Achhut Kanya - Part 4 in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | अछूत कन्या - भाग ४

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अछूत कन्या - भाग ४

यमुना के पीछे भागते-भागते अब तक नर्मदा, गंगा और सागर भी वहाँ आ गए लेकिन वह गंगा-अमृत से काफ़ी दूर खड़े होकर यमुना को पुकार रहे थे।

“यमुना मेरी बच्ची ज़िद ना कर, वापस आ जा। वह पानी हमारे लिए नहीं है।”

यमुना ने कहा, “नहीं बाबू जी इस पानी पर पूरे गाँव का हक़ है।”

फिर उसने सरपंच से कहा, “काका जी हमारे पानी लेने से इस पानी का रंग तो नहीं बदल जाएगा ना?”

सरपंच ने कहा, “हो सकता है ऐसा करने से गाँव के दूसरे कुओं की तरह गंगा अमृत भी सूख जाए और बाक़ी के गाँव वाले भी पानी के लिए तरस जाएँ।”

तभी सागर ने फिर उसे पुकारा, “यमुना बेटा वापस आ जा।”

“बाबू जी यह काका कह रहे हैं शायद हमारे छूने से गंगा-अमृत भी सूख जाएगा। मैं सबको दिखाना चाहती हूँ, क्या सच में यह कुआँ भी सूख जाएगा? मैं जा रही हूँ बाबूजी, मेरे जाने के बाद देखना क्या यह कुआँ सूख जाएगा। यदि सच में सूख जाएगा तो मान लेना यह हमारे लिए नहीं है और हमें भगवान ने ही छोटी जाति का बनाया है। आज मैं इस गंगा-अमृत में अपनी साँसों को मिला दूंगी, मैं उस में समा जाऊंगी बाबूजी। गंगा-अमृत में यमुना मिल जाएगी। फिर यह लोग क्या करेंगे?” 

कोई कुछ समझ पाता उससे पहले यमुना ने दौड़ते हुए उस कुएँ में छलांग लगा दी। एक ज़ोर की छपाक की आवाज़ आई। उस आवाज़ के साथ कुछ बुलबुले पानी में अपनी आवाज़ सुना रहे थे, बाक़ी हर तरफ़ एक सन्नाटा था। दौड़ते वक़्त यमुना के पांव की पैजनियों में से घुंघरुओं की आवाज़ आ रही थी। बाक़ी हर तरफ़ सन्नाटे के साथ हर एक आँख में आश्चर्य दिखाई दे रहा था। यह दृश्य देखकर यमुना के अम्मा बाबूजी की साँसें अटक रही थीं। उनकी जिव्हा शांत थी, शायद वह अभी भी होश में नहीं थे कि उनकी बेटी गंगा-अमृत की गोदी में समा चुकी है, उसके गर्भ में जा चुकी है। 

तभी सन्नाटे के बीच दौड़ती हुई गंगा की आवाज़ गूँजी, “यमुना जीजी…”

गंगा को कुएँ की तरफ़ दौड़ते देख नर्मदा होश में आई और उसने दौड़ कर गंगा को पकड़ा। वह ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी, “मेरी जीजी को बाहर निकालो।”

अब तक सागर भी मानो होश में आ गए और चिल्लाए, “सरपंच जी मेरी बच्ची को बचा लो।”

सरपंच गजेंद्र कभी ऐसा सोच भी नहीं सकते थे कि यमुना इस हद तक गुजर जाएगी।

तभी गजेंद्र के कानों में उसके आठ साल के बेटे की आवाज़ आई, “बाबूजी उसे बचा लो, बाबूजी उसे बचा लो, लेने दो ना उन्हें भी पानी।”

गजेंद्र ने दो अच्छा तैरना जानने वाले लड़कों से कहा, “बचाओ उस बच्ची को।”

तुरंत ही वह लड़के कुएँ में कूद गए लेकिन जब तक वह कूद कर, तैर कर उसे ढूँढते, बहुत देर हो चुकी थी। यमुना की देह डुबकियां लगाकर गंगा-अमृत की तह में जा चुकी थी।

हर आँख बिना पलकें झपके चुपचाप देख रही थी कि अब आगे क्या होने वाला है। यमुना ज़िंदा निकलेगी या उसकी लाश बाहर आएगी?  नर्मदा, सागर और गंगा अब भी दूर खड़े एक टक, टकटकी लगाए कुएँ की तरफ़ देख रहे थे।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 

स्वरचित और मौलिक  

क्रमशः