अध्याय 7
सर्वेक्ष्वरण ने अचंभित हो बेटे को देखा | दोनों की आँखें ही संघर्ष के मैदान में बदल गई |
“आदि........... ! तुम क्या कह रहे हो.........! वैगई तुम्हें चाहिए ?”
“यस आई वांट टू मैरी हर |”
दोनों के बीच कुछ समय एक मौन रहा, आदित्य ने उस मौन को तोड़ा |
“क्या है अप्पा......... कोई बात ही नहीं ?”
“तुमने जो बोला है उसे पचा रहा हूँ |”
“अप्पा.........! वैगई से आपने परिचय कराया उसी दिन से उसके ऊपर एक खिंचाव महसूस हुआ | उसे कई सालों से देखा हुआ महसूस किया | उसकी बातें, उसका व्यवहार सभी बातों ने मेरे अंदर एक उत्सुकता को जगा दिया | टैक्स अधिकारियों से उसके डील करने का तरीका उसकी होशियारी ने मेरे मन में एक भ्रम पैदा कर दिया | इन सब से ऊपर, वैगई के सामाजिक कार्यों ने मुझे ज्यादा ही इम्प्रेस किया | वैगई मेरी लाइफ पार्टनर बन कर आ जाए तो........ इस दुनियाँ में सबसे खुश नसीब मैं ही रहूँगा | ऐसा किन्से को अप्लाई कर दूँ ऐसा सोच रहा हूँ |”
“वह लड़की वैगई तुम्हारे मन के अंदर इस तरह जगह बना लेगी मैंने बिल्कुल भी नहीं सोचा था| अपने घर आने वाली बहू मेरे स्टेटस के बराबर की हो ऐसा मैंने सोचा | उसमें थोड़ी सी चोट पहुंची|
“अप्पा.......... ! इसमें आपकी पसंद नहीं होने पर इस शादी की बात को यही खत्म कर देते हैं|”
सर्वेक्ष्वरण मुस्कुराए | “देखा....... ये दोहरा रोल ही तो नहीं चाहिए ! किन्से को अप्लाई करने वाला ,तुम्हारी खुशी के बीच खड़े होने के लिए...... मैं तैयार नहीं हूँ आदित्य | आज ही वैगई से बात करता हूँ | नहीं, तो तुम ही वैगई से बात करो तो भी ठीक है |”
“आप ही बात कर लो अप्पा........”
सुबह के नौ बजे |
अस्पताल के लिए काइनेटिक होंडा पर वैगई जा रही थी, वह सुनसान जगह थी, लोगों की चहल पहल अधिक नहीं थी, उस रास्ते के अंदर घुस कर एक फोन बूथ के सामने काइनेटिक खड़ा करके स्टेंड पर लगाया |
बूथ के पास ही एक सीमेंट की बैंच पर बैठा एक अधेड उम्र का व्यक्ति दुआ सलाम करता हुआ उठ कर आया |
“प्रणाम माँ !”
वैगई मुस्कुराई |
“ठीक समय पर आ गए वीर स्वामी......?”
“आपके कहने पर मैं आए बिना रहूँगा क्या ?”
“बूथ में कोई नहीं है ना ?”
“नहीं है माँ |”
दोनों ने बूथ के अंदर घुस कर काँच के दरवाजे को बंद कर लिया |
“मैंने जो बताया सब याद है वीरस्वामी ? नहीं तो फिर से एक बार बताऊँ ?”
“नहीं माँ....... आपने एक बार मुझे बोलकर बताया सब कुछ मन में रट गया है......” कहते हुए वीरस्वामी के रिसीवर को उठा कर एक रुपये के सिक्के को डालते ही लाइन में जान आ गई, डायल करने वाले अंको को डायल किया | दूसरी तरफ से रिंगटोन जाते ही रिसीवर उठा |
वीरस्वामी ने आवाज दी
“दयानिधि ट्रस्ट ?”
“हाँ”
“ट्रस्ट के मुखिया नित्यानंदन हैं क्या............?”
“नित्यानंदन ही बात कर रहा हूँ | आप कौन ?”
“अय्या........ प्रणाम.......... मैं वीरस्वामी बात कर रहा हूँ |”
“वीरस्वामी............ कौन से वीरस्वामी ?”
“वॉचमेन वीरस्वामी साहब........... केंद्रीय सतर्कता आयोग (C.B.C.) में वॉचमेन का काम करता हूँ | पिछले साल कूड़े में आग लगाने से हमारी झोपड़ियाँ जब जल गई थी, तब आपके ट्रस्ट के द्वारा एक लाख रु. दिये गये थे |
उसके लिए धन्यवाद देने के लिए दस लोगों के साथ आपके ट्रस्ट के भवन में मैं भी आया था साहब !”
“ऐसा है क्या ? ठीक है......... अब क्या बात है.......... फिर से कुछ मदद मांगो तो करने लायक स्थिति में हम नहीं है |”
“साहब.............! आपसे मदद लेने के लिए मैंने आपको फोन नहीं किया |”
“फिर”
“आपकी मदद करने के लिए........”
“क्या मेरी मदद..........?”
“हाँ साहब आपके ट्रस्ट के द्वारा आपने शहर में कितने ही अच्छे कार्य किए हैं | आप पर कोई आंच आए तो, उसे आपको सूचित करना मेरा कर्तव्य है सोच कर फोन किया |”
“मेरे ऊपर आँच........! परेशानी ! क्या कह रहेहो तुम ?”
“साहब..........! कल शाम को पाँच बजे के करीब दिल्ली से C.B.I. के तीन अधिकारी घूस लेने वालों पर निगाह रखने वाले ऑफिस में आए | यहाँ रहने वाले अधिकारियों से रात दस बजे तक बातचीत करते रहे ,जब-तब मुझे बुलाकर चाय कॉफी टिफिन लाकर देने को बोलते | मैं जाकर लाकर दे देता | उस समय वे जो बात कर रहेथे कुछ शब्द मेरे कान में भी सुनाई पड़े | चेन्नई में जो ट्रस्ट हैं वह कई तरह के गलत काम कर, लाखों रुपये कमा रहेहैं, उसे मालूम करने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं | ऐसा बात कर रहें थे | उनके ऐसे बात करते समय ‘दयानिधि ट्रस्ट’ का नाम मेरे कान में पड़ा साहब......... रात को मैं ड्यूटी पर था अत: आपको फोन न कर सका |”
दूसरी तरफ से नित्यानंदन घबराये | “वह ऑफिसर और क्या बात कर रहे थे ?”
“सारी बातों को मैं पूरा सुन न पाया | कॉफी, टी, सिगरेट आदि लेकर अंदर जाते समय, टुकड़ों-टुकड़ों में कुछ बातें मेरे कानों में पड़े | दयानिधि ट्रस्ट के नाम को दो तीन बार बोले थे साहब............! मेरा मन न माना अत: मैंने आपको फोन किया साहब | साहब ! इसे आप अपने मन में रखकर जितनी सावधानी से रह सकते हो उतनी सावधानी से रहिए साहब.......... किसी भी कारण से मेरे नाम को बाहर मत आने देना साहब.......... मैं बाल बच्चे वाला हूँ | मेमो देकर भेज देंगे तो मेरा परिवार बीच सड़क पर आ जाएगा |”
वीरस्वामी ने जल्दी-जल्दी बोल कर रिसीवर को टांग दिया, मुड़ कर वैगई को देख कर हंसा |
“आपने सिखाया जैसे ही बोला ना मैंने.......”
“बहुत धन्यवाद................”
“अय्यो..........! मेरी अम्मा हो आप......... इन सब बातों के लिए धन्यवाद बोलना.............! आपने मेरी पुत्री की मदद की उससे बड़ा थोड़ी है ये............”
“फिर भी......... आपने अपने नौकरी के ऊपर जाकर एक झूठ बोला है ना ?”
“मेरे हिसाब से ये झूठ नहीं है अम्मा............. ! ब्रह्म अस्त्र........ ये ब्रह्म अस्त्र जरूर वह ढाई लाख रुपये बचा देगा |”
वैगई अस्पताल पहुँच कर अपने सेक्शन में घुसी तो समय 9.30 |
“गुड मॉर्निंग अर्चना............”
कम्प्यूटर से रहस्यमय बात कर रही अर्चना मुड़ी |
“दौड़ो-दौड़ो” बोली |
“दौड़ूँ कहाँ.........?”
चीफ डॉक्टर सर्वेक्ष्वरण ‘वैगई आ गई क्या ?’ अब तक छ: बार इंटरकॉम से पूछा |”
वैगई को आश्चर्य हुआ |
“छ: बार..........?”
“हाँ............. हाँ..........”
“फिर दौड़ना नहीं उड़ना पड़ेगा |” वैगई ने अपने कंधे पर से वेनिटी बेग को उतार कर कुर्सी के पीछे टांगा और चलने लगी तो मोबाइल बज उठा उसे उठा कान में लगाया और लिफ्ट की तरफ चली |
“हैलो”
“कौन वैगई ?”
“हाँ..........”
“मैं दयानिधि ट्रस्ट का मुख्या नित्यानंदन बोल रहा हूँ |”
“ओ..........! आप.............. गुड मॉर्निंग सर | मैं आपकी बात भूली नहीं | दस बजे बैंक के खुलते ही रुपये निकाल कर सीधे आपके स्थान पर ही आ जाऊँगी............. मैं आऊँगी या नहीं आऊँगी ये संदेह आपको करने की जरूरत नहीं सर | ये वैगई जो भी करें.......”
नित्यानंदन बीच में बोले |
“एक मिनिट............ मैं बोल रहा हूँ उसे सुनो.......”
“बोलिए साहब......... पैसों को लेकर कोई दूसरी जगह आना है क्या ?”
“वह नहीं.......”
“फिर ?”
“ये ढाई लाख रुपये हमें नहीं चाहिए |”
“क्या ! रुपये नहीं चाहिए..... क्यों सर ?”
“मैं और मेरा सेक्रेटरी और ट्रजरार ने सोचा धर्म के काम में आने वाले रुपयों पर हाथ रखना हमारे मन को ठीक नहीं लगा | इसलिए पूरे पाँच लाख को आपके समाज सेवा संस्था को देने का हमने फैसला कर लिया |”
“साहब ! आप क्या सच कह कर रहे हैं ?”
“हाँ ! वह पाँच लाख रुपयों को आपने कौन-कौन से समाज के कार्यों में लगाया उसका विवरण हमें दे दें बहुत है........”
“थैंक्यू वेरी मच सर |” वैगई सेलफोन को बंद कर अपने कमर में सुरक्षित रख “जियो वीरस्वामी” बोली |
बंद दरवाजे के बाहर जो कॉलबेल था उसे दबा कर वैगई ठहरी थी, ‘अंदर आ सकते हो’ ऐसा एक निशान दरवाजे पर लगा था जिसने ‘गेट इन’ हरे रंग में आवाज आई | दरवाजे को धक्का देकर वैगई अंदर गई |
“गुड मॉर्निंग डॉक्टर”
“आओ वैगई........”
“सॉरी डॉक्टर......... आज मैं पंद्रह मिनिट लेट हूँ रास्ते में कुछ पर्सनल काम था.........”
“नो प्रोब्लम......... बैठो......... जी !”
वैगई बैठ गई | “एनी अरजेंट मेटर डॉक्टर ?”
“यस बट पर्सनल.......”
“कहिए डॉक्टर |”
सर्वेक्ष्वरण घूमने वाली कुर्सी से आधा गोल चक्कर लगा....... पैनी निगाहों से देखते हुए बोले “तुम्हें अच्छे नसीब या सौभाग्य पर विश्वास है क्या वैगई ?”
“है डॉक्टर..........! नहीं तो इतने बड़े अस्पताल में मुझे अकाउंटेंट का काम मिला होता क्या ?”
“यह काम मिलने को ही अपना सौभाग्य समझने वाली तुमको, दूसरा सौभाग्य भी मिलने वाला है | तुम उसका अंदाज लगा सकती हो क्या वैगई ?”
“लगा सकती हूँ डॉक्टर |”
“बोलो देखें ?”
“आपके लड़के आदित्य, मुझसे शादी करना चाहते हैं....... उसी बारे में ही आप कह रहे हैं ना डॉक्टर ?”
.................................