भाग 29
रश्मि को अपने केबिन के दरवाजे पर खड़ा देखते ही प्रभासअपनी कुर्सी से उठ जाता है। इस तरह रश्मि अचानक ऑफिस आ जायेगी उसे सपने में भी आशा नहीं थी।
"आओ रश्मि.."
अचानक ही उसके मुंह से निकल जाता है। फिर वो अपने कहे पर झेंप जाता है।
"सॉरी.. मुझे भाभी कहना चाहिए था। आज शादी के कई वर्ष भले ही बीत चुके थे पर इस तरह कभी अकेले में उसका और प्रभास का सामना नही हुआ था। एक घर में रहते आमने सामने तो जरूर पड़ते थे पर काम भर की थोड़ी बहुत बात होती थी।
रश्मि ने देखा काम में खुद को डूबा कर प्रभास अपने उम्र से बड़ा दिखने लगा था। वो बोली,
"क्यों शर्मिंदा कर रहे हो प्रभास..? क्या तुम्हे इस तरह अकेला जीवन बिताने की वजह मैं नहीं हूं..? आज मौका मिला है। प्लीज मुझे माफ कर दो। पर क्या वजह जानने की इच्छा नहीं हुई कभी तुम्हारी..?" रश्मि दुखी स्वर में बोली।
"क्या करता वजह जान कर..? क्या को कुछ हुआ उसे बदल पाता..? फिर क्या करता जान कर..?" प्रभास ने गंभीर लहजे में कहा।
"पर तुम्हे बता कर मेरे दिल का बोझ तो हल्का हो जाता। जितना दोषी तुम समझते हो उतनी दोषी मैं नही हूं।" रश्मि की आवाज पुराने जख्म को याद कर भर्रा गई।
प्रभास को लगा आज रश्मि के दिल से बोझ हट जाना चाहिए। वरना अंदर ही अंदर ये जख्म नासूर बन जायेगा। आखिर वो कौन सी मजबूरी थी जो रश्मि जैसी मजबूत लड़की भी अपने घर वालों के आगे झुक गई। वो बोला,
"ठीक है बताओ आखिर क्या वजह थी जो तुम अचानक कॉलेज छोड़ कर चली आई। और मुझसे किए सारे वादे एक झटके में तोड़ दिया।"
रश्मि ने शुरू से सब कुछ प्रभास को बताया। कैसे वैदेही भाभी ने उसे प्रभास के साथ देख लिया था। फिर कसम देने के बावजूद भी राघव भईया को बता दिया। और फिर राघव भईया ने पापा को।
फिर पापा कैसे बिना देर किए उसका विवाह सुहास से तय कर देते है। फिर कैसे अचानक बनारस आ कर उसे शादी के लिए लिवा लाते हैं। अपने इस तरह अचानक लाने की वजह जान कर वो विरोध करती है तो कैसे पापा को हार्ट अटैक आ जाता है..? फिर उन्हे बचाने के लिए वो पापा की पसंद के रिश्ते अपनी सहमति दे देती है।
रश्मि रोते हुए बताती है। "मैने लड़ने की कोशिश की थी प्रभास…। हार नहीं मानी थी। पर पापा की तबियत ने मुझे कमजोर कर दिया। मैं तुम्हे पाना तो चाहती थी पर पापा की कुर्बानी दे कर नही। क्या पापा को खो कर तुम्हारे साथ खुश रह पाती..! नही ना। हार तो दोनो ही परिस्थिति में मेरी ही होनी थी। अपनी खुशी का गला घोंटा कर पापा को जीवन देना मुझे ज्यादा उचित लगा। अब तुम बताओ क्या मैं गलत थी....?"
रश्मि की बातों ने प्रभास को भी व्यथित कर दिया। रश्मि की बेवफाई की वजह जानकर वो दुखी हो जाता है। उससे वादा करने को कहता है की हम जैसे पहले एक अच्छे दोस्त थे वैसे ही एक अच्छे दोस्त बन कर रहेंगे। हां..! ये जरूर है की अब इस दोस्ती पर देवर भाभी के पवित्र रिश्ते की छाप भी रहेगी।
रश्मि अपना काम प्रभास से समझती है और पूरे लगन से उसे पूरा करती है।
इधर सुहास से कजरी बार बार टकराने की कोशिश करती है। सुहास के नाराज होने पर वो रश्मि को सब कुछ बताने की धमकी भी देती है। कजरी कभी अस्पताल तो कभी फैक्ट्री हर वक्त वो सुहास का पीछा करती रहती जैसे ही वो अकेला मिलता उसे पुराने दिन याद कराने की कोशिश करती। वो फिर से उसी रिश्ते की शुरुआत करना चाहती थी। जिसके लिए सुहास बिलकुल राजी नहीं था।
एक दिन आखिर कर अपने इस तरह पीछा करने से तंग आ कर सुहास झल्ला गया वो एकांत पाते ही कजरी के सामने अपने हाथ जोड़ कर बोला,
"कजरी आखिर तुम चाहती क्या हो..? क्यों इतने सालों बाद लौट कर आई हो मेरे जीवन में जहर घोलने। मेरा सुखी परिवार है। तीन बच्चे है पत्नी है। क्यों सब बर्बाद कर देना चाहती हो..?"
कजरी जहरीली हंसी हसी। वो बोली,
"तुम्हारे पास तो सब है ठाकुर। पर सोचा है कभी मेरे पास क्या है.? जब तुमने मुझे छोड़ा था। तब मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली थी। तुम्हारी खुशी के लिए सब कुछ छोड़ कर चली गई। चाहती तो उसी वक्त तुम्हे पंचायत में नंगा कर देती। पर प्यार को बदनाम नही करते। इस कारण चुप चाप चली गई की नई जिंदगी शुरू करूंगी। तुम्हारे बच्चे को बिना तुम्हारे नाम के ही अकेले ही पाल लूंगी। वही मेरे जीवन का सहारा होगा। पर भगवान ने वो सहारा भी छीन लिया। मेरा बेटा साल भर पहले नही रहा। फिर जब सुना की तुम्हारे तीन बच्चे हैं तो उन्हीं में अपना बेटा ढूंढने चली आई। मैं चली जाऊंगी फिर से पहले की तरह। या तो तुम मुझे अपना बेटा दे दो या फिर से मुझे मां बनने का सुख दे दो।"
कजरी की इस अजीब दोनो मांग से सुहास घबरा गया। कजरी से उसे संवेदना थी। पर ना तो वो दीपू को दे सकता था। ना ही रश्मि को धोखा दे सकता था। सुहास ने कजरी को समझाने का प्रयत्न किया, देखो कजरी तुम्हें रुपया, पैसा या और जी भी कुछ चाहिए मैं दे दूंगा। तुम अपना नया जीवन शुरू करो।"
"नया जीवन ..? किसके साथ ..? जरा ये भी तो बता दो। आई तो हूं शुरू करने। देते क्यों नहीं साथ।" कजरी बोली।
कजरी के प्रश्न ने सुहास को बौखला दिया।
इसके पंद्रह दिन बाद दीपू, सिया और रिया के साथ आइस पाईस खेलता हुआ छुपा तो फिर मिला ही नहीं।
बहुत ढूढने पर भी कुछ पता नही चला। तीन दिन बाद मिली तो उसकी मृत देह।
हर तरफ हा हा कार मच गया। ठाकुर गजराज सिंह का इकलौता नाती, ठाकुर जगदेव सिंह का पोता, इतने बड़े फैक्ट्री और अस्पताल के मालिक का बेटा। आखिर किसकी क्या दुश्मनी थी इस मासूम बच्चे से..? क्यों इस बुरी तरह उसे मारा गया..? क्या कजरी ने अपने बच्चे का बदला सुहास के बच्चे से लिया.? या प्रभास रश्मि और सुहास को अपनी तरह तड़पाना चाहता था। या फिर मिठाई ने जगदेव सिंह से उनकी कंजूसी के कारण अपना बदला लिया..?
बात पुलिस के बस की नही थी। वो आई और कोरम पूरा कर के चली गई। ठाकुर गजराज सिंह के बेटी के गोद को उजाड़ा गया था। वो चुप बैठने वालों में से नही थे। उन्होंने एक प्राइवेट जासूस को इस काम पर लगाया। ये मशहूर जासूस बक्शी थे। को फौज से रिटायर थे। कोई भी कितना भी उलझा हुआ केस हो उनसे ना सुलझे ऐसा नहीं हो सकता था। उन्हे मुंबई से बुलवाया गया।
वो जगदेव सिंह के घर आए और बारीकी से हर एक छोटी बड़ी घटना की परत दर परत खोलने लगे। इसमें कई कैसे छेद नज़र आए जिससे घर में कई लोगों का विश्वास टूटा।
छान बीन में सुहास और कजरी का सच सामने आया जिससे रश्मि का विश्वास आहत हुआ। जिस पति के तन मन पर वो अभी तक अपना एक क्षत्र राज समझती थी। वो तो सालों पहले ही किसी और का हो चुका था। उससे तो सिर्फ समाज के डर की वजह से शादी की थी।
इधर प्रभास और रश्मि का सच भी डिटेक्टिव बक्शी की तेज दृष्टि से नहीं बच सका। गहन पूछताछ में सब सच सामने आ गया। अगर ठाकुर गजराज सिंह ने जबरदस्ती रश्मि की शादी सुहास ने ना की होती तो वो प्रभास की भाभी बन कर जीवन ना बीता रही होती बल्कि उसकी पत्नी होती।
कजरी चाहे जो कुछ भी करती पर एक मां ही कर एक बच्चे की हत्या नही कर सकती। उसके दीपू के लिएआंसू नकली नही थे।
अब हमेशा की तरह बक्शी का शक घर के नौकर पर गया। वो पहले तो इधर उधर खूब घुमाया की वो मेरे भी बेटे जैसा था। उसे अपनी गोद में खिलाया था। पर उसका अटक अटक कर बोलना बक्शी को खल गया। एक ही जोर दार झापड़ पड़ने पर वो उनके कदमों में लोट गया।
गिड़गिड़ाने लगा, "साहब मुझे माफ कर दो। मुझसे गलती हो गई। बाऊ जी इतनी संपत्ति रहते हुए भी कभी मुझे समय से वेतन नहीं देते थे। इस बार तो हद ही हो गई। मेरे छोटे भाई को बुखार आया। वो दवा के लिए तड़पता रहा पर ना तो इन्होंने मुझे काम के चक्कर में घर जाने दिया और ना ही मेरी तनख्वाह दी। मेरा भाई मर गया। मैं खून के आंसू रोया अपने भाई के लिए। तभी मैंने निश्चय कर लिया की मैं इन्हें ऐसा जख्म दूंगा की ये जिंदगी भर किसी गरीब को दुखी नही करेंगे। मैने अपना बचपन, किशोरावस्था और जवानी इनके चौखट पर बिता दिया। इन्हें ही अपना घर परिवार सब कुछ समझा। इतने साल एक कुता भी पालो साहब तो उससे भी प्यार हो जाता है। उसके दर्द को,उसकी जरूरत को मालिक महसूस करता है। पर मैं इनके लिए कुत्ते से भी गया गुजरा था। इन्होंने कभी मेरी तकलीफ को नही समझा।"
मिठाई के चुप होते ही लीला उठी और एक चांटा मिठाई के मुंह पर मारा और बोली,
" दुष्ट हत्यारे..! उनका तुझे याद है। और मैं जो हमेशा तेरी जरूरत पूरी करती थी वो भूल गया। अरे… तू मुझसे तो कह कर देखता। एक मासूम को नही मारा तूने मेरा घर तिनका तिनका बिखेर दिया। जो अब कभी नही सिमटेगा।"
ठाकुर गजराज सिंह के सामने ही सब खुलासा हुआ था। वो झुकी नजरों से बोले,
"बक्शी जी..! पुलिस को फोन करिए। वो आ जाएं तो इसे उन्हें सौंप दीजिए।"
समाप्त