Nakshatra of Kailash - 21 in Hindi Travel stories by Madhavi Marathe books and stories PDF | नक्षत्र कैलाश के - 21

Featured Books
Categories
Share

नक्षत्र कैलाश के - 21

                                                                                        21

वातावरण साफ होने के बाद ज़ान में ज़ान आ गई। हम लोग अभी 19550 फीट ऊँचाई पर पहुँचने वाले थे। धुप,ठंड़, शारीरिक थकान के कारण साँस भी फूल गई थी। बार बार पानी,टॉफीज,मिश्री शक्कर खाना जरूरी हो गया। हवा का विरलापन ,अति ऊँचाई ऐसी जगह पर हायपोमिया हो सकता हैं। नेपाल मार्ग से आयी हुई एक औरत को बहुत तकलिफ होने लगी। बार बार बेहोश होने लगी। वहाँ कोई किसी के साथ रूक नही सकता क्यों की हर एक के जान को खतरा रहता हैं। मैं उस औरत के पास गई और थोडी मिश्री शक्कर देकर पानी पिलाया। कपुर सुँघाने के बाद वह होश में आ गई। थोडा कपुर उसके हाथ में रखते हुए मैं आगे निकल गई। बाद में मुड़कर देखा तो अब वह चल रही थी । मन में सुकून छा गया। किसी की मदद करने से मन को बहुत शांति महसुस होती हैं। कैलाश पर्बत के बाएँ ओर मंजुश्री पर्बत,पूरब को वज्रपाणी पर्बत हैं। दोनों ही पर्बत के उपर जरा भी बर्फ नही हैं। मिट्टी जैसे रंग में दोनो पर्बत सजे हुए थे। मंजुश्री के पश्चिम दिशा की ओर अवलोकीनेश्वर पर्बत और वज्रपाणी से लगत डोलमा पर्बत चालू हो जाता हैं। डोलमा के उपर पहुँचने से पहले कैलाश के दर्शन हो ज़ाते हैं और फिर वह लुप्त हो जाता हैं। ऐसा लगता हैं मानो अपने पिताजी ,बच्चों को माँ के हवाले कर देते हैं। ऐसा भी पढने में आया था, डोलमा के आसपास पुरब दिशा की ओर 40 से 50 फीट की दुरी पर गेट वे ऑफ डेथ नाम की जगह हैं। वहाँ बडे बडे चट्टानों के अंदर एक संकीर्ण गुंफा हैं। गुंफा के अंदर से तीन रास्ते अत्यंत बिकट अवस्था में उलझे हुए हैं। ऐसी मान्यता हैं की अगर आपने इसमें से एक रास्ता भी तय किया तो एक जन्म यही खत्म हो जाता हैं। पोर्टर को उस बारें में पुछने पर कोई जबाब नही दिया। कुछ बाते गोपनिय रहे उसमें ही उन जगहों की खासियत बनी रहती हैं। फिर उसके बारे में सोचना बंद कर दिया।
अगर ऐसे एक जन्म खत्म हो गया तो अगला जन्म कैसे चालू हो ज़ाएगा ? क्यों की जन्म की पूरी रचना एक दुसरे पर निर्भर हैं। पिछले जन्म के कर्म आज में बदलते हैं और आज हम जो बोते हैं, वही अगले जन्म में पाते हैं । यह संरचना छेदना बडा मुश्किल काम हैं। केवल साधना से अपने कर्म विसर्जित होने लगते हैं। कही से कानों पर शब्द आए” पहुँच गए।“ वह वाणी देवतुल्य प्रतित हुई। अब आँखे इधर उधर देखने लगी। चारों तरफ पताका (चौकोर पट्टीयाँ) बंधी हुई थी। रंगबिरंगी रंगों की वह दुनिया माया का प्रतीक लग रही थी। वहाँ पार्वती माता बडे शिलारूप में विराजमान हैं। माता के सामने उनके सर्वस्व , जगतकल्याणकर्ते शिवजी अदृश्य रूप में रहते हैं। यहाँ से कैलाश दर्शन नही होते। सब लोगों ने पूजा का सामान साथ में लिया था। वहाँ कपड़ा बाँधकर पूजा की ज़ाती हैं। पूजा संपन्न होने के पश्चात् शिवपार्वती को मन से प्रणाम किया। याकमन लोगोंने वहाँ अपने बाल नोचते हुए अर्पण किए। यहाँ बहुत लोगों को अतिंद्रिय अनुभव आते हैं। विरल हवामान के कारण श्वास मंद होने लगता हैं। ऐसे में व्यक्ति ट्रांन्स की स्थिती में जाने की संभावना ऊत्पन्न होती हैं। दृश्य जगत के परे दृश्य, व्यक्ति अनुभव कर सकती हैं।

प्राणायाम में सजगता से साँस लेने की प्रक्रिया करते हुए अंर्तमन की गहराईयों में प्रवेश किया जा सकता हैं। साँस अगर एक ही गती से पुरक कुंभक और रेचक प्रक्रिया करते हुए लयता प्राप्त करे तो उसी लयता के साथ प्राण सुक्ष्म हो जाते हैं। साँस जितना सुक्ष्म गती से चले उतना ही अपना सुक्ष्म शरीर विकसित होने लगता हैं। जैसे जैसे प्राणायाम का अभ्यास बढता जाएगा वैसे वैसे नाडी शुध्द होने लगती हैं। इस बात का बाह्य प्रमाण हैं शरीर पर निखार आना, और अंर्तजगत तो उससे सौ गुना ज्यादा विकसित हो जाता हैं। इस तरह से अंर्तजगत में प्रवेश करने के बाद अंतःचक्षु खुलने की प्रक्रिया चालू हो ज़ाती हैं। यहाँ के वातावरण में केवल पंधरा मिनिट रूकने से यह स्थिती प्राप्त हो ज़ाए यह जरूरी नही लेकिन किसी को ध्यानमार्ग प्रगती में चालना जरूर मिलती हैं। हवाँ की विरलता के कारण विचार तरंगे स्थित रहती हैं। एक शांत ,निःस्तब्ध अवस्था का अनुभव हर यात्री को प्राप्त होता हैं। निर्विचार शांति का वर्णन नही किया ज़ा सकता। ऊच्च साधक यहाँ घंटानाद,शंखध्वनी,देवी देवताओं के दर्शन ,ज्योर्तिदर्शन,अनोखा सुगंध ऐसे अनुभव से लाभान्वित होते हैं। सभोवताल के शून्यस्थान में विलीन हुआ मन बाहर आने के लिए तैयार नहीं था। यही पर अपनी जीवनयात्रा समाप्त हो ज़ाए, ऐसे खयाल आने लगे। इतनी शांत मृत्यु कहीं भी नहीं आ सकती। लेकिन क्या शांत जगह पर ही शांत मृत्यु आ सकती हैं ? नहीं, अपने मन में जब अभिलाषायें खत्म हो ज़ाएगी, तो मन अपनेआप शांति महसूस करेगा, फिर कितना भी कोलाहलभरा वातावरण हो, हम अपने आपमें स्थित रह ज़ाते हैं। वह व्यक्ति मृत्यूयात्राको एक मंगलयात्रा का रुप देते हुए उत्तरोत्तर आनंदीत, उल्लासित चित्तवृत्तियों में इस स्थिती का लाभ उठाता हैं। क्योंकीं आँखरीं साँस के क्षण, आपके चित्तमें जैसें भाव उत्पन्न होंगे, वैसे भाव से पुनर्जन्म का सफ़र चालू हो ज़ाएगा। अगला जन्म अच्छा हो इसके लिए, मृत्यू समय की चित्तस्थिती अच्छी होनी चाहिए| यह होने के लिए ध्यान, साधना जरुरी हैं, तभी हम हर वक्त समतामें रह सकते हैं। हर क्षण सजगतामें रहनेसे, चाहे कोई भी साँस आखरी हो, प्राप्त स्थिती में मृत्यु का स्वीकार कर सकते हैं। संत-महंत कहते हैं, आत्मा सिर्फ शरीर का चोला बदलती रहती हैं। कोई भी जन्म प्राप्त हो जाए, अपने पूर्व कर्म के अनुसार इसी दुनियामें फिर से प्रवेश करना हैं और वही सुख-दुःखो का सामना करना हैं। यह शृंखला तुटेगी तो सिर्फ साधना के मार्ग से, इच्छाओंके त्यागसे, निष्काम कर्मसे, सेवासे। इस दुनियाकें पार निकल ज़ाना हैं। कितनी अवधी लगेगी पता नहीं, उसकी फिक्र नहीं। बस अपनेही साधना की मस्ती में रत होते हुए मुक्ती पानी हैं। विरले वातावरण से कुछ लोगों को तकलिफ होने लगी। ऐसे वातावरण में उनको ना शरीर की शांति मिली ना मन की। यह तो अपने अपने कर्मों के फल हैं। ऐसी मान्यता हैं की यहाँ व्याधी ऊत्पन्न होने से कर्मफल तीव्र गती से खत्म हो ज़ाते हैं। याकमन “जल्दी चलो मौसम खराब हो ज़ाएगा। “कहते हुए निकलने की तैयारी करने लगे। मन को प्राप्त हुआ अद्भूत शांती का प्रशाद लेकर पार्वती माता को फिर से वंदन करते हुए वहाँ से प्रस्थान किया। मौसम खराब होने लगा था। पर्बत के एक तरफ से चढ़ाई करते हुए, हम लोग उपर पहुँचे थे। अब दुसरी तरफ से ढ़लान का रास्ता तय करना था। उतरते वक्त पर्बतों के चट्टान की धार से जख्म हो ज़ाते। पता नही इतनी हलकी परतों वाली मिट्टी से पत्थर कैसे बनते हैं ? प्रकृति ही जाने। ढ़लान का रास्ता, सावधानियाँ बरतते हुए चलना जरूरी हो गया। आँसमान को छु ज़ाए ऐसी ऊँची चोटियाँ, नीचे गहरी खाई,कुछ दुरी पर बर्फ की नदियाँ,आकाश धुंदला हुआ,हवा जोरसे बहने का ड़र ,बारिश का खतरा, ऐसे वातावरण में एक अचरज सामने दिखाई दिया। गौरीकुंड़। गौरीकुंड़ विश्व में सब से ऊँचाई पर मीठे पानी का सरोवर के नाम से ज़ाना जाता हैं। इसका पानी अत्यंत शुध्द और औषधी हैं। यह पानी पीने से पुत्रप्राप्ती होती हैं ऐसी मान्यता हैं। पाचू रत्न के जैसे रंग में रंगा यह सरोवर वहाँ की हसिन वाँदियों में खिल रहा था। सामान्यजन में एखाद रूपगर्विता जैसे मन को लुभाती हैं वैसी ही सबकी स्थिती हो गई। जहाँ खडे थे वही छोटी जगह से फोटो निकाले। यहाँ श्री गणेशजी का जन्म हुआ ऐसी कहानी हैं।गौरीकुंड़ तक उतरने की ताकद अब किसी में नही थी। सबने याकमन को पाच युवान्स देते हुए कुंड़ से पानी लाने के लिए कहा।

पोर्टर्स पीछे आराम से आ रहे थे | में धीरे धीरे आगे चलने लगी | कठिनाइयोंसे भरा रास्ता तय करने के बाद सब आहिस्ता चलने लगे | अब रास्ता समतल तो था लेकिन खाई का था | रास्ते में बड़े बड़े पत्थर देखे जो ऊपर से गिरे थे | चलते कितना समय निकल गया पताही नहीं चला | चारो तरफ छोटे छोटे पत्थर, ऊपर नीचे ऊँची ऊँची पहाड़ों की चोटियाँ ,सुन्दर नीला आकाश, ऐसा नीला रंग यही नज़र आता हैं | प्रदुषणरहित वातावरण, शुद्ध हवा, जैसे निसर्ग एक कॅनवास हैं ऐसे लग रहा था | आगे पीछे कोई नहीं | में चलती ही ज़ा रही थी , चारो दिशाएँ जैसे शांति में विलीन हो गयी थी | अचानक सामने दो रास्ते दिखाई देने लगे | किस रास्तेसे जाए समझ में नहीं आ रहा था ,अगर रुक जाए तो वह भी संभव नहीं। आखिर भगवान का नाम लेते हूए एक रास्ता पकड़ लिया | चलना प्रारंभ किया | मन में कही खलबली मच गयी गलत रास्ता तो नहीं पकड़ा हैं ना ? अंत में ईश्वर के विश्वास से मन शांत हो गया और ऐसे मनुष्यविहीन जगत में मैं कितनी देर अकेली चलती रही | आखिर ये नीरव शांती के क्षण खत्म हो गए , पिछेसे पोर्टर आ गए | ऐसे क्षण आते हैं और ज़ाते भी हैं , जीवन चलता रहता हैं | ऐसा कहते हैं अनुभव वही स्थित रहते हैं, मनुष्य उस स्थिति में प्रवेश करता हैं और स्थिति का अनुभव प्राप्त करता हैं| लेकिन मन एक जगह पर ज़ादा देर तक नहीं रुक सकता, शरीर अगर वही अनुभव में रुकना चाहे तो भी उस स्थिति में मन न होने के कारण स्थिति का पहिले जैसा अनुभव बाद में महसूस नहीं हो सकता| इसीलिए हम भी वही क्षणों को प्राप्त करने का प्रयास करने से बेहतर हैं अगले क्षणों का स्वागत करे | मन की गती के साथ रहने से तकलिफ कम होती हैं | अब ख़राब रास्ते के उपरसे गुजरना चालू हो गया| तीव्र ढ़लान और खतरनाक रास्ता | अचानक एक अजीब दृश्य सामने आ गया | एक पुरुष साष्टांग प्रणाम करते हूऐ परिक्रमा कर रहा था| उसके हाथ में एक छोटी डंडी थी| पूर्ण प्रणाम करने के बाद, उसी स्थिति में जमींन पर एक रेखा खिंचते हुए, फिर उसी रेखा पर खड़े रहते, पूर्ण प्रणाम की स्थिति की क्रिया आरम्भ कर रहा था|  

(क्रमशः)