Tadap Ishq ki - 4 in Hindi Love Stories by Miss Thinker books and stories PDF | तड़प इश्क की - 4

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तड़प इश्क की - 4

अधिराज इतना सोचते हुए वापस अपने ख्यालों से बाहर आता हुआ बैचेनी से बस एकांक्षी से मिलने के लिए उसके घर की तरफ जाता है.....

अब आगे...............

इधर एकांक्षी घर पहुंचती है उसे देर से आते देख सावित्री जी जल्दी से आकर कहती....." मिकू रुक जा....." इतना कहकर वो रसोई की तरफ चली जाती हैं

राघव एकांक्षी को देखते हुए कहता है...." तू देर से क्यूं आई तुझे पता है न मां अब क्या करेगी...."

एकांक्षी इरिटेट होकर कहती हैं....." क्या भाई मां को कहो न ये सब बेकार की चीजें हैं, मुझे यहां रोककर चली गई....."

राघव साफ साफ कहता है...." देख मिकू इस मामले में मैं नहीं पड़ता.....इसी वजह से तो पापा और मैं जल्दी से घर आ जाते हैं...."

सावित्री जी रसोईघर से हाथ में कुछ मिर्च, नींबू और पानी का गिलास लेकर आती है....

एकांक्षी सावित्री जी से कहती हैं...." मां ये सब बेकार की चीजें हैं...." सावित्री जी उसे चुप करके नींबू मिर्च उसके ऊपर से लेकर नीचे तक गोल गोल घुमाने लगती है,, एकांक्षी उसे गोल गोल देखकर बेमन से खड़ी रहती है और राघव उसे देखकर हंस रहा था....और फिर वहां से कहता हुआ चला जाता है....." मां मैं सोने जा रहा हूं कल आफिस जाना है...." और फिर एक बार एकांक्षी को देखते हुए हंसते हुए चला जाता है.....

अधिराज फुतकी चिड़िया के रूप में वहां पहुंचता ताकि किसी की नजर उसपर ना पड़े... नींबू और मिर्च को सात बार उतारने के बाद सावित्री जी उसे खाना लाने के लिए कहती हैं.... एकांक्षी फ्रेश होकर खाने के लिए डाइनिंग टेबल पर पर पहुंचती है लेकिन पूरे घर में उठ रहे धुएं से खांसते हुए कहती हैं....." मां अब ये क्या हैं....?...."

सावित्री जी कहती हैं......" ये लांग का धुआं है इससे घर में पवित्रता आती है, तुझे पता है हम माता रानी के आगे जो छोटा सा यज्ञ करते हैं, ये बिल्कुल उसके जैसा है...."

एकांक्षी खांसते हुए कहती हैं...." मां बस करो अब अगली बार से जल्दी लौट आऊंगी और कितनी पनिशमेंट दोगी...."

सावित्री जी उसे डांटते हुए कहती हैं....." ये पनिशमेंट थोड़ी है तेरी हर बला से रक्षा करेगा....."

एकांक्षी मासूम सा चेहरा बनाते हुए कहती हैं...." मां मुझे भूख लगी है अगर आप ये सब हो गया हो तो खाना भी दे दो मुझे काॅलेज का एसाइनमेंट भी पूरा करना है...."

सावित्री : ठीक है दे रही हूं......

सावित्री जी खाना लगाने लगती है.....अधिराज जो एक पक्षी के रूप में घर में था अचानक हुए धुएं से मदहोश सा होकर नीचे गिर जाता है..... सावित्री जी की नजर तुरंत उस पर पड़ जाती है इसलिए उसके पास जाती हुई कहती हैं...." ये हैं नकारात्मक ऊर्जा...अब आई बाहर ये धुएं का असर है...." एकांक्षी खाना खाते हुए पीछे देखती है तो सावित्री जी नीचे गिर हुए पक्षी से ये सब कह रही थी , एकांक्षी खाने को अधूरा छोड़कर उनके पास जाती है.... सावित्री जी उसे उठाती उससे पहले ही एकांक्षी उसे हाथों में उठाती हुई कहती हैं..." मां क्या नेगेटिव एनर्जी लगा रखी है देखो कितना प्यारा सा पक्षी है, ये आपको कहां कोई भूत प्रेत लगता है..."

सावित्री जी उससे कहती हैं....." बेटा तू नहीं जानती इन सबके बारे में इस जल्दी से बाहर फेंक दें...."

एकांक्षी थोड़ा सा गुस्सा होते हुए कहती हैं..." मां आप क्यूं इन अंधविश्वासों के चक्कर में लगी रहती हो, देखो आपके धुएं की वजह से ये ऐसा हो गया है...."

सावित्री : बेटा इसलिए तो तुझे समझा रही हूं..."

एकांक्षी इरिटेट होकर कहती हैं....." मां बस मैं इसे ठीक करके उड़ा दूंगी..."

एकांक्षी उसे लेकर अपने रूम में चली जाती हैं और सावित्री जी पीछे से कहती हैं.... " कभी तो मेरी बात मान लिया कर ...ये लड़की किसी मुश्किल में न फंस जाए ... इसकी ऐसी जिद्दे मुझे पागल कर देंगी....."

एकांक्षी अपने कमरे में आकर उस चिड़िया को टेबल पर रखकर गिलास में पानी भरती है और उसे हल्की हल्की छिंटे मारती है... उसके ऐसा कई बार करने से उसके पंख हिलने लगते हैं जिसे देखकर एकांक्षी रिलेक्स फील करती हुई उसे एक छोटी सी चम्मच से पानी पिलाती है....अब अधिराज उस फुतकी चिड़िया के रूप में था होश में आ जाता है....और जोर से उड़ने लगता है..... एकांक्षी उसे उड़ते देख खुश हो जाती है....

" अच्छा है तुम ठीक हो गई... मां की ग़लती की वजह से तुम्हें कितनी परेशानी हुई है..." एकांक्षी अपना हाथ उसके तरफ करती है जिससे अधिराज तुरंत उसके हाथ पर आ जाता है....और उसे गौर से देखते हुए सोचने लगता है...." तुम बिल्कुल नहीं बदली वैदेही बस तुम्हारा नाम और जन्म बदल गया लेकिन अभी भी तुम वैसी ही दयालु स्वभाव की हो जिसे हमने इतना चाहा है.....अब वो गलती हम दोबारा नहीं दोहराएंगे वैदेही.... तुमने इस जन्म में भी हमे इस पक्षी रूप में ही बचाया है और दोबारा अपने पास खींच लिया है....."

उस चिड़िया को ऐसे गौर से देखते हुए देख एकांक्षी उसके सिर पर अंगूठा फेरते हुए कहती हैं...." कितनी प्यारी हो तुम मां भी न पता नहीं कैसे कैसे ख्याल अपने मन में लाती है...." एकांक्षी देखती है उसके बात करने से वो और चहक रही है तो वो उसे और प्यार से देखती हुई कहती हैं...." तुम मुझे जानी पहचानी सी क्यूं लग रही हो... ऐसा लग रहा है जैसे मैंने पहले भी तुम जैसी किसी की हेल्प की थी...."

अधिराज एकांक्षी की बात सुनकर खुश तो था लेकिन वो तुरंत वहां से उड़कर बाहर चला जाता है और अपने आप से कहता...." नहीं हम तुम्हें अभी कुछ स्मरण नहीं करवाना चाहते...."

एकांक्षी सोच में पड़ गई ..."अचानक क्या हुआ इसे खैर मुझे अपना एसाइनमेंट पूरा करना है...."

एकांक्षी अपना काम पूरा करके थोड़ी देर बाद सोने के लिए लाइट्स आॅफ कर देती है.....अधिराज लाइट्स आॅफ होते ही तुरंत उसके कमरे में आ जाता है....

एकांक्षी लैंप लाइट में बुक पढ़ रही थी....उसकी बालों की लटे उसके आधे चेहरे को कवर कर रहे थे जिसे देखकर अधिराज मुस्कुराते हुए कहता है...." हमेशा हमारी राजकुमारी खुबसूरत ही लगती है बस तुम जल्दी से सो जाओ ताकि हम तुम्हारे इस रूप को अपने रूप में देख सके ...."




.......…................to be continued.................