सोच के गुलाम अंक १
हमारी कहानी में वर्णित किए गए सभी पत्रों, जाती एवं जगह के नाम काल्पनिक है इसका किसी जगह या नाम से मेल होना संजोग मात्र है | हमारी कहानी मनोरंजक तौर पे लिखी गई है जो किसी भी धर्म या जाती का अपमान नहीं करती | हमारी कहानी सिर्फ एक कहानी नहीं है बल्कि एक सोच है जो पुरे समाज को बदलने की ताकत रखती है जिसे आज में आपके बिच रख रहा हु अगर आपको यह सोच सही लगती है तो इसे समाज के हर एक लोगो के पास पहुचाने में सहयोग करे |
शुरुआत |
में दिव्या, में कहानी का वो किरदार हु या यु कहो की यह जो ऐतिहासिक घटना गुजरात के जनमावत तालुके के नवलगढ़ गाव में घटित हो रही है उसकी जड़ हु में | मुझे भी अभी आप ही की तरह कुछ समझ नहीं आ रहा की हो क्या रहा है | मुझे जो दिख रहा है और महसुस हो रहा है वो कुछ इस तरह का है |
रात का समय है | बात है नवलगढ़ गाव के बीचो बिच खड़े कई अन्याय के साक्षी समान बरगद के पेड़ के निचे हो रही उस घटना की जिसकी जिम्मेवार मुझे माना जा रहा है जो मुझे लगता है में नहीं हु | गाव के ५००० से भी ज्यादा लोग उस बरगद के पेड़ के आस-पास अपने हाथो में जलती मसाले लेकर खड़े है | इतनी सारी मसालों को जलते देख लग ही नहीं रहा की नवलगढ़ में आज रात हुई है | मसालों से भी ज्यादा आज लोगो की आखे और उनका कलेजा ज्यादा जल रहा है जिसका परिणाम में, मेरा प्यार अंश और उसके परिवार समेट उसके दोस्त भुगत रहे है |
में सब देख रही हु पर में कुछ नहीं कर शक्ति | मुझे गाव के सबसे ताकतवर परिवार यानी जादवा परिवार के द्वारा इतना मारा गया है और मुझ पर इतना अत्याचार किया गया है की अंदर से और बहार से हर तरफ से तुट चुकी हु मुझमे अब और कुछ होता हुआ देखने की हिम्मत नहीं है | मुझे जो दिखाई दे रहा है वो कुछ इस तरह का दृश्य है |
बरगद के पेड के निचे दानव समान मेरा ससुर मानसिंह जादवा अपनी क्रोधभरी लाल आखो के साथ खड़ा है और वहा हो रही घटना को देख रहा है | सारा गाव कठपुतली बनकर यह तमाशा देख रहा था | मानसिंह जादवा के कुछ गुंडे बेरहमी से मेरे प्यार यानी अंश के दोस्तों को मार-पिट रहे थे | अंश के तिन दोस्त थे जिनके नाम अशोक, पराग और हरी था | तीनो को इतनी बेरहमी से मारा जा रहा था की किसी के चहरे पहचानने लायक नहीं बचे थे | तीनो के बदन से खुन निकल रहा था तीनो अपनी जान के लिए रो रहे थे फिर भी उन्हें मारा जा रहा था | कोई लकड़े के डंडे से मार रहा था तो कोई अपने हाथो से | में अब धीरे-धीरे बेहोश होने लगी थी मुझसे यह सब ज्यादा देर तक देखा नहीं जाना था |
हाथ में मसाले लेकर खड़े हजारो लोगो के बिच से गुजरती हुई कुछ खुली जीपे बरगद के पेड की तरफ आगे बढ़ रही थी जिसके पीछे हमारी कहानी का और मेरे जीवन का नायक यानी अंश को बांधकर रखा हुआ था | अंश को पुरे गाव के बिच से होते हुए यहाँ तक जिप के पीछे बांधकर और घसीटकर मानसिंह जादवा के बेटे सुरवीर के द्वारा लाया जाता है | अंश को लाते ही गाव वाले एक साथ कुछ चिल्लाने लगते है क्या वो मुझे ठीक से समझ नहीं आ रहा था क्योकी मुझे इतना होश था ही नहीं की में सब सही से सुन सकु बस जो हो रहा था उसे में अपनी बेहोश हो रही आखो को जबरदस्ती खुली रखकर देख शक्ति थी | पुरे गाव के बिच अंश को घसीटने की वजह से अंश का पुरा बदन छिल गया था और उसके कपडे फट से गए थे | हम सबको आज एसा लग रहा था मानो जैसे हम नरक में आ गए हो और वहा के यमराज हमें सजा फरमा रहे हो | मेरा क्रुर ससुर कुछ यमराज से कम नहीं लग रहा था |
सुरवीर अपनी जिप से निचे उतरता है और जमीन पर घायल पड़े अंश को उसकी गरदन पकड़कर खड़ा करता है और अंश को कुछ बोलता है पर मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था | मेरी आखो में आशु और दर्द था जो मुझे खाए जा रहा था | अंश और उसके दोस्त अगर आज इतना कुछ भुगत रहे है तो उसकी वजह में हु | एक युध्ध उस द्रोपदी के लिए हुआ था और आज एक युध्ध इस द्रोपदी के कारण हो रहा था पर वजह अलग थी | महाभारत में राज-पाट और द्रोपदी की इज्जत की वजह से युध्ध हुआ था और यहाँ पर युध्ध प्यार और एक एसी सोच के बिच हो रहा था जिसने कई औरतो का जीवन जीते जी नरक सा बना दिया था |
में धीरे-धीरे बेहोश हो रही थी लेकिन मानसिंह जादवा यह नहीं चाहता था की में बेहोश हो जाऊ | वो चाहता था की यहाँ पर जो कुछ भी होना है उसे में देखु इस वजह से मानसिंह जादवा का एक आदमी बार-बार मेरे पास आ रहा था और मेरे चहरे के उपर पानी छिड़क रहा था ताकी में बेहोश ना हो जाऊ |
सब चल ही रहा था तभी वहा एक और दानव सा इंसान पहुचता है | मानसिंह जादवा का भाई शक्तिसिंह जो जनमावत तालुके का MLA था | मानसिंह जादव इतना ताकतवर इंसान था की यहाँ का कानुन भी उसके इशारे पे चलता था और कुछ ही समय में MLA के चुनाव भी थे और शक्तिसिंह अच्छे से जानता था की मानसिंह जादवा कभी भी उसकी खुरशी छीन सकते है इसलिए वो भी यहाँ पर जो भी हो रहा था उसे बस देखे जा रहे थे |
अंश के दोस्तों को हद से ज्यादा मार-मारकर छोड़ दिया जाता है | अंश की गरदन को अपने हाथो से पकडे हुए सुरवीर अंश को कुछ बोल रहा था और उसे कुछ ना कुछ बोलने के बाद बेरहमी से उसके चहरे पे मुक्का मार रहा था | सुरवीर अंश को इस तरह से मार रहा था मानो जैसे उसकी सात पीढ़ी को अंश ने मार दिया हो और वो बदला ले रहा हो | अंश को जितनी मार पड़ रही थी उससे कई ज्यादा दर्द मुझे हो रहा था | मुझे बार-बार यह इच्छा हो रही थी की में उठकर वहा जाऊ और अंश के हिस्से की मार में खालु | मेने हिम्मत जुटाकर अपनी जगह से खड़ी होकर वहा जाने की कोशिश की पर मानसिंह जादवा के आदमी ने मुझे मेरे मार खाकर बिगड़े हुए चहरे पर फिर से जोर से चाटा मारा और मुझे फिर से जमीन पर गिरा दिया गया |
मुझे मार खाते हुए देखकर अंश से रहा नहीं गया और उसने अपनी ताकत जुटाकर मानसिंह जादवा के बेटे और मेरे जेठ को मु पे जोर से थप्पड़ मारा और जमीन पर गिरा दिया | कुछ देर तक अंश ने सुरवीर को बहुत पीटा और फिर एक और आदमी वहा आया जिसने जलती मसाल से अंश के शिर पर वार किया और एक ही सेकेंड में अंश को जमीन पर गिरा दिया और उसकी हालात भी मेरे जैसी हो गई | वो आदमी और कोई नहीं जनमावात जिले का PI अफ्सर भवानी सिंह था | ख़राब अवस्था के बावजुद भी अंश हार मानने को तैयार नहीं था | अंश के अंदर आज बहुत कुछ भरा था जिसे वो गाव वालो पर गुस्से के रूप में निकालना चाहता था पर एसा नहीं हो पा रहा था | अंश लड़खड़ाते हुए फिर से अपनी जगह पे खड़ा होता है | अंश के पुरे चहरे पे रक्त बह रहा था | सुरवीर भवानी के हाथ में से मसाल अपने हाथो में ले लेता है और अंश के मु पर जोर से मारता है | अंश सुरवीर की मार से अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था | गाव वाले शांति से सबकुछ देख रहे थे |
मुझे हर एक-एक पल अपने आप पर घिन आ रही थी की में मेरे अंश यानी मेरे प्यार के लिए कुछ भी नहीं कर पा रही थी | अंश को सुरवीर जलती मसाल से इतना मारता है की मसाल बुझ जाती है | मानसिंह जादवा के आगे बढ़ते हुए कदम मेरे अंदर के कंपन का कारण बन रहे थे | मानसिंह जादवा आगे आते है और अंश के बालो को अपने जुल्मी हाथो से पकड़कर अंश को घसीटते हुए बरगद के पेड़ के निचे ले जाते है | खुन का बहाव जमीन पर अंश के घसीटने का सबुत बन रहे थे | अंश बहार के लोगो के अलावा अंदर ही अंदर अपने आप से भी लड़ाई कर रहा था | इस घटना के पहले अंश के साथ एक और बड़ी घटना हो चुकी थी जिस वजह से आज अंश इतना तूट चूका था की इन दानवो का सामना नहीं कर पा रहा था |
मानसिंह जादवा अपने हाथो में रस्सी लेकर अंश के गले में फंदे की तरह बांधते है | अंश के दोस्त यह दृश्य देखने से पहले मरने की ख्वाहिश कर रहे थे क्योकी उनके भी हाथ-पैर मानसिंह जादवाके लोगो ने तोड़ डाले थे और वे अपने दोस्त की मदद करने में सक्षम नहीं थे | में अपने आप को घसीटते हुए अंश की तरफ ले जाने की कोशिश कर रही थी | अंश के गले में फंदा डालके रस्सी का एक छोर मानसिंह जादवा पेड़ की उच्ची वाली डाली पर डालकर दुसरी तरफ से निकालता है और जोर से खिचता है ताकी अंश को ऊपर लटकाया जाये | गाव वाले पता नहीं क्या बोल रहे थे पर जो भी बोल रहे थे वो मानसिंह जादवा के हक में ही बोल रहे थे | अंश को मानसिंह जादवा खुद रस्सी खीचकर बरगद के पेड पे लटकाता है और सास ना लेने के कारण अंश अपने पैर बड़ी रफ़्तार के साथ फडफडा रहा था | में घसीटते हुए उसकी और जाने की कोशिश कर ही रही थी और उतने में मेरे जेठ यानी सुरवीर जादवा आकर मेरे चहरे पर उस बुझी हुई मसाल से इतना तेज हमला करता है की में एक ही झटके में बेहोश हो जाती हु |
HUM NE DIL DE DIYA
6 महीने पहले
मानसिंह जादवा जादवा परिवार का दुसरे स्थान का सबसे बड़ा सदस्य था | कहा जाता है की जादवा परिवार ने जब जनमावत तालुका तालुके की जगह एक राज्य हुआ करता था तब उस पर राज किया था और उसी राजाओ का वंशज था यह जादवा परिवार | जादवा परिवार में अगर सबसे ज्यादा कोई कठोर इंसान था तो वे थे मानसिंह जादवा के माता जिन्हें गाव वाले और जादवा परिवार के हर एक सदस्य “बा” के नाम से बुलाते थे | बा की वाणी एक सच के बराबर होती थी पुरे जनमावत तालुके में उन्होंने अगर एक बार कुछ बोल दिया तो वह करना आवश्यक था | बा खुद विधवा थे और उन्होंने पिछले २५ साल से उस रिवाज का कठोर पालन किया है जिसे नवलगढ़ गाव में और जनमावत तालुके के हर गाव के लोगो के पूर्वजो ने बनाया था | यह रिवाज बहुत ही कठोर था जिसे यहाँ पे नरक की सजा से कम नहीं माना जाता है | बा अपने शिर पे बाल नहीं रखते थे उन्होंने अपने पति के जाने के बाद हमेशा अपने आप को मुंडित रखने का फेसला किया था और तभी से बा हमेशा अपना शिर गंजा ही रखते थे | रिवाज के मुताबिक हर विधवा स्त्री को किसी ना किसी धार्मिक जगह पे अपनी सेवा देनी होती है उसके अलावा वो कोई और जीवन का चुनाव नहीं कर शक्ति | बा ने २५ सालो तक गाव के बहार एक आश्रम है वहा सेवा की थी | बिगड़ते देह के कारण अब बा जादवा परिवार के साथ ही रहते थे और गाव के रिवाजो को विशेष दर्जा दिलाने के लिए कार्यरत थे |
मानसिंह जादवा पुरे तालुके के सबसे ताकतवर इंसान थे और गाव के प्रधान भी और तो और मानसिंह जादवा आगे आने वाला MLA का चुनाव भी लड़ने वाले है | मानसिंह जादवा के पास पैसो से लेकर पोलिटिकल पॉवर तक किसी चीज की कमी नहीं थी | पुरे तालुके में चाहे कितना भी ताकतवर आदमी हो पर वह मानसिंह जादवा से पंगा लेने की सोच भी नहीं रख सकता था | मानसिंह जादवा के दो बेटे थे जिसमे बड़े बेटे का नाम सुरवीर था और छोटे बेटे का नाम वीर था | सुरवीर अपने पिता के व्यापार को संभालता था और वीर बहार विदेश से अभी-अभी अपनी पढाई पुर्ण करके आया हुआ था और कल ही उसकी पास वाले भिड़ा गाव के सरपंच की लड़की यानी हमारी कहानी की नायिका दिव्या के साथ शादी थी | मानसिंह जादवा के परिवार में और भी लोग थे जैसे की मानसिंह जादवा की सबसे छोटी बेटी ख़ुशी जो अंश की सबसे अच्छी दोस्त थी जिसका पता जादवा परिवार की औरते और अंश के दोस्तो के अलावा किसी को भी नहीं था |
अंश विश्वराम केशवा का बेटा है | विश्वराम केशवा मानसिंह जादवा के सबसे अच्छे मित्र और व्यापार में उनके सहायक यानी मानसिंह जादवा के सारे कारोबार का हिसाब-किताब से लेकर हर एक वहीवट को सँभालते थे | जादवा परिवार और केशवा परिवार के रिश्ते बहुत ही अच्छे थे इतने अच्छे थे की बचपन से मानसिंह जादवा ने अंश को वीर के साथ अपने खर्चे पर विदेश पढने भेज दिया था | पुरा जादवा परिवार अंश को अपने बेटे जैसा ही मानता था और विश्वराम केशवा और मानसिंह जादवा दोनों सगे भाई जैसे ही रहते थे | जादवा परिवार के केशवा परिवार पे बहुत से अहसान थे |
कहानी में और भी कई किरदार है जिसका परिचय कहानी के आगे बढ़ने के साथ साथ होता जाएगा |
बात है वीर की शादी से एक रात पहले की | रात का समय था और लगभग-लगभग रात के ११ बज रहे थे | आधे से ज्यादा गाव के लोग गहरी नींद में थे लेकिन जादवा सदन के आस-पास अभी भी काफी चहल-पहल थी क्योकी वहा पर वीर जादवा की शादी की तैयारिया चल रही थी | आज पुरा जादवा सदन अतरंगी लाईटो से जगमगा उठा था | चारो तरफ से घर को सजाया जा रहा था | विश्वराम केशवा ने शादी के सारे कामो की जिम्मेवारी अपने उपर ले रखी थी और वे खुद हर एक कामो पर ध्यान दे रहे थे | मानसिंह जादवा बार बार अपने मित्र विश्वराम केशवा को देख रहे थे और गर्वित महसूस कर रहे थे की उनको कितना अच्छा मित्र मिला है जो वीर की शादी में अपने बेटे की शादी हो वैसे काम कर रहा है | दबे पैर मानसिंह जादवा विश्वराम केशवा के पास जाते है और सीधा जाकर उसके गले लग जाते है |
केशवा आप मेरे सबसे अच्छे मित्र हो | सुबह से देख रहा हु इतना काम तो कोई अपने सगे बेटे की शादी में ही करता है ... मानसिंह जादवा ने कहा |
वीर मेरा बेटा नहीं है क्या आपने मेरे बेटे अंश को अपने बेटे समान रखा है तो वीर भी तो मेरा ही बेटा है और आपकी बात एकदम सही है में अपने बेटे की शादी में ही काम कर रहा हु ... विश्वराम केशवा ने कहा |
अच्छा हा वो तो बता की अंश कब आ रहा है ... मानसिंह जादवा ने कहा |
अरे हा उसमे बड़ी दिक्कत हो गई है कल अंश का आखरी एग्जाम थी तो उसने आज की फ्लाईट बुक करवाई थी पर वहा के कुछ पोलिटिकल इश्यु के कारण वो समय पर हवाईअड्डे पर पहुच ही नहीं पाया और अब से लेकर दो दिन तक कोई फ्लाईट है नहीं तो वो शादी पर नहीं आ पायेगा उसने सबको सॉरी भी बोला है ... विश्वराम केशवा ने बड़े अफ़सोस के साथ कहा |
अरे यार यह बहुत बुरा हुआ | मानसी तो आ रही है ना ... मानसिंह जादवा ने अंश की बहन का जिक्र करते हुए कहा |
सॉरी जादवा पर उसके ससुर की तबियत बहुत ख़राब है इस वजह से वो भी नहीं आ पायेगी ... विश्वराम केशवा ने कहा |
यार यह गलत है तुम्हारे सिवा तुम्हारे परिवार का कोई ना आए यह सही तो नहीं है ना ... मानसिंह जादवा ने नाराज होते हुए कहा |
सही है पर ... विश्वराम केशवा |
दोनों के बिच संवाद चल ही रहा था की तभी गाव के एक सदस्य पुरषोत्तम भाई जो अपनी तेज रफ़्तार के साथ जादवा सदन मानसिंह जादवा की मदद मांगने के लिए पहुचते है | पुरषोत्तम भाई की सास तेज रफ़्तार से चल रही थी |
जादवा सदन में प्रवेशते ही पुरषोत्तम भाई मानसिंह जादवा से हाथ जोड़कर अपनी समस्या बताने लगते है |
मानभाई मेरी मदद करो मानभाई | बहार के गाव का एक लड़का अभी-अभी मेरी बेटी को भगाकर ले गया है अगर आपने कुछ नहीं किया तो गाव में मेरी क्या इज्जत रह जायेगी ... पुरषोत्तम भाई ने हाथ जोड़कर बिनती के स्वर में कहा |
जबरदस्ती भगाकर ले गया है या आपकी बेटी भी उसके साथ भाग ना चाहती थी ... मानसिंह जादवा ने कहा |
वही तो समस्या है जादवा साहब अपना सिक्का जब गलत होता है तो आप कुछ नहीं कर सकते हारने के अलावा | एसी बेटियों से तो अच्छा है बेटिया ना होना आप बस हमारी आबरू बचा लीजिए मानसाहब मैने तो अभी से मान ही लिया है की मेरी बेटी मेरे लिए मर चुकी है ... पुरषोत्तम भाई ने कहा |
गाव के हर एक लोग की सोच एसी ही थी कुछ लोगो को छोड़कर जिनमे एक थे विश्वराम केशवा | यहाँ के लोगो की सोच इतनी हद तक गिरी हुई थी की यहाँ पर औरतो की इज्जत इंसान के चप्पल के बराबर थी | बाप अपनी बेटी को सिर्फ बोज ही मानता था अगर एक बार बेटी कारण बाप इज्जत चली जाये तो बाप उनको मार देना ही सही समझता था | आज भी देश और दुनियाभर में एसे कई गाव है जहा पर औरतो को अपना हक और स्वतंत्रता नहीं मिलती | उनका जीवन सिर्फ और सिर्फ अपने पति की सेवा में ही चला जाता है |
सुरवीर ... मानसिंह जादवा ने घर में कार्य में व्यस्त अपने बेटे को आवाज लगाते हुए कहा |
जी बापु ... सुरवीर ने बहार आते वक्त कहा |
मानसिंह जादवा पुरषोत्तम भाई की बात सुरवीर को बताते है और आदेश देते है |
अभी के अभी हमारे आदमी लोगो को लेकर जाओ और उस लड़के-लड़की को लेकर हमारे सामने हाजिर करो | गाव के चौक में सबके सामने उनको सजा दी जायेगी जिससे आगे कोई भी लड़की उसके पिता की इज्जत उछालने की और लड़का इस गाव की लड़की भागने की हिम्मत ना कर सके ... मानसिंह जादवा ने कहा |
मानसिंह जादवा का आदेश सुनते ही सुरवीर अपने आदमियो के साथ २-४ गाडी और बाकि के मोटर-साईकल लेकर उस लड़के लड़की को ढूढने के लिए निकल पड़ता है | मोटर-साईकल में बेठे सभी के हाथो में जलती मसाले थी और सारे के सारे हर एक जगह उस लड़के और लड़की को ढूढने लगते है |
आप चिंता ना करे आपकी और गाव की इज्जत में कभी मिटने नहीं दूंगा और जिसने भी इज्जत उछालने की हिम्मत की है उसे में जड़ से मिटा दूंगा ... मानसिंह जादवा ने कहा |
पुरी रात बीतने को होती है लेकिन वो लड़का लड़की अभी तक किसी को नहीं मिले थे | रात के लगभग ४:०० बज चुके थे | विश्वराम केशवा भलीभाती जानते थे की यह सब गलत हो रहा है पर वो जानते थे की जब तेरना ना आए तो समंदर से भिड़ना नहीं चाहिए वरना आप डूबोगे ही डूबोगे |
आख़िरकार सुरवीर जादवा और उनके लोगो के अथाग प्रयास के बाद वो लड़का –लड़की और उनकी भागने में मदद करने वाले उस लड़के के दोस्त लोग सभी एक होटल से पकडे जाते है और उन्हें वहा पर बहुत मारा जाता है फिर गाव के चौक में जहा चौक के बीचो बिच बरगद का पेड है जिसके निचे मानसिंह जादवा की सभा लगती है जहा मानिसंह जादवा सबका न्याय करते है वहा पर सभी को हाजिर किया जाता है | यहाँ के कानून और जज सबकुछ मानसिंह जादवा ही थे |
गाव वालो को पता चलते ही की वो लड़के-लड़की लोग पकडे गए है अपनी मसाले लेकर चौक में हाजिर हो जाते है | वहा पर सिर्फ घर के मर्द ही आ सकते थे औरतो के आने पर मनाई थी | चौक के चारो और जलती मसाले लेकर खड़े इंसानों को देखकर मानो एसा लग रहा था जैसे आग ने चारो तरफ से उस बरगद के पेड को घेर लिया हो |
बरगद के पेड के निचे मानसिंह जादवा अपने प्रधान वाली खुरशी लगाकर बेठे हुए थे और उनके ठीक सामने की और उस लड़के लड़की को और उसके तिन दोस्तों को जिसने भागने में मदद की थी अपने घुटनों के बल पे बिठाया गया था | पाचो के शिर झुके हुए थे | सुरवीर जादवा के आदमी लोगो की मार की वजह से सभी के चहरे से खुन निकल रहा था सिवाय उस लड़की के | अभी तक माहोल एक-दम शांत था | गाव का हर एक आदमी अपने हाथो में जलती मसाल लेकर उस लड़की के साथ होने वाला अंजाम देखने पंहुचा हुआ था |
पुरषोत्तम भाई, विश्वराम केशवा, दिलीप सिंह सहित मानसिंह जादवा के कई ख़ास लोग वहा पर पहुचते है | दिलीप सिंह मानसिंह जादवा के ट्रासपोर्ट का व्यापर देखते है जो विश्वराम जादवा के निचे कार्यरत है |
पुरषोत्तम भाई बड़ी घिन्नता से बिच चौक में अपने घुटनों पर शिर झुकाए बेठी हुई लड़की के सामने देख रहे थे | मानसिंह जादवा अपने हाथो के इशारो द्वारा पुरषोत्तम भाई को अपनी लड़की के पास जाकर बात करने के लिए इशारा करते है |
पुरषोत्तम भाई अपनी लड़की के पास जाते है | पुरषोत्तम भाई की बेटी अपना शिर उठाती है और अपने पिता को देखती है | अपने पिता को देख उस लड़की के अंदर अपने बचाव की आश जगती है जैसे मेले में खोए हुए बच्चे को अपने बाप की आवाज सुनाई दी हो |
बापु ... मुझे बचा लीजिए बापु मैने क्या गलत किया है | प्यार करना कोनसा गुनाह है बापु ... अपने पिता के सामने गिडगिडाते हुए उस लड़की ने कहा |
अपने बापु की आबरू का ख्याल ना आना और उसका ध्यान ना रखना सबसे बड़ा गुनाह है बेटा | मेरे लिए तो तु उसी वक्त मर चुकी थी जब तुन्हें इस गवार के साथ भागने के बारे में सोचा था | इज्जत से बढ़कर कुछ नहीं होता बेटा जो लड़की अपने बापु की इज्जत ना करे उसके जीने का कोई मतलब नहीं है ... पुरषोत्तम भाई ने एक पुरानी सोच के गुलाम के रूप में कहा |
क्यों एसा करते हो आप बाप लोग अपनी बेटी और बहुओ के साथ | आपकी इज्जत की किंमत हम लोगो की ख़ुशी और जिंदगी से बड़ी कैसे हो शक्ति है | घिन आती है मुझे आप को अपने पिता बुलाते हुए और इस गाव के लोगो को देखने पर जो अपनी इज्जत के गुरुर में इतने अंधे हो गए है की उस गुरुर की आग में गाव की हर एक लडकियो की ख़ुशी और उसके सपने को जलाकर राख कर दिया जाता है ... आखो में आशु और क्रोध के साथ उस लड़की ने कहा |
मान मर्यादा और शास्त्रीय संस्कार का होना गलत बात नहीं है | हमारे शास्त्र आप को यह सब करने का आदेश नहीं देते है | एक स्त्री को कभी भी अपनी मर्यादा नहीं भुलनी चाहिए | जब जब स्त्री ने अपनी मर्यादा को लांघा है तब तब इस संसार ने विपदा का सामना किया है इसलिए अपनी मर्यादाओ को लांघने का परिणाम तो तुम लोगो को अवश्य भुगतना होगा | पुरषोत्तम जी आपको जाना है तो आप जा सकते है क्योकी इनके इस घिन्नता भरे कार्य की एक ही सजा हो शक्ति है और वह है मौत ... मानसिंह जादवा ने मौत की सजा का फेसला लेते हुए कहा |
मानसिंह जादवा के फेसले के साथ गाव का हर एक व्यक्ति सहमत था सिवाय विश्वराम केशवा और दिलीपसिंह के पर वो अच्छे से जानते थे की उनके विरोध करने से मानसिंह जादवा का फेसला बदलने नहीं वाला है इस वजह से उन लोगो ने उस वक्त एक दुसरे के सामने देखकर चुप रहना ही ठीक समझा |
अपनी इज्जत के मोह में धुत ऐसे पुरषोत्तम भाई अपनी बेटी को एसे हालातो में छोड़कर वहा से चले जाते है |
नवलगढ़ गाव की तरफ आख उठाकर यहाँ की लड़की को भगाने के बारे में सोचना और भगाकर ले जाना बहुत ही बड़ी गलती की है तुम लोगो ने और मानसिंह जादवा जादवा के पास एसी गलती की एक ही सजा है और वो है सिर्फ मौत | इन चारो लडको को पेड़ से लटकाकर फासी दी जायेगी अभी के अभी और इस कलंकित लड़की को अग्निस्नान की सजा दी जाए ... मानसिंह जादवा ने आदेश देते हुए कहा |
मानसिंह जादवा की इस बात को सुनकर उस लड़के सहित उसके सारे दोस्त रोने लगते है और मानसिंह जादवा के सामने मौत की भीख मांगने लगते है | सुरवीर जादवा सहित उसके लोग आगे आते है और उन लडको के गले में फासी का फंदा डालते है फिर उनको घसीटकर बरगद के पेड के निचे ले जाते है | चारो लड़के बार बार अपने आपको बक्ष देने के लिए बिनती कर रहे थे | मानसिंह जादवा के लोग और सुरवीर मिलकर जबरदस्ती चारो लडको को पेड़ की डाली से लटका देते है | गले में फासी का फंदा होने के कारण चारो की सासे फुलने लगती है और चारो उपर तड़पने लगते है और निचे उस लड़की के अग्नि स्नान के लिए आग का भठ्ठा जलाया जाता है और उस लड़की को भी बालो से पकड़कर घसीटते हुए उस भठ्ठे तक लेजाया जाता है और उस भठ्ठे के आगे उसे फेक दिया जाता है |
वो लड़की जानती थी की अब उसकी मंजिल मौत ही है इस वजह से उसके अंदर गाव वालो का या मानसिंह जादवा का कोई डर नहीं रहा था | वो अपनी जगह अपने आप को सँभालते हुए खड़ी होती है | उपर लटकाए गए चारो लड़के सास की घुटन की वजह से मर चुके थे और उनके मु से खुन बहने लगा था | वो लड़की अग्निस्नान से पहले जिस लड़के से प्यार करती थी वो जहा लटक रहा था वहा जाती है और अपने प्यार की टपक रही रक्त की बुंद को अपने हाथो में लेकर अपनी मांग में भर देती हैं | खुले बाल और मांग में अपने पति का रक्त सिंधुर समान लग रहा था |
सुन मानसिंह जादवा आज तुन्हें एक अबला नारी को तडपाया है | तु जो तेरी मान-मर्यादा और इज्जत की बात करता है और तुझे इस पर बड़ा गुरुर है ना तो सुन जादवा ... तुझे और इस गाव के हर एक मर्द को मेरा श्राप है की तुम सब अपनी इज्जत और मर्यादा के लिए तड़पोगे लेकिन फिर भी वो लुटेगी और तुम सब कुछ नहीं कर सकोगे | यह गाव जल उठेगा और इसी के साथ तुम सबके यह दिखावे के रित-रिवाज भी जल जाएंगे ... इतना बोलकर वो खुद जैसे माँ पद्मिनी बड़ी हिम्मत के साथ अग्नि स्नान में गई थी वैसे ही यह लड़की अग्निस्नान कर लेती है |
बरगद का पेड मानो जैसे आज यमराज का स्थान बन चूका था | चार लाशे उपर लटक रही थी और निचे एक लड़की जल रही थी और जोर जोर से चीख रही थी फिर भी गाव के सारे क्रुर लोग इसे चुप-चाप पुतले की तरह देख रहे थे | पुरा गाव सोच का गुलाम था उनको उनकी इज्जत जान से भी प्यारी थी वे लोग अपनी इज्जत के लिए जान ले भी सकते थे और जान दे भी सकते थे |
उस दिन पुरी रात उस लड़की का शव लकड़े के भठ्ठे के साथ जलता रहा और उसकी चीखे पुरे गाव में पुरी रात गुंज रही थी | गाव की हर औरत उस लड़की का दर्द समझ रही थी और शायद रो भी रही होगी पर क्या करे यहाँ का यही कानुन था |
एसे हालातो के बिच कैसे और कैसी होगी अंश और दिव्या की प्रेमकथा और अंत में इस सोच का या फिर अंश और दिव्या का क्या होगा अंजाम यह सब जानने के लिए पढ़ते रहे हम ने दिल दे दिया दास्तान के आने वाले सारे अंको को |
TO BE CONTINUED NEXT PART ...
|| जय श्री कृष्णा ||
|| जय कष्टभंजन देव ||
A VARUN S PATEL STORY