Apang - 47 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 47

Featured Books
Categories
Share

अपंग - 47

47

------

कुर्सी आगे की और सरकाकर रिचार्ड ने भानु से कहा ;

"इस कुर्सी पर बैठकर तुम लिखोगी ---बढ़िया --बढ़िया कविताएँ --!"

"कमाल है ! कविता? वो कब ? काम-धाम नहीं करना है क्या ?आइ हैव टू वर्क --"भानु ने सोचा, कमाल है ये रिचार्ड भी ! अरे ! मैं यहाँ साहित्य-साधना और संगीत करुंगी या काम करूंगी और अपने बच्चे को पालूंगी ?

"काम भी करोगी और अपने टेलेंट को भी नहीं छोड़ोगी ?"

"मतलब ?मेरे बच्चे का ---" भानु कुछ कहना चाहती थी लेकिन रिचार्ड बीच में ही टपक गया |

"उसके लिए आया है, तुम चिंता क्यों कर रही हो ?" रिचार्ड ने बड़े संयमित स्वर में कहा | भानु चौंक सी गई ---

"मतलब मैं एक आया एफोर्ड कर सकूंगी ?"कमाल करते हो--मैं क्रच में रखूंगी पुनीत को --" भानु ने सहज रूप से कहा | वह वैसे भी परेशान थी कि रिचार्ड ने उसके लिए पहले ही इतना कुछ क्यों किया था | उसे तो एक यही चिंता थी कि वह कैसे उतारेगी उसका यह सब ?

"तुम जानती तो हो, सबका ध्यान रखना मेरा शौक है --"रिचार्ड ने आँखें झुकाकर कहा |

"अच्छा !ऐसे दानी कर्ण हो तुम ?" भानु ने उसकी खिंचाई करने की कोशिश की |

"मैं देखता हूँ पुनीत को --तुम फ्रेश हो जाओ | अभी खाना आता ही होगा |" रिचार्ड ने कहा और चुपचाप वहाँ से निकल गया |

'कमाल का बंदा !' भानु के मन में आया और वह बिना कुछ कहे कुछ सोचती हुई बाथरूम में घुस गई |

बाथरूम तरह-तरह के साबुन, शैंपूज से महक रहा था | सामने ही श्वेत धवल बाथ टॉवल टँगा दिखाई दे रहा था |ड्रेसिंड साइड में दीवार के अंदर ही ड्रेसिंग टेबल बना दी गई थी | जिसकी ड्राअर में सभी ज़रुरत की चीज़ें थीं |

भानु के मुख पर मुस्कान पसर गई और वह शॉवर के नीचे जाकर खड़ी हो गई | न जाने कितनी देर तक वह शॉवर में खड़ी रही | अगर रिचार्ड ने नॉक न किया होता तो वह न जाने कितनी देर तक और भी पानी में खड़ी रहती |

"कमिंग ---" उसने कहा | उसने गाउन अपने बदन से लपेट लिया और दरवाज़ा खोलकर बाथरूम के बाहर निकल आई | तब तक रिचार्ड पुनीत के साथ खेल रहा था | एक अमेरिकन महिला सिटिंग रूम में थी |

"शी इज़ चाल्ड्स नैनी ---शी विल लुक आफ़्टर बेबी--" रिचार्ड ने कहा |

"हैलो मैम ! "वह एक ख़ूबसूरत चेहरे वाली सुन्दर मुस्कान वाली स्मार्ट लेडी थी |

भानु को अच्छा तो लगा, घर पर भी कहाँ उसने बेटे की ज़िम्मेदारी उठाई थी ? लेकिन खर्चे का सोचकर उसका दिल धड़कने लगा |

"ये पुनीत के साथ पूरा घर संभालेगी | तुम अपना काम करना, ये अपना काम करेगी |"

भानु के पास कुछ था ही नहीं कहने के लिए --उसने मुस्कुराकर नैनी का स्वागत किया | पुनीत उसकी गोदी में ऐसे चिपका हुआ था जैसे न जाने उससे कब से परिचित हो |

चालीस, पैंतालीस वर्ष की उस खूबसूरती नैनी का नाम जैनी रॉबर्ट था |

"यू कैन कॉल हर जैनी --"रिचार्ड ने भानु को बताया |

'अगर हमारे घर में कोई इस तरह की सेवक या सेविका आती माँ सिखाती, बेटे ! ये आँटी हैं या दीदी हैं, या चाची -मौसी --कोई भी रिश्ता बन जाता जो सदा बना रहता जब तक वह घर पर रहता या रहती----|'यही सबसे बड़ा फ़र्क है दोनों संस्कृतियों के बीच !

जैनी ने भानु से बच्चे का शैड्यूल पूछा और 'हाँ' में सिर लगा दिया कि वह समझ गई थी |ट्रेंड नर्स थी, उसे ज़्यादा समझाने की कोई ज़रुरत नहीं थी |

रिचार्ड ने उसे भानु के आने से पहले ही पूरा घर दिखा दिया था | लॉबी की तरफ़ एक छोटा कमरा और था जिसमें रिचार्ड ने जैनी के रहने का इंतज़ाम कर दिया था | उस कमरे को मिलाकर तीन कमरे थे जो पहले रिचार्ड ने जैनी को सब दिखा, समझा रखा था |

खाने के बाद भानु ने अपने बैग्स खोले और कई पैकेट्स निकालकर रिचार्ड को पकड़ाए |

"तुम्हारे लिए ---" भानु ने देखा रिचार्ड के चेहरे पर खुशी थी |

"इतने सारे ---?" उसने खुशी से पैकेट्स पलटते हुए कहा |

रात होने लगी थी, रिचार्ड ने भानु से जाने की इज़ाज़त मांगी | जैनी को बुलाकर फिर से एक बार मुन्ना और भानु का ध्यान रखने को कहा, बच्चे को प्यार किया और अगले दिन भानु के लिए एपॉईंटमैंट लैटर लेकर आने का वायदा करके वहाँ से निकल गया |