा करता हूँ। मैं आपको बता दूँ कि मेरे जैसे और भी लोग हैं दुनिया में।"
उसकी इस दलील पर अमृता ने कहा,
"होंगे....लेकिन मुझे उनसे कोई मतलब नहीं है। लेकिन जब तुम ऐसी हरकतें करते हो तो मुझे दूसरों के सामने शर्मिंदा होना पड़ता है।"
अमृता गुस्से में यह बात कह गई थी। उसे फौरन अपनी गलती का एहसास हुआ। पर तब तक तीर समीर के दिल में गड़ चुका था। वह अपने कमरे में गया और दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया। अमृता कुर्सी पर धम्म से गिर पड़ी।

समीर अपने कमरे के दरवाज़े से पीठ लगाए फर्श पर बैठा था। अपनी मम्मी के शब्द उसके कानों में गूंज रहे थे। कुछ देर तक वह स्तब्ध बैठा रहा। फिर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। उसकी ज़िंदगी में उसकी मम्मी के अलावा कोई नहीं था। पर वह उसके कारण शर्मिंदगी महसूस करती हैं यह बात उससे सही नहीं जा रही थी।
उसके रोने की आवाज़ बाहर अमृता के कानों में पड़ रही थी। वह समीर को बहुत प्यार करती थी। यही कारण था कि जब लोग उसकी हंसी उड़ाते थे तो उसे पसंद नहीं आता था। वह चाहती थी कि समीर अपनी उम्र के दूसरे लड़कों की तरह पेश आए। इसलिए गुस्से में उसके मुंह से वह बात निकल गई थी।‌ वह बहुत पछता रही थी। समीर का रोना उसके दिल पर आरियां चला रहा था।