Apang - 48 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 48

Featured Books
Categories
Share

अपंग - 48

48

--------

रिचार्ड का इतना बोझ अपने सिर पर चढ़ाना अच्छा नहीं लग रहा था भानु को | न कोई संबंध, न आगे उसके लिए कुछ करने की सोच ! हाँ, कुछ था जिसका कोई नाम नहीं था | उसे कोई नाम दिया भी नहीं जा सकता था | कैसे उतारेगी इतना सब कुछ ? भावनाओं का कोई मोल नहीं होता किंतु धन का तो होता है और खूब होता है | किसी का इतना अहसान ठीक नहीं था | वह बात अलग थी कि जब भी उसने रिचार्ड से बात की उसने यही कहा ;

"क्यों वरी करती हो, जब तुम सैटल हो जाओगी तब दे देना --"

उसका अनुरोध था कि वह उसीकी ही कंपनी में काम करेगी |

क्या मज़ाक था ! उसकी ही कंपनी में काम करके उसे उसका दिया हुआ पैसा ही लौटाएगी ! लेकिन उसके पास कोई चारा भी नहीं था | अगर कहीं और काम करती भी जो कि उसके पास ऑफ़र्स आई हुई ही थीं तो उसे इतना आराम व सुकून कहाँ से मिल पाता |?

'आदमी बड़ा स्वार्थी होता है !' वह सोचती |

हाँ, इसमें कोई शक नहीं है लेकिन मानव जीवन ही यही है, आदमी के संबंध स्वार्थ से ही तो बनते हैं | यह बात कठोर है किंतु है सच !

वह अपने आपको बहलाती कि काम करेगी न, मुफ़्त में थोड़े ही लेगी, कुछ भी ! कितना बेईमान होता है आदमी का दिल !

यहाँ आकर सबसे पहला काम भानु ने यह किया कि उसी रात बाबा को फ़ोन नं तथा घर का पता बता दिया था |

"अरे ! पता बदल गया ?' बाबा ने पूछा था |

"जी बाबा ---" उन्होंने इससे अधिक पूछा नहीं, न ही उसने कुछ ज़्यादा बोला | ज़्यादा बोलने से कभी कभी जो न भी बताना हो, वह आसानी से ज़बान से सरककर दूसरे के पास पहुँच जाते हैं |

"क्यों, पीछे से ही बदल लिया ?" बाबा ने आश्चर्य से पूछा था |

"जी बाबा, अब जो लिया है न, वह बहुत सुन्दर और बड़ा है और पुनीत के लिए आया का इंतज़ाम भी है तो एक कमरा उसे भी चाहिए था न !" भानु ने जान बूझकर बाबा से आया के बारे में कहा| बाबा रिलैक्स होंगे, यही सोचकर उसने बताया था लेकिन बाबा को यह एक आश्चर्य ही लगा था कि राजेश ने इतनी तरक्की कर ली कि इतने बड़े एपार्टमेंट के साथ बच्चे के लिए आया का भी इंतज़ाम कर लिया ?

"अच्छा ! यह तो बहुत अच्छी खबर दी तूने --अब तो जब देखूँगा तभी पता चलेगा |" उन्होंने कहा |

"हाँ बाबा, आप उधर का थोड़ा सा संभाल लीजिए फिर माँ को लेकर आइएगा --हैं न, अकेले नहीं " भानु ने कहा | वैसे वह तो बाबा के आने की बात से ही घबराती थी |

"क्यों, अकेले आऊँगा तो घर में घुसने नहीं देगी क्या ?"

"अरे बाबा --आप भी, माँ कहाँ जाती हैं कहीं ?बेटी के पास आने के लिए घर से निकलेंगी न !"

"अच्छा ! तुझे माँ की याद आती है ? " अचानक फ़ोन पर माँ की आवाज़ सुनाई दी थी |

"क्या माँ --आप भी कैसी बातें करती हो ? अच्छा माँ लाखी कैसी है ?" उसने तुरंत विषय बदल दिया था |

"हाँ, ठीक है --तेरी चिट्ठी का इंतज़ार करती है | कभी यहाँ होगी तो बात कर लेना --अभी तो यहाँ नहीं है | चल बच्चे का ध्यान रखना | तुम तीनों को हमारा प्यार और आशीर्वाद !" माँ ने फ़ोन रख दिया था और भानु चिंता में पड़ गई थी कि सच में ही माँ, बाबा यहाँ आ गए तो क्या होगा ?

उसका माथा बिना बात ही पसीने से भीग उठा, हृदय की धड़कनें बढ़ने लगीं और अजीब सी घबराहट ने उसे असहज कर दिया | अभी तो न रूई था, न ही कपास !