भाग- 1
विद्या सदन आज फूलों व सजा था और रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा रहा था।। द्वार पर सजा वंदनवार व घर के अंदर बाहर लगा सुंदर सा शामियाना विद्या सदन में हर आने वाले मेहमान का स्वागत कर रहे थे।
विद्या सदन में पड़ोसी व रिश्तेदारों की खूब गहमागहमी लगी थी। पकवानों व मिठाइयों की खुशबू से घर के साथ साथ पूरा गली मोहल्ला महक रहा था।
यह सब तैयारियां व आयोजन था विद्या जी की बड़ी बेटी सुरभि की शादी के लिए।
विद्या जी की 2 बेटियां थी सुरभि और अवनी। आज सुरभि की मेहंदी थी। विद्या जी सुबह से उसी के इंतजाम में लगी हुई थी। कभी मेहमानों का जलपान, कभी हलवाइयों के सामान की पूर्ति और बीच-बीच में मेहमानों के साथ दो घड़ी हंस बोल भी लेती।
सुरभि और अवनी देख रही थी कि सुबह से ही मम्मी चकरघिन्नी सी घूम रही है। कितनी बार दोनों उसे थोड़ी देर आराम करने के लिए समझा चुकी थी लेकिन हर बार हंसते हुए कहती "बेटा, बस दो दिन की भागदौड़ और बची है। उसके बाद तो आराम ही करना है।" कह हंसते हुए फिर से काम में लग जाती।
"मम्मी, खाना तो खा लो! खाना नहीं खाओगे तो फिर दवाई कैसे लोगे!" अवनी थोड़ी सी जिद करते हुए बोली।
"हां हां बेटा! बस अभी आती हूं! अच्छा एक बार तू देख ले कि सभी मेहमान सही से खा पी तो रहे हैं ना! कोई कमी तो नहीं!"
ऐसे टाल मटोल करते करते सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम होने को आई!
दोनों ही बहनों को अपनी मम्मी की बहुत चिंता थी।
क्यों कि विद्या जी को शुगर व बीपी की शिकायत थी और ऐसे में खाने पीने में थोड़ी सी भी लापरवाही!!! कहीं बड़ी परेशानी का सबब ना बन जाए।
अभी दोनों बहनें यह सोच ही रही थी कि तभी उनकी नजर अपनी मम्मी पर पड़ी।
देखा तो विद्या जी हवा में लहराते हुए धम्म से पास रखी कुर्सी पर बैठ गई।
सभी मेहमान अपनी हंसी ठिठोली में व्यस्त थे ।किसी का भी ध्यान उस ओर नहीं गया। बस अवनी और सुरभि के सिवाय। दोनों दौड़ती हुई उनके पास आई और सहारा दे उन्हें कमरे में ले गई।
दोनों समझ गई थी कि मम्मी का बीपी लो हो गया है। अवनी जल्दी से शिकंजी बना लाई। जिसे पीते ही विद्या जी को थोड़ी राहत मिली।
तब तक सुरभि एक थाली में अपनी मम्मी के लिए खाना ले आई और जबरदस्ती उन्हें खाना खिलाने लगी।
"अरे अरे खा लूंगी मैं अपने आप!! तुम तो बिल्कुल ही मुझे छोटी बच्ची समझ रहे हो।" वह हंसते हुए बोली।
" हां हमें पता है। आप बच्ची नहीं, मां हो हमारी!! लेकिन हरकतें तो बिल्कुल छोटे बच्चों वाली कर रही हो आप!! जैसे बच्चे खाने से जी चुरा कर इधर-उधर भागते हैं। आप मुझे आज वैसे ही लग रही हो।" सुरभि उनके मुंह में निवाला डालते हुए बोली।
" अच्छा जी! कल तक खुद ऐसी हरकतें करती थी और आज मुझे सीख दे रही है! चल आज खिला दे अपने हाथों से । फिर तो ना जाने कब ऐसा मौका मिले।" कहते हुए विद्या जी भावुक हो गई।
"मम्मी प्लीज! ऐसी बातें मत करो वरना!!!" सुरभि अपनी आंखों में आए आंसुओं को पोंछते हुए बोली।
" अरे पगली! मेरे कहने का यह मतलब था कि फिर तो तू 1 महीने के लिए दुबई घूमने जा रही है ना!! तो इस 1 महीने में दुबई से तो तू मुझे खाना खिलाने आने से रही!!"
विद्या जी उसकी आंखों में झांकते हुए शरारत से बोली।
" आपसे किसने कहा कि मैं 1 महीने के लिए दुबई जा रही हूं!!" सुरभि अपनी बहन अवनी को घूरते हुए बोली।
" दीदी वह आप ही तो रोजी जीजू को फोन पर धमकी देते थे ना कि पूरे एक महीने के लिए हनीमून पर दुबई पर लेकर चलोगे वरना। तो बस!!"
" तो बस की बच्ची! तू छुप छुप कर हमारी बातें सुनती थी और सुनती थी तो सही! मम्मी को भी बता दिया तुमने सब कुछ।
बहुत बढ़िया!! आने दे बेटा तेरा टाइम भी। अच्छे से तेरी खबर लूंगी।" सुरभि उसके कान पकड़ हंसते हुए बोली।
अच्छा अब मैं चलूं। बहुत काम पड़ा है।
कहते हुए जैसे ही विद्या जी उठने लगी तो दोनों बहनों ने उनका हाथ पकड़ उन्हें वापस बैठा दिया।
"अरे बेटा, अब मैं ठीक हूं। तुम दोनों नाहक ही परेशान हो रही हो। अभी आराम का नहीं काम का समय है।"
"काम! काम! काम! सुबह से यही रट लगा रखी है आपने ! अभी से आपका यह हाल है तो मेरे जाने के बाद तो बिल्कुल भी अपना ध्यान नहीं रखोगे। अगर आप एक घंटा आराम नहीं करोगे तो मैं भी शादी!!!!" सुरभि गुस्से होते हुए बोली।
" यह क्या बच्चों जैसी जिद कर रही है तू!"
" मम्मी, आप ही की बेटी हूं जैसे आप जिद्दी हो वैसे ही मैं भी । पता है ना!!!" सुरभि उनकी आंखों में देख शरारत से बोली।
" हां हां पता है! लेकिन तू समझ नहीं रही बेटा!"
"समझ आप नहीं रही मम्मी! अगर इस समय आपकी तबीयत बिगड़ गई तो क्या मैं शादी कर पाऊंगी! मम्मी मुझे पता है। आप बहुत हिम्मतवाली हो। सब संभाल लोगे लेकिन सब संभालने के लिए भी तो शरीर को थोड़ा सा आराम दो! मम्मी क्यों इतनी टेंशन ले रही हो। जब आप जीवन के इतने बड़े-बड़े तूफानों से नहीं घबराए तो यह तो खुशी का मौका है। सब हो जाएगा। परिवारवाले हमारे साथ नहीं, ईश्वर तो हमारे साथ!" सुरभि प्यार से अपने मम्मी के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली।
" हां बेटा , उसके सहारे ही तो यहां तक पहुंची हूं!"
" बस तो मम्मी, एक दो घंटे आराम करो। उसके बाद काम। वैसे भी आपका सपना था कि मेरी शादी में आप खूब नाचोगी गाओगी!" कह दोनों उन्हें जबरदस्ती बिस्तर पर लिटा बाहर आ गई।
विद्या जी ना चाहते हुए भी आंखें मूंद लेट गई। बेटी की शादी में तो अच्छे अच्छों की नींद उड़ जाती है। फिर वह तो अकेली थी। कैसे चैन से सो सकती थी भला! बार-बार बेटियों के शब्द कान में गूंज रहे थे। मम्मी, आप तो बहुत हिम्मत वाली हो!
क्या सचमुच वह साहसी थी!!!
नहीं! वह तो शुरू से ही बहुत नाजुक दिल की थी। किसी की भी ऊंची आवाज सुन उसकी आंखों में आंसू आ जाते थे लेकिन हालात और वक्त के थपेड़ों ने उसे मजबूत बना दिया!
क्रमशः
सरोज ✍️