तन्हाइयों का गीत
मेरी ख़ामोशियाँ गुनगुनाने लगी
मेहफ़िलों की रीत
जब हम पे क़हर ढाने लगी।
"सर, मैडम इनसे मिलये, यह है मिस्टर शब्बीर हसन है, हसन ग्रूप आफ़ॅ इन्डस्ट्रिज़ के चैयरमेन।" उनकी कम्पनी का मेनेजर आसिफ़ा बेगम और जावेद शफ़ीक ख़ान से उनका इन्ट्रोडक्शन करवा रहे थे। जावेद ने उनसे हाथ मिलाया था। आसिफ़ा बेगम भी उनसे बड़ी ख़ुशदिली से मिलीं थीं।
उनका मेनेजर अगर शब्बीर हसन का introduction as an industrialist कह कर ना भी करवाता तो भी उनके सूट बूट से उनकी रइसी का पता चल रहा था। उनकी उम्र लगभग ५५ के क़रीब होगी मगर वह इतनी उम्र के नहीं लगते थे। उन्होंने ख़ुद को काफ़ी फ़िट रखा हुआ था, हाईट भी उनकी अच्छी थी यूं देखा जाए तो वह एक शानदार personality के मालिक थे।
आसिफ़ा बेगम और जावेद दोनों ने उन्हें प्रोटोकॉल दी थी।
किसी वक़्त में उनकी और ज़मान कन्सन्ट्रेशन कम्पनी के अच्छे ताल्लुकात हुआ करते थे। ज़मान कन्सन्ट्रेशन कम्पनी अपनी raw materials उन्हीं की कम्पनी से लेती थी, मगर फिर price quotations को लेकर दोनों कम्पनियों में अन-बन हो गई थी। शब्बीर हसन की कम्पनी ज़मान कन्सन्ट्रेशन कम्पनी को मार्केट रेट से ज़्यादा चार्ज कर रही थी।
इन सबके बावजूद शब्बीर हसन की कम्पनी अभी काफ़ी ऊरुज पर चल रही थी। मरता क्या ना करता वाला हाल हुआ था,आसिफ़ा बेगम ने ऐसे ही कुछ चुनिंदा नामों को अपने मैनेजर से डिस्कस कर के इन्वाइट किया था। ना चाहते हुए भी इस मुअमले में उमैर को मां की बात माननी पड़ी थी और शब्बीर हसन को इन्वाइट किया गया था। घर पर पार्टी अरेंज करने का मक़सद यही था कि वह ऐसे दिग्गजों को यह बताना चाहती हैं कि यह कोई official party नहीं है, यह बस फ़ैमिली की ख़ुशी में शामिल होने की दावत है। ताल्लुकात को बढ़ाने की पहल है। दावत दी तो गई थी लेकिन किसी को उम्मीद नहीं थी के शब्बीर हसन आयेंगे, मगर उन्होंने शिरक़त करके सबको हैरान कर दिया था।
"आपने कुछ लिया नहीं?....वेटर!..." आसिफ़ा बेगम उनकी ख़ातिरदारी में लगी हुई थी। जावेद शफ़ीक के साथ बातों का सिलसिला चल पड़ा था जब अचानक से शब्बीर हसन ने पूछा था।
"वह लड़की कौन है?" पास ही खड़ी किसी औरत से बात करती आसिफ़ा बेगम उनकी बात पर मुड़ीं थी और शब्बीर हसन की नज़रों का पीछा करते हुए उनकी नज़र अज़ीन पर रूक गई थी जो किसी अनजाने लड़के के साथ खड़ी थी।
"वह उमैर ख़ान की साली अज़ीन ज़हूर है।" जावेद शफ़ीक ने उन्हें बताया था। तीनों की नज़रें उन्हीं दोनों पर टिकी थी।
"Actually वह उसके साथ खड़ा लड़का मेरा बेटा है, साहिर हसन।"
एक जलन की कैफ़ियत ने आसिफ़ा बेगम को आन घेरा था। वह शोले बरसाती अपनी नज़रों से उन दोनों को घूर रही थी।
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"इतनी ज़्यादा नाराज़गी? ऐसी भी क्या बात हो गई के घर पर पार्टी थी और तुम ने मुझे इन्वाइट तक नहीं किया?" वह उसकी आंखों में आंखें डाल कर मुस्कुरा कर कह रहा था। अज़ीन हैरान और परेशान सी उसे देखती रह गई, वह जवाब देती भी तो क्या देती, यह बन्दा उसका पीछा करते हुए उसके घर तक पहुंच गया था और इतनी ढिठाई से उस से बातें कर रहा था, जैसे पिछले दिनों अज़ीन के साथ उसकी कोई अन-बन ही नहीं हुई थी, दोनों के बीच अच्छी खासी दोस्ती हो।
अज़ीन घर पर कोई तमाशा देखना नहीं चाहती थी। वह तेज़ क़दम उठाती वहां से हटना चाहती थी मगर वह उसके साथ साथ ही चल रहा था। और साथ ही कुछ ना कुछ कहे भी जा रहा था। देखने वालों को यह लग रहा था कि वह दोनों साथ है और टहलते हुए बातें कर रहे हैं।
हदीद को एक चुभन सी हुई थी जिसे वह कोई नाम नहीं दे पाया था। अपने अन्दर बार बार ख़ुद को समझा रहा था मगर नज़रें थी कि बार बार उन्हीं दोनों पर उठ रही थी।
अज़ीन साहिर हसन की इस हरकत से तंग आ चुकी थी जबहि लाॅन के एक सन्नाटे हिस्से में रूकी थी साथ ही साहिर भी हंसता हुआ उसके पास खड़ा हो गया था। वह अज़ीन की परेशान और घबराई हुई situation को enjoy कर रहा था।
"क्यूं मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े हो?... तुम्हें बात क्यूं नहीं समझ आती? नहीं करती मैं तुम से मोहब्बत... समझे तुम?" अज़ीन ने सख़्त गुस्से में भी अपनी आवाज़ धीमी रखी थी।साहिर उसकी हालत पर ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा था।
"बहुत ख़ुबसूरत लग रही हो तुम। तुम्हें पता होगा फिर भी मैं बता देता हूं। ख़ुबसूरती की तारीफ़ करना ख़ुबसूरती को बढ़ावा देने जैसा होता है। और मैं मानता हूं हर ख़ुबसूरत चीज़ की बढ़ चढ़ कर तारीफ़ करनी चाहिए ताकि वह और भी ज़्यादा ख़ूबसूरत हो जाए।" वह अज़ीन की कहीं गयी बातों से हटकर बात कर रहा था। अज़ीन जैसे पागल होने को थी।
"तुम ऐसा क्यों कर रहे हो। मोहब्बत ज़बरदस्ती नहीं करवाई जाती।" उसकी हालत रोने जैसी हो रही थी और उसकी इस हालत को देखकर साहिर को दिली ख़ुशी हो रही थी।
मैंने कब कहा है कि तुम भी मुझसे मोहब्बत करो? मैं तुम से करता हूं, मेरे लिए बस यही काफ़ी है, ज़बरदस्ती वाली तो कोई बात ही नहीं है।" उसकी रोनी सूरत देख कर वह लय पर आ गया था।
"मेरी मोहब्बत की इन्तहा तो देखो! अपने डैड को भी इस पार्टी में साथ लाया हूं। ताकि मिलना जुलना बढ़ सके आख़िर रिश्तेदारी का मुअमला है।" उसकी बातें सुनकर अज़ीन की आंखें फटी की फटी रह गई थी और साहिर को उसे shock देने में काफ़ी मज़ा आ रहा था।
"ऐसा नहीं हो सकता!" अज़ीन ने दांत पीसते हुए कहा था।
"क्यूं ऐसा नहीं हो सकता? ओह! तुम्हारी मोहब्बत...? क्या नाम बताया था उसका?...." साहिर पेशानी पर अपनी उंगली से दस्तक दे रहा था। आज वह पूरे एक्टिंग के मूड में था।" हां याद आया! हदीद ख़ान।" उसने चुटकी बजाकर कहा था। अज़ीन को वह मुक्ममल ज़हर लग रहा था।
"वह ऐसा होने नहीं देगा क्या?" अचानक से वह सीरीयस भी हो गया था।
"देखते है! वह रोक सकेगा कि नहीं?" उसने जैसे उसे चैलेंज किया था।
"अभी तो वह कुछ नहीं कर सका, मैं उसके घर में तुम्हारे साथ हूं, उससे दूर, सब से दूर, महफ़िल की भीड़ से दूर तुम से अकेले में बातें कर रहा हूं फिर भी उसका कोई अता-पता नहीं है।" उसने अज़ीन के भरोसे और मान का मज़ाक उड़ाया था।
अज़ीन को उसकी बात से अचानक ख़्याल आया था कि उसके आसपास सही में कोई भी नहीं है। वह उल्टे पांव वहां से भागी थी मगर इस बार साहिर उसके पीछे नहीं आया था बल्कि उसकी ज़ोरदार हंसी ने अज़ीन का दूर तक पीछा किया था।
वह एक बार फिर से पार्टी की भीड़ का हिस्सा बन गई थी। खोजती हुई नज़रों ने हदीद को छान मारा था मगर वह कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। काफ़ी देर तलाश करने के बाद वह उसे दिखा था वह भी एक अजनबी लड़की के साथ।
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