Rabta - Last Part in Hindi Love Stories by जॉन हेम्ब्रम books and stories PDF | राब्ता - अंतिम भाग

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राब्ता - अंतिम भाग

रविवार था सब घर में ही थे बाई आज काम पर नहीं आई हुई थी। राजेश इसी उधेड़बुन में था की क्या किया जाए। अचानक उसकी मां उसके कमरे में आ जाती है।
"अरे आप क्यों… मेने मना किया था ना सीधी चढ़ने से कुछ जरूरत थी तो मुझे बुला देती।"
"अब क्या करूं खुद को रोक न पाई। ये देख मेने एक और लड़की ढूंढी है तेरे लिए।" उसकी मां ने उसे एक फोटो दिखाते हुए कहा।
ये सुन राजेश ने अपनी मां का हाथ पकड़ा और बिस्तर पर बैठाया कुछ देर मौन रहा फिर बोल — "मां मैं ये शादी नहीं कर सकता।"
"ये तू क्या कह रहा है?" उसकी मां ने आश्चर्य से पूछा।
"आप…"
"क्या बात है क्या तुझे कोई और लड़की पसंद है।"
"नहीं!"
"तू बता ना आखिर बात क्या है?"
"मैं नहीं चाहता की मेरी वजह से किसी की जिंदगी बर्बाद हो।"
"क्या? तू साफ साफ बोल।"
"मां में गै हूं।"
"हां तो क्या हो गया।"
"मतलब मुझे लड़के पसंद है।"
"क्या?" उसकी मां के हाव भाव बिलकुल बदल से गए।
"हां!"
"क्या मतलब?"
"समझने की कोशिश करिए यही सच है।"
बिना कुछ बोले ही उसकी मां राजेश के कमरे से बाहर चली गई।
शाम के वक्त राजेश दोबारा अपनी मां के कमरे में गया।
"क्या बात है?" उसकी मां ने उससे पूछा।
"आपको कोई परेशानी तो नहीं है?"
"हां मैं समझ चुकी हूं, अब अगर तुम्हे शादी नहीं करनी तो साफ साफ बोल दे ना इतना नाटक करने की जरूरत क्या है?"
"पर!"
"अब तू जैसा चाहे, हम तुम्हारी शादी नहीं कराएंगे। जिसे मेने पसंद किया था वो तो किसी और के साथ ही भाग गई।" अलमारी में कपड़े रखते हुए उसकी मां ने उससे कहा।
कुछ दिनों बाद सब पहले जैसा हो गया उसकी मां ने शादी की बात करनी बंद कर दी। बाई अब रोज काम पर आती थी और घर के सारे काम करती थी।
काम से आने के बाद राजेश अकसर थका हुआ होता था लेकिन इतने थके होने के बावजूद उसके काम खत्म न होते थे लेकिन अब बाई सब संभाल लेती थी।
एक दिन दोबारा उस अजनबी का मैसेज आया।
"तो अब क्या सोचा है तुमने?"
"दरअसल में तुम्हारा धन्यवाद करना चाहता हूं मुझे लगा सबको सच बताने के बाद वो मुझे नहीं समझेंगे पर मेरे परिवार ने मुझे समझ और मुझे खुशी है।"
"चलो सब ठीक हो गया।"
"वैसे में तुमसे मिलकर तुम्हारा धन्यवाद करना चाहता हूं।"
"तो मिलते है।"
"कहां?"
"वहीं जहां हम पहली बार मिले थे।"
"ठीक है सुबह दस बजे।"
"मिलते है फिर!"

खाना खत्म कर वे बातें करने लगे। इतने में वेटर बिल लेकर आ गया।
"मैं देता हूं।" राघव ने कहा।
"अरे नहीं मैं दे देता हूं ना।" राजेश ने उसे मना करते हुए कहा।
"ये लो।" राघव ने वेटर को बिल देते हुए कहा।
"कोई बात नहीं अगली बार तुम दे देना।" राघव ने राजेश की ओर देखकर कहा।
उनकी इस मुलाकात के बाद दोनो ने रोजाना मिलना शुरू कर दिया और ऑनलाइन बातें करने लगे कई दिन बीत गए। धीरे - धीरे उनकी मुलाकात प्यार में बदल गई। राजेश के माता पिता अब इस संसार में नहीं रहे पर उसे एक हमसफर मिल गया था। जो उसके साथ अब भी था।

[ समाप्त ]