soi takdeer ki malikayen - 9 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | सोई तकदीर की मलिकाएँ - 9

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 9

 

9

 

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सिंधवा गाँव में भोला सिंह अपनी पत्नी बसंत कौर और माँ के साथ सुख पूर्वक रह रहा था । बसंत कौर एक सलीकेदार संभ्रांत महिला है । सब कुछ ठीक से चल रहा था कि अचानक देश आजाद हो गया । आजादी के साथ आई विभाजन की आँधी । देश तीन भागों में बँट गया । हिंदोस्तान , पाकिस्तान और पूर्वी बंगाल । पाकिस्तान से हिंदु भाग भाग कर हिंदुस्तान आने लगे । फिर पूरे देश में साम्प्रदायिक दंगे होने लगे । हर तरफ मारकाट मच गयी । औरतों की अस्मत लूटी जाने लगी । पाकिस्तान की ओर से लाशों से भरी गाङियाँ आती । लोगों के घर , दुकाने लूटे और जलाए जा रहे थे । ऐसे में भोला सिंह और उसके दोस्त भी उत्तेजित होकर हत्याएँ करने लगे । एक दिन ये लोग किसी गाँव के घर में छिपे एक परिवार के छ सदस्यों की हत्या कर देते हैं पर भोला एक तेरह चौदह साल की लङकी नसीबन को बचा कर घर ले आता है । नसीबन को नया घर और नया नाम मिलता है केसर । केसर पशुओं का चारा सानी , गोबर करती है । कपङे धो देती है । बदले में उसे दोनों वक्त की रोटी मिल जाती है । एक दिन घर को पता चलता है कि केसर गर्भ से है । बेबे , यह पता चलते ही कि यह काम भोले का है , विचलित हो जाती है ।

अब आगे ..

केसर को दोपहर का पहला काढा दिये हुए पूरे सात घंटे हो चुके थे । रात को बेबे ने सोने से पहले केसर को एक गिलास काढा और पिलाया । दो बजते बजते केसर के पेट में जबरदस्त दर्द उठा । वह दर्द से बिलबिला उठी । लेटना कठिन हो गया तो उठ कर कोठरी में टहलने लगी । जब दर्द असहनीय हो गया तो हार कर वह बेबे के पास गई – बेबे जी , बेबे जी , मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है । मैं मर जाउँगी ।
बेबे ने उस मासूम बच्ची का सिर अपनी गोद में रख लिया और सिर पर प्यार से हाथ फिराने लगी । फिर वे उसके लिए दूध गरम कर लाई । केसर ने दूध के दो घूंट बङी मुश्किल से भरे होंगे कि दर्द की तीखी लहर उठी । अगले ही पल केसर के कपङे खून से लथपथ होते चले गये । केसर की हालत देख कर बेबे रो पङी । केसर रोती बेबे को हैरान परेशान होकर देखती रही – क्या हुआ बेबे जी , क्या आप को भी दर्द हो रहा है ।
बेबे ने न में सिर हिलाया ।
वह रात बङी मुश्किल से बीती । सुबह दिन निकला । केसर अपनी कोठरी में जाकर लेट रही । अब दर्द कुछ कम होने लगा था । पर रक्तस्राव वैसे ही हो रहा था । बेबे ने ईश्वर का शुक्रिया अदा किया जिसने परिवार और केसर दोनों को इस पीङादायक असुविधा से मुक्ति दिला दी थी । पर अभी तसल्ली होनी बाकी थी । कैसे पता चले कि गर्भ पूरी तरह से नष्ट हो चुका है या अभी बाकी है । खतरा सिर पर कैसे रहने दिया जाय । बेबे ने एक गिलास और काढा उबाला और केसर को पिला दिया । केसर कुछ समझ नहीं पा रही थी कि उसके शरीर में यह हो क्या रहा है । पिछले पाँच सात दिन से भोला उसके पास नहीं आया था तो उसने शुक्र किया था कि आज वह आराम से अपनी नींद सोएगी । फिर दो दिन बाद लगातार आती उल्टियों ने उसे निढाल कर दिया । वह आराम से इस परेशानी को बिना किसी शिकायत के झेल रही थी कि शायद उसने रोटी ज्यादा खा ली है तो उसका पेट खराब हो गया है । पहले भी छोटे होते उसे उल्टी लग जाती थी तो माँ बङी इलायची उबाल कर पिला देती थी । वह ठीक हो जाती थी । वह डरते डरते इस बारे में सरदारनी या बेबे को बताने का इरादा करती पर उसके भीतर बैठा डर उसे ऐसा करने से रोक देता । फिर एक दिन बेबे को उसकी उल्टियों के बारे में पता चल गया ।
बेबे को उसकी बीमारी का पता चला तो उसे कङवी दवा पीनी पङी । दवा से उल्टी बंद हो गयी । पर अब यह नई मुसीबत आ गयी है । पिछले एक साल से हर महीने यह समस्या आती है पर इतना खून तो कभी नहीं गया । इस बार बेतहाशा खून बह रहा है । बेबे ने दो पुरानी चादरें दी थी । एक चादर तो पूरी खत्म हो चुकी । दूसरी भी आधी लग चुकी । चलो तीन दिन की ही बात है । आज दो दिन तो हो चुके । बस कल का दिन या ज्यादा से ज्यादा परसों का दिन बाकी है ।
रात की आखिरी खुराक के बाद अगले बीस दिन लगे उसे ठीक होने में । वह भी बेबे को दोबारा माया से दवाई लानी पङी ।
माया ने जब बेबे से सुना कि मरीज को सुबह शाम चार खुराक पिलाई गयी है तो वह बुरी तरह से घबरा गयी । -
अम्मा यह क्या किया तुम लोगों ने । उस दवा की तो एक ही खुराक अंदर हिलाने के लिए काफी है । ज्यादा से ज्यादा दो खुराक दी जानी चाहिए । और तुम लोग चार खुराक पिला चुके । वह औरत तो मरने के कगार पर पहुँच गयी होगी । रब खैर करे ।
जो होना था , वह तो हो चुका माया । अब बताओ कि क्या करें कि वह बच जाए । पूरी तरह से निचुङ चुकी है ।
अच्छा , देखती हूँ । तुम बैठो । माया ने पीढा बेबे की ओर सरका दिया और भीतर जाकर तुरंत खरल निकाला । जङी बूटियां पीस कर दो पुङियां बनाई – लो बेबे , जाकर पहुँचाओ उसे । सुबह शाम दूध के साथ दिलवाओ । ईश्वर ने चाहा तो वह आपकी रिश्तेदार बच जाएगी ।
बेबे ने वह पुङिया घर ले जाकर केसर को उसी तरह खिलाई जैसे माया ने बताया था । केसर बच गयी । जिंदगी के करमभोग अभी बाकी थे न तो इतनी जल्दी कैसे मौत से छूने आ जाती । बेबे ने इस बीच दूध , घी , फल किसी चीज की कमी नहीं रहने दी केसर को । कमजोर हो गयी केसर जल्दी ही संभल गयी थी ।
फिर एक दिन बेबे ने महसूस किया कि केसर को उस दिन के बाद माहवारी आई ही नहीं ।
उसने केसर को बुलाया – सुन केसर । अब कपङे कब हुई थी
वह तो मां जी जब उल्टियां लगी थी तब ।
बेबे ने अपने माथे पर हाथ मारा – पागल लङकी , तुझे बताना नहीं था किसी को । उस बात को तो आठ महीने हो गये और तू इतनी बङी बात छिपाकर बैठी है चुपचाप ।
अब कोई चारा नहीं था । बेबे ने गेजे को भेज कर माया को बुलवा भेजा ।

 

बाकी कहानी फिर ...