Mamta ki Pariksha - 66 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | ममता की परीक्षा - 66

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ममता की परीक्षा - 66



डॉक्टर सुमन ने आश्चर्य से जमनादास की तरफ देखा जो अजीब सी हरकतें कर रहे थे। चेहरा दोनों हाथों में छिपाए हुए वह किसी से माफी का निवेदन किये जा रहे थे। सुमन कुछ देर उनके सामने खामोशी से खड़ी रही। जमनादास की नजर जैसे ही डॉक्टर सुमन पर पड़ी वह चौंक गए। अतीत की गलियों में भटकता उनका मन पल भर में यथार्थ के धरातल पर उतर कर डॉ सुमन के आने की वजह समझने का प्रयास करने लगा।

उनके हाथों में थमी फाइल पर नजर पड़ते ही जमनादास का दिल तेजी से धड़कने लगा। क्या होगा उन फाइलों में ? कैसी है उनकी बेटी रजनी ? उन्हें अपनी केबिन में आने का इशारा करके डॉक्टर सुमन तेजी से अपने कक्ष की तरफ बढ़ गई।

लॉबी में लोगों की आवाजाही को देखते हुए सुमन ने उनसे वहाँ बात करने का अपना इरादा त्याग दिया था। थके कदमों से चलते हुए सेठ जमनादास डॉक्टर सुमन की केबिन में उनके सामने पड़ी कुर्सियों में से एक पर बैठ गए। बैठते हुए उनकी नजरों में सवालिया भाव को पहचानते हुए डॉक्टर सुमन ने उनसे कहा, "सेठ जी, दरअसल अभी अभी हमें रजनी बेबी की एक रिपोर्ट मिली है। उसका जिक्र करने से पहले क्या मैं बेबी की दिनचर्या के बारे में कुछ जान सकती हूँ ? जो पता हो ,,सही सही बताइयेगा।"

" जी पूछिये ! " जमनादास का प्रभावशाली स्वर केबिन में गूँज उठा।

"क्या मैं बेबी की सही उम्र जान सकती हूँ ?"

"क्यों नहीं डॉक्टर ! बेबी ने पिछले महीने ही उन्नीसवाँ साल पूरा कर बीसवें में प्रवेश किया है।"
"ओ के ! क्या पढ़ रही हैं ?"

" कॉलेज में सीनियर सेकंड ईयर की छात्रा है मेरी बच्ची ! लेकिन आप ये सब क्यों पूछ रही हैं ?" अब जमनादास अधीर हो चुके थे और डॉक्टर सुमन के रहस्यमय बर्ताव से आशंकित भी।

उनके चेहरे पर नजरें गड़ाए हुए डॉक्टर ने सामने रखा पानी का गिलास उनकी तरफ सरकाया, "पानी पी लीजिये सेठजी! शायद आपको प्यास लगी है।"

काँपते हाथों से पानी का गिलास उठाते हुए भी जमनादास की नजरें डॉक्टर सुमन के क्रियाकलापों पर ही जमी हुई थीं।

मेज पर रखी फाइल में कुछ पन्ने पलटते हुए डॉक्टर सुमन ने रहस्यमय स्वर में सेठ जमनादास से कहा, " बेबी की एक रिपोर्ट आई है जिसमें बताया गया है कि वह दो महीने की गर्भवती है। क्या आपको यह पहले पता था ?"

" कैसी बात कर रही हो डॉक्टर ? आप क्या समझ रही हो कोई भी बाप अपनी अविवाहित बेटी की ऐसी खबर को जानकर खुश होगा और खामोश रहेगा ?" कहते हुए सेठ जमनादास खासे उत्तेजित हो गए थे।

"शांत रहिये सेठ जी और धैर्य रखिए। मैं आपकी झुँझलाहट को समझ सकती हूँ, लेकिन मैंने जो कुछ भी आपसे पूछा है उसके पीछे मेरा एक ही मकसद था कि ऐसी स्थिति में मैं आपका सही दिशानिर्देश कर सकूँ। ..लेकिन लगता है मेरा कुछ पूछना आपको नागवार गुजरा है, तो कोई बात नहीं। देखते हैं ...!" कहने के बाद फाइल बंद करते हुए डॉक्टर सुमन ने कहा, "अब आप जा सकते हैं सेठजी ! इस रिपोर्ट की जानकारी आपको देनी जरूरी थी इसलिए आपको तकलीफ दिया।"

"अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है डॉक्टर ! मुझे कुछ भी नागवार नहीं गुजरा। आपने तो सही ही किया जो यह बात मुझे यहाँ एकांत में बताई है आपने। मैं आपका शुक्रिया अदा करता हूँ। मेरा एक निवेदन है आपसे। आप यह बात किसी से साझा नहीं करिएगा।" अचानक सेठ जमनादास के व्यवहार में अजीब सा बदलाव आ गया था। एक दंभी सेठ का आवरण छोड़कर अब एक बाप अपने बेटी की इज्जत को ढंकने का पुरजोर प्रयास कर रहा था।

गालों में ही मुस्कुराते हुए सुमन ने कहा, "आप बिलकुल निश्चिंत रहिये सेठ जी इस बारे में। हमारे अस्पताल से ऐसी कोई जानकारी बाहर नहीं जाएगी, लेकिन आप किस किस से छुपायेंगे यह सब और कब तक छुपायेंगे ?"

"अब हमारी इज्जत आपके ही हाथ में है डॉक्टर साहिबा !" हाथ जोड़ते हुए सेठ जमनादास डॉक्टर की खुशामद पर उतर आये, "आप जो भी रकम चाहेंगी आपको मिल जाएगा लेकिन मुझे और मेरी बेटी को इस मुसीबत से बचा लीजिये। एबॉर्शन कर दीजिए।"

चिंता की लकीरें गहरी हो आई थीं सुमन के माथे पर। कुछ सोचते हुए वह बोलीं, "सेठ जी, ऐसा हो सकता है। ऐसी परिस्थिति में गर्भपात किया जा सकता है जबकि लड़की अविवाहित हो लेकिन गर्भपात के लिए हमें उसके लिखित सहमति की जरूरत पड़ेगी। बिना उसकी सहमति के हम ये काम नहीं कर सकते। हो सके तो जाइये और समझाइए अपनी बेटी को।"

"लेकिन आपको उसके सहमति की क्या आवश्यकता है ? अभी मैं जो हूँ उसका पिता उसका संरक्षक।" जमनादास जानते थे कि रजनी उन्हें इस बात की इजाजत कभी नहीं देगी इसलिए अंतिम प्रयास के तौर पर उन्होंने कहा था।

"आप उसके संरक्षक हैं सेठजी, इससे इनकार नहीं। लेकिन अब चूँकि बेबी बालिग हो चुकी है इसलिए अपने शरीर से संबंधित सभी फैसले वह खुद ही ले सकती है। अब वह आपकी बात मानने के लिए बाध्य नहीं है सेठजी। कानूनन हमें उसी के सहमति की आवश्यकता पड़ेगी।" डॉक्टर सुमन ने पुनः स्पष्ट किया।

थके कदमों से धीरे धीरे चलते हुए जमनादास डॉक्टर के कक्ष से बाहर आ गए और फिर वहीं बैठ गए जहाँ कुछ देर पहले बैठे थे। उनकी अवस्था देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उनके जिस्म से किसी ने पूरा खून निचोड़ लिया हो। जिस्म बेजान सा बेंच की पुश्त से टिका हुआ था। आँखें स्वतः ही बंद होने लगी थीं। वह किसी भी तरह से सुमन को इस बात के लिए बाध्य करना चाहते थे कि वह उसकी बात मानकर रजनी का एबॉर्शन कर दे लेकिन उनकी जुबान से यह बात निकल ही नहीं सकी। आँखें बंद होते ही अनायास ही उनके सामने साधना की तस्वीर नाचने लगी। रोती बिलखती साधना की तस्वीर अचानक ठहाके लगाने लगी। उसके ठहाकों की आवाज जब असहनीय होने लगी तो घबराकर जमनादास ने अपने दोनों हाथ कानों पर रख लिया। उनकी घबराहट ज्यों ज्यों बढ़ती गई, साधना के ठहाके भी उसी अनुपात में बढ़ते गए।

अचानक जैसे साधना के ठहाकों में ब्रेक लग गया हो , क्रोध से उसका चेहरा अंगारे की मानिंद दहकता हुआ सा लगा जमनादास के अंतर्मन को ! किसी जख्मी नागिन सी फुंफकारती हुई साधना की सर्द आवाज उसके कानों में गूँजने लगी, 'क्या हुआ जमनादास ? बेटी के गर्भवती होने की खबर सुनकर ही तुम्हारे पैरों तले से जमीन क्यों खिसक गई है ? अब तुम्हें उसके लिए मन में तड़प हो रही है लेकिन यह क्यों भूल गए कि मैं भी किसी की बेटी थी , किसी की बीवी थी और गर्भवती भी ? क्या किया था तुमने ? तब तुम्हें मेरी तड़प का अहसास क्यों नहीं हुआ था ? अब तुम्हें अहसास हो रहा होगा कि एक बाप अपनी बेटी के दुःख से कितना दुःखी होता है ?'

क्रमशः