સિરત પાસે હવે તેના દાદાની પેલી ડાયરી હતી એટલે જ્યારે પણ તેને સમય મળતો ત્યારે તે વાંચવા બેસી જતી. આમતો તેને વાંચવું ગમતું નહોતું પણ આ ડાયરી વાંચવાથી એને ફાયદો જ થાય એવું હતું એ વિચારીને તે આ ડાયરી વાંચતી. ધીમે ધીમે તેને વાંચવામાં રસ પડવા લાગ્યો.
मेरा नाम रघुराम है। मैं यह डायरी इसलिए लिख रहा हु की हमने जो देखा है, जो महसूस किया है वो सब हकीकत है। लोग भले ही हमे जूठा कह ले लेकिन ये सारी वारदात हमारे साथ हुई है। हमने बहोत कुछ सहन किया है लेकिन कभी भी वहा जानेका खयाल दोबारा दिलमे तो क्या दिमागमे भी नही आने दिया। अगर मेरे लिखे रास्ते पर कोई जाता है तो उसे वो मिलेगा जो हमारे देशकी अमानत है। खजाने का एक ऐसा भंडार जो शायद अनमोल है। हा वो रास्ता बहुत ही कठिन है लेकिन कहते हैं ना की कठिन रास्ते के बाद जो मंजिल मिलती है वो बहुत ही कीमती होती है।
एक ऐसी दुनिया जहा जानेके बाद शायद ही कोई इंसान जिंदा वापस हमारी दुनियामे लौटा होगा।
एक ऐसी दुनिया जो दिखने में तो शायद स्वर्ग से भी ज्यादा सुंदर है।
एक ऐसी दुनिया जो नर्क से भी ज्यादा भयानक है।
गलती से ही सही लेकिन एकबार हम अपने सभी साथियों समेत वहा पहुंच गए। ऐसा लग रहा था कि इसबार हमे कोई नही बचा पाएगा। मौत से रूबरू हो कर आए थे हम सब। कुछ लोग मारे गए तो कुछ लोग बच कर निकालना चाहते थे। जो बचे थे उन सबने मिलकर वहा से बाहर कैसे निकल सकते है उस विचार पर काम शुरू कर दिया। वहा पर सात साल रुकने के बाद हमे समझ आया की हर साल मे एक दिन ऐसा आता है जब हम चाहे तो उस दुनिया से हमारी दुनियामे वापस आ सकते है।
हमारी जिंदगी का सबसे अच्छा कहो तो भी वो दिन था और अगर सबसे बुरा कहो तो भी वही दिन था।
ई स 1946 का साल शायद आधा बित चुका था। उसवक्त के महान राज्य जैसे की जोधपुर, अजमेर, जयपुर, मेवाड़, उदयपुर, चित्तौड़गढ़ सबने एकजुट हो कर एक बहोत ही बड़ा फैसला लिया।
जब अंग्रेजो को लगा कि अब वो इस देश को ज्यादा गुलाम बना कर नही रख पाएंगे। तब इंग्लैंड से ब्रिटिश सरकार की ओर से कैबिनेट मिशन को भारत भेजा गया। जिसका उद्देश्य था कि हिंदुस्तान को किस तरह का स्वराज दिया जाए। इस केलिए देशभर में चर्चसभा शुरू हो चुकी थी। जो परिस्थिति बदल चुकी थी उस केलिए वायसराय के तौर पर माउंट बेटन को नियुक्त किया गया था।
उस वक्त कुछ अंग्रेज अफसरों ने मिलके ये तय किया की सभी राजाओं से जितना हो सके उतना सोना चांदी और हीरा जवेहरात इकट्ठा किया जाए। उन्होंने राजस्थान के सभी राजाओं से ये सब सौगात के तौर पर मांगा।
सभी राजाओं ने भी इस बात को जायज मानकर उन्हें वो सौगात देने केलिए मंजूरी दे दी। हमारे राज्यमे उस वक्त बहुत सारे ऐसे स्वातंत्र्य सेनानी थे जो गांधीजी की अहिंसा की राह पर नहीं बल्कि भगतसिंह की तरह हिंसाकी राह पर चलते थे वो इस बात से सहमत नही थे। उसमे मैं भी शामिल था। हम सबने एक साथ मिलकर इस बात का विरोध किया। राजाओं को बहोत समझाया गया लेकिन वे लोग कुछ सुनने को तैयार नहीं थे। उनके हिसाब से अगर वो उन अंग्रेजो को ये खजाना दे देंगे तो वो हमारा देश छोड़कर चले जायेंगे।
सब लोग जानते थे की उनका ये फैसला गलत था। लेकिन वो राजा थे। उनके खिलाफ जाने की हिम्मत किसीमे नही थी। तो हम सभी स्वातंत्र्य सेनानियो ने मिल कर उस खजाने को राजाओं से और अंग्रेजो से लूटकर हमारे देश को वापिस देने का फैसला किया।
वो दिन हमने तय नहीं किया था। वो उन्होंने किया था। जैसलमेर के बाहरी हिस्से में सभी एकसाथ मिलकर उन्हें वो खजाना देने वाले थे। उनमें सभी राजाओं के सैनिक तो कुछ ही थे लेकिन उनके साथ अंग्रेजो के तकरीबन दस हजार सैनिक थे। उनके सामने हमारी तादात कुछ ज्यादा ही थी। सभी राज्य से अपने ही राजा के खिलाफ जो हुए थे वो स्वातंत्र्य सेनानियो ने मिल कर कुछ अठाईस हजार के आसपास एक सैन्य तैयार किया था। हमारी कमजोरी यह थी की सभी के पास हथियार के नाम पर सिर्फ तलवारे थी जबकि उनके पास बंदूके और तोपे भी थी। भले ही हमारी तादात ज्यादा थी लेकिन उनके सामने हम फिरभी कमजोर थे। ये लड़ाई हम जीतेंगे या नहीं ये हमे मालूम नही था। लेकिन अच्छी बात ये थी की हम सबमें हिम्मत सबसे ज्यादा थी। लेकिन वो कहते हैं ना, की सिर्फ हिम्मत से जंग नही जीती जाती। जंग जितने केलिए ताकत, हथियार एवं सही वक्त पर सही योजना भी अति आवश्यक है।
राजाओं और अंग्रेजो में से किसीने सोचा भी नही होगा की उनके खजाने को कोई लुंटने वाला है। उन्हें भी एक तरह का घमंड था की उन्हें कौन लुंटेगा!!
सभी राज्यों में से आए हुए कुल 168 दल थे। सभी के अपने अपने दलपती थे। लेकिन सबसे बड़े दलपति भद्रा और मैं ही थे। भद्रा उम्र में मुझसे बड़ा था। वो हमारा सरदार था। उसके दल में कुल 374 सैनिक थे जबकि मेरे दल में कुल 462 सैनिक थे। मेरे दल में शामिल सैनिक की तादात सभी दलों में सबसे ज्यादा थी। यहां ऐसे भी दल थे जिनकी सैनिक संख्या दस या बारह भी थी। लेकिन हम सब का मकसद एक ही था। उस खजाने को लूटना जो हमारे देशका है।
सभी दलपती अपने अपने दलों को लेकर वहा मौजूद थे। सबके दिमागमे एक ही खयाल था, कुछ भी हो जाए लेकिन हम अपने मकसद में जरूर कामियाब होंगे। उसके अलावा सबके दिलो में एक तरह का भय भी था की कैसे हम ये हमला सफल बनाएंगे।
अचानक ही सभी दलों में से एक नौजवान दलपती सामने आया। उसका नाम रुस्तम था। वो शायद कुछ प्लान बनाके लाया था।
जब वो अपना प्लान बताने लगा तो कुछ दलपतियो ने उसका मजाक ये कहकर उड़ाया की ये अभी अंडे से निकल कर आया है और हमे प्लान बताएगा। लेकिन इससे जैसे रुस्तम को कोई फर्क ही न पड़ा हो ऐसे वो मुस्कुराया। थोड़ी देर बाद जोर से चिल्लाया और कहने लगा।
" ठीक ऐसे ही वो अंग्रेज हम पर हसने वाले है अगर हम इस लड़ाई में हारे तो। वो हमारी कमजोरी जानते है। अगर हमे इस जंग को जितना है तो हमे हर कदम पर सचेत रहना होगा। हमारी हर चाल सही होनी चाहिए। अगर जरा सी भी गलती हुई तो उनकी बंदूकों से और उनकी तोपो से हम भून दिए जायेंगे। हमारी एक छोटी सी गलती भी हम सबकी जान ले सकती है। मुझे मौत का कोई भय नहीं बल्कि मैं बहोत खुशनशीब कहलाऊंगा अगर इस जंग में मारा गया तो। लेकिन ये जंग अगर हम हारे तो हमारे बाद आने वाली पीढ़ियां हमे कमजोर और बेवकूफ कहेगी। लेकिन मैं कमजोर नही हूं और बेवकूफ तो बिलकुल नहीं। हा चलो मानता हु की तुम सबसे छोटा हू लेकिन फिरभी मैं एक हिंदुस्तानी हूं। और मैं अपनी और अपने देशवासियों की आजादी केलिए लड़ रहा हूं। "
थोड़ी देर केलिए हर जगह एकदम खामोशी सी छा गई। सभी इस नौजवान को देख रहे थे, सुन रहे थे। कोई जरा सी भी आवाज नहीं कर रहा था। उसकी बाते सुनकर सबकी हिम्मत और बढ़ रही थी। उनका जो भय था वो दूर हो रहा था। वो नौजवान इस वक्त एक हीरो की तरह लग रहा था, एक लीडर की तरह लग रहा था।
वो फिर आगे बोलने लगा। " चलो आप लोग मेरी योजना नही सुनना चाहते क्युकी मैं बहोत छोटा हू तो क्या तुम में से किसीके पास कोई योजना है जो हमे यह जंग जीता सके? "
जिन्होंने उसका मजाक उड़ाया था उनकी तरफ उसका ये इशारा था। लेकिन सभी चुप थे। क्योंकि किसीके पास कोई योजना नही थी। इसलिए सबने उसकी योजना सुनने केलिए कोई विरोध नहीं किया।
सभी दलपती एकसाथ मिलकर योजना सुन रहे थे और रुस्तम सबको अपनी योजना बता रहा था।
ટક ટક ટક..
અચાનક જ બારણે ટકોરા પડ્યા. વાંચનની તંદ્રા માંથી સિરત અચાનક બહાર આવી. ' कोन है..?' પોતાને વાંચનમાં ખલેલ પહોંચી એટલે તે જોરથી બરાડી.
કોણ હતું બહાર?
શું હતો તેમનો પ્લાન?
તેઓ ખજાનો લઈને ક્યાં ગાયબ થઈ ગયા?
પેલા બીજ શેના હતા?
શું સિરતને નકશાના બધા ટુકડા મળશે?
આવા અનેક પ્રશ્નો ના જવાબ માટે વાંચતા રહો
ચોરનો ખજાનો..
Dr Dipak Kamejaliya
'શિલ્પી'