Vo Pehli Baarish - 50 in Hindi Fiction Stories by Daanu books and stories PDF | वो पहली बारिश - भाग 50

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वो पहली बारिश - भाग 50

“ध्रुव.. कहाँ रुक गए थे तुम?”, अपने पीछे, घुटने पे बैठे ध्रुव को देखते हुए निया बोली।


“अ.. अ.. जूते पहन रहा था।", ध्रुव ने निया को देखते हुए धीरे से कहा।


“पर तुमने तो चप्पल पहनी हुई है ना", उसकी चप्पलों की ओर इशारा करके निया बोली।


“हाँ.. तो वहीं ना.. आदत से मजबूर होकर मैं जूते बांधने बैठ गया की तभी पता लगा, की मैंने जूते पहने ही नहीं, बताओ..”


“अ. अ. मैं क्या बताऊ?”


“यही की कितना पागल हो गया हूँ मैं।", ध्रुव फट से उठ कर निया की तरफ़ जाता हुआ बोला।


“अ. अ. हाँ लग तो यही रहा है।", निया धीरे से बोली और वो दोनों वापस से साथ चलने चल गए।


***********************


“तू साफ साफ बताएगा, की चल क्या रहा है?”, शुभम अपने सामने बैठे ध्रुव को देखते हुए बोला।


“साफ साफ क्या बताऊ?”, ध्रुव कुछ सोचते हुए, थोड़ा अटक कर बोला।


“देख मैं ना तेरा चेहरा देख कर बोर हो गया हूँ, अभी चार दिन और हूं मैं यहाँ, तो अगर तूने यहाँ रहना है, तो सच सच तो बताना ही होगा।"


ध्रुव शुभम को सब कुछ बता देता है, जिसे सुनते ही शुभम बोलता है।


“तू एक काम कर मुझे ऋषि का नंबर दे।"


“नहीं भाई, मुझे तेरी मदद की जरूरत नहीं है, उससे बात करने के लिए।"


“तेरी मदद कर कौन रहा है?”


“तो?”


“मैं तो ऋषि को फोन करके ये बोलने वाला हूँ, की निया बहुत अच्छी लड़की है, और उसे पूरी कोशिश करनी चाहिए की उसकी और निया की बात थोड़ी आगे बढ़े।"


शुभम की बात सुनते ही ध्रुव बड़ी बड़ी आँखों से उसकी ओर देखता है, और बोला।

“तू सच में मेरा भाई है भी या नहीं?”


“सच में हूँ, इसलिए बता रहा हूँ, फालतू की बातें मत सोच, और उसे जाकर बता जो तुझे लगता है।"


“हह?”


“हह.. नहीं हाँ, कल सुबह मिलते ही उसे ये बता दे..”


“पर ऐसे कैसे?”


“तो क्या करना है तूने महूरत निकलवाना है?"


“मैंने तुझे बताया था ना, की मैंने पहले जब उसे बताने की कोशिश करी तो क्या हुआ।"


“और अगर तूने दोबारा ये कोशिश नहीं करी, तो पता नहीं क्या क्या हो जाएगा।", शुभम ने हाथ पे साथ रखा और आगे बोला, “देख ले, मैंने जो अपनी गलतियों से सीखा वो तुझे बता दिया, इससे ज्यादा तुझे कुछ नहीं बता सकता, फैसला तूने ही लेना है की क्या करना है और क्या नहीं।"


“पर अगर उसने मना कर दिया तो।"


“तो तू परसों का निकलता, कल ही निकल जाइओ यहाँ से, पर अगर तेरे कुछ बोलने से पहली ही उसने किसी और को हाँ बोल दिया, तो कल निकल कर भी यहाँ से कभी निकल नहीं पाएगा। हमेशा बस यही सोचता रहेगा की काश मैंने थोड़ी पहले ये सब बोल दिया होता।"


“ठीक है, तो मैं कल सुबह ही उसे सब बताता हूँ।", पूरे साहस के साथ ये बोलते हुए ध्रुव अपने कमरे में सोने चला गया।


अगली सुबह पूरे उत्साह में बस स्टैन्ड पे बैठे ध्रुव, निया का इंतज़ार कर रहा था, और जैसे ही वो आती हुई दिखती है, अपने बैग की हल्की सी चेन खोल कर चॉकलेट को वहीं पाते हुए, वो लंबी सांस भरता है।

“लेट हो गई.. लेट हो गई..”, निया ध्रुव के पास आते हुए ज़ोर से बोली।


“कहाँ लेट हुई हो? तुम एकदम टाइम से पहुँची हो..”, ध्रुव अभी निया से बोल ही रहा होता है, की दोनों की बस आ जाती है। रोज़ाना जहां उन्हें इस बस की कुछ देर वैट करनी पड़ती थी, वहीं आज जब ध्रुव को चाहिए था की ये थोड़ी और लेट आए, वो जरूरत से थोड़ी जल्दी आ गई थी।

“चलो..”, ध्रुव को हल्के से मारते हुए निया बोली और दोनों बस में जाकर बैठ गए।

हमेशा कुछ खाली रहने वाली बस, आज इतनी भरी हुई थी, की उन दोनों को साथ बैठने के लिए कोई सीट खाली नहीं मिली, और निया की पास वाली सीट पे बैठा हुआ ध्रुव, बस उसे ही देख रहा था, की कब वो अपने फोन से समय निकाल कर उसकी तरफ देखेगी।


कुछ देर में जब निया का स्टॉप आ गया, और वो उसे बाय बोल कर चली गई, तो उसे मुस्करा कर बाय बोलते ध्रुव ने अपने दांत बिझ कर खुद से बोला, “बस एक बार ये ही बोल देती , की एक साथ सीट ढूंढ लेते है , तो कम से कम मुझे ये तो लगता की, हाँ उससे भी मेरी चिंता है.. ध्रुव ध्रुव ये किस पंगे में फसने जा रहा है तू।", खुद से ये बोलते ही, अपना सिर नीचे करके ध्रुव बैठ गया।


***********************


“बस एक कोशिश और करूंगा.. अगर अब नहीं बोल पाया, तो इससे किस्मत का इशारा मान कर मैं आराम से बैठ जाऊंगा।", शुभम से फोन पे ये बोलता हुआ ध्रुव निया के बुलाए पार्क में जा रहा होता है, की तभी उसकी नजरें निया पे पड़ती है, वो वहाँ अकेली नहीं खड़ी थी, ऋषि भी उसके साथ खड़ा था, उन दोनों को साथ खड़ा देख कर ध्रुव एक बार के थोड़ा धीरे हो जाता है, और तभी वो ऋषि को आगे बढ़ कर निया के चेहरे पे से कुछ हटाते हुए देखता है। “ये खुद को समझता क्या है?”, खुद से ये कहते हुए, वो अब पहले से तेज़ी से आगे बढ़ता है।


“ध्रुव.. क्या हुआ?”, अपनी गति बढ़ा चुके, लगभग भागते हुए ध्रुव को देखते हुए निया पूछती है।


“हह?”


“तुम भाग रहे हो ना..”


“कुछ नहीं.. कुछ भी तो नहीं।"


“फिर भाग क्यों रहे थे?”


“वो क्योंकि, वो क्योंकि.. मैं मोटा हो गया हूँ ना.. तो सोचा थोड़ी भाग लिया करूँ।"


“पर ऐसे रात को भागने से सेहत पे नुकसान भी हो सकता है.. मतलब खाना कर भागने से..”, ऋषि ध्रुव को टोकते हुए बोला, जिसका बिना कोई जवाब देते हुए ध्रुव, बस बड़ी बड़ी आँखों से उसे देख रहा था।


“ऐसे क्यों देख रहे हो.. वो एकदम सही कह रहे है, ऐसी चीजों का अक्सर नुकसान भी हो जाता है।", निया ने भी ऋषि की तरकदारी करते हुए कहा।


“कुछ नहीं.. कुछ नहीं..”, हल्के सा उदास होते हुए, ध्रुव ने कहा और वो थोड़ा सा पीछे मुड़ा, फिर कुछ सोचते हुए वो आगे बोला, “सुनो मुझे तुमसे एक ज़रूरी बात करनी थी..”


“हाँ बताओ..”

“वो.. वो.. मुझे नहीं पता, की लोग अक्सर इसे कैसे ब्यान करते है, इसलिए मैं बस सच ही बता रहा हूँ.. पिछले कुछ दिनों से, मैं तुम्हारे अलावा कुछ और सोच ही नहीं पा रहा.. यहाँ जाता हूँ तो तुम, वहाँ जाता हूँ, तो तुम.. कभी ये की तुम्हें ये कितनी पसंद है, कभी की तुम यहाँ होती तो क्या कहती। मैं तुम्हें पसंद करता हूँ, पर ये वैसे बिल्कुल नहीं है, जैसे मैं कुनाल और रिया को पसंद करता हूँ, शायद इसे ही लोग प्यार कहते है.."

*********************************************


"मैं तुम्हें पसंद करता हूँ, पर ये वैसे बिल्कुल नहीं है, जैसे मैं कुनाल और रिया को पसंद करता हूँ, शायद इसे ही लोग प्यार कहते है..", ध्रुव की ये बातें निया के कानों में गूंज रही थी।
“नहीं नहीं.. ये सब बकवास है।", अपने लैपटॉप के कीबोर्ड पे हाथ पटकते हुए निया, खुद से बोली।

“क्या हुआ?”, निया के पास से आई तेज़ अवाज़ को सुनते हुए उसके पीछे बैठी लड़की, उठ कर पूछते हुए बोली।

“कुछ नहीं..”, निया ने जवाब दिया और तभी के तभी कॉफी का मग उठा कर बाहर चल दी।

********************************

कुछ देर बाद अपने फोन पे उंगलियां इधर उधर घुमाते हुए अपने और अंकित की फ़ोटोज़ देखती निया कुछ सोच रही होती है, की इतने में सिमरन सामने से आई और पूछती।

“ये अभी तक यहाँ क्या कर रही है?”

“पता नहीं।", निया ने बिना कुछ ज्यादा सोचे बोल दिया।
“सच कहूँ.. तो शुरू में मुश्किल होता था इन्हें देखना, पर अब.. अब जब देख कर देख रही हूँ, तो ऐसे है जैसे कुछ महसूस ही नहीं हो रहा। ना इन फ़ोटोज़ को देख कर कोई पुरानी याद की खुशी है, और ना ही कोई गुस्सा।"

“एक मिनट.. तुझे क्या लगता है, की नॉर्मल लोग अपने पुराने रीलैशन्शिप की फोटो इस लिए डिलीट कर देते है, क्योंकि उन्हें फोटो देख कर बहुत खुशी होती है, और वो इतनी खुशी बरदाश नहीं कर पाते।", सिमरन ने मजाकियां लहजे में पूछा।

“नहीं.. शायद इसलिए कर देते है, की उस समय को याद कर कोई भी एहसास होना बंद हो जाता है।"

“या फिर.. कोई एहसास होता भी है, तो वो करना ही नहीं चाहते।"

“शायद..”, ये बोलते हुए निया अपने फोन में दिख रही पुराने से उन मुस्कराते हुए अंकित और निया की नीले कपड़े पहने हुई, गार्डन में खींची फोटो के बाहर जाती है, और अपना हाथ नीचे दिख रहे डिलीट बटन पे दबा कर सिलेक्ट ऑल करते हुए, सारी फ़ोटोज़ को अपने फोन से हटा देती है।

“ये क्या?”, सिमरन ने निया की ये हरकत देखते हुए बोला।

“बस हो गया.. अब मन भर गया और पीछे नहीं रहना अब।"
“पर इसमें हमारी फोटो भी थी..”

“अलग से कॉपी रख ली है मैंने तेरी और मेरी फ़ोटोज़ की तो। शादी के बाद तेरे नए घर में, तेरे और तेरे पति की नहीं, बल्कि हमारी फ़ोटोज़ लगाइयो, ठीक है?", निया ने सिमरन को चिड़ाते हुए बोला, जिस पर सिमरन बस मुस्करा दी।

***********************

शाम में सिमरन जहां टेलर के पास अपने कपड़े देने गई थी, वहीं निया किचन में साफ सफाई में लगी हुई थी, की तभी एकदम से उसका फोन बज गया।

फोन की स्क्रीन पे ध्रुव का नाम लिखा देखते ही निया ने हाथ में पकड़ा कपड़ा तुरंत से नीचे रखा और हाथ धोने लग गई।
निया के हाथ धोने जीतने समय मे ध्रुव का फोन कट गया, जिसे देखते हुए वो खुद से बोली, “ये ध्रुव भी ना पागल है.. मुझे पक्का पता है, की उसने क्यों फोन किया होगा।"
ध्रुव की निया को पसंद करने वाली बात याद करके निया खुद से फिर बोली, “पर ठीक है ना, वो पागल है तो क्या हुआ.. मैं थोड़ी पागल हूँ, फिर से इन सब चक्करों में पड़ना ही नहीं है.. पहले हाँ बोलो, फिर रोज़ रोज़ मिलने के टंटे, फिर ऊपर से खाना भी बाहर खाओ, एक तो खर्चा भी हो जाता है, और फिर मोटापा भी हो जाता है।"
निया खुद से ये बोलते बोलते, किचन से अपने कमरे में आ चुकी होती है, और अपने इयरफोन ढूंढ रही होती है की इतने में उसका फोन फिर से बज पड़ता है। इस बार भी ध्रुव का फोन होता है, और ये देखते ही निया फट से फोन उठा लेती है।

“हैलो।"

“हैलो, कैसी हो?”, निया के उत्सुकता भरे हैलो के जवाब में, ध्रुव का शांत सा जवाब आता है।
“मैं ठीक हूँ, तुम बताओ?”

“मैं भी ठीक हूँ.. अच्छा, मैं ना यहाँ आया हुआ था, तो सोचा की तुमसे पूछ लूँ।"

“हहम्म?”

“आइसक्रीम खाने चलोगी? यहाँ पास ही में एक शॉप खुली है, वो भाई के फ्रेंड है, तो बस इसलिए उन्होंने बुला लिया।"

“हह.. वैसे तो मैं थोड़े काम में लगी हुई थी अभी..”, अलमारी खोल कर पहनने के लिए कपड़े ढूंढते हुए निया, ध्रुव से कह रही थी। "पर तुमने आइसक्रीम का नाम ले दिया, तो कहाँ रुका जाएगा..।"

“ठीक है, फिर 10 मिनट में तुम्हारी सोसाइटी के बाहर मिलते है।"

“हाँ ठीक है, बाय।", ये बोलते ही निया ने फट से फोन काटा और हाथ में आए दोनों टॉप को ध्यान से देखने लगी, पीले रंग का पार्टी में पहने वाला ऑफ शोल्डर टॉप या हरे रंग की प्लैन सी टी-शर्ट।

शीशे के आगे पीले टॉप में तैयार हो चुकी निया, जब एक बार फिर खुद को पीले टॉप में निहार रही थी, तो एकदम से वो खुद से बोली, “नहीं.. नहीं.. ये एक आइस
क्रीम के लिए ज्यादा हो जाएगा, उसे लगेगा की उसे हाँ बोलने आई हूँ मैं।"

कुछ देर बाद निया सोसाइटी के वो बाहर निकलती है, तो देखती है, की ध्रुव वहीं खड़ा होकर उसका इंतज़ार कर रहा है।
वो और ध्रुव दोनों ही आसमानी रंग की टी-शर्ट पहने हुए थे, जिसे देख कर निया हैरान सी हो गई, और ध्रुव मुस्करा दिया।

“वाह.. सेम.. सेम!”, ध्रुव पास खड़ी निया को बड़ी सी मुस्कराहट के साथ देखते हुए बोला।
“चलो.. यहाँ चलना है।", ध्रुव ने हाथ से इशारा किया और दोनों आगे बढ़ गए।
थोड़ी दूर चल कर एक छोटी सा आइसक्रीम पार्लर आया, और दोनों ध्रुव और निया उसमें अंदर जाते है।

वहाँ अंदर छोटी छोटी दो-तीन टेबल लगी हुई थी, जहाँ लोग आराम से बैठ कर अपनी आइस क्रीम का मज़ा ले सकते है, और उसके सामने ही शीशे के उस टेबल के अंदर लगे हुए थे कई सारे फलेवर्स, जिन्हें देख कर दोनों के मुंह में पानी आ गया।

“तुम मुझे अपनी वाली खिलाओगे ना?”

“हाँ खिलूँगा पक्का.. अब एक ले लो भी यार।"

“हाँ, तो भैया.. आप एक ये वाला स्कूप कर दीजिए और दूसरा ये वाला।", 10-15 मिनट की गहमा गहमी वाले विचार के बाद निया ने अपनी पसंद बताई।

वहीं खड़े होकर निया और ध्रुव अपनी अपनी आइस क्रीम का मज़ा ले रहे थे, की इतने में किसी ने दरवाज़ा खोला और निया को हल्का सा धक्का लगा, जिससे उसकी आइस क्रीम उसकी नाक पे जा लगी।

साथ ही खड़ा ध्रुव ये देख कर हंसने लगा, और उसको यूं हँसता देख निया को मुंह बन गया।

“अच्छा.. ठीक है, रुको..”, ध्रुव ने पास ही पड़ा नैप्किन उठाया और निया के पास आकर उसके मुंह पे लगी आइसक्रीम पोंछने लगा। ध्रुव के पास आते ही निया एक टक उसे देखने लगी, और उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा। जो एहसास काफी समय से ध्रुव को परेशान कर रहे थे, उन्होंने अब निया तक अपना रास्ता खोज लिया था।


*************************************************


“क्या.. क्या.. क्या कर रही हूँ ये मैं, ये क्या हो गया था मुझे, ये थोड़ी करना था मुझे।", अपने आप को कोसते हुए निया, अपने कमरे में पड़े बेड पे बैठते हुए बोली।

“मुझे ’ना’ कहना था उससे, पर ना कहने के सिवा, मैं सारी बातें कर आई उससे।", सामने रखे कपड़े उठा कर उन्हें तय करके पटकते हुए वो सोच रही थी। "एक काम करती हूँ, अगर मैं उससे कुछ कह नहीं सकती, तो कुछ कहती ही नहीं हूँ उससे, वो अपने आप सब समझ जाएगा।"

********************************

ऑफिस में बैठी निया, अपने फोन में चैटिंग कर रही होती है, की उतने उसका फोन बज पड़ता है, स्क्रीन पे ध्रुव का नाम आ रहा था, तो निया ने साइड से वॉल्यूम का बटन दबाया और उसे साइलन्ट कर दिया।

उसके बाद भी थोड़ी थोड़ी देर में आए ध्रुव के दो और कॉल निया ने साइलन्ट कर दिए, पर जब तब भी ध्रुव के फोन आने बंद नहीं होने हुए तो, उसने अगला फोन तुरंत से उठाया।

“हाँ ध्रुव बोलो.. मैं ना थोड़ी बिजी थी, इसलिए तुम्हारा फोन नहीं उठा पा रही थी।"

“अच्छा मैडम.. ऐसी भी कहाँ बिजी है आप, की सुबह से ऑनलाइन आने का भी टाइम नहीं लगा आपको।", सामने से चंचल ने हल्की तेज़ आवाज में बोला।

“चंचल.. चंचल.. आप? आप लेकिन ध्रुव के फोन से?”

“हाँ, मेरा फोन कैब में रह गया, तो अभी थोड़ी देर में आएगा। पर तुम ये बताओ, की ये तुमने क्या लगा रखा है, तुम्हें मैंने ध्रुव के फोन से कितने फोन किए, पर एक बार भी नहीं उठाया..”

“वो मैं काम कर रही थी, और फोन साइलन्ट पे था, तो पता नहीं लगा।"

“काम कर रही थी? आज सुबह से ऑनलाइन तो दिखे नहीं आप मुझे, और मेरे मैसेज का भी कोई जवाब नहीं दिया आपने।"

चंचल की ये बात सुनकर निया को याद आता है, की आज सुबह जब उसका मैसेजइंग ऐप सही से नहीं चल रहा था, तो वो उसे बंद करके बाहर चली गई थी, और वो फिर आकर उसने उसपे ध्यान नहीं दिया।
“वो सॉरी चंचल.. मुझे पता ही नहीं लगा, की मेरी ऐप नहीं चल रही। पर बताइए, कुछ ज़रूरी काम था आपको?”

“हाँ.. मुझे तुमसे कोड माइग्रैशन करना है।"

“ओह.. आज करना था क्या वो, सॉरी मैं सबसे पहले वही देखती हूँ फिर।"

“ठीक है, लैपटॉप में ऐप चला कर मुझे बताना।", ये कहते हुए चंचल ने फोन रख दिया।

चंचल के दिए काम को निया शाम को खत्म करके बैठी ही थी, की दोबारा से उसका फोन बजा, स्क्रीन पे ध्रुव फ्लैश हो रहा था।

“ध्रुव.. ये ध्रुव ही है, या कहीं चंचल तो नहीं फिर से?”, अपने लैपटॉप पे जाकर मैसेजइंग ऐप चेक करते हुए निया खुद से बोली। "हाँ.. ये चल तो रही है सही से, फिर चंचल क्यों ही फोन करेंगी। पर क्या पता, उन्हें लगे की फोन से बात करना आसान है, तो इसलिए उन्होंने सीधा फोन ही कर लिया हो या फिर वो बाहर अपना फोन लेने गई हो, ध्रुव का फोन लेकर.. उठा ही लेती हूँ।", खुद को फोन उठाने के लिए समझाते हुए निया ने लगभग आखिरी घंटी पे फोन उठाया।

“हैलो।"

“हे हाय.. क्या कर रही हो?”, सामने से ध्रुव की अवाज़ आई।"

“कुछ नहीं.. बस काम खत्म कर रही हूँ। तुम क्या कर रहे थे?”

“मैं भी.. बस काम ही खत्म कर रहा था।"
“ओह..”

“अच्छा सुनो..”

“हाँ"

“मैं आज तुम्हारे वहाँ आ रहा था, तो मिले?”

“अ.. अ.. मुझे वो कुछ ज़रूरी काम था, तो आज तो मुश्किल होगा।"

“अच्छा.. सब सही ना?”

“हाँ, सब सही.. बस वो सिमरन की शादी है ना, तो उसके लिए तैयारियां चल रही है।"

“ओह.. मुझे भी बताना कोई मदद चाहिए हो तो, मैं यहाँ काफी समय से रह रहा हूँ, तो यहाँ की सारी दुकानों को पता है मुझे।"

“अच्छा।"

“हाँ।"

“ठीक है, फिर तुम्हारे पास ही आऊँगी। अच्छा, चलो अब मैं फोन रखती हूँ, फिर बात करूंगी तुमसे।"

“बाय।"

"बहुत बढ़िया..”, निया ने ध्रुव से बात करके फोन रखते हुए खुद को कहा।

शाम में निया बस से वापस सोसाइटी तक जा रही थी जब उसे अचानक उसके कंधे पे पीछे से किसी ने हाथ रख कर उसे बुलाया।
“हाय तुम??”, पीछे मुड़ कर सीट पे खड़े हुए ध्रुव को देखते हुए निया ने पूछा।

“हाँ, बताया था ना..”

“हाँ।"

“इधर बैठ जाओ..”, अपनी खाली सीट पे इशारा करते हुए ध्रुव बोला।
“पर तुम?”

“मैं.. नहीं तुम, बैठ जाओ।", ध्रुव ने निया को फिर से बोला, तो वो साइड होकर बैठ गई।
“अच्छा.. अपना बैग ही दे दो।", निया ने ध्रुव के हाथ में पकड़े हुए बैग पे इशारा करते हुए कहा।

कुछ देर बाद बस से उतरते हुए ध्रुव ने अपना बैग निया से वापस लिया तो वो मज़ाक में बोली, “क्या भर रखा है इसमें, इतना भारी है?”

“तुम्हारे लिए गिफ्ट..”, ध्रुव ने मुस्कराते हुए उसकी तरफ देख कर कहा।

“हहह?”, निया ने हैरानी से ध्रुव की ओर देखा।

बस स्टॉप से आगे आकर सोसाइटी के बाहर रुकते हुए, ध्रुव ने अपने बैग से निकाल कर उसे चॉकलेट दी, और देखते हुए बोला, “ये मेरी तरफ से तुम्हारे लिए।"
“और इसने तुम्हारे बैग का वजन इतना बढ़ा रखा था?”

“नहीं.. वो तो इसने..", अपने बैग से निकाल कर, निया की को एक डब्बे में बंद मग और फोटोफ्रेम देते हुए ध्रुव ने कहा। "पर ये मैंने नहीं, तुम्हारी सहेली ने दिया है। वैसे आजकल शायद तुम दोनों बात नहीं करते, नाराज़ सी लग रही थी वो।"

निया ने हल्के हाथों से ध्रुव का गिफ्ट लिया, और उसे ध्यान से देखने के बाद ध्रुव से बोली, “मेरे घर पे चले, आराम से बैठ कर बात करते है, और मैं रिया को भी विडिओ कॉल करती हूँ फिर।"

“हाँ.. बिल्कुल क्यों नहीं।"

दोनों आगे लिफ्ट की और बढ़ रहे थे, जब एकदम से चप्पल की वजह से निया के कदम लड़कड़ाये और वो शायद गिर भी जाती, पर ध्रुव ने तेज़ी दिखाते हुए उसे हल्के हाथ से पकड़ लिया।

निया फटाफट सी संभली और वो दोनों लिफ्ट में चल दिए। लिफ्ट अभी बंद ही हुई थी, की ध्रुव ने कुछ सोचते हुए बोला।

“तुमने उस दिन हुई हमारी बात के बारे में फिर कुछ सोचा? मतलब मैं ये नहीं कह रहा की तुम मुझे अभी ही....”

“हाँ..”, ध्रुव की बात काटते हुए निया फट से बोली।