Bus ab aur nahi - 4 - last part in Hindi Moral Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | बस अब और नहीं! - 4 - अंतिम भाग

Featured Books
Categories
Share

बस अब और नहीं! - 4 - अंतिम भाग

भाग -4

बच्चों को खाना खिला कर वह लेट गई लेकिन नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। नींद तो उसे पहले भी नहीं आती थी। पहले अपने दुख में और अब बच्चों के भविष्य की चिंता में!!

अब वह घर की नौकरानी बन चुकी थी। जो सुबह से शाम तक काम करती ताने सुनती और उसके बाद भी उसे भरपेट खाना ना मिलता। जेठानी और उसके दोनों बच्चे बात बात पर उसकी बेटियों पर हाथ छोड़ने से बाज ना आते और सास उस पर!!!

उसका स्वाभिमान और आत्मसम्मान एक छत और दो वक्त की रोटियों के तले दब कर रह गया था।

पिछले 6 महीनों में उसके ससुराल वालों ने मनोज की बाइक व कार बेच दी थी और कितनी ही बार उससे झांसे से चेक बुक पर साइन करा बैंक में जमा रुपए निकाल लिए थे। बस उसकी व दोनों बेटियों की जो एफडी थी। उन पर उनका जोर ना चल सका।

विद्या ने पूछा तो उसके ससुर व जेठ ने बड़ी बेहयाई से यह कहते हुए सारा दोष मनोज पर डाल दिया कि उसने बहुत सा कर्जा लिया हुआ था। उसी को चुकाने में सारे पैसे लग गए।

विद्या को पता था कि वह दोनों झूठ बोल रहे हैं लेकिन कहती भी क्या!! जो अपने मरे बेटे पर इतना बड़ा इल्जाम लगा उसके पैसे डकार गए । ऐसे स्वार्थी लोगों को बोलकर भी क्या फायदा।

लेकिन उसकी चुप्पी का घरवालों ने अब ज्यादा ही फायदा उठाना शुरू कर दिया था। बात बात पर वह उस पर दबाव डालने लगे कि वह इस घर से चली जाए। दोनों बच्चियों को वह पाल लेंगे!!

अपनी बच्चियों को इन शैतानों के पास छोड़कर जाने के  बारे में विद्या सपने में भी नहीं सोच सकती थी। विद्या ने विरोध करना शुरू कर दिया। आस पड़ोस वाले भी उसका ही पक्ष लेते। यह देख उसके ससुरालवालों का खून खौल उठता!

और उस दिन !!! उस दिन को याद कर विद्या आज भी थर्रा जाती है ।

दो-चार दिन से उसके ससुरालवाले उससे बहुत अच्छा व्यवहार कर रहे थे । घर के कामों में भी सभी उसकी मदद करते। विद्या को लगा शायद इन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया हो। है तो इंसान ही। देर से ही सही चलो समझ तो आई ।उसे तसल्ली थी लेकिन यह उसका भ्रम निकला।

उस दिन सभी खाना पीना खा जल्दी सो गए। रात को सुरभि ने पानी मांगा । विद्या पानी लेने रसोई में जा रही थी। तभी उसे अपनी सास के कमरे से जेठ जेठानी की खुसर फुसर करने की आवाज आई।

इतनी देर रात यह लोग यहां क्या कर रहे हैं! विद्या के मन में शंका हुई और वह दबे पाव खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई।

"अब तो इसे रास्ते से हटाना ही होगा। अगर मम्मी, यह यहां रही तो हम यहां नहीं रहेंगे!" जेठ ने कहा।

"मैं तो चाहती हूं। यह चली जाए लेकिन क्या करूं। सब कुछ तो करके देख लिया!!!"

"आपसे कुछ नहीं होगा। जब घी सीधी उंगली से ना निकले तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है!!!" उसका जेठ बोला।

"मतलब!!!"

"इसे रास्ते से अब हटाना ही होगा! कल रात जब यह रसोई में काम कर रही होगी तो इसकी साड़ी में समझ गई ना आप!!!!" जेठ ने कहा।

सुनकर एक बार तो सास ससुर सकपका गए। फिर अपने बुढ़ापे की सोच उन्होंने सहमति में सिर हिला दिया।

विद्या तो यह सब सुन मानो जड़ हो गई हो। किसी तरह उसने अपने आपको संभाला और चुपचाप आकर कमरे में आ निढाल सी लेट गई। उसने मन ही मन अपने बच्चों के भविष्य के लिए एक कड़ा फैसला कर लिया था। वह पत्नी के तौर पर कमजोर हो सकती थी लेकिन मां!! मां कभी कमजोर नहीं होती। उसे हिम्मत दिखानी ही होगी। सोचते सोचते सुबह हो गई।

वह सुबह बच्चों को स्कूल छोड़कर आई। आते ही उसकी सास और जेठानी बोली "आज तो बड़ी देर लगा दी तुमने स्कूल में!!!"

"हां , उन दोनों की टीचर से उनकी पढ़ाई के बारे में बातचीत करने लगी थी। बस उसी में समय लग गया।"

कहकर वह काम में लग गई।

शाम को जेठ जेठानी सब ही रसोई के आसपास मंडरा रहे थे।

उसने अपने सिर पर रखे पल्लू को उतार उसे कमर में खोंस लिया। यह देखकर उसकी सास और जेठानी बोली " ये क्या बेहूदापन है। अपने संस्कार भूल गई क्या!!!"

"नहीं मम्मी, मैं तो अपने संस्कार नहीं भूली लेकिन शायद आप लोग भूल गए हो। सर पर पल्लू बड़ों के मान सम्मान के लिए लिया जाता है लेकिन जब बड़े ही अति पर उतर आए तो क्या कीजै!"

"यह क्या पहेलियां बुझा रही है। साफ-साफ क्यों नहीं कहती क्या चल रहा है तेरे मन में है!!"

"मेरा मन तो बिल्कुल साफ है लेकिन आपके मन में ही चोर बैठा है । तभी तो आप सबके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही है!"

"बदतमीज बिल्कुल ही शर्म लाज बेच खाई क्या तूने! जो ससुर जेठ के सामने ऐसे जुबान लड़ा रही है ।" कहते हुए उसकी सास ने उसे जोर से तमाचा मारा।

दोनों बच्चियां यह देख अपनी मम्मी से लिपटकर रोने लगी। और रोते-रोते बोली "मम्मी, यह सब गंदे हैं! हम यहां नहीं रहेंगे चलो!!"

"हम यही रहेंगे बेटा!! यह घर हमारा है! इसे तेरे पापा ने बनवाया था। हम नहीं यह जाएंगे यहां से!!"

"क्या कहा तूने छिनाल!!! पहले तो सोचा था तुझे ही रास्ते से हटाए। अब तुझसे पहले तेरी इन दोनों लड़कियों को!" कहते हुए जैसे ही उसका जेठ आगे बढ़ा तो विद्या अपनी बेटियों को सीने से चिपकाते हुए बोली "खबरदार जो आगे बढ़े तो!! आज तक मैंने बहुत सहा लेकिन अब और नहीं!!!"

" बहुत जुबान निकल आई तेरी!!" जेठानी दहाड़ते हुए बोली कि तभी दरवाजे की घंटी बजी। जिसे सुन

सभी चौक गए। उसके ससुर ने गेट खोला तो सामने दो पुलिस वाले खड़े थे। जिसे देखकर वह सहम गया।

फिर थोड़ा सामान्य हो अपने चेहरे के भाव छुपाते हुए बोला

"जी आप!!"

"आपके घर से कंप्लेंट है!!" एक पुलिसवाले ने कहा।

"हमने तो कोई कंप्लेंट नहीं लिखवाई!!"

"मैंने लिखवाई है!!!आइए इंस्पेक्टर!! आप बिल्कुल सही समय पर आएं हैं।" विद्या आगे आते हुए बोली

विद्या के चेहरे पर उंगलियों के निशान और उसकी रोती हुई बच्चियों के बयान पर पुलिस उन सबको पकड़ कर ले गई और एक रात वहां रख चेतावनी देते हुए छोड़ दिया।

थाने से आते ही उसकी सास दहाड़ते हुए बोली "तू क्या सोचती है। इतने भर से हम डर जाएंगे। इस घर में तो तू वैसे भी नहीं रह सकती। यह जमीन तेरे ससुर ने खरीदी थी और यह मेरे नाम है। हम जब चाहे तुझे धक्के देकर निकाल सकते हैं!"

"मम्मी, आप अनपढ़ होते हुए इतने कानून जानते हो तो एक बात और कान खोल कर सुन लो। मेरा ना सही मेरी बच्चियों का तो इस पर हक है। जिसे मैं किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ सकती और हां, आप मुकदमा लड़ना चाहती हो। शौक से लडिए। इतना तो आपको भी पता है कि मुकदमों के फैसले साल दो साल में तो आते नही।

हां, एक बात कान खोल कर सुन लीजिए। आज के बाद मुझ पर या मेरी बेटियों पर अगर आपने एक उंगली भी उठाई तो अच्छा ना होगा। मैंने थाने में लिखकर रखवा दिया है कि अगर हममें से किसी को भी कुछ होता है तो इसके जिम्मेदार आप सभी होंगे।"

उस दिन के बाद किसी ने भी इस तरह की जुर्रत नहीं दिखाई। हां उसके सास ससुर ने मुकदमा डाल दिया जिसका फैसला अब तक नहीं आया। इस बीच ससुर तो चल बसे , जेठ का एक्सीडेंट में एक हाथ चला गया और सास जेठानी की चाकरी करते हुए दिन काट रही है।

विद्या ने सिलाई कढ़ाई कर अपनी बच्चियों को शिक्षित कर पैरों पर खड़ा किया।

बड़ी बेटी बैंक मैनेजर और छोटी बेटी सरकारी स्कूल में टीचर लग गई है। तीनों ने अपनी बचत से एक छोटा सा दो कमरों का मकान भी खरीद लिया और वहां से निकल आए। सुरभि के साथ काम करने वाले उसके दोस्त के परिवार वालों ने खुद आगे बढ़कर सुरभि का रिश्ता मांगा। दोनों बच्चों की खुशी देख विद्या ने हां कर दी।

घड़ी में 4:00 बजे के घंटे की आवाज से विद्या जी की तंद्रा टूटी और वह वर्तमान में लौट आई। समय देख, वह जल्दी से उठकर बाहर आई तो देखा दोनों बेटियां और उनके दोस्तों ने सभी कामों को सुघड़ता से संभाला हुआ था।

शाम को बेटी की मेहंदी में विद्या जी इतने सालों में आज पहली बार खुशी में बावरी सी होकर थिरक उठी।

दोनों ही बेटियां अपनी मां को ऐसे झूमता देख भाव विभोर हो उनके गले लग गई। तीनों की आंखों में खुशी के आंसू थे।

विद्या जी की तपस्या पूरी हुई। बेटी को बहुत ही अच्छा घर बार मिला था। बस भगवान से वह दिन रात एक ही प्रार्थना करती कि हे ईश्वर! मेरी बेटियों की मांग सदा भरी रहे और उनका जीवन सदैव खुशियों से आबाद रहे।

समाप्त

सरोज✍️