Shraap ek Rahashy - 8 in Hindi Horror Stories by Deva Sonkar books and stories PDF | श्राप एक रहस्य - 8

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श्राप एक रहस्य - 8

वो निम्न दर्ज़े का एक पुलिस स्टेशन था। जैसे कई महीनों से वहां कोई केस ही दर्ज नहीं हुआ हो, सभी कर्मचारी अपने अपने केबिन में सुस्ती से बैठे चाय गुडक रहे थे। ज्यादातर छोटे शहरों के छोटे छोटे थानों का यहीं हाल होता है। इलाक़े के लोग पुलिस के लफड़े में पड़ने से बेहतर छोटी छोटी समस्या का हल ख़ुद ही निकाल लेना मुनासिब समझते है। यहीं वजह होती है की ऐसे थाने के पुलिसकर्मियों की तोंद बाहर और पुलिसिया दिमाग़ काफ़ी अंदर धसा होता है।

जावेद को होश कहा था। कल रात से लेकर सुबह तक उसके दिमाग़ ने बहुत सी अजीब चीजें देखी थी। दोस्तों की मौत,अजीब से जानवर का बोलना, अजीब सी शर्ते रखना और उन शर्तो को पूरा करवाने के लिए उसकी लिली को जब्त कर लेना। वो तेज़ी से पुलिस स्टेशन के अंदर चला गया। अभी तक तो वो हाँफने भी लगा था। वो अंदर पहुँचा ही था कि शांत वातावरण में हलचल सी मच गई। सभी उसे देख खुसर फुसर करने लगे। तभी थाने का हवलदार एक कोने से उठकर आया और उसने जावेद के शर्ट की कॉलर पकड़ ली। मुँह में ठुसे गुटखा के रस को भीतर निगलकर उन्होंने बोलना शुरू किया..."का बे...कहीं से चोरी वोरी कर के आ रहे हो क्या। सुबह सवेरे थाने क्यों चला आया..? आत्मसमर्पण करने तो नहीं आया ना। देख यहां आत्मसमर्पण करने का कोई फायदा नहीं बहुत दिनों से हाथों की खुजली नहीं मिटी, बता क्या कांड कर के भागा है तू। अभी तेरी मरहम पट्टी करता हूँ।" इतना बोलकर वे अपने शर्ट के बाजुओं को ऊपर चढ़ने लगे।

जावेद ने देखा सामने ही फ्रंट टेबल पर एक टिप टॉप दर्जे के पुलिस इंस्पेक्टर बैठे थे। वो दौड़कर उनके पास पहुँचा।

"....स..सर मेरी बात प्लीज ध्यान से सुनिए। मैं कोई चोर नहीं हूँ। हम चारों एक यूट्यूब की टीम से है। हम कल रात घाटी की तरफ़ गए थे, आपने भी सुना होगा वहां कोई अजीब सी चीज़ इन दिनों लोगों को परेशान कर रही है। तो हम बस उसे ही कवर करने गए थे। आप यकीन नहीं करेंगे वो हमें मिला भी लेकिन मेरे दो दोस्त उसके हाथों मारे गए सर...और लिली को गायब कर दिया उसने।"...

"क्या कहा मारे गए यानी कि खून हुआ है"। जावेद की बात सुनकर सीनियर इंस्पेक्टर अपनी सीट से उठकर खड़े हो गए। उन्होंने तुरंत ही जावेद की तरफ़ पानी का ग्लास बढ़ाया और उसे बैठाकर उसकी पीठ में हाथ रखकर खड़े हो गए। और सबकुछ विस्तार से बताने को कहा। हालांकि उस घाटी में खून तो पहले भी हुआ था लेकिन आज तक किसी ने शिकायत दर्ज़ नहीं की। भोले भाले घाटी के लोग भला क्या किसी भुत पर शिकायत दर्ज़ करते। उनकी नज़र में "वो" भुत ही तो था। और जो कुछ भी उनलोगों के साथ हो रहा था, उसे वो नियति का खेल समझ कर लगभग चुप बैठे थे। सिर्फ़ पंडितो और बाबाओं के पास जाने के अलावे उन्होंने कोई दूसरा कदम घिनु के ख़िलाफ़ नहीं बढ़ाया। लेकिन आज पहली बार जावेद ने मौत की ख़बर सबसे पहले थाने को दी थी।
पुलिस की जीप अब घाटी वाले रास्ते मे सरपट भाग रही थी।

दूसरी तरफ़ गावँ वालों को दो अज्ञात लाश खेतो में मिली थी। जो कि यकीनन अमर और कनक की थी। लेकिन गावँ वालों को लग रहा था जैसे घिनु उन्हें सचेत कर रहा है, की वे लोग किसी तरह के बाबाओं को इस घाटी में निमंत्रण ना दे। शायद घिनु इस बात के लिए ख़फ़ा था कि कल ही यहां शहर के कोई बड़े बाबाजी आकर रुके है। आख़िर अफ़वाह ऐसी अफवाहें ही इन बाबाओं को तरक्की दिलवाते है। घाटी का माहौल आज फ़िर उदासी से भरा था। यहां का शांतिप्रिय जीवन धीरे धीरे खौफ़ के गर्त में समाता जा रहा था।

उधर बर्मन विल्ला में भी माहौल परेशानी से भरा था। घर का एकमात्र चिराग़ पिछले दो दिनों से घर से गायब था। सकुंतला जी कुणाल को लेकर घर से भाग गई थी और इस वक़्त वे किसी पुराने फ़ैक्टरी में थी। ये इसी शहर में था, इलाक़ा थोड़ा सुनसान ही था। किसी समय में ये फ़ैक्टरी भी आबाद हुआ करता था। फ़िर बाद में यहां एक दिन आग लग गयी थी, जिस से पूरी फ़ैक्टरी समान सहित ही बर्बाद हो गयी। इसके मालिक ने इसे किसी और को बेच जरूर दिया था लेकिन अब तक इसमें कोई नया काम शुरू नहीं हुआ था। यहां सर छुपाने के लिए छत तो था। यहीं छुपी थी सकुंतला जी। उन्हें पता था कि अखिलेश बर्मन कुणाल को ढूंढने के लिए अपनी जी जान लगा देंगे। इसलिए वो मामले के जरां सा ठंडा होने का इंतजार कर रही थी।

फ़ैक्टरी के पीछे के इलाके में एक बाज़ार लगता है, सकुंतला जी सोये हुए कुणाल को एक रस्सी से बांधकर बाज़ार से कुछ खाने पीने का समान लेने गयी थी, और आकर उन्होंने देखा :- कुणाल नींद से उठ गया था, हालांकि वो अभी भी रस्सी से बंधा हुआ ही था, लेकिन रस्सी के लम्बे होने की वजह से वो अपनी जगह से उठकर इधर उधर खेल रहा था। खेल खेल में ही वो एक बोरे के पास गया था, जिसमें से कुछ सफ़ेद धूल सा निकलकर नीचे ही फैला हुआ था। कुणाल उसी पाउडर को दोनों हाथों से रगड़ रहा था। और खिलखिलाकर हँस रहा था। सकुंतला जी ने जब पास जाकर देखा तो सफ़ेद पॉवडर नमक था। शायद फ़ैक्टरी में कभी किसी मिलाव के लिए नमक मंगवाई गयी होगी। लेकिन इस वक़्त नमक नन्हें कुणाल के बुरी तरह जले हुए हाथों के बीच रगड़ रहा था। ये वहीं वक़्त था, जब लिली ने घिनु को कुएं के अंदर रोते हुए सुना था।

क्रमश :_Deva sonkar