BEMEL - 27 in Hindi Fiction Stories by Shwet Kumar Sinha books and stories PDF | बेमेल - 27

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बेमेल - 27

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“काकी, कुछ समझ में नहीं आ रहा! अपने छोटे भाई-बहनों का पेट कैसे पालूं? पिताजी तो पहले ही इस दुनिया को छोड़कर चले गए। अब मां ने भी बिस्तर पकड़ लिया है। इसे अकेला छोड़कर मैं काम पर भी नहीं जा सकती। घर में अनाज का एक दाना भी नहीं बचा! क्या करूं? किससे मदद की गुहार लगाऊं?”- गांव में रहनेवाली और हैजे का दंश झेल रही रूपा ने कहा तो श्यामा से उसकी तकलीफ देखी न गई।
“ये कुछ रूपए रख और जाकर अनाज ले आ! जबतक मेरी आंखें खुली है तेरे परिवार को भूख से बिलकते नहीं छोड़ सकती!”- दिलासा देते हुए श्यामा ने रूपा के हाथ में कुछ पैसे रखे। ये वही पैसे थे जो श्यामा को जेवर गिरवी रखने के बाद जौहरी से मिले थे।
“पर काकी! ये पैसे मैं कैसे ले सकती हूँ? मेरी इतनी हैसियत कहाँ कि तूझे ये लौटा सकूं!”- पैसे लेने से इंकार करते हुए रूपा ने कहा।
“तूझे पैसे लौटाने की कोई आवश्यकता नहीं! इन्हे लेकर जा और जल्दी से पंसारी से घर का राशन ले आ। देख बच्चे भूखे हैं। यूं समय बर्बाद मत कर! जल्दी जा!”- रूपा को समझाते हुए श्यामा ने कहा।
“श्यामा काकी....ओ श्यामा काकी?” घर के बाहर खड़ा कोई श्यामा को आवाज लगा रहा था। आवाज सुन श्यामा दरवाजे तक आयी।
“कौन हो बेटा? मैने तुम्हे पहचाना नहीं!”- दरवाजे पर खड़े तीस-पैंतीस वर्ष के उस आदमी को देखकर श्यामा ने उससे पुछा।
“श्यामा काकी, आप मुझे नहीं जानती! पर मैं आपको अच्छे से जानता हूँ।” – दरवाजे पर खड़े आदमी ने कहा।
“पर तुम हो कौन, बेटा?”
“मैं आपके ज...जमाई विजेंद्र का मित्र उदय हूँ।”- उदय ने झिझकते हुए कहा जिसे सुनकर श्यामा का चेहरा गम्भीर हो उठा। पर उससे भी बड़ा धक्का उदय को लगा जब उसकी नज़र श्यामा के बढ़े हुए पेट पर पड़ी। वह खुद को कोसता रहा कि आखिर क्यूं वह यहाँ आया। पर विजेंद्र की हालत भी तो उससे देखी नहीं जा रही थी।
“क्यूं आए हो मेरे पास?”- वर्णहीन होते हुए श्यामा ने पुछा।
“काकी, वो व विजेंद्र...” – उदय ने ज्यों ही विजेंद्र के बारे में कुछ बताना चाहा, श्यामा ने किबाड़ भीतर से बंद कर लिया। बंद दरवाजे के पीछे खड़ी श्यामा के आंखों के सामने अपनी बेटी और पति का मृत शरीर मंडराने लगा और चेहरे पर पश्चाताप का बोध उभरा जिससे अब उसे ताउम्र छूटकारा नहीं मिलने वाला था।
“काकी, एकबार मेरी बात तो सुन लो! जानता हूँ, कि विजेंद्र ने जो कुछ भी किया वो सर्वथा अनुचित था। पर उसे अपने किए का पछतावा है जिसकी सजा पाने का वक्त भी नजदीक आ चुका है। मैं आज एक दोस्त की पैरवी लगाने नहीं बल्कि एक बेटे की आखिरी गुहार उसकी मां के पास लेकर आया हूँ।” – दरवाजे पर खड़े उदय ने मदद की गुहार लगाते हुए कहा। तभी दरवाजा धीरे से खुला और पथराई आंखों से श्यामा सामने खड़े उदय को निहारती रही।
“श्यामा काकी, विजेंद्र अपनी ज़िंदगी के आखिरी क्षण गिन रहा है। हैजे से गांववालों की जान बचाते हुए आज खुद वह हैजे की बलि चढ़ने वाला है। उसकी शक्ति इतनी क्षीण पड़ चुकी है कि बिस्तर से उठा भी नहीं जाता। पश्चाताप के आग में वह हर वक्त जलता रहता है। हर वक्त ज़ुबान पर बस एक ही बात रहती है कि दया की इस देवी के समक्ष अपने किए की माफी मांगू जिससे प्राण शरीर को त्याग सके।”- हाथ जोड़कर उदय ने पूरी बात बतायी तो श्यामा का सरल हृदय जैसे चीत्कार उठा। यह चीत्कार एक मां की थी जो अपने बच्चों का अनिष्ट सुनकर सदैव तड़प उठता है। भले ही उस बच्चे से कितना भी बड़ा गुनाह क्यूं न हुआ हो। फिर विजेंद्र ने भी तो गुनाह ही किया था जिसकी सजा श्यामा खुद भुगत रही थी।
बिना कुछ बोले उदय के साथ वह मेडिकल कैम्प की तरफ बढ़ने लगी। कैम्प के भीतर कदम रखा तो एक नर्स ने आगे बढ़कर उसे भीतर आने से रोका।
“किससे मिलना है आपको? आप गर्भवती हैं और ऐसी हालत में यहाँ आना आपके और पेट में पल रहे आपके बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है!”
“मैडम, प्लीज़ इन्हे भीतर आने दें! एक मां को उसके बच्चे से मिलने से न रोकें!”- उदय ने कहा तो नर्स ने अपने पैर पीछे खींच लिए।
बिस्तर पर पड़ा विजेंद्र बुरी तरह खांस रहा था। वहां मौजुद डॉक्टर ने बताया कि उसका उल्टी-दस्त रुकने का नाम ही नहीं ले रहा जिससे उसकी हालत बद से बद्तर होती जा रही है।
सामने पड़े विजेंद्र पर नज़रें टिकाए श्यामा अपने एक-एक पग उसके तरफ बढ़ाती रही। उसे महसूस हो रहा था जैसे उसके कदम उसका साथ नहीं दे रहे और वे आगे बढ़ने से इंकार कर रहे हो।
“विजेंद्र! भाई, देख मैं किसे साथ लेकर आया हूँ! तू कहता था न कि मां हमेशा ममता की मुर्ति होती है और अपने बच्चों को जरुर माफ कर देती है। देख, आंखें खोल भाई! विजेंद्र?”- क्षीण काया वाले विजेंद्र से उदय ने कहा जिसके शरीर के नाम पर अब केवल हड्डियां ही शेष बची थी।
विजेंद्र ने बमुश्किल अपनी आंखें खोली और बुरी तरह खांसने लगा। अपने स्थान पर जड़ हो चुकी श्यामा उसे निहारती रही और आंखों में आंसुओं के सैलाब उमड़ने लगे।....