soi takdeer ki malikayen - 10 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | सोई तकदीर की मलिकाएँ - 10

Featured Books
Categories
Share

सोई तकदीर की मलिकाएँ - 10

 

10

 

 

गेजा माया को बुलाने चला गया पर बेबे को चैन नहीं आ रहा । वह बेचैन होकर पूरे घर में घूम रही थी । बार बार दरवाजे तक जाकर गली में देख आती । केसर बेबे को यूँ परेशान होकर उठते बैठते देखती रही । उसे समझ नहीं आया कि अब क्या हो गया
वह तो खुश थी कि हर महीने की समस्या से पीछा छूटा । हर बार चार पाँच दिन परेशानी में गुजरते थे । कमर अलग दर्द करती रहती थी । पर ये बुढिया इतनी बेचैन क्यों हो रही है ।
माया आ गयी । आकर मत्था निवाया ।
क्या हुआ अम्मा , आपने बुलवाया ।
हाँ माया बेटी । समस्या ही ऐसी थी कि तुझे तकलीफ देनी पङी ।
बेबे ने कढा हुआ दूध गिलास भरके माया को पकङाया – ले पहले पी ले फिर बताती हूँ ।
केसर नलके पर बाल्टी भर रही थी ।
ये कौन है बेबे , पहले तो हवेली में इसे कभी नहीं देखा ।
ये केसर है माया । यहीं रहती है पिछले छ सात महीने से । इस रौले गौले में इसके घर के सब मारे गये । यही पता नहीं कैसे बच गयी । अब गोबर फेंक देती है । पाथियाँ बना देती है । दो रोटी खा कर सो रहती है ।
बेचारी बच्ची । मुसीबत ने वक्त से पहले ही बुजुर्ग बना दिया ।
सुन तुझे घर का समझ कर बुलाया है । घर की बात घर में ही रहनी चाहिए । बाहर गाँव में किसी को कानोंकान खबर नहीं होनी चाहिए ।
नहीं होगी बेबे । मेरे पर भरोसा रख ।
ये जो केसर को देख रही हो न । वो काढा और दवाई वो जो उस दिन तूने दी थी , वो इसी केसर के लिए थी ।
ओह । आपने तब ही मुझे बुलवा लेना था । अब
अब उस बात को आठ महीने से ज्यादा हो गया । पर उस दवाई से ठीक होने के बाद इसे महीना आया ही नहीं । इस कमबख्त ने भी बताने की जरुरत नहीं समझी । वह तो आज बैठे बैठे मुझे ध्यान आया तो इससे पूछ लिया कि लङकी कपङों से कब हुई थी । तब इसने बताया कि तबसे जबसे उल्टियाँ बंद हुई । यकीन जानो मेरे तो पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गयी । तुरंत भेजा लङका तुम्हें बुलाने के लिए ।
पर बेबे उस दिन ही बुलवा लेना था न ।
तू जाने । यो छोटी बच्ची है । मुसीबत की मारी । किसी के घर की इज्जत होगी .। सोचा बेकार में बच्ची बदनाम हो जाएगी ।
चल बेबे एक बार देख लेती हूं । बुला लो उसे ।
बेबे ने केसर को पुकारा – ए केसर । चल अपनी कोठरी में मंजा सीधा करके लेट । ये माया तुझे देख लेगी ।
केसर ने तसला रखा । कोठरी में जाकर मंजा सीधा किया ही था कि माया और बेबे आ पहुँची ।
चल लेट जा ।
केसर डर कर थर थर कांपने लगी और सीधी खङी रही ।
लेट जा केसर । ये तेरी जाँच करेगी और कुछ नहीं – बेबे ने कहा ।
पर मुझे हुआ क्या है मैं ठीक हूँ ।
माया ने हाथ पकङ कर केसर को चारपाई पर खींच लिया । केसर ने आजिजी से बेबे को देखा । बेबे का चेहरा गंभीर था । केसर चुपचाप लेट गयी । माया उसकी जाँच करने लगी ।
ज्यों ज्यों वह उसके अंग जांचती गयी , उसके माथे की लकीरें गहरी होती गयी । पंद्रह बीस मिनट तक वह एक एक अंग को अपनी पारखी नजरों से देखती रही । इस गाँव की सारी औरतों के जापे , गरभपात उसके हाथों हुए थे । कितनी ही बीमार औरतों का उसने इलाज किया था । अनुभव उसे असलियत बता रहा था पर मन और जुबान साथ नहीं दे रहे थे ।
आखिर उसने उठकर साबुन से हाथ धोए । बेबे उत्सुकता से उसे देख रही थी । माया की गंभीरता उसे आतंकित कर रही थी ।
बता माया .. इस लङकी को हुआ क्या है क्या अब भी गर्भ... ।
सरदारनी तू अब के गर्भ की बात कर रही है । ये लङकी अब कभी माँ नहीं बन पाएगी । इसकी बच्चेदानी सिकुङ कर चने के दाने जितनी हो गयी है और अंडेदानी नलों से चिपक गयी है । इसे कभी माहवारी नहीं होगी , न ही हमल ठहरेगा ।
औफ ... ये क्या हुआ । बेबे वहीं सिर पकङ कर बैठ गयी ।
हौंसला रख सरदारनी । होता वही है जो उस ऊपर वाले को मंजूर होता है । हम सब उस ऊपर वाले के हाथों की कठपुतलियां है । वह अपनी मरजी से हमें नाच नचाता है और हम नाचते जाते हैं । बिना उसकी मरजी के एक पत्ता तक नहीं हिलता । इसमें भी उसने कुछ भलाई देखी सोची होगी जो हमें आज समझ में नहीं आती । कल देखेंगे , इसमें भी फायदा ही फायदा है । मिलता उतना ही है जितना नसीब में लिखा होता है । उससे ज्यादा एक कम नहीं मिलता । इस बच्ची का ध्यान रखना ।
इस कमबख्त को तो यह भी पता नहीं कि किस्मत ने इसके साथ कितना बङा मजाक किया है । इतनी मासूम और भोली है कि पूछ मत । इसे तो न पेट के बच्चे का पता था, न सफाई हुए का और न आज के हादसे का । जब बङी होगी तब समझेगी तो पता चलेगा । तब शायद दुखी हो , अभी आज तो कह रही थी , अच्छा हुआ , अब हर महीने परेशान नहीं होना पङता ।
माया उठ गयी – मैं चलती हूँ बेबे । बाकी उस ईस्वर की दुनिया में चमत्कार होते हैं ।
कौन सा चमत्कार होगा इस अभागन की जिंदगी में । मां बाप मर गये । भाई मर गये । ये बदनसीब बच गयी दुख देखने के लिए ।
खैर तू ठहर ।
बेबे कोठे में गयी । और अगले ही पल एक परात में गेहूँ और गुङ , साथ में एक रुपए का सिक्का लिए आ गयी – ले माया ।
नहीं बेबे । आज नहीं । आज इतनी मनहूस खबर सुनाने के बाद मेरा इस पर कोई हक नहीं बनता । तेरी बहु को देखने आऊँगी तो जो मर्जी दे देना ।
तेरे मुंह में घी शक्कर । ऐसा दिन आया तो जो चाहे ले लेना । अभी ये तेरे नाम का निकाल दिया है यह तो ले जा ।
माया ने बहुतेरी नानुकर की पर बेबे ने अनाज देकर माया को विदा किया ।

 

बाकी कहानी फिर ...