Apang - 50 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 50

Featured Books
Categories
Share

अपंग - 50

50

----

चलती रही ज़िंदगी ! सैटिल होने लगी थी भानु | बच्चे की नैनी बहुत अच्छी, समझदार थी | जैसे भानु को भारत में अपने घर पर बेटे का ध्यान रखने की कोई ज़रूरत नहीं होती थी, इसी तरह यहाँ पर भी इंतज़ाम हो चुका था | मज़े की बात यह कि बच्चे और उसकी आया का कुछेक दिनों में ही ऐसा संबंध हो गया था कि वह भानु को याद ही नहीं करता था | आया उसकी माँ बन चुकी थी |

एक दिन रिचार्ड ने चाय पीते-पीते पूछा ;

"यू नो ----?" और चुप्पी साधकर चाय की चुस्की लेने लगा |

"ओहो, बात तो पूरी करो ---" भानु उसकी बात पूरी होने की प्रतीक्षा कर रही थी |

रिचार्ड मुस्कुराता चाय की चुस्की लेता रहा | आजकल वह ऐसी हरकतें बहुत करने लगा था | जैसे भानु को चिढ़ाने लगता |

"बोलो न रिचार्ड, बात बीच में क्यों छोड़ने लगे हो आजकल ---" भानु ने भुनभुन की |

"ओ --क्या बोलता था मैं ---? उसने भानु को थोड़ा और छेड़ा और और चाय की सिप से पहले कुकीज़ में से एक उठा ली |

भानु कुछ नहीं बोली --कैसा रिश्ता होता जा रहा था उनका ! दोनों का साथ रहने का मन करता | रिचार्ड उसके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनता जा रहा था | वह खुद फिर से जैसे अल्हड़ सी होती जा रही थी | क्या हो रहा था ? रिचार्ड ने भानु से अभी तक कोई डिमांड नहीं की थी जबकि भानु जानती थी कि वह उसके कितने कर्ज़े के बोझ तले खुद को महसूस करती थी लेकिन रिचार्ड से कुछ न कह पाती | वह जानती थी अगर वह कुछ ऐसी बात कहेगी तो रिचार्ड को दुख पहुँचेगा |

"हाँ, तो मैं बोलता था कि -- तुम जानती हो ---?" फिर खुद ही चाय की सिप लेकर मुस्कुराया

"तुम कैसे जानोगी --जब मैंने तुम्हें बताया ही नहीं ---" और ठठाकर हँस पड़ा |

भ्नु उसकी निश्छल हँसी में खुद को तलाशने लगी जैसे --क्या होता है देश-विदेश, जात-बिरादरी, अपनी भाषा-दूसरे की भाषा ! प्यार की बस एक ही भाषा होती है और वह मौन की भाषा ! सब कुछ कह जाती है वह !भानु को अपने भीतर बदलाव सा लगने लगा था | इसलिए नहीं कि रिचार्ड ने उसके लिए इतना किया था या वह उसके अहसान तले दब रही थी बल्कि इसलिए कि वह वास्तव में उसके प्रति, उसकी तहज़ीब के प्रति, उसके समर्पण के प्रति समर्पित होने लगी थी | राजेश का नाम उसके दिल की स्लेट से पुछता जा रहा था |

"स्ट्रेंज ! पूछ भी नहीं रही --चलो मैं बताता हूँ --मैंने राजेश का ट्रांसफ़र दूसरी ब्रांच में करवा दिया है---" रिचार्ड ने कुछ ऐसे कहा जैसे गाड़ी निकाल रही हो |

भानु अब भी चुप थी और दोनों के संबंध के बारे में अब भी सोच रही थी |

"ए --डिड यू लिसन मी --? रिचार्ड ने थोड़ी ज़ोर से पूछा |

"हाँ --हाँ --तुमने राजेश का ट्रांसफ़र दूसरी ब्रांच में करवा दिया है---" उसने जैसे कहीं से बहुत दूर से बोला फिर अचानक बोल उठी ;

"बट व्हाई --? क्या हुआ ?" उसने बौखलाकर पूछा |

" अरे ! तुम इस पास वाली ब्रांच में जाओगी तो वोंट फील कम्फ़र्टेबल |" उसने चाय की पूरी प्याली अपने मुँह में गटक ली और मुस्कुरा दिया |

भानु अब भी कुछ न बोली |