Nakshatra of Kailash - 24 in Hindi Travel stories by Madhavi Marathe books and stories PDF | नक्षत्र कैलाश के - 24

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नक्षत्र कैलाश के - 24

                                                                                               24

बरखा मैदान के भोवताल पर्वत श्रेणीयाँ हैं उसे कैलाश रेंज कहते हैं | इसमें कैलाश पर्बत सबसे ऊँचा हैं | मानो शिव अपनी नजर से दूर तक, हम यात्रियों पर प्यार का छिड़कावा कर रहे हो | मन में ,आँखों में वह रूप समेटते हुए अचानक कैलाश नजरों से ओझल हो गया | मौन शांति सर्वत्र फ़ैल गई | अपना आधार पीछे रह गया ऐसी भावना मन में समां गई | अनाथ की भावना में मन गदगद हो उठा | लेकिन कुछ देर बाद शिवकृपा की अगणित, अवर्णनीय क्षणोंकी प्राप्ति की याद आ गई | कृपादृष्टी से उन्होंने वह भावनाओंको लुप्त कर दिया | यह जीवनभरका रेशम जैसा अध्यात्मिक धागा जन्म जन्म तक साथ रहने वाला था | यह बात ध्यान में आते ही आनन्द से देह वृक्ष डोलने लगा | आँखों में आए आनन्द के आँसु गालों पर निखर कर हँसने लगे | कारण के अभाव में जो हँसी आ ज़ाए उसे निर्मल आनन्द कहते हैं | ऐसी अनुभूती में कितने पल गए पता नहीं | गाडी अभी भी उछलते हुए ही ज़ा रही थी | अलग अलग रंगों के पर्बतों से गुजरते हुए कभी कभी गाडी नौका भी बन ज़ाती | सब अद्भुत | गाडी चलानेवाला भी अद्भुत | ऐसी रंगभरी दुनियासे गुजरते हम होरे पहुँच गए | हमसे पहले जो बैच मानस परिक्रमा के लिए गई थी उन्होंने पैदल परिक्रमा की थी, लेकिन हमारे ही बैच के समय चीन सरकारने गाडी से ही परिक्रमा अनिवार्य की | इस कारण यह इच्छा अधुरी रह गई | होरे से लेकर चुगू  यह ४२ कि.मी. का सफ़र हैं | होरे १४९० फीट की ऊंचाई पर हैं | चुगू १५००० फीट पर हैं | झैदी से होरे की दुरी २९ कि.मी. हैं | यहाँ तीन दिन की परिक्रमा के बाद एक दिन मानससरोवर के किनारे पर रुकते हैं |

होरे छोड़ते हुए लगभग २-३ घंटे बाद मानस का किनारा नज़र आने लगा | तब तक पुरा इलाका पथरीला ,रेतीला झाडी पौधों से भरा हुआ था | सफ़ेद चुहों का वहाँ साम्राज्य बसा हुआ था | एक चूहा खरगोश जितना बड़ा । रास्ते में प्रवाह लगे | चारो दिशाएँ बर्फ का साज पहने सजी हुई थी | मानससरोवर १४०६० फीट की ऊंचाई पर हैं | यहाँ हंस पक्षी विहार करते थे ऐसे वर्णन पुराणों में किए गए हैं |  सरोवर की पूर्व पश्चिम लम्बाई २४ कि.मी. हैं तो दक्षिण उत्तर लम्बाई १८ कि.मी. हैं | क्षेत्रफल ५१८ कि.मी. हैं | समुद्रतल से मानससरोवर २०००० फीट की ऊंचाई पर हैं | सरोवर की उत्तर दिशा की और कैलाश, दक्षिण में मान्धाता, पश्चिम में राक्षसताल और पूरब की और कुछ पहाड़ियाँ नजर आती हैं | ठण्ड के मौसम में मानस का पानी बर्फ बन जाता हैं | और मई महिने में बर्फ पिघलता हैं | मानस के पहले १५ दिन, राक्षसताल का पानी बर्फ बन जाता हैं और पिघलता हैं | पानी जब जमने लगता हैं तब वह पारदर्शी नहीं होता लेकिन पूरा पानी बर्फ में परावर्तित हो जाता हैं तब सरोवर के नीचे की रंगीन हसींन दुनिया आप साफ़ आईने की तरह देख सकते हैं | किनारे पर उसकीं मोटाई २ से ६ फीट की रहती हैं।

स्वामी प्रणवानंदजी ने मानससरोवर के ऊपर बहुत अनुसन्धान किया हैं | तीव्र ठण्ड के मौसम में जब तापमान ४० से ५० डिग्री सेल्सियस नीचे होता हैं, तब नदी का पानी बर्फ बन जाता हैं | ऐसी ठण्ड में रहते हुए उन्होंने भौगोलिक , वैज्ञानिक दृष्टी से अनुसंधान किया | कैलाश के भौगोलिक सीमा में चार नदियों का उगमस्थान हैं ब्रम्हपुत्रा, सिंधू, सतलज, कनौली इनका उगमस्त्रोत उन्होंने ढुँढ निकाला | अलग अलग ॠतुओंमें छोटे से छोटे रस्ते पर से गुजरते हुए पूरा हिमालय और तिबेट का इलाका उन्होंने छान मारा था | हिमनगों से लिपटी हुई खंडो – सागलाम पुरबी के ओर की खिंडी इस महान यात्री ने अकेले पार कर दी | तीन खिंडी लाँघने के बाद उन्हे पठार पर १४ पौंड़ का जीवाश्म मिला | भारतीय जिऑलॉजिकल सर्वे ने उस जीव की उम्र १९ कोटि बरस और काल मेसोसोइफ़ युग बताया | उन्हे १९४० साल में मध्य तिबेट में आस्थि जीवाश्म मिल गए | उस इलाके में गर्म पानी के झरने ढुँढ निकाले | मानस वस्तु म्यूझियम में उन्होंने खोज निकाली हुई अनेक चीजवस्तुएँ, तिबेटी साहित्य, प्राचीन ग्रन्थ रखे हुए हैं | उनके अनुभव लिखित स्वरुप में रखे हुए हैं | एक दिन भोर की बेला में ढाई से तीन बजे प्रणवानंदजी को असंख्य ज्योति आकाशमार्ग से उतरते हुए दिखाई देने लगी | फिर एक एक करती हुई मानससरोवर में लुप्त हो गई | थोड़ी देर बाद मानस से निकलते हुए कैलाश पर्बत की ओर उन्होंने प्रस्थान किया | एक दिन उन्होंने ऐसा भी अनुभव किया की, मानस के किनारे अलौकिक वाद्यध्वनियाँ गुँज रही हैं और किसी के नृत्य का आभास हो रहा हैं | मानस के इलाके में बहुत सारे गिरिकन्दर (गुंफा) हैं | वहाँ अनेक ऋषिमुनी आज भी तपश्चर्या में लीन  हैं | मानससरोवर के गहराई में गर्म पानी के झरने बहते हैं, इस कारण २० से ४० फीट के हिमनग दूर तक फ़ैल ज़ाते हैं| मानस के किनारे समुन्दर जैसी लहरे उछालती हैं लेकिन मध्य शांत, नीरव महसूस होता हैं |

गाडी से हमारी मानस परिक्रमा शुरू थी | जल्दी ही हम घुगू कैंप पहुँच गए | यह भूभाग मानस के दक्षिण दिशा में समुद्रतल से १६००० फीट की ऊंचाई पर स्थित हैं | घुगू कैंप में मानस किनारे रहने के लिए कमरे थे | काँच की बड़ी बड़ी खिड़कियों से मानस का नज़ारा साफ़ दिख रहा था | पाँच यात्री औरतों के लिए एक कमरा, ऐसी व्यवस्था की गयी थी | गाडी के सफ़र से पूरा बदन अकड़ गया था | चारपाई दिखते ही शरीर ने उसपर लेटना पसंद किया और १० मिनट आराम के बाद हड्डियाँ शाबूत हैं का इशारा मिल गया | फिर चायपानी करते हुए मानस किनारे घुमने निकल गयी | पैरोतले पूरा रेत फैला हुआ था , पाँव उसमे फँस रहे थे| मानस का पानी क्षण क्षण अलग रंगों में परावर्तित हो रहा था | उसपर रंगों का अनोखा नृत्य और चमचमाता साज देखते देखते मन बेहोश हो गया | लेकिन शरीर ठण्ड के मारे काँपते हुए वास्तविकता में खिंच रहा था | फिर कैँप के तरफ पैर उठाते चलने लगी | मानस की ठण्ड बाध्य हो ज़ाती हैं ऐसे किसीने कहाँ था | कमरे में तो आ गई लेकिन खिड़की से मानस को ही निहारती रही | उसे देखते देखते कब आँख लग गई पताही नहीं चला। सुबह तीन बजे ही आँख खूल गई | मानस की तरफ देखते देखते मन में आ गया यह शांत अमृत बेला , पुरे वातावरण में गूंजता नीर ध्वनी, श्यामवर्णी, नीला पानी और कौनसे अलग रूप में प्रभु दर्शन दे ? ईश्वर तो हमेशा अपने आसपास रहते हैं | सिर्फ अनुभव करना हैं तुम्हे | उसके नीले रंग में मैं समां गई थी | अपने अपने भाव के अनुसार सब प्रभुदर्शन पाते हैं | वह स्तर कौनसा भी हैं | पुजक पुज़ा पाठ में लीन होगा | भक्त मंत्र, गान के भक्ति रस में मग्न हो ज़ाएगा | योगी अपने निराकार में विलीन हो ज़ाएगा | व्दैती अपने दैवत में और अव्दैती सब में ईश्वर को पाएगा | शुरुवात कही भी हो वहाँ भी ईश्वर ही रहेंगे और एक अंत कही भी हो वहाँ भी ईश्वर रहेंगे। साधना क्षमता के अनुसार सिर्फ, काल का फर्क हो जाता हैं | आरंभी, क्षण काल की ईश्वर अनुभूति पाता हैं, तो योगी दीर्घकाल की | धीरे धीरे उजियारा फ़ैलने लगा | पानी के ऊपर रंग परावर्तित होने लगे | सूरज उगने के बाद तो अपने सहस्त्ररश्मी बाहु से रत्न मोतियों का छिड़कावा हो ज़ाए ऐसा पूरा वातावरण प्रकाशमान हो गया | क्या नज़ारा था वह | स्वर्गीय सौंदर्य की परिसीमा थी | यहाँ शब्द मौन हो ज़ाते हैं | अब कमरे में बैठने के लिए मन राजी नहीं था | चमचमाते आलोक में हमें भी निखारना था | मानस के पवित्र जल को छुने के लिए तन मन व्याकुल हो गया | ठंडे पानी में पैर रखते ही एक लहर तन से दौड़ते हुई गई | रोंगटे खड़े हो गए | दृढनिश्चय के साथ दूसरा पैर भी पानी के अन्दर रख दिया और आनन्दकी फूलझड़ीयाँ  पुरे तन मन में से फूटने लगी | नमी से पानी ने, हमें अपने आगोश में ले लिया | हज़ारो हिरे जवारातों को पानी में बिखर दिया हो ऐसा चारो तरफ नज़ारा था | थोड़ी देर किनारे पर बैठी रही | सुरज अब ऊपर चढ़ने के कारण हिरे जवारातों का नज़ारा ख़त्म हो गया | लेकिन लहरों पर रंग बिखेरतेही ज़ा रहे थे | निकलने के लिए मन तो राजी ही नहीं था पर आगे भी तो बढ़ना था | कैँम्प में वापिस आने के बाद ,वहाँ से सफ़र आगे चालु हो गया |

(क्रमशः)