BEMEL - 24 in Hindi Fiction Stories by Shwet Kumar Sinha books and stories PDF | बेमेल - 24

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बेमेल - 24

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श्यामा ने जौहरी की दुकान पर अपने गहने रख छोड़े थे और उसे गिरवी रखने के एवज में पैसे लेने आयी थी।
“काका, कल जो जेवर आपके पास गिरवी रखने के लिए दिए थे। जो मुनासिब लगे उसके पैसे दो ताकि वे गांववालों के काम आ सके!” – मंगल जौहरी के दूकान पर खड़ी श्यामा ने कहा। पर मंगल ने तो मन ही मन कुछ अलग ही खिचड़ी पका रखी थी जिससे भोलीभाली श्यामा बिल्कुल अंजान थी।
“जेवर!! कौन-से जेवर??” – मंगल ने आंखें दिखाकर पुछा तो श्यामा के जैसे होश ही उड़ गए।
“काका, वही जेवर जो मैने कल आपको दिए थे! आपने ही तो कहा था मुझे आज आने के लिए!”
“पर तूने तो कहा था कि वो जेवर तेरे हैं! लेकिन मुझे पता चला है कि वो तो चोरी के जेवरात हैं जो तूने चुराए हैं कहीं से!” – आंखें दिखाकर मंगल बोला।
“न न नहीं काका! वो मेरे जेवर हैं! मुझे शादी के समय मिले थे!” – श्यामा ने कहा और उसने अपने पैर पीछे खींच लिए।
“झूठ बोल रही है ये निर्लज्ज औरत!! ये जेवर हवेली से चोरी हुए थे जो अब जाकर मिले हैं! कोई शादी-वादी में नहीं मिला था इसे! हम भी तो वहीं थे, हमने नहीं देखा था क्या!!” – भीतर कमरे से निकलते हुए श्यामा के छोटे ननदोई ने गरजते हुए कहा और वितृष्णा भाव से उसके सात माह के गर्भ पर निगाह फेरा।
“नहीं जमाई बाबू, मैं सच कह रही हूँ! ये मेरे ही गहने हैं। मां जी ने मुझे ये पहनने के लिए दिए थे! तबसे मैने अपने पास सम्भाल कर रखे हैं। अब गांववालों के सामने मुसीबत आन पड़ी है तो ये गहने उनके काम आएंगे।” – श्यामा ने कहा।
“कौन-से गहने?? दूर रख अपनी गंदी नज़र इन पाक गहनों से! खुद तो अपना धर्म भ्रष्ट कर लिया और अब घर के गहने-जेवर पर बुरी नज़र डाल रखी है! जेवर का इतना ही शौक चढ़ा है तो जा और जाकर अपने यार से गहने मांग जिसका पाप अपने पेट में लिए घूम रही है!! छी...छी...छी! मुझे तो सोचकर भी शर्म आती है कि तू हमसब के खानदान से है! न जाने कौन से मनहूस समय में पिताजी ने तेरा ब्याह मनोहर भईया से किया था! अपने पति तक को तो खा गई अभागिन!! चल, जा भाग यहाँ से और आइंदा दिखना भी नहीं इधर!!” – छोटे ननदोई ने उंची आवाज में कहा। पर श्यामा अब कमजोर नहीं थी। उसके बुरे दिन ने उसे चट्टान-सा मजबूत बना दिया था। ननदोई की बातों का उसपर कोई असर न पड़ा और वह वहीं खड़ी उसे घूरती रही।
“घूरती क्या है!! खा जाएगी?? चल निकल यहाँ से, छिनार कहाँ की!! मंगल, निकाल-बाहर करो इसे यहाँ से!”- छोटे ननदोई ने मंगल से कहा तो श्यामा को दुकान से धक्का देकर बाहर निकालने के लिए मंगल ने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया। पर उसके क़दम ठिठककर पीछे हट गए।
“खबरदार, जो अपने नापाक हाथों से मेरे दामन को छुआ तो हाथ तोड़कर रख दुंगी!! और जमाई बाबू तुम?? आजतक मैं चुप रही तो मुझे गुंगी समझने की भूल न करना! आज गांववाले भुखे मरने की क़गार पर पहुंच चुके हैं। उन्हे इस मुसीबत से निकालने के लिए सबसे पहले मैने मदद के लिए हाथ हवेली की तरफ फैलाया था! पर बदले में क्या दिया तुमलोगों ने?? धक्के मारकर मुझे घर से बाहर निकाल दिया! वाह.... क्या जमाना है!! अपने ही ससुराल में मुझे भीख मांगनी पड़ रही है! ये तुम जिसके पैसों पर आज मौज उड़ा रहे हो! पता भी है उसका असली हक़दार कौन है??” – गुस्से से चीखते हुए श्यामा ने कहा।
“किसके हैं...?? जरा मैं भी तो सुनूं!!” - छोटे ननदोई ने श्यामा से पुछा। उसके दिमाग में चल रहा था कि श्यामा हवेली की सम्पत्ति पर अपना हक़ जताएगी। पर यहीं वह भूल कर बैठा। श्यामा की आवाज सुनकर गांववाले इकट्ठा होने लगे थे। वैसे भी जबसे हवेलीवालों ने गांववालों की मदद करने से इंकार कर दिया था तभी से वे सभी हवेली में रहनेवालों से खफा थे।
“हवेली की एक-एक सम्पत्ति पर गांववालों का नाम लिखा है। उसकी हरेक ईंट गांववालों के खून-पसीने का नतीजा है। गांववालों ने लगान भरा तब जाकर हवेली बनकर खड़ी हुई। गांववाले दिनरात खेत में अपना खून-पसीना बहाते हैं तब जाकर तुम हवेलीवालों को पेट पलता है। पिताजी ने भी यही सोचकर पूरी सम्पत्ति तुमलोगों के जिम्मे लगाया था ताकि उनके बच्चों समान गांववालों की तुमसब रक्षा कर सको। पर तुमने क्या किया?? मनोहर का बहाना बनाकर सारी सम्पत्ति पर कब्जा जमाकर तो बैठ गए, पर गांववालों को ही भूल गए!” - वहां जमा हो चुके भीड़ के आगे श्यामा ने चीख-चीखकर कहा तो छोटे ननदोई को अब हवा अपने खिलाफ होती दिखी।
“सही कह रही है श्यामा काकी! इन हवेलीवालों के कारण आज हमलोग भूखे मरने के क़गार पर आ खड़े हुए हैं!”- भीड़ से निकलकर एक ग्रामीण ने कहा।
“...और आज जब मैं गांववालों की मदद के लिए अपना खुद का जेवर गिरवी रखने आयी तो मंगल काका ने मुझपर चोरी का इल्जाम लगा डाला! अरे जमाई बाबू.... पहले मुझसे पुछ तो लेते कि ये जेवर मैं किसके लिए गिरवी रखने आयी थी? इन लाचार और बेबस गांववालों के लिए! अपने लिए नहीं!! पर तुमने उसपर भी अपना हक़ जता लिया! थोड़ा तो भगवान से खौफ खाओ!” – श्यामा ने कहा और अपना पेट पकड़कर बैठ गई।
“श्यामा काकी, आप ठीक तो हो न! सब ठीक हो जाएगा! आप खुद को शांत रखो!” – एक ग्रामीण महिला ने कहा। गांववालों का गुस्सा अब छोटे ननदोई और मंगल जौहरी पर फूटने ही वाला था कि मंगल ने पलटी मारी और अपने गल्ले से रुपए निकालकर श्यामा के आगे बढ़ा दिया।
“ये ले श्यामा, तेरे पैसे! मैं भी कहाँ हवेलीवालों के बहकावे में आ गया था! मुझे भरोसा है तुझपर! मुझे पता है कि ये जेवर तेरे ही हैं और जमाई बाबू झूठ बोल रहे हैं! ये बात अब मैं भलिभांति समझ चुका हूँ और अब किसी के झांसे में नहीं आने वाला।” - कहकर मंगल ने रुपए का बंडल श्यामा के फैले आंचल में रख दिया।
अपना सा मुंह लेकर छोटा ननदोई हवेली की तरफ लौट गया। हालांकि आज वह शांत लौटा था पर इस बेज्जती का बदला वह जरुर लेने वाला था। ...