रात हुई और श्रेयांश रात का खाना खाकर फिर से अपने कमरें में पहुँचा, जब वह अपने कमरे में बिस्तर पर लेटा तो उसे जोर जोर से फिर से घुँघरुओं की आवाज़ सुनाई दी, जिससे वह चौंक गया,तभी घुँघरुओं की आवाज़ अचानक बंद हो गई,उस रात शम्भू उसके कमरें में नहीं सोया था,उसे कुछ जरूरी काम था इसलिए वो किसी से मिलने गया था,श्रेयांश के पूछने पर मुखिया जी ने उसे बताया था कि शायद वो किसी ताँत्रिक के पास गया है,श्रेयांश को थोड़ा अजीब लगा उनकी बात सुनकर लेकिन फिर सोचा कि गाँव के लोंग हैं इसलिए ये सब मानते हैं,श्रेयांश को अपने कमरें अकेले डर तो लग रहा था लेकिन वो फिर सोने की कोशिश करने लगा,
वो कुछ देर यूँ ही लेटा रहा लेकिन फिर थोड़ी देर बाद उसे महसूस हुआ कि उनकी बगल में बिस्तर पर कोई लेटा हुआ है,घुँघरुओं की आवाज़ और फिर किसी की मौजूदगी का एहसास होना ये श्रेयांश को को डरा देने के लिए काफी था,श्रेयांश जिस करवट लेटा था उसी करवट लेटा रहा उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो करें तो क्या करें?
खुद को समझाने के लिए उसने सोचा कि शायद ये उसका वहम होगा,लेकिन थोड़ी देर बाद उसे फिर से वही अनुभव हुआ कि जैसे बिस्तर का गद्दा दब रहा हो और उसके बगल में लेट कर कोई करवट बदल रहा हो,इस एहसास से श्रेयांश के तो जैसे रोंगटे ही खड़े हो गए, वह समझ नहीं पा रहा था कि यह सब हो क्या रहा है?
बहुत हिम्मत जुटा कर वो बिस्तर से उठा और पीछे पलट कर देखा तो वहाँ कोई नहीं था लेकिन जब उसकी नज़र गद्दे पर पड़ी, तो उस का दिल दहल गया,क्योंकि गद्दा नीचे की और दबा हुआ था और ऐसा दिख रहा था जैसे कि उस पर कोई इंसान लेटा हुआ है,अब वह चिल्लाना चाहता था पर डर के मारे उसकी आवाज नहीं निकली,दिल की धड़कन बहुत तेज़ हो चली थी…घबराहट में श्रेयांश ने तकिया उठा कर उस जगह पर फेंका जहां गद्दा दबा हुआ था,
ऐसा करते ही बिजली की तेज़ी से गद्दा फिर से समतल हो गया और श्रेयांश को ऐसा लगा कि वहाँ से कोई परछाई तेज़ी से उठ खड़ी हुई हों,फिर उसने देखा कि वो एक जवान औरत की धुंँधली सी परछाई थी, उसकी आँखों की पुतलियाँ एकदम कालीं थीं और उसका कद करीब-करीब कमरे की छत जितना ऊंँचा था,यह भयानक नज़ारा देख कर श्रेयांश घबरा गया,लेकिन तभी वो परछाईं एकाएक वहाँ से गायब हो गई,
तभी अचानक उसके कमरें में रखी आलमारी का दरवाज़ा अपने आप धड़ाम की आवाज़ के साथ खुल गया,इस आवाज़ से वह चौंक गया,उसे काफी डर महसूस हुआ क्योंकि कमरें के खिड़की दरवाजे बंद थे और वहाँ कोई हवा नहीं चल रही थी,उसने अलमारी के पास जाकर उस का दूसरा दरवाज़ा खोलकर देखा तो वहाँ कोई भी नहीं था,उसने फिर से अलमारी के दोनों दरवाजे बंद कर दिए और अपने बिस्तर की ओर जाने लगा तभी उसे महसूस हुआ की किसी नें उसका नाम पुकारा और वह आवाज़ उस आलमारी के अंदर से आ रही थी,अब श्रेयांश बुरी तरह डर गया था ,उसे वहीं खड़े खड़े पसीना आने लगे और वह बुरी तरह काँपने लगा,डरते डरते उसने पीछे मुड़ कर देखा तो आलमारी के दरवाज़े धीरे-धीरे हिल रहे थे, जैसे की अंदर से उन्हें कोई धक्का दे रहा हो,डर के मारे काँपते हुए श्रेयांश थोड़ी देर तक वह अजीब नज़ारा देखता रहा,लेकिन तभी अचानक आलमारी से गाढ़ा काला धुआँ बाहर आने लगा, ऐसा भयानक दृश्य देखकर अब श्रेयांश चुप ना रह सका और जोर से चीख पड़ा.....
श्रेयांश की चींख सुनकर मुखिया जी फौरन उसके कमरें में और उससे चींखने का कारण पूछा.....
वो सारा आँखों देखा दृश्य श्रेयांश ने मुखिया जी को कह सुनाया,श्रेयांश की बातें सुनकर मुखिया जी के माथे पर पसीने की बूँदें छलक आईं और उन्होंने श्रेयांश से कहा कि.....
चित्रकार बाबू!आज आप मेरे कमरें में सो जाइए,
फिर क्या था श्रेयांश सोने के लिए मुखिया जी के कमरें में चला आया,उसे डर तो लग रहा था लेकिन उतना डर नहीं लग रहा था.....
श्रेयांश बिस्तर पर लेटकर सोने की कोशिश कर रहा था पर ना जाने क्यूँ उसे नींद ही नहीं आ रही थी, वो बस उन्ही सब चीज़ो के बारे मे सोच रहा था जो उसने थोड़ी देर पहले देखीं थीं,यही सोचते सोचते ना जाने कब उसे नींद आ गई,अचानक से आधी रात को श्रेयांश की किसी के पैरों की आवाज से नींद खुल गई उस समय मुखिया जी तो सो ही रहे थे,श्रेयांश आश्चर्य मे था कि इतनी रात को कौन हो सकता है? पर उसकी इतनी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो बिस्तर से उठकर देखें कि कौन है?
उस समय, वो थोड़ा डरा हुआ भी था लेकिन फिर भी उसने सोचा कि चुपचाप होकर रजाई में से देखता हुँ कि कौन है?धीरे धीरे वो आवाज बढ़ती जा रही थी,वो जो कोई भी थी धीरे धीरे उसके पास आ रही थी,तब उसने देखा कि एक जवान औरत है जिसने सफेद रंग की साड़ी पहन रखी थी और वो उसके पास आकर रूक गई वो अब भी उसे देख रहा था और सोच रहा था कि ये यहाँ क्यूँ रुकी है ? तभी वह पीछे मुड़ी, जहाँ वह रुकी थी ,वहांँ बल्ब की हल्की सी रौशनी पड़ रही थी , श्रेयांश ने उसका चेहरा देखा और वो उसका चेहरा देख कर डर गया, उसकी बिना पुतलियों वाली आँख और उसके चेहरे पर अजीब सी डरावनी हँसी थी, उसकी आंँखे ऐसी लग रही थी जैसे कि वो उसको ही देख रही है,ये देखकर श्रेयांश ने अपनी आँखे बंद कर ली और चुपचाप ऐसे दिखाने लगा जैसे कि उसे कुछ भी नहीं पता ,
थोड़ी देर बाद उसके कानो मैं एक आवाज़ आयी, हहह..
तुझे क्या लगता है मुझे नहीं पता चला कि तू मुझे देख रहा है,,
उसकी बात सुनकर श्रेयांश एक बार फिर से चीख उठा और मुखिया जी फौरन जागकर श्रेयांश के पास आएं और उससे पूछा....
क्या हुआ चित्रकार बाबू?
कोई था यहाँ पर,श्रेयांश बोला।।
कौन था?मुखिया जी ने पूछा।।
एक औरत थी सफेद साड़ी में,श्रेयांश बोला।।
यहाँ और औरत!आपने कोई सपना देखा होगा,मुखिया जी बोले।।
वो सपना नहीं हकीकत थी,श्रेयांश बोला।।
श्रेयांश की बात सुनकर मुखिया जी एक बार फिर चिन्तित हो उठें....
मुखिया जी के कहने पर श्रेयांश फिर से बिस्तर पर लेट गया और बिस्तर पर लेटे लेटे वो उस सफेद साड़ी वाली औरत के बारें में ही सोच रहा था,बहुत डरा हुआ था वो,उसे अब ऐसा लग रहा था कि वो इस गाँव में ही चित्र बनाने क्यों आया?किसी और गाँव चला जाता तो अच्छा होता,जब देखों तब कोई ना कोई मुसीबत ही खड़ी हो जाती है,उसने फिर रात भर पलकें नहीं झपकाईं और यूँ ही सबेरा हो गया,सबेरा होते ही शम्भू काका लौट आएं,उनके चेहरे पर साफ साफ चिन्ता के भाव देखें जा सकते थें,मुखिया जी ने भी उनके चेहरें की उदासी भाँप ली और अकेले में ले जाकर उससे कुछ बात करने लगें,ये सब श्रेयांश ने देखा लेकिन बोला कुछ नहीं,वें शायद किसी तान्त्रिक के बारें में बातें कर रहे थे और इधर श्रेयांश के दिमाग़ में तो कुछ और ही चल रहा था......
सुबह का नाश्ता हो चुका था,मुखिया जी और शम्भू सोच रहे थे कि श्रेयांश उस पुराने रंगमहल का चित्र बनाने वहाँ पर जाएगा लेकिन उस दिन श्रेयांश ने ये कहकर मना कर दिया कि रात में उसकी नींद पूरी नहीं हुई है,वो आज दोपहर में यहीं रहेगा और अपने कमरें में आराम करेगा,ये सुनकर मुखिया जी बोलें....
कोई बात नहीं,आप यहाँ रूकिए लेकिन मुझे और शम्भू को किसी जरूरी काम से बाहर जाना होगा।।
ठीक है तो आप दोनों चले जाइए और सारे कमरों में ताला लगा दीजिए,मेरा कमरा खुला रहने दीजिए,श्रेयांश बोला।।
ये कैसी बातें करते हैं चित्रकार बाबू!मुझे आप पर पूरा भरोसा,कमरों में ताला लगाने की आवश्यकता नहीं है,मुखिया जी बोले।।
तो ठीक है अगर आपको मुझ पर भरोसा है तो मत लगाइए ताला,श्रेयांश बोला।।
फिर दोपहर का खाना खाने बाद मुखिया जी और शम्भू बाहर चले गए ,श्रेयांश अपने कमरें में आकर बिस्तर पर लेटकर आराम करने लगा,तभी श्रेयांश को ध्यान आया कि रात को उसके कमरें में रखी अलमारी में कुछ हलचल हुई थी,अब दोपहर के समय इसे खोलकर देखता हूँ कि क्या माजरा है?
श्रेयांश ने अलमारी ख़ोली लेकिन उसे उसके भीतर कुछ भी नहीं दिखा,फिर तब उसने अलमारी का ठीक से मुआयना करना शुरु कर दिया, उसने अलमारी को अगल बगल से भी देखा और फिऱ उसके पीछे गया,उसने जो देखा उसे देखकर वो हक्का-बक्का रह गया क्योंकि अलमारी के पीछे की दीवार पर एक छोटा सा दरवाजा था जिस पर बड़ा सा ताला लगा था,जो शायद कोई खुफिया दरवाजा था,अब श्रेयांश ने उस दरवाजे के पीछे जाने की ठान ली,पहले उसने अलमारी को आगें की ओर खिसकाया,रसोई से सिलबट्टे का बट्टा उठाकर लाया और उसने उस बट्टे से ताले पर वार करने शुरु कर दिए,तीन चार वार के बाद ताला टूट गया,श्रेयांश ने वो दरवाजा खोला तो देखा तो भीतर बहुत अँधेरा था इसलिए उसने पहले लालटेन जलाई और साथ में अपने बचाव के लिए एक लाठी भी ले ली.....
वो धीरे धीरे उस दरवाजे के भीतर घुसने लगा,उस कमरें में जाकर उसने देखा कि वहाँ बहुत सा पुराना सामान पड़ा है जो इस्तेमाल में नहीं आता,जो कुछ इस तरह था जैसे कि पुरानी टोकरियाँ,टूटी हुई लकडी की कुर्सियाँ,पुराना लकड़ी का हल,फावड़ा और वहाँ एक छोटा लोहे का सन्दूक भी था जिस पर ताला नहीं लगा था,श्रेयांश ने उस सन्दूक को खोलकर देखा तो उसे उसमें घुँघरूओं का जोड़ा मिला,एक घाघरा चोली का जोड़ा भी उसे मिला,साथ में एक तस्वीर और एक डायरी मिली,जिसका उसने पहला पन्ना खोलकर देखा तो उस पर लिखा था ऋतुरागिनी,ये सब श्रेयांश की समझ से परे था,उसने सोचा ये तस्वीर और डायरी अपने साथ बाहर ले चलता हूँ,शायद डायरी पढ़ने पर कुछ मिल जाएं.....
उसने सन्दूक का सारा सामान वैसे ही रख दिया जैसे कि पहले से रखा था ,वो जैसे ही लालटेन और लाठी उठाकर उस कमरें से बाहर जाने को हुआ तो किसी ने जोर से उसका हाथ पकड़ लिया,श्रेयांश के हाथ से लाठी छूटकर नींचे गिर गई तब उसने उस ओर देखना चाहा कि वो कौन है आखिर?श्रेयांश ने जैसे ही नजर उठाई तो उसने देखा कि एक जले हुए काले चेहरे वाली घाघरे चोली मेँ एक लड़की की परछाईं सी खड़ी है,ये देखकर श्रेयांश चीख उठा तो उस लड़की ने फौरन ही अपने चेहरे को अपनी चुनरी से ढ़क लिया फिर श्रेयांश से बोली.....
डरो नहीं!मुझे तुमसे कुछ कहना है,मैं तुमसे उस दिन से कुछ बताना चाहती हूँ जिस दिन तुम यहाँ आएं थे।।
उसकी बात सुनकर श्रेयांश ने पूछा....
कौन हो तुम?और क्या बताना चाह रही हो मुझे।।
ये बहुत लम्बी कहानी है,क्या तुम सुनना चाहोगे?वो परछाईं बोली,
हाँ!मैं भी बहुत कुछ जानना चाहता हूँ तभी तो इस कमरें में आया हूँ,श्रेयांश बोला।।
तो सुनो मैं तुम्हें सब बताती हूँ वो परछाईं बोली.....
और फिर उस परछाईं ने अपनी कहानी सुनानी शुरु की....
ये दो साल पहले की बात है,मेरा नाम ऋतुरागिनी था,मैं बहुत खुशहाल जिन्दगी बसर कर रही थी,मेरी शादी एक अच्छे इन्सान के साथ हुई थी,लेकिन फिर पता नहीं किसकी नज़र लग गई मेरी गृहस्थी पर, मेरे पति बहुत बीमार रहने लगें,इससे उनका व्यापार बिल्कुल से डूब गया,घर में खाने के लाले पड़ गए तो पति का इलाज कैसें करवाती?रिश्तेदार और मुहल्ले वाले भी सहायता कर करके थक चुके थे और फिर जब बुरा वक्त आता है तो सभी साथ छोड़ देते हैं,मेरे साथ भी यही हुआ,मैं अपने पति को तो मरता हुआ नहीं छोड़ सकती थी इसलिए मैं एक नौटंकी कम्पनी में काम करने लगी,बहुत तो नहीं लेकिन इतने पैसें तो मिल ही जाते थे कि दो वक्त का खाना और पति के इलाज का पैसा निकल आएं,
पति ने मना भी किया लेकिन मुझे केवल उनके इलाज की चिन्ता थी,इसलिए अब अपनी इज्जत का डर ना था,फिर अपनी इज्जत के लिए इस समाज से क्यों डरती? अगर समाज होता तो मेरे पति का इलाज करवाता,जब हम पैसें वाले थे तो यही समाज हमारे तलवें चाटता था लेकिन जब हम गरीब हो गए तो समाज ने हमसे दामन छुड़ा लिया...
मैं कुछ दिनों में ही सबकी चहेती बन गईं,अब कोई भी नौटंकी मेरे बिना अधूरी रहती,इस बीच मेरे पति की हालत में भी सुधार होने लगा,उन्हें पूरी तरह ठीक करने के लिए अभी और भी पैसा और वक्त चाहिए था,इसलिए मैनें नौटंकी कम्पनी नहीं छोड़ी,मेरे चाहने वालों में से एक मुखिया जी भी थे,वें मेरी कोई भी नौटंकी देखना नहीं भूलते थे,साथ में उनका नौकर शम्भू भी रहता था,
फिर एक रोज जब मेरा नाच गाना खतम हुआ तो मुखिया मेरे शामियाने में अकेले मिलने आएं और बोलें....
मेरी जान!तुम मुझे भा गई हो,बोलो क्या लोगी मेरे साथ चलने का?
मैनें शालीनतापूर्वक उनसे कहा,
मैं ये सब काम नहीं करती,नाचना गाना मेरी मजबूरी है।।
दो कौड़ी की औरत मुझे मना करती है,मुखिया जी बोलें।।
जुबान सम्भालकर बात कीजिए मुखिया जी!मैं ऐसी वैसी लड़की नहीं हूँ,मैनें कहा...
अगर ऐसी औरत नहीं हो तो फिर नौटंकी में काम क्यों करती हो?मुखिया जी बोले।।
मेरी मजबूरी है,मेरे पति बहुत बीमार हैं इसलिए उनके इलाज के लिए मुझे ये काम करना पड़ता है,मैनें कहा।।
मेरी बात सुनकर मुखिया जी कुछ नर्म पड़कर मुझसे बोलें.....
माँफ करना ऋतुरागिनी मुझसे गलती हो गई,चलो ठीक है लेकिन एक रात के लिए तो मुझे अपना नाच गाना सुना सकती हो ना!मुँहमाँगा दाम दूँगा,मुझे तुम्हारी आवाज़ बहुत पसन्द है,इतनी कृपा तो कर ही सकती हो मुझ पर,वादा करता हूँ कि आज के बाद कभी ऐसी गंदी बात अपनी जुबान पर ना लाऊँगा,तुम मेरे घर पर आ सकती हो,मेरे घर में मेरा पूरा परिवार है,वें सब भी तुम्हारा नाच-गाना सुनकर खुश हो जाएंगे,
तो क्या तुमने मुखिया जी की बात मान ली,श्रेयांश ने पूछा।।
श्रेयांश के इस प्रश्न पर ऋतुरागिनी ने उत्तर दिया.....
फिर मैं उनकी इस विनती को ठुकरा ना सकी,क्योंकि उन्होंने कहा था कि वें अपने परिवार के साथ मेरा नाच गाना देखना चाहते हैं और एक रात मैं उनके घर नाच गाने के लिए पहुँची...
फिर क्या हुआ?श्रेयांश ने पूछा....
थोड़ा सब्र रखो सब बताती हूँ,ऋतुरागिनी बोली....
इसके बाद ऋतुरागिनी ने फिर से बोलना शुरु किया.....
मैं वहाँ साधारण कपड़ो में पहुँची,साथ में मेरा सन्दूक था जिसमें घुँघरूओं का जोड़ा,मेरी डायरी और नाचने गाने वाला भड़कीला लिबास था,मैं वहाँ पहुँची तो मैनें मुखिया जी से पूछा.....
कहाँ है आपका सारा परिवार? मैं सबसे मिलना चाहती हूँ।।
मुखिया जी बोलें....
पहले तुम तैयार तो हो जाओ,परिवार भी आया जाता है,उस कमरें में शम्भू तुम्हें छोड़ आएगा,जहाँ तुम इत्मीनान से तैयार हो जाओ,तैयार होकर जब आ जाओगी,तभी सबसे मिलवाता हूँ ,
और फिर मुझे शम्भू उस कमरें में छोड़ आया,जो तुम्हारा कमरा है,मैं तैयार होकर बाहर आई तो फिर से मुखिया जी से पूछा कि उनका परिवार कहाँ है?
वें बोलें,सब शहर गए हैं सुबह तक ही लौटेगें,तुम मुझे अपना नाच गाना दिखा सकती हो,ये रहे रुपए अगर कम हैं तो मैं और भी दे देता हूँ....
तो फिऱ आपने मुझसे झूठ क्यों बोला?मैनें पूछा.....
वो इसलिए कि तुम्हारा मन खराब हो जाता और फिर तुम मुझे अपना नाच गाना नहीं दिखाती,मुखिया जी बोलें.....
फिर मजबूर होकर उस रात मुझे नाचना गाना पड़ा,फिर रात में मुझे उस कमरें में ठहराया गया,जिसमें तुम ठहरे हो,मैनें भीतर से ठीक से दरवाजा बंद कर लिया,मैनें सोचा कि अब इस कमरें में कोई नहीं घुस सकता,मैं एकदम सुरक्षित हूँ,यही सोचकर मैं चैन की नींद सो गई,तभी आधी रात के वक्त किवाड़ खुलने की आवाज़ से मेरी आँख खुल गई,मैनें देखा तो मेरे कमरें के दरवाजे तो भीतर से बंद हैं लेकिन तभी मेरे कमरें की अलमारी हिली,उसे सरकाकर मुखिया जी उसके पीछे के छोटे से किवाड़ो से मेरे कमरें में घुस आएं थे,मैनें उन्हें देखा तो पूछा....
आप और यहाँ,इतनी रात को किस लिए आएं हैं?
बस!अपनी देवी के दर्शन करने चला आया था,मुखिया जी बोले...
ये क्या बकवास करते हैं आप?मैनें कहा।।
अरे!मेरी रानी !मैं तो अपनी प्यास बुझाने आया हूँ,कबसे प्यासा हूँ तेरे यौवन का?मुखिया जी बोले।।
नीच!तू इतनी नीचता पर उतर आया है,मतलब तेरा परिवार यहाँ नहीं है,मैनें कहा।।
पत्नी को मरे तो सालों हो गए,बेटी ब्याहकर ससुराल चली गई,बेटा बहु शहर में रहते हैं,यहाँ तो मैं ही अकेले रहता हूँ अपने नौकर शम्भू के साथ,मुखिया जी बोले....
अच्छा!तो ये बात है,तुमने मुझे धोखे से यहाँ बुलाया,मैनें कहा...
हाँ!मेरी जान!मेरा कहा मान लें,रूपयों से तौल दूँगा,मुखिया जी बोले...
नहीं चाहिए मुझे रूपऐं,मुझे यहाँ से जाने दो नहीं तो मैं चिल्लाऊँगी,मैं बोली।।
अब तू यहाँ से भागकर कहीं नहीं जा सकती,तेरी यहाँ कोई सुनेगा भी नहीं,मैनें शम्भू से कहकर बाहर से दोनों दरवाजों पर ताला लगवा दिया है,तू इन्हें नहीं खोल सकती,चुपचाप मेरी बात मान लें नहीं तो मैं जबरदस्ती करूँगा,मुखिया जी बोलें....
मैं तेरी बात हरगिज़ नहीं मानूँगी ,थूँ...और इतना कहकर मैनें मुखिया के मुँहपर थूँक दिया,ये देखकर मुखिया की मर्दानगी को ठेस पहुँची और उस को ताव आ गया ,फिर उसने कुछ नहीं सोचा और मेरे दोनों हाथ पकड़कर मेरे साथ जबरदस्ती करने लगा,मैं खुद को छुड़ाती रही लेकिन सफल ना हो पाई और उसने मेरी इज्जत को ज़ार ज़ार कर दिया,उसका इतने से भी जी नहीं भरा और उसने मुझे इसी अलमारी वाली कोठरी में कैद कर दिया,दूसरे दिन मुझे वहीं खाना और पानी भी दे दिया गया,लेकिन मैनें एक होशियारी की,मैनें वो सभी बातें अपनी डायरी में लिख दी क्योंकि मुझे डायरी लिखने की आदत थी,फिर उसी रात को मैनें यहाँ से भागने की कोशिश की,लेकिन शम्भू ने पकड़ लिया....
तब मैनें दोनों को धमकी दी की कि मैं ये सब पुलिस को बता दूँगी,बस उस समय शम्भू को गुस्सा आ गया और उसने मेरे हाथ मुँह बाँधे , मेरे ऊपर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी,मैं छटापटा रही लेकिन मेरी किसी ने ना सुनी,जब मैं झुलसकर काली पड़ गई और बेहोश हो गई तो उन्होंने मेरे तन पर लगी आग कम्बल डालकर बुझा दी,मैं तब जिन्दा थी और दर्द से कराह रही थी,तब दिन निकल आया था तो वें दोनों मेरे शरीर को कही दफना नहीं सकते थे,रात होने का इन्तज़ार करने के सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं था,इसलिए उन्होंने मेरे अधजले काले शरीर को उस अलमारी में बंद कर दिया और रात होने का इन्तजार करने लगें,मेरी साँसें चल रहीं थीं लेकिन कितनी देर तक और चलतीं,कुछ देर तक मौत से संघर्ष करने के बाद बंद हो गईं,
फिर रात हुई और उन दोनों ने मुझे उस रंगमहल के आँगन में एक बड़े से पत्थर के पास दफना दिया,मेरी आत्मा तबसे यहाँ भटक रही है,मैं अपनी सच्चाई को बाहर लाना चाहती थीं इसके लिए मुझे कोई जरिया चाहिए था,इसलिए मुखिया ने घर की एक पुरानी महाराजिन को भी घर से निकाल दिया और उस दिन के बाद उसने इस घर में किसी को भी आने नहीं दिया,जिससे मैं किसी को कुछ बता ना सकूँ,सामान से भरे सन्दूक को उन्होंने इसी कमरें में रख दिया लेकिन सन्दूक खोल कर नहीं देखा कि इसमें एक डायरी रखी है और इसमें उनके खिलाफ सारे सुबूत हैं.....
तो मैं क्या करूँ?ये बात मैं पुलिस को बता दूँ,श्रेयांश ने पूछा।।
हाँ!मैं उन दोनों को सजा दिलवाना चाहती हूँ और इतना कहकर ऋतुरागिनी गायब हो गई,फिर श्रेयांश ने ऋतुरागिनी का सन्दूक उठाया जिसमें सारे सुबूत थे और अपना सामान उठाकर घर से बाहर निकल गया,पुलिस को सूचना देनें के लिए,पुलिस ने श्रेयांश की बात सुनकर छान बीन शुरु कर दी,ऋतुरागिनी का कंकाल भी रंगमहल के आँगन के बड़े पत्थर के पास जमीन के नीचे से मिल गया, मुखिया और शम्भू के बयान के मुताबिक़ दोनों गुनाहगार पाएं गए , दोनों पर केस चला और दोनों को सजा भी हो गई....
अब श्रेयांश को पता चल चुका था कि मुखिया ने शाकंभरी की मनगढन्त कहानी सुनाई थी,जब कि उन्होंने ऋतुरागिनी को जलाकर मारने की कोशिश की थी,वो रंगमहल श्रापित नहीं है और ना वहाँ ऐसा कभी भी कुछ भी हुआ था,वहाँ कोई शाकंभरी की आत्मा नहीं भटकती,यही सब सोचकर श्रेयांश आखिरी बार उस रंगमहल में पहुँचा और भीतर जाने का साहस कर पाया.....
तभी वहाँ के आँगन में उसे एक लड़की दिखी और उसने श्रेयांश से पूछा....
अरे तुम कौन हो? और यहाँ तुम्हें आते डर नहीं लगा...
तब श्रेयांश बोला....
नहीं!क्योंकि मुझे पता है कि इस रंगमहल के बारें में लोगों ने झूठी अफवाहें फैला रखीं हैं कि ये श्रापित रंगमहल है,यहाँ किसी शाकंभरी नाम की युवती ने खुद को आग लगा ली थी और उसी की आत्मा ने अपना बदला लिया,
अच्छा तो तुम भूत-प्रेत पर विश्वास नहीं करते,उस लड़की ने श्रेयांश से पूछा।।
नहीं!भूत-प्रेत नहीं होते ,ये तो मनगढन्त कहानियांँ होतीं हैं,श्रेयांश बोला।।
ओह.... तुम तो बड़े निडर हो,लड़की बोली,
अच्छा!तुम ने मुझसे तो सब पूछ लिया लेकिन अपने बारेँ में कुछ नहीं बताया,श्रेयांश बोला.....
वो लड़की पहले मुस्कुराई और फिर बोली....
मैं.....मैं....शाकंभरी हूँ और इतना कहकर वो वहाँ से गायब हो गई,ये देखकर श्रेयांश एक पल को सन्न रह गया....
समाप्त.....
सरोज वर्मा.....🙏🙏😊😊