vichitr mohbbat arundhti ki part... 3 in Hindi Horror Stories by Yashoda Yashoda books and stories PDF | विचित्र मोहब्बत अरुंधति कि...! - 3

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विचित्र मोहब्बत अरुंधति कि...! - 3

पता किस धुन में थी की घर से इतनी दूर निकल आई और उसे पता ही नहीं चला, वहीं दूर एक घना और बहुत ही सुंदर सा पेड़ था, उस पेड़ के पीछे से एक जोड़ी आँखें अरू को ही देख रही थीं! अरु भी जैसे उसे देखने की चाह में उसकी ही ओर खींच जा रही हो!

धींमें कदमों के साथ वो रेलवे फाटक की और बढ़ने लगी जैसे ही उस पार जानें को हुई के तभी दूर से आती ट्रेन की आवाज़ सुनाई दी और धीरे धीरे ट्रेन की आवाज़ तेज़ होने लगी और देखते ही देखते ट्रेन तेज़ गति से उसकी ओर बढ़ने लगी

जैसे ही अरुंधति पटरी को पार करती के किसी अजनबी ने पीछे से हाथ पकड़ कर अपनी तरफ़ खींच लिया और अरुंधति की आंख खुल गई और एकदम से उठ के बैठ गई माथे से पसीना टपकने लगा था, साँस जैसे ऊपर नीचे होने लगी थीं की तभी देखती है की सुबह के पांच बज रहे थें और अगला स्टेशन मिर्ज़ा पुर जांगशन ही था, वो उतरने की तैयारी करने लगीं!

कुछ देर बाद ट्रेन स्टेशन मिर्ज़ा पुर जांगशन आ के रुकी और अरुंधति ट्रेन से उतरती है तो सामने धार्विक जी खड़े थे, अरुंधति जैसे ही अपने पापा को देखती है, तो तुरंत अपने पापा के गले से लग जाती है! कुछ देर बाद दोनों पैदल ही अपने घर को चल देते है! कुछ दूर चलते चलते आखिरकार घर पहुंच जाते है, और जाते ही अरुंधति पहले अपनी माँ से मिलती है और निगाहें इधर उधर दौड़ाती है तो…,सुहानी अभी घर में नही है वो स्कूल गई हुई! ऐसा वैजयंती जी मुस्कुराते हुए ही कहती है, अरुंधति बोलती है ठीक है माँ हम अपने कमरे में जा रहे है फ्रेश होने के लिए!

कुछ देर बाद नाश्ता वगैरा करती है, वैजयंती जी पूछती है पढ़ाई कैसी चल रही है अरुंधति बोली सब ठीक चल रहा है मम्मी अभी कॉलेज की छुट्टियां चल रही है और हॉस्टल में कोई है नहीं हमारे साथ की सभी लड़कियां अपने अपने घर गई है! हमने सोचा हम वहां अकेले क्या करेंगे इसलिए हम भी चले आए! धार्विक जी ने कहां अच्छा किया की तुम घर चली आई हम सारा दिन घर से बाहर ही रहते है अब तुम आ गई हो तो अपनी मम्मी और अपनी बहन का ख्याल रखना!

वैजयंती जी बोली हम्म इतनी दूर से वो हमारा ख्याल रखने के लिए ही तो आई है, वैजयंती जी को अरुंधति थोड़ी परेशान सी दिखी वैजयंती जी ने पूछा क्या हुआ है आरू तुम कुछ परेशान सी देख रही हो अरुंधति झूठ बोल देती है कहती है कुछ नही माँ हम थोड़ा थक गए है हम अपने कमरे में जा रहे है!

इतना बोल कमरे में जाके लेट जाती है जागते जागते ही जाने कब फिर से उसकी आँख लग जाती है, चांद की रोशनी से रात जगमगा रही है, और हवाओं संग उड़ती भीनी भीनी सी खुशबू से पूरा वातावरण महक रहा है, और उस खुशबू संग आरू भी खोती चली जा रही है

शेष,,,