BEMEL - 32 in Hindi Fiction Stories by Shwet Kumar Sinha books and stories PDF | बेमेल - 32

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बेमेल - 32

.....आज श्यामा के पास अच्छा मौका था हवेलीवालों से बदला लेने का। शादी के बाद से आजतक उसने बहुत दुख सहे और इन सबके पीछे सबसे बड़ी वजह इन ननद-ननदोईयों की लालच और उनका बुरा स्वभाव था। वह चाहती तो आज गिन-गिनकर बदला ले सकती थी। पर उसने ऐसा नहीं किया। उसने एक नज़र वहां खड़े गांववाले, दीन-हीन से दिखते छोटे-छोटे बच्चों की तरफ डाला फिर उसका ख्याल उनलोगों की तरफ भी गया जो वहां मौजुद नहीं थे और गांव के ही घरों में, मेडिकल कैम्प में ज़िंदगी और मौत की जंग लड़ रहे थे।
“मुझे इनलोगो से कोई बदला नहीं लेना! वैसे भी अपना सबकुछ खोकर मैं केवल जिंदा लाश बनकर घुम रही हूँ! अगर गांववालों के तकलीफों और पेट में पल रहे इस जीव की फिक्र नहीं होती तो मैं कबकी निश्प्राण हो चुकी होती! आज जब पूरा गांव हैजे की महामारी और दो जून की रोटी को तरस रहा है, मैं बस यही चाहुंगी कि ये जो हवेलीवाले मालिक बनकर बैठे है, ये हवेली में जमा अन्न-धान्य का दरवाजा उसके असली मालिक यानि इन गांववालों के लिए खोल दे! यही सही न्याय होगा! अगर आज पिताजी, स्वर्गीय राजवीर सिंह जिंदा होते तो इन गांववालों को भूख-प्यास से त्रस्त नहीं होना पड़ता! इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं चाहिए।”- श्यामा ने कहा और वहां खड़े पूरे गांववालों की पलकें भींग गई।
आज इतने दिनों बाद गांववालों को अपने दानवीर जमींदार स्वर्गीय राजवीर सिंह की झलक श्यामा में देखने को मिली थी।
“दिमाग खराब हो गया है इस बज्जात औरत का!!! हम हवेली के अनाज का दरवाजा इन भीखमंगो के लिए क्यूं खोलें!!”- गुस्से से आगबबूला होते हुए तीनों जमाईयों ने कहा और हवेली के दरवाजे पर तनकर खड़े हो गए।
“श्यामा के इंसाफ से मैं और पूरा गांव सहमत है। जमाईबाबू, आपसे मेरी विनती है कि आप रास्ते से हट जाएं और अनाज के गोदाम की चाभी हमें सौंप दे नहीं तो इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा!”- मुखिया ने दृढ़ होकर कहा और हवेली के दरवाजे पर खड़े जमाइयों की आंखों में निहारता रहा।
“हमें आंखें दिखाता है! तेरी इतनी जुर्रत कि हमें धमकी दे रहा है!”- नंदा के पति ने गरजते हुए कहा।
“तुमलोग शांति से गोदाम की चाभी मुखिया जी को सौंप दो! नहीं तो हम गांववाले हवेली पर धावा बोल देंगे!”- भीड़ में खड़े कुछ गांववालों की आवाज आयी और देखते ही देखते वहां खड़ी पूरी की आवाज बन गई।
नंदा, सुगंधा, अमृता और उनके पतियों ने भीड़ के बीच एक चबुतरे पर बैठी श्यामा की तरफ गुस्से से भरी निगाह डाली।
“श्यामा, ये तूझे बहुत महंगा पड़ेगा! तू क्या समझी! ऐसे कोई भी फैसला सुना देगी और हम शांति से मान लेंगे! मैं इन गांववालों से नहीं डरता! तूझे इसकी सजा मिलकर रहेगी, अभी और यहीं इसी वक़्त!!”- छोटी बहन अमृता के पति ने दांत पीसते हुए कहा और अपने हाथों में रखी बंदूक श्यामा की तरफ तान दी। श्यामा का स्थिर और दृढ़ चेहरा हवेलीवालों पर टिका रहा और तभी एक झटके के साथ वह वहीं लुढ़क गई। बंदूक की एक गोली उसके सीने के पार हो चुकी थी और उसके आसपास खून ही खून फैलने लगा था। पास ही खड़ी मुखिया की पत्नी और बाकी औरतों ने उसे सम्भाला और उठाकर मेडिकल कैम्प की तरफ भागे।

श्यामा पर बंदूक चलाकर हवेलीवालों ने सबसे बड़ी गलती की जिसका कोपभाजन उन्हे बनना पड़ा। नतीजा यह हुआ कि पूरा गांव हवेली पर टूट पड़ा और न केवल उन्होने अनाज के गोदाम को अपने कब्जे में कर लिया बल्कि तीनों बहनों और उनके पतियों को मार-मारकर अधमरा कर दिया।
***
“मैं तूझे कबसे कह रही हूँ, इस घर में मुझे इस मनहूस का शक्ल नहीं देखना! तेरी शादी के इतने साल होने को आए और आजतक इसने मेरा गोद पोते से नहीं भरा! मैं तो कहती हूँ बांझ है ये मनहूस सुलोचना! मुझे बड़ी चिंता होती है हमारा वंश आगे कैसे बढ़ेगा!! तू एकबार बस हाँ कर दे विनयधर! कल ही मैं तेरी शादी मेरी सहेली मीरा की बेटी से तय कर आती हूँ!” – विनयधर से उसकी मां आभा ने कहा और घड़ियाली आंसू उसके चेहरे पर लुढ़के।
“मां, तू क्यूं इतना परेशान होती है! वंश को आगे बढ़ाना इतना जरुरी है क्या! हम आज अपना कर्तव्य इमानदारी से निभाएं, हमारा धर्म भी तो यही कहता है न?? ईश्वर ने पृथ्वी पर केवल इंसान बनाकर भेजा और हमने क्या किया? उसे मनहूस, बांझ का शक्ल दे दिया! नहीं चाहिए मुझे ऐसा वंश जो ऐसी ओछी सोच को आगे बढ़ाए!”- विनयधर ने कहा और दरवाजे पर खड़ी सुलोचना की तरफ देख उसे अपना मन शांत रखने का इशारा किया।
बेटे के बातों का बुढ़ी आभा के पास कोई जवाब न था और झुंझलाती हुई इश्वर के नाम जपने लगी। विनधयर भी उठकर अपने कमरे में आ गया।
“मां जी सही कहती हैं! आप दूसरा विवाह कर लिजिए! सभी गलत नहीं कहते , मैं तो हूँ ही मनहूस, बांझ! मेरे साथ आप अपनी ज़िंदगी क्यूं बर्बाद कर रहे हो! आजतक मैंने आपको ताने, ओलहाने के अलावा दिया भी क्या है!! एक बेटा तो दे नहीं पायी!”- कहते हुए सुलोचना फूट-फूटकर रोने लगी।
“न तो तुम मनहूस हो और न ही बांझ! तुम मेरी पत्नी हो, मेरी अर्धांगिनी! तुम्हे कसम है मेरी, जो आज के बाद ऐसे शब्द जुबान से निकाले!”- विनयधर ने कहा और श्यामा ने उसके होठों पर अपने हाथ रख दिये।...

क्रमश:...