….“तुम सोयी थी। इसिलिए तुम्हे जगाना ठीक नहीं समझा! क्या हुआ है? इस वक़्त तो तुम्हे कभी सोते हुए नहीं पाया! तबीयत तो ठीक है न तुम्हारी?”- विनयधर ने चिंतित होते हुए पुछा।
इससे पहले कि सुलोचना कुछ बोल पाती, सास आभा का कमरे में प्रवेश हुआ और उसने शिकायतों के अम्बार लगा डाले। “सोयी थी?? या सोने का नाटक कर रही थी विनयधर!! जरा पुछ इससे! कितना आवाज लगायी, पर महारानी के कानों पर जू तक नहीं रेंगे! मेरी कुछ सहेलियां आज मुझसे मिलने आयी थी। इसकी मां ने इसे इतने संस्कार भी नहीं दिए कि घर आए मेहमानों से पानी तक के लिए पुछे! अरे वो तो छोड़ो.... मेरे आवाज लगाने पर कोई जवाब तक नहीं दिया!”
“मां शांत हो जाओ! अगर इसने कोई जवाब नहीं दिया तो तुम खुद ले लेती! इसमें इतना शोरगुल करने की क्या जरुरत! अच्छा ठीक है, मैं इसे समझा दूंगा कि आगे से ध्यान रखे! इतना गुस्सा करोगी तो बीमार पड़ जाओगी। जाओ, अपने कमरे में जाकर आराम करो!” - विनयधर ने कहा और पांव पटकते हुए आभा कमरे से बाहर चली गयी। सुलोचना की निगाहें विनयधर पर ही स्थिर थी।
“क्या हुआ सुलोचना? तबीयत तो ठीक है न तुम्हारी?” – विनयधर ने पुछा तो सुलोचना के आंखों से आंसू झर-झरकर बहने लगे।
आगे बढ़कर विनयधर ने सुलोचना को बिठाया और उसके आंसू पोछे। सुलोचना अपने पति के सीने पर सिर रखकर सुबकने लगी और कहा – “आप मुझे छोड़ तो नहीं दोगे न! कहीं मुझे भूलकर किसी और को तो नहीं ब्याह लाओगे?”
“अचानक से ऐसी बातें क्यूं कर रही हो, सुलोचना? क्या कभी मेरे बात-व्यवहार से तुम्हे ऐसा महसूस हुआ?” –सुलोचना के सिर पर प्यार भरा हाथ फेरकर विनयधर ने उससे पुछा।
“मैं तुम्हे इस घर का वंश नहीं दे पा रही हूँ न! कहीं इस वजह से दूसरी तो नहीं ब्याह लाओगे? आज मां जी की सहेलियां उन्हे ऐसा करने की सलाह दे रही थी!”- सुलोचना ने सुबकते हुए कहा।
“अच्छा तो ये बात है! इसिलिए आज तुम इतनी खोयी-खोयी सी लग रही हो!”- विनयधर ने कहा और सुलोचना के चेहरे को अपने आंखों के सामने लेकर आया।
“पति-पत्नी का रिश्ता क्या इतना छिछला होता है जो इतनी छोटी-छोटी बातों पर टूट जाए! अरे पागल.... ये तो जन्म-जन्मांतर का बंधन है! एकबार बंध गया तो फिर कभी टूटता नहीं। मां क्या कहती है, तुम उसपर ज्यादा ध्यान मत दो! मेरी और उनकी विचारधारा में काफी अंतर है! वो मेरी मां है। इसलिए उन्हे किसी बातों पर नहीं टोकता। पर इसका ये मतलब कतई मत निकालना कि मैं उनकी हरेक बात से सहमत हूँ। मेरा यकीन मानो तुम मुझपर भरोसा कर सकती हो। चलो...अब मुझे भूख लगी है। कुछ खाने को निकालो! ...और तुमने खाना खाया कि नहीं या भूखे पेट ही सो गई थी।” – विनयधर ने कहा तो सुलोचना के चेहरे पर खोयी चमक वापस लौट आयी। भींगी पलकें लिए उसने हाँ में अपना सिर हिला दिया और कमरे से बाहर रसोई की तरफ बढ़ गई। विनयधर ने उसकी चिंता का निपटारा चुटकियों में कर डाला था।...
***
मेडिकल कैम्प में हैजे के मरीजों की सेवा करते-करते विजेंद्र खुद भी हैजे की चपेट में आ गया। थोड़े ही दिनों में उसकी हालत बद से बद्तर होती चली गई। उल्टी-दस्त लगातार होता रहा और बुखार भी उतर न रहा था। डॉक्टर अपना हरसम्भव प्रयास करके थक गए। पर कोई फायदा न हुआ। विजेंद्र भी समझ गया था कि उसका अंत समय आ चुका है और अब वह कुछ ही दिनों का मेहमान है। पर एक ही बात उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी जो उसने श्यामा के साथ किया और जिसकी वजह से अभिलाषा और मनोहर की जान गई। मेडिकल कैम्प में बिस्तर पर लेटे हर वक्त वह इन्ही बातों में गुम रहता।
“विजेंद्र, इतना उदास क्यूं रहता है! देख लेना, तू जल्द ही ठीक हो जाएगा।” – विजेंद्र के मित्र ने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा जिसने खुद को उसी मेडिकल कैम्प में रोगियों के इलाज में झोंक रखा था। गांववालों को हैजे से बचाने के लिए विजेंद्र की निष्ठा देखकर उसे भी आगे बढ़कर बीमार और रोगियों की सेवा करने का बल मिला था।
“मैं ठीक नहीं होउंगा, मित्र। ...और ठीक होना भी नहीं चाहता! यही मेरी सजा है जो मुझे मिल रही है। मैं पापी हूँ। मैने पाप किया है। मैं गुनाहगार हूँ और मेरे गुनाह की सजा कोई और भुगत रहा है! नरक के दरवाजे मेरा इंतजार कर रहे हैं। मुझे अब इस लोक से जाना ही होगा! बस... एक ही आखिरी इच्छा थी कि जाने से पहले श्यामा मां से अपने किए की माफी मांग सकूं। पर, उनसे नज़रें मिलाने की भी मेरी हिम्मत नहीं बची। मैने जो पाप किया उसका कोई पश्चाताप नहीं, केवल सजा है जो मुझे मिलकर ही रहेगी।” - विजेंद्र ने कलपते हुए कहा। पास ही खड़ा विजेंद्र का मित्र उदय उसकी बातें सुनता रहा।
“मैने कहा न तू अपने मन पर इतना बोझ मत ले! डॉक्टर साहब ने तूझे आराम करने के लिए कहा है! आंखें मूंदकर सोने की कोशिश कर।”- उदय ने कहा तो विजेंद्र ने अपनी भींगी पलकें बंद कर ली।
उदय काफी देर तक विजेंद्र की कही बातें सोचता रहा। विजेंद्र की मदद वह करना तो चाहता था मगर कैसे? किस मुंह से वह श्यामा के पास जाता और अपने मित्र की दयनीय अवस्था की गुहार लगाता। …