Tamacha - 7 in Hindi Fiction Stories by नन्दलाल सुथार राही books and stories PDF | तमाचा - 7 (चाय पे चर्चा)

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तमाचा - 7 (चाय पे चर्चा)

कॉलेज के केंटीन में राकेश और मनोज चाय आर्डर करते है। "और सुना भाई कैसी रही तेरी पहली क्लास?" मनोज ने राकेश को उत्सुकतावश पूछा।
"क्या बताए यार! एक दिव्य लड़की दिव्या मेरी पास बैठी थी । पता है वो विधायक श्यामचरण वर्मा की बेटी थी पर खड़ूस टीचर ने तो मेरी शुरुआत ही खड़ूस कर दी।"
"क्यों! क्या हुआ?"
"कोई नहीं यार छोड़ उसको पर वो लड़की वास्तव में कमाल की थी।" राकेश ने अपनी आँखों को उसकी सूरत याद दिलवाकर बोला।
"क्या यार! तू अभी तक सुधरा नहीं । और उसके पीछे तो देखना ही मत ! वरना विधायक को तो तू जानता ही है।"मनोज ने राकेश को समझाते हुए कहा।
"हा यार! फिर भी उसको देखकर मन में जो घंटिया बजी उसका कंपन अभी तक मेरे हृदय में हो रहा है। उसकी सूरत आँखों से हटती ही नहीं क्या करूँ। " राकेश ने टेबल पर अपनी कोहनियों को रखकर अपने दोनों हाथों को अपने गालों पर रखते हुए बोला।

तभी उनकी चाय टेबल पर आ जाती है और दोनों चाय पीने लगे। तभी राकेश हाथ में चाय का कप लिए बोलता है"खैर , मेरी छोड़ तू सुना कैसी रही तेरी क्लास? तेरे तो साइंस है इसलिए खूब लड़किया होगी क्लास में?"
"तेरे को भला लड़कियों के अलावा कुछ सूझता भी है? मैं यहाँ लड़कियां देखने नहीं पढ़ने आया हूँ, और तू भी यार पढ़ाई पर ध्यान दे वरना फिर पछताना पड़ जाएगा।"
"क्या यार! तूने अभी तक उपदेश देने छोड़े नहीं?"
"हाँ भाई, तुझे तो उपदेश ही लगेंगे। तू मेरा दोस्त है इसलिए बोल रहा हूँ , वरना मुझे क्या पड़ी है, आज से कुछ बोलूंगा ही नहीं तुझे।" मनोज ने नाराजगी भरे स्वर के साथ कहा।
" क्या भाई , तू तो नाराज हो गया। मुझे पता है तू सही कहता है पर मेरी आदत ऐसी ही है ,तुझे पता तो है न!"
राकेश अपनी चाय खत्म करके कप टेबल पर रखते हुए बोला।
"ओके भाई , अब चले क्या अगली क्लास शुरू होने वाली है।" मनोज कुर्सी से उठते हुए बोला। लेकिन राकेश ने उसे पकड़कर वापस बिठाते हुए बोला " रुक न यार थोड़ी देर! अभी कौनसी जल्दी है । "
"जल्दी है , तेरे तो पढ़ना है नहीं ,पर मुझे पढ़ना है।"
"हा भाई , चलते है फिर , शायद मेरी दिव्या भी आ गई हो क्लास में, और मेरा इंतजार कर रही हो।" राकेश ने अपने स्वर में मादकता लिए हुए कहा।
" हा! हा! तू और तेरी दिव्या। कभी मरवाएगा तू मुझे भी अपने साथ।" मनोज अपनी जेब से पर्स निकालते हुए बोला।
" हाँ भाई , दोस्त सिर्फ सुख में ही साथ दे वह थोड़ी दोस्त होता है, असल दोस्त तो वह होता है जो मुसीबत में भी साथ ही रहता है। और पर्स वापस जेब में रख दे, आज के पैसे में ही दूंगा।" राकेश भी अपना पर्स निकालता है।
" मैं तेरी इन फालतू की मुसीबतों में साथ देने वाला नहीं हूँ, अभी बोल देता हूँ, और पैसे तो मैं ही दूंगा।" इस अवस्था में अक्सर दोस्तों में पैसे देने की होड़ लगी रहती है। और तब तक लगी रहती है जब तक बापू से पैसा मिलता रहे। दोनों की होड़ में आखिर राकेश ने पैसे दे दिए इस शर्त पर की अगली चाय मनोज की तरफ से होगी।
"चले फिर!"
मनोज ने साथ में इशारा करते हुए बोला।
"हा भाई! चलो तुम्हारी भाभी दिव्या इंतजार कर रही होगी।" राकेश हँसी-हँसी में बोला और जाने के लिए पीछे मुड़ा। तभी देखा कि पीछे वाली टेबल पर दिव्या अपनी आँखों में खून लिए हुए बैठी थी।



क्रमशः .....