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फाटक पर किसी की दस्तक सुन हवेली के भीतर मौजुद कुत्ते जोर-जोर से भौंकने लगे थे।
“कौन हो तुम? कहो, क्या काम है? किससे मिलना है?”- हवेली के बाहर खड़े दो मुस्टंडों ने श्यामा को भीतर जाने से रोकते हुए उससे पुछा फिर उसके निकले हुए पेट पर निगाह डाली।
“भीतर जाकर कहो कि श्यामा आयी है! और ये क्या तुम मेरा रास्ता रोककर खड़े हो! ये मेरा ससुराल है! हटो, मुझे भीतर जाने दो!”- श्यामा ने मुस्टंडों से कहा और भीतर जाने का असफल प्रयास करने लगी।
“नहीं, मालिक का हुक़्म है कि बिना उनकी अनुमति के भीतर किसी को प्रवेश न करने दिया जाय! तुम यहीं रुको, मैं खबर भिजवाता हूँ!”- एक द्वारपाल ने कहा और श्यामा के आने की खबर लेकर भीतर आया।
भीतर से कुत्तों के भौंकने की आवाज आनी बंद हो चुकी थी। पर श्यामा ने सुना कि छोटा ननदोई चिल्लाकर कह रहा था कि “इतने दिनों से उस कुल्टा को ये ससुराल याद नहीं आया तो अब यहाँ क्या करने आयी है?? लात मारकर निकाल-बाहर करो उसे! ऐसे बेशरम और बद्चलन लोगों से हमें कोई वास्ता नहीं रखना जो रिश्तों की कद्र नहीं जानते!”
उनकी बातें सुन श्यामा से रहा नहीं गया और वह हटधर्मिता पर उतर गई। बाहर खड़े मुस्टंडे से वह भीतर जाने देने की ज़िद्द करने लगी जिसमें अंततः उसे सफलता मिल ही गई। गर्भवती होने के कारण मुस्टडे द्वारपाल ज्यादा देर तक उसका विरोध नहीं कर पाए फिर श्यामा खुद को उस घर की बहू भी तो बता रही थी।
“जमाई बाबू, मैं कुछ लेने नहीं आयी हूँ जो आप इतना डर रहे हो मुझसे!” – फाटक के भीतर प्रवेश कर श्यामा ने आंगन में प्रवेश करते हुए कहा।
“लगता है मैं गोयठा में घी सुखा रहा हूँ! द्वार पर दो-दो मुस्टंडे पाल रखे हैं फिर भी यह निर्लज्ज औरत भीतर कैसे प्रवेश कर गई! कहाँ मर गए सब के सब??” – छोटे ननदोई ने तमतमाते हुए कहा।
“जमाई बाबू, किसी औरत को गाली देने से पहले एकबार जरा खुद के गिरेबान में झांककर देख लेना! अपनी गलती किसी को नज़र नहीं आती! जो खुद परायी स्त्री पर नज़र रखता है वो आज चला है अच्छाई की पाठ पढ़ाने!” – श्यामा ने छोटे ननदोई से कहा जिसने कभी खुद ही श्यामा को अपनी भोग-विलास का माध्यम बनाना चाहा था और श्यामा की दृढ़ता के आगे उसकी एक न चली थी।
“ये औरत यहाँ क्या करने आयी है?? पाप की गठरी अपने पेट में लादकर हवेली के भीतर कदम रखते तुझे शरम नहीं श्यामा! पूरे कूल की मान-प्रतिष्ठा तूने मिट्टी मे मिला दी! मां-बाबूजी की आत्मा को कितनी तकलीफ पहुंची होगी जब तूने ऐसा पाप किया होगा! छी...!!!”- बड़ी ननद नंदा ने वितृष्णा भाव से कहा। बाहर हो रहे शोरगुल सुनकर वह भी कमरे से बाहर निकल आयी थी
“मां बाबूजी के आत्मा के दुखी होने की अगर तुम सबको इतनी ही चिंता होती तो गांववालों को यूं भूखे नहीं मरने देते! आज पूरा गांव हैजे से त्राहिमाम कर रहा है! लोगों के पास अनाज का एक दाना भी नहीं बचा और तुम सबने मिलकर पूरा अनाज, जिसपर गांववालो का पहला हक़ है, उसे अपने गोदाम में छिपा डाला! अरे जरा तो शरम करो! मैं हाथ जोड़कर तुमसे विनती करने आयी हूँ भगवान के खातिर अनाज के गोदाम के द्वार गांववालों के लिए खोल दो! वे सभी तुम्हे और मां-बाबा को अशिर्वाद देंगे! इसके लिए तुमसब मुझसे जो भी कहोगे मैं करने को तैयार हूँ!” – श्यामा ने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए कहा।
उसकी बातें सुन वहीं पास खड़ी छोटी ननद अमृता ने चेहरे पर कुटील मुस्कान बिखेरते हुए कहा – “तुमने कहा, इन सबके बदले तुम्हे जो भी कहा जाएगा, वो करोगी! है न? कहीं मेरी कानो ने गलत तो नहीं सुना?” इसपर श्यामा ने हामी में अपना सिर हिलाया।
“हाँ दीदी! गांववालों के प्राणों की रक्षा के लिए मुझसे जो भी बन पड़ेगा मैं करने को तैयार हूँ! तुम चाहो तो आजीवन बिना एक पाई लिए मैं तुम सबकी सेवा करने को भी तैयार हूँ!” - हाथ जोड़कर श्यामा ने कहा।
“अरी रहने दे!! हमारी सेवा करेगी और हमारे ही पतियों पर लांछन लगाएगी! कोई सेवा-वेवा नहीं करवानी तुझसे! करना ही है तो तू बस इतना कर कि तेरे पेट में जो बच्चा पल रहा है उसे गिरा दे! वैसे भी ये समाज पर एक बहुत बड़ा धब्बा है। तू इसे जन्म ना दे, इसी में तेरी और पूरे गांव की भलाई है!” – भौवें चढ़ाकर छोटी ननद अमृता ने कहा जिसके चेहरे पर विजयी मुस्कान फैली थी।
“खबरदार जो अपनी गंदी निगाह मेरे कोख पर भी फेरी तो...!!” – श्यामा ने गरजते हुए कहा। ननद अमृता की बातें सुन पहले तो उसने अपना आपा खो दिया फिर खुद को नियंत्रण में किया।
“वाह रे वाह!! देखो तो जरा महारानी को! बड़ी आयी कोख वाली! जैसे हमसब ठहरीं बंजर!”- ननद सुगंधा ने कहा और गरजते हुए आगे बोली- “मुंह नोच लुंगी जो अनाप-शनाप बकी तो!! हम भी कोख वाली हैं पर तेरे जैसे पेट में पाप लेकर नहीं घुमती!! समझी तू!!! हरिया...धक्के मारकर निकाल बाहर करो इस औरत को! नहीं तो आज तुम सबकी खैर नहीं!! और याद रहे... आगे से ये इस हवेली के आसपास भी नहीं फटकनी चाहिए !!”...