सपने........(भाग-22)
अगली सुबह आस्था जल्दी उठ गयी क्योंकि सुबह वो जाने से पहले सब से मिल कर जाना चाहती थी....... रात को ही बात हो गयी थी कि वो एयरपोर्ट टैक्सी ले कर चली जाएगी कोई भी अपने काम से छुट्टी नही लेगा....! नाश्ता करके आस्था टाइम से निकल गयी। नवीन उसे टैक्सी में बिठा दिया.......! आस्था ने चलते चलते नवीन को फिर याद दिलाया कि, "उसे कल नचिकेत से मिलने जाना है....उसे टाइम पर वहाँ पहुंचना पड़ेगा क्योंकि नचिकेत टाइम का पाबंद है"......! "तुम बेफिक्र हो कर जाओ, मैं कल वहाँ टाइम से पहले ही पहुँच जाऊँगा"। नवीन की बात सुन कर आस्था ने भी ठीक है में, सिर हिला दिया.......आस्था बिल्कुल सही टाइम पर एयरपोर्ट पहुँच गयी थी........उसने आराम से बोर्डिंग पास लिया....और सिक्योरिटी चेक इन के लिए चली गयी.....!
आदित्य, राजशेखर, श्रीकांत, सोफिया सबका फोन आ गया आस्था के पास पूछने के ललए कि वो टाइम पर पहुँची या नहीं...! बोर्डिंग शुरू हुई थी कि पापा का भी फोन आ गया........सब उसकी कितनी फिक्र करते हैं, सोच कर आस्था खुश हो रही थी......2 घंटे कब बीत गए आस्था को पता ही नहीं चला, वो तो खिड़की से बाहर आसमान की तरफ देख रही थी और खुद को बादलों से ऊपर उड़ती हुई महसूस करके छोटे बच्चों की तरह खुश हो रही थी........रूई के सफेद फाहे जैसे बादल नजर आ रहे थे.......! मुंबई का एयरपोर्ट काफी बड़ा है, पर इलाहाबाद का एयरपोर्ट छोटा है तो वो जल्दी से सामान ले कर बाहर आ गयी........! फोन ऑन किया तो पापा का मिस कॉल देख कर उसने फोन किया तो पता चला कि पापा उसे लेने आए हुए हैं......बाहर निकली तो थोड़ी दूरी पर पापा खड़े नजर आ गए......!! कार में बैठ कर उसने विजय जी को नाटक के बारे में बताना शुरू कर दिया.....पर उसने ये बात छुपा ली कि वो 4 लड़को के साथ फ्लैट शेयर कर रही है.....! वे जानती है कि अगर घर मैं किसी को पता चला तो वो वापिस मुंबई नही जा पाएगी........!! घर पहुँचे तो आस्था ने देखा कि मम्मी बाहर ही खड़ी हैं उसके इंतजार में...... अंदर से निकिता भी आ गयी।
आस्था के कार से उतरते ही अनिता जी ने उसे गले से लगा लिया......... सब अंदर आ गए तो आस्था ने अपनी भाभी को कस कर गले से लगा लिया......निकिता ने कान में आस्था को बताया, "वो बुआ बनने वाली है"!
सुन कर आस्था दुबारा अपनी भाभी के गले लग गयी......" वाह .....ये है सबसे अच्छी खबर भाभी.....मैं बुआ और मम्मी पापा तो दादा दादी बन जाँएगे और भाभी आप मम्मी बन जाओगी"! आस्था की भी खुशी जायज थी , अब तक वो घर में छोटी थी अब उससे छोटा भी कोई होगा.....आस्था ने आते ही फरमान सुना दिया,"पापा मैं फ्रेश हो कर आती हूँ तब तक आप हीरा हलवाई के समोसे और जलेबी ले आओ, बहुत मिस किया मैंने मुबंई में अपने यहाँ के समोसे और दही जलेबी को".......! "वो तो हमें पहले से ही पता था, इसलिए पहले से ही मँगवा लिए हैं,तू फ्रेश हो कर आ तब तक समोसे भी आ जाते हैं"! आस्था की बात सुन कर अनिता जी ने हँसते हुए कहा......!आस्था जब तक फ्रेश हो कर बाहर आयी तब तक स्नेहा समोसे और जलेबी ले कर आ गयी थी और निकिता किचन में चाय बना रही थी.......!
स्नेहा को देख तो आस्था खुशी से पागल हो गयी........सबके साथ बैठ कर चाय पीना और बातें करना वो अंदर से कितना मिस कर रही थी, वो अब जान रही थी......चाय पी कर स्नेहा और आस्था उठ कर अपने कमरे में चली गयी......आस्था स्नेहा के लिए हैंडबैग लायी थी......उसने स्नेहा को दिखाया तो उसे बहुत अच्छा लगा। स्नेहा ने बताया कि, "उसकी शादी पक्की हो गयी है.......स्नेहा तो अपनी पढाई खत्म कर एक सरकारी स्कूल में टीचर बन गयी है और अब उसकी शादी भी तय हो गयी है वो भी एक बहुत अच्छे परिवार में...!लड़का निकिता भाभी के बैंक में काम करता है, निकिता ने ही स्नेहा के लिए बात चलायी थी.....सब बहुत खुश थे कि लड़का और उसका परिवार बहुत अच्छा है".......! स्नेहा ने उसे कभी भी शाम को आने के लिए कहा नहीं तो संडे को सुबह ही आ जाना कह कर चली गयी......! आस्था खुश थी कि स्नेहा की शादी अच्छी फैमिली में हो रही है......पर उसे किसी ने फोन पर ये बात पहले नहीं बतायी, वो ये सोच रही थी और उसे गुस्सा भी आ रहा था कि मम्मी से इतनी बार बात हुई और उन्होंने भी नहीं बताया.......! उसने जा कर सीधा ऐसे ही अनिता जी से ना बताने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया, "जन्मपत्री मिलायी जा रही थी, 1-2 दिन पहले ही पता चला कि सब ठीक है तो बात पक्की कर दी है....तुझे नहीं बताया क्योंकी तू आने वाली थी तो सोचा सरप्राइज दिया जाए"......! आस्था 15दिन के लिए आयी थी और ये 15 दिन उसके कब बीत गए, पता ही नहीं चला.....स्नेहा की सगाई हो गयी....रोज देर तक घर में हँसी मजाक चलता रहता.....कुल मिलाकर किसी त्योहार सा माहौल बना रहा। विजय जी ने एक दो बार उससे पूछा, "बेटा अब तुम्हारे सपने पूरे हो रहे हैं तो शादी का क्या सोचा"? अब आस्था पापा को क्या जवाब देती? बस हाँ पापा शादी तो करनी ही है....कह कर हँसते हुए बातों का रूख दूसरी और कर देती। माँ बाप अपने बच्चों की कमियाँ और खूबियाँ दोनो से ही अच्छे से वाकिफ होते हैं, विजय जी भी इससे अछूते नहीं थे.....उन्हें आस्था के हाव भाव से लगा कि शायद वो किसी को पसंद करती है.....यही बात उन्होंने अनिता जी से की और कहा, "आस्था के मन में क्या है? इसका पता करो"....! आस्था ट्रेन में बैठी सब बातें याद कर रही थी, स्नेहा के घर पर जब वो गयी तो खूब बातें हुई....उसे तो सब पता ही है कि वे किन लोगो के साथ रहती है......नचिकेत के बारे में सब बताया और आदित्य वगैरह के बारे में भी जब बातें कर रही थी तो स्नेहा ने झट से पकड़ ली उसकी बात और बोली, "आस्थू तू नचिकेत की रिसपेक्ट करती है, पर मुझे लगता है कि तुझे आदित्य पसंद है"....! आस्था ने उसकी बात सिरे से नकार दी और बोली, "यार नेहू आदित्य तो कपडो की तरह गर्लफ्रैंडस बदलता है तो मैं उसे कैसे पसंद कर सकती हूँ? तू पागल सी कुछ भी कहती है"!! आस्था की बात सुन कर स्नेहा बहुत तेज हँसी थी और बोली, मेरी बात याद रखना, आदित्य कैसा है, मुझे ये तो नहीं पता पर मैं तुझे जानती हूँ.....तेरी बचपन की आदत रही है जो चीज तुझे बिन माँगे मिलती है वो तू कभी नहीं लेती......तेरी पसंद हमेशा अलग ही रही है.....यही सब सोच कर आस्था कभी मुस्कुरा रही थी तो कभी गहरी सोच में डूब जाती...!! 36 घंटे आस्था ने थोड़ा बहुत सो कर, किताबें पढ कर और लोगो को ऑब्सर्व करने में बिता दिए......कभी किसी को देखती तो कभी किसी का चेहरा पढने की कोशिश करती रही...! मुबंई आ गया और सब सोच विचार और सामान समेट वो खिड़की के पास बैठी ट्रैन के रूकने का इंतजार करने लगी....तभी उसे नवीन और आदित्य प्लेटफार्म पर नजर आ गए........ट्रैन रूकते ही वो दोनो बोगी में आ गए और आस्था को पहले उतरने को कह सारा सामान उतारने लगे........फिर वही मुंबई की भीड भाड़ का हिस्सा बनने को तैयार थी आस्था......इसी भीड़ का हिस्सा बन कर ही तो इस भीड़ से निकल कर पहचान इसी मायानगरी में बनानी है........!
क्रमश;