BEMEL - 25 in Hindi Fiction Stories by Shwet Kumar Sinha books and stories PDF | बेमेल - 25

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बेमेल - 25

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सुलोचना के शादी के काफी दिन होने को आए थे। कई नीम-हकीम, वैद्य से इलाज कराने के बाद भी वह मां नहीं बन पा रही थी। एक बार गर्भ धारण किया भी, लेकिन पांच माह से अधिक गर्भ न ठहरा। इसका खामियाजा ये भुगतना पड़ा कि सास के ताने दिन- प्रतिदिन बढ़ते ही गए। हालांकि पति विनयधर काफी धीर प्रकृति का सुलझा हुआ इंसान था जिसने एक तरफ अपनी पत्नी के दुखी मन को शांत किया, वहीं दूसरी तरफ मां की तंज भरी बातों से अपने कान बंद करके रखा।
विनयधर की अनुपस्थिति में सुलोचना की सास उससे ऐसा बर्ताव करती मानो वह उसकी जन्म-जन्मांतर की दुश्मन हो।
एकदिन अपना कामधाम निपटाकर सुलोचना कमरे में बैठी कपड़े सिल रही थी। विनयधर भी कपड़ों की फेरी लगाने गांव की तरफ निकला हुआ था। तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई। कपड़े को एक किनारे रख सुलोचना ने बाहर जाकर दरवाजा खोला तो मुहल्ले की कुछ उम्रदराज औरतें सामने खड़ी थी। ये सब उसकी सास आभा की सहेलियां थी जो उससे मिलने आयी थी, और जिनके पास अपनी-अपनी बहुओं की शिकायत के अलावा बात करने को और कुछ न होता था।
“चाची नमस्ते, कैसी हैं आपसब? बहुत दिनों के बाद आना हुआ!”- हाथ जोड़ सबका अभिवादन करते हुए सुलोचना ने मुस्कुराकर पुछा और अपने साड़ी के आंचल को सिर पर रखा।
“हाँ री, बहुत दिन हो गए थे तो सोचा तेरी सास और तुम सबकी खबर ले लूं चलकर!”- दरवाजे पर खड़ी एक बुढ़ी औरत बोली।
“हाँ हाँ, बिल्कुल सही किया आपने! आइए, मां जी भीतर कमरे में ही हैं!”- कहकर सुलोचना ने अपनी सास को आवाज लगाया।
“क्यूं आसमान सिर पर उठा रही है! कौन सा पहाड़ टूट पड़ा!!” – भीतर कमरे से बड़बड़ाती हुई सास आभा निकलकर बाहर आयी तो देखा उसकी सहेलियां दरवाजे पर खड़ी सुलोचना के साथ बात कर रही है।
“ओह...तुम सब हो, आओ आओ! बहुत दिनों बाद आना हुआ!” – सास आभा ने मुस्कुराकर मेहमानों का स्वागत करते हुए कहा फिर सुलोचना की तरफ आंखे तरेरकर बोली – “तू भी न सुलोचना.... बता नहीं सकती कि ये सब आयी हैं!! अकल से तू पैदल ही रहेगी हमेशा!” और सबको लेकर आभा अपने कमरे में चली गयी। सुलोचना भी अपने कमरे में आकर कपड़े सिलने में व्यस्त हो गई।
“अरी आभा, विनयधर के ब्याह के काफी दिन हो गए! तेरी बहू घर में नन्हे-मुन्हे के आने की खुशखबरी कब दे रही है? देख मेरे बेटे की पिछले साल ही शादी हुई थी और एक साल के भीतर ही बहू ने पोते से मेरा गोद हरा-भरा दिया। इसे कहते हैं घर की असली लक्ष्मी – जो घर का वंश बढ़ाये!” – सास आभा के कमरे से उसकी सहेली की आवाज आयी और चाहते हुए भी सुलोचना उसे अनसुना न कर सकी।
“क्या कहूं सहेली, मेरे घर में बहू नहीं किसी मनहूस ने क़दम रखा है! जबसे आयी है सबकुछ बुरा बुरा ही हो रहा है। पता नहीं, पोते का मुंह देखना भी मेरे नसीब में लिखा है या नहीं! एक बार तो सुलोचना पेट से थी पर पांच महीने से ज्यादा गर्भ ठहरा ही नहीं! विनयधर ने कितना दवाई- दारू भी कराया, पर कोई फायदा नहीं हुआ! अब मेरा तो एक ही बेटा है, पता नहीं वंश चलाने वाला आएगा भी या नहीं!”- सास आभा ने कहा जिसे सुनकर अपने कमरे में बैठी सुलोचना का कलेजा छलनी हो रहा था।
“मुझे तो लगता है तेरी बहू में बच्चा जनने के गुण ही नहीं! जीवनभर वो निर्वंश ही रहेगी!” – आभा की सहेली ने अपनी भौवें चढ़ाकर कहा।
“अरी, तो क्या ये खानदान निर्वंश रहेगा!! तू विनयधर का दूसरा ब्याह क्यूं नहीं कर देती?”- कमरे में मौजुद दूसरी सहेली ने आभा के कान भरे।
“पर क्या विनयधर मानेगा मेरी बात? मेरा बस चले तो इस मनहूस के कान पकड़कर मैं अभी घर से बाहर निकाल दूं! पर ये बहुत चालू औरत है। अपने पति पर जैसे कोई जादू करके रखा है! इसके खिलाफ विनय मेरी एक भी बात नहीं सुनता!”- सुलोचना की सास आभा ने कहा और उसके चेहरे पर मायूसी के भाव उभरे।
विनयधर की दूसरी शादी की बात सुनकर सुलोचना का दिल बैठ गया। कपड़े सिलने छोड़कर वह फूट-फूटकर रोने लगी। हालांकि उसे पता था कि उसका पति उससे अथाह प्रेम करता है। पर अपने पति के दूसरे ब्याह की बात वह भला कैसे बर्दाश्त कर सकती थी। कमरे में ही लेटी वह काफी देर तक सुबकती रही और न जाने कब उसकी आंखें लग गई। उसे खबर भी न थी कि कई बार अपने कमरे से उसकी सास आभा ने उसे आवाज लगाया था।
शाम में जब विनयधर घर लौटा तो कमरे में सुलोचना को सोया पाया। सुलोचना के आंसू उसके चेहरे पर सूख कर पपड़ियां बन चुकी थी। थोड़ा ताज्जूब भी हुआ क्युंकि इस समय वह कभी भी उसे सोया हुआ नहीं पाता था। उसे सोया हुआ छोड़ वह अपने कपड़े बदलने लगा। हालांकि अपने पति की आहट पाकर सुलोचना की नींद खुल गई।
“आप कब आएं? मुझे उठाया क्यूं नहीं!! मैं खाने को कुछ लेकर आती हूँ! आप हाथ-मुंह धो लें!”- बिस्तर से उठते हुए सुलोचना ने कहा।…