Matsya Kanya - 5 in Hindi Adventure Stories by Pooja Singh books and stories PDF | मत्स्य कन्या - 5

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मत्स्य कन्या - 5

काफी देर मालविका जी के समझाने पर देवांश कहता है...." ठीक है मैं आपकी बात मानता हूं आज उन्हें रेस्ट के लिए छुट्टी दे देता हूं लेकिन प्लीज़ आपको किसी भी डाक्टर से कंसल्ट करना पड़े आप बेझिझक करिएगा बस देवांश शेट्टी के नाम से और उन्हें जल्दी ठीक करिएगा...."

मालविका जी ठीक है कहकर काॅल कट कर देती है... त्रिश्का को छुट्टी मिलने से सब खुश थे तो वहीं त्रिश्का गुमसुम सी हो गई थी......

अब आगे...............

त्रिश्का को अचानक परेशान देखकर पायल उससे कहती हैं...." अब तू कहां खो गई...?... तेरे चेहरे पर खुशी होने के बजाय उदासी लग रही है..."

त्रिश्का वहीं गुमसुम सी आवाज में कहती हैं....." तुझे नहीं पता वहां कितनी प्रोब्लम होती है मुझे पता है देवांश शेट्टी सबकुछ नहीं संभाल सकते...." मालविका जी त्रिश्का को समझाती हुई कहती हैं......" त्रिशू तू इतना क्यूं टेंशन लेती है..." तभी मालविका जी की बात को काटते हुए अविनाश जी कहते हैं...." देखो टेंशन न लेने के लिए कौन कह रहा है जो खुद..." इतना सुनते ही मालविका जी अविनाश जी को घूरकर देखती है वहीं त्रिश्का होंठ दबाकर हंसने लगती है...

मालविका जी त्रिश्का‌ से कहती हैं ....." तू सारी बातों को भूल जा और जाकर आज का दिन अपने दोस्तों के साथ बीता और तू पहले मेरे साथ काली‌ पहाड़ी वाले बाबा के पास चल फिर वहां से तू चले जाना...."

त्रिश्का : मां उससे क्या होगा...?

मालविका जी त्रिश्का को समझाती है....." बेटा कुछ काम ऐसे होते हैं जो हमें लगते हैं पूराने जमाने जैसे लेकिन वो बहुत कारगर साबित होते हैं इसलिए सिर्फ मेरी तसल्ली के लिए चल ...."

त्रिश्का मालविका के कहने पर हां करती हुई कहती हैं...." ठीक है मैं बस अभी चेंज करके आई....

थोड़ी देर बाद त्रिश्का मालविका जी और अपने दोस्तों के साथ काली पहाड़ी वाले बाबा के पास जाने के लिए निकल जाती है......

थोड़ी दूर का रास्ता सब सिद्धार्थ की कार से तय करते हैं आगे चलकर रास्ता सर्करा होने की वजह से कार को वहीं पार्क करके पैदल चलने लगते हैं..... पहाड़ी रास्ता काफी फिसलन वाला होने की वजह से ऊपर चलने में दिक्कत हो रही थी इसलिए रौनक मालविका जी को पकड़कर ऊपर तक ले जाने में उनकी मदद करता है लेकिन जैसे ही पायल को ऊपर चढ़ने के लिए अपने हाथ का सहारा देता है , पायल साफ मना कर देती है... त्रिश्का थोड़ा धीमा चल रही थी लेकिन सिद्धार्थ की नजर त्रिश्का पर ही थी कैसे उसे मौका मिले और वो उसका हाथ थाम ले काफी देर त्रिश्का अपने आप चल लेती है लेकिन तभी सिद्धार्थ की इच्छा पूरी हो जाती है , हमेशा की तरह‌ ख्यालों में खोये होने के कारण त्रिश्का का बैलेंस आउट होने लगता है जैसे ही वो फिसलने वाली थी सिद्धार्थ ने उसे पकड़कर अपने करीब खींच लिया.....

दोनों ही एक दूसरे की आंखों में खो चुके थे लेकिन कुछ इस एहसास के बाद त्रिश्का सिद्धार्थ को अपने से दूर करती हुई कहती हैं....." मैं ठीक हूं बस जरा सा बैलेंस बिगड़ गया था..." त्रिश्का आगे चलने लगती है और सिद्धार्थ अफसोस भरी नजरों से उसे देखते हुए अपने आप से कहता है..…" त्रिशा कब समझोगी मेरे प्यार को.... कितना प्यार करता हूं तुमसे काश तुम एक बार मेरी फीलिंग को समझ पाती .... मैं भी हार नहीं मानने वाला तुम कितना भी मुझसे दूर भाग लो एक न दिन तुम हमेशा के लिए मेरी चाहत होती...." सिद्धार्थ ये सोचते हुए ऊपर पहाड़ी पर चढ़ रहा था लेकिन ध्यान त्रिश्का में होने की वजह से यू टर्न ले लेता है......

उसे गलत रास्ते पर जाते देख रौनक चिल्लाता है...." ओए ख्यालों के देवता वापस आ कहां जा रहा है..." सिद्धार्थ रौनक की आवाज से अपने ख्यालों से वापस आता है और पीछे मुड़कर देखता है वो यू टर्न लेकर गलत रास्ते पर आ गया जल्दी से वापस उसी रास्ते पर आता है जहां सब उसका इंतजार कर रहे थे.....

उसके वापस आते हैं सब अशवीश्वर बाबा के आश्रम में पहुंचते हैं......

मालविका जी सबसे आगे थी जल्दी से उनके आश्रम के प्रांगण में पहुंचती है....पूरा प्रांगण खाली था जैसे आज सब ही छुट्टी पर हो तभी एक सेवाकर्मी बाहर आता है और उनसे यहां आने का कारण पूछता है..... मालविका जी कहती हैं....." हमें अशवीश्वर महाराज से मिलना है ..."

सेवाकर्मी उनसे कहता है...." आप थोड़ी देर इंतजार कीजिए कीजिए महाराज जी अभी थोड़ी देर में आ जाएंगे....." इतना कहकर सेवाकर्मी वहां से चला जाता है और मालविका जी वही बैठ जाती है बाकी सब इधर उधर जाकर वहां लोकेशन व्यू देखने के लिए खड़े हो जाते हैं.....

पायल सबसे कहती हैं...." सुनो गाइज व्यू कितना अच्छा है यहां का क्यूं न कुछ पिक और सेल्फी हो जाए...." रौनक उसे चिढ़ाते हुए कहता है...." लो शुरू हो गया काम गुड़ देखा नहीं की मक्खियां भिनभिना शुरू कर देती है......पायल घूरकर रौनक को देखती है जिससे रौनक सिद्धार्थ के पीछे छुपते हुए कहता है....." ये मक्खी तो बड़ी डेंजर है अरे ये मधुमक्खी है....." रौनक की बात सुनकर सिद्धार्थ और त्रिश्का हंस जाते हैं लेकिन पायल गुस्से में रौनक के पीछे उसे पकड़ने के लिए भागने लगती है.... दोनों की पकड़म पकडा़ई के बीच सिद्धार्थ त्रिश्का के पास जाकर कहता है....." क्यूं न हम दोनों सेल्फी ले ले यहां पर..." त्रिश्का हां में सिर हिला देती है.... सिद्धार्थ खुश होकर उसके साथ एक पीक क्लिक कर लेता है लेकिन जैसे उसके कंधे पर हाथ रखने के लिए आगे बढ़ता है तभी मालविका जी की आवाज आती है....." बच्चों आ जाओ महाराज जी आ गये है...."

सिद्धार्थ अफसोस के साथ अपने से बड़बड़ाता है....." आंटी को भी अभी बुलाना था...

मालविका जी की आवाज पर सब वापस अंदर जाकर बैठते हैं... मालविका जी त्रिश्का से महाराज जी को प्रणाम करने के लिए कहती हैं..... त्रिश्का अपनी मां के बताने पर वैसा ही करती है और वही मालविका जी के पास बैठ जाती है ...

अशवीश्वर जी मालविका जी से उनकी परेशानी पूछते हैं...." बताइए आपको क्या कष्ट है जिसका समाधान हम कर सकते हैं....." मालविका जी त्रिश्का को दिखाते हुए कहती हैं..." महाराज जी मेरी बेटी को कुछ सपने बहुत परेशान करते हैं जिसकी वजह से ये बहुत परेशान रहती है...."

अशवीश्वर महाराज त्रिश्का के हाथ को पकड़कर उसकी लकीरों को ध्यान से देखते हुए कहते हैं...." असंभव...?....."




..................to be continued.............

ऐसा क्या कहा अशवीश्वर महाराज ने.....?

जानने के लिए जुड़े रहिए