एकांक्षी लैंप लाइट में बुक पढ़ रही थी....उसकी बालों की लटे उसके आधे चेहरे को कवर कर रहे थे जिसे देखकर अधिराज मुस्कुराते हुए कहता है...." हमेशा हमारी राजकुमारी खुबसूरत ही लगती है बस तुम जल्दी से सो जाओ ताकि हम तुम्हारे इस रूप को अपने रूप में देख सके
अब आगे................
एकांक्षी बुक को पढ़ते हुए नींद आने की वजह से बार बार आंखें बंद कर लेती ...
धीरे धीरे वो पूरी तरह नींद के आगोश में खो जाती है जिसका अधिराज बहुत देर से इंतज़ार कर रहा था । उसके सोते ही अधिराज अपने रूप में आता है सबसे पहले उसके हाथ में लगी बुक को लेकर साइड में रखता है फिर धीरे से उसे दूसरे पिलो के सहारे लिटा देता है.... जैसे ही ब्लैंकेट उड़ा के उससे दूर हटता है, एकांक्षी उसके हाथ को पकड़ लेती है.... उसके हाथ पकड़ने से अधिराज के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और वही पास में बैठ जाता है......
उसके चेहरे को गौर से देखने लगता है जोकि की हल्की रोशनी की वजह से दमक रहा था...... अधिराज के लिए ये पल किसी हसीन सपने से कम नहीं था , उसे अब भी अपने इतनी आसानी से एकांक्षी के पास पहुंचने पर यकीन नहीं हो रहा था लेकिन अपने आप समझाते हुए कहता है....." ये स्वप्न नहीं है अधिराज ये वास्तविक है इससे मानना पड़ेगा...." अधिराज अभी सोच ही रहा था कि तभी एकांक्षी नींद में बड़बड़ाने लगती है जिससे अधिराज बड़े ध्यान से सुनने लगता है.....
एकांक्षी नींद में बड़बड़ाती हुई कहती हैं....." बस करो ये संगीत..... तुम्हारे इस तरह संगीत बजाने से हम तुम्हें माफ़ नहीं करेंगे....."
एकांक्षी की बात सुनकर अधिराज समझ जाता है ये किस घटना के बारे में बात कर रही है...उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर चूमते हुए कहता है....." तुम्हें ये सब भूलना होगा वैदेही अब तुम एकांक्षी बनकर आई हो बस ये संगीत ही तुम्हें स्मरण है तो हमारे लिए अच्छी बात है, तुम्हें सबकुछ स्मरण नहीं है..."
अधिराज बीते उस पर को याद करने लगता है.......
फ्लैशबेक......
" वैदेही हमारी बात सुनो ...." अधिराज भागते हुए कहता है
" हम आपकी कोई बात नहीं सुनेंगी हमें औषधि लेने जाना है इसलिए हमारा मार्ग अवरोध मत कीजिए...."गुस्से में वैदेही कहती हैं
अधिराज वैदेही को समझाते हुए कहता है....." हमें पता है तुम हमसे रूष्ट हो किंतु हम सत्य कह रहे हैं , हम राजकार्य में व्यस्त हो गए थे...."
वैदेही उसी तरह गुस्से में कहती हैं....." तो जाइए न क्यूं हमारा पीछा कर रहे हैं । आपको विलंब हो जाएगा...."
अधिराज वैदेही को अपनी तरफ खींचता है और उसके चेहरे पर आ रही लटो को कानों के पीछे करता हुआ धीरे से उसके कानों में कहता है....." हम आपसे प्रेम करते हैं और आप है की इतना रूष्ट होकर रहती है हमसे....हम आपको हर बार ऐसे ही जाने देते हैं बिना बोसा(किस) लिए किंतु अब ऐसा नहीं होगा....."
वैदेही अधिराज की बातों से काफी लज्जा जाती है उससे दूर जाती हुई कहती हैं...." आपको हम ये मौका नहीं देंगे...." और वहां से जाने लगती है
अधिराज चुपचाप वहीं बैठ जाता है और अपनी सारंगी को बजाने लगता है.... जिसे सुनकर वैदेही वही रूक जाती है और पीछे मुड़कर कहती हैं....." बस करो ये संगीत, आपके इस संगीत से हम आपको क्षमा नहीं करेंगे...."
लेकिन अधिराज अपनी सारंगी की धुन बंद नहीं करता जिसकी वजह से बेबस होकर वैदेही को उसके पास आना पड़ा.......
" क्यूं करते हो आप ऐसा..... आपको पता है ये संगीत हमारी कमजोरी है इसलिए आप हमें इस तरह तड़पाते हो...."
अधिराज सारंगी बजाना बंद कर देता है और तुरंत वैदेही को अपने सीने से लगाकर उसके माथे पर किस करते हुए कहता है....." हम तुम्हें नहीं तड़पाना चाहते वैदेही...बस हम आपको खुश देखना चाहते हैं फिर चाहे हम रहे न..." वैदेही तुरंत उसके होंठों पर अपनी उंगली रखते हुए कहती हैं....." आप ऐसा क्यूं कह रहे हैं... आपसे पहले हम चले जाएंगे फिर देखना..." इतना कहकर वैदेही वहां से चली जाती हैं
वैदेही को इस तरह कहते देख अधिराज का अचानक से ध्यान टूटता है......
फ्लैशबैक आॅफ ......
अधिराज अपने ख्यालों से बाहर आकर काफी बैचेन हो जाता है लेकिन उसकी नज़र सोई हुई एकांक्षी पर पड़ती है जिसे देखकर अधिराज की आंखों में नमी आ जाती है और उसके माथे को चूमते हुए कहता है....." ऐसा क्यूं कहा था तुमने वैदेही...?... ताकि फिर से हम इस तरह अनजान बन जाए ... नहीं अब नहीं जाने देंगे तुम्हें अपने से दूर...."
अधिराज एक बार फिर से एकांक्षी के माथे पर किस करता है फिर धीरे से गाल पर किस करने के बाद अपने आपको को न रोक पाने के कारण उसके गुलाबी होठों के पास पहुंच जाता है और उन्हें हल्के से चूमने के बाद हट जाता है....
अचानक हुई हरकत से एकांक्षी हड़बड़ा जाती है और तुरंत नींद से जाग जाती है.... उसके हिलने से पहले ही अधिराज पक्षी रुप में आ चुका था और वही पास ही विंडो पर बैठ जाता है.... एकांक्षी की बैचेन निगाहें किसी को ढूंढ रही थी और हल्की नींद में कहती हुई उठती है....." कौन है...?...कौन है यहां....?..."
पूरे कमरे में उसकी आवाज के अलावा कोई शोर नहीं था इसलिए एक पल एकांक्षी को लगा शायद उसने कोई सपना देखा होगा इसलिए ऐसा लगा लेकिन दूसरे ही पल अपने होंठों को छुती हुई कहती हैं......" मेरा सपना था या ये सब सच था आखिर किसकी इतनी हिम्मत होगी जो मेरे करीब आने की कोशिश कर सके और वो भी मेरे रूम में.... एकांक्षी तेरा सपना होगा.... लेकिन ऐसा कुछ तो मैंने देखा नहीं..."
एकांक्षी इधर उधर देखते हुए वापस आकर लेट जाती है और अपने आप से कहती हैं....." ये सब पता नहीं क्या था...?.. लेकिन कुछ तो अजीब था ,, ऐसा क्यूं लग रहा है जैसे कोई मेरे पास था.....ओह गॉड ! मैं भी पता नहीं क्या सोचने लगी...."
अधिराज उसकी परेशानी को देखकर हंसते हुए कहता है...." एकांक्षी ये सपना नहीं है, , , ये सब सच्चाई है जिसे हम रोक नहीं पाए और आपके करीब आ ही गये.... अब तो हर रोज ऐसे ही सपने देखने की आदत डालनी पड़ेगी.... क्योंकि अब हम और आपको पाने की प्रतीक्षा नहीं कर सकते...."
.....….................to be continued..............