BOYS school WASHROOM - 21 in Hindi Moral Stories by Akash Saxena "Ansh" books and stories PDF | BOYS school WASHROOM - 21

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BOYS school WASHROOM - 21

अविनाश टॉर्च घुमाता हुआ तेज़ी से वाशरूम की तरफ़ बढ़ता है…..उसके भीगे जूतों की " पचर-पचर" की आवाज़ वहाँ अलग ही शोर मचा रही होती है। वो फट से वाशरूम का गेट खोलने लगता है…..लेकिन उसके ज़रा सा धक्का देने से ही गेट किसी चीज़ से टकराकर अटक जाता है।…..


वो और ताकत लगाता है तब जाकर दरवाज़े के साथ घिसटते हुए किसी चीज़ के शोर के साथ दरवाज़ा खुलता है। अविनाश जल्दी से अंदर घुसकर वहाँ देखता है तो उसे बेसिन का एक टूटा हुआ टुकड़ा दिखाई देता है जो दरवाज़े के नीचे अटक रहा होता है…..वो उसे पैर से ठोकर मारते हुए दरवाज़े के नीचे से निकालकर एक तरफ़ सरका देता है। इसी बीच उसकी टॉर्च छूटकर वहीं गिर जाती है जिसकी रोशनी उस बेसिन के ही टूटे हुए टुकड़े पर पड़ती है।


अविनाश जैसे ही टॉर्च उठाने के लिए नीचे झुकता है उसकी नज़र बेसिन पर पड़ती है और वो उसे और करीब से देखने के लिए नीचे बैठ जाता है।


अपनी आँखों को दो तीन बार कस के मीचने के बाद उसे बेसिन पर हल्का सा खून नज़र आता है….तभी वहां कुछ हलचल सी होती है जिसकी वजह से उसका ध्यान हटता है और वो झट से अपनी टॉर्च उठाकर खिड़की की तरफ़ घुमाता है….जिसका कांच अध पर हो चुका होता है….बेसिन को भूल वो उठकर एक वाशरूम में जाने लगता है।


वो वाशरूम का लॉक पकड़कर घुमाता है लेकिन उसका दरवाज़ा नहीं खुलता….और उसे बोहत ज़ोर से टॉयलेट लगी होती है...जिसकी वजह से उसका दिमाग़ भी चल नहीं रहा होता….वो एक-दो बार कोशिश करता है और फ़िर वो सोचता है की शायद ये जाम हो गया है….और वो आगे बढ़कर दूसरा वाशरूम यूज़ करने लगता है..….वाशरूम से बाहर आकर वो जैसे ही हाथ धोने के लिए नल चालू करने ही वाला होता है….तभी उसे फ़िर कुछ हलचल सी महसूस होती है….और इस बार उसका मन नहीं मानता।


वो टॉर्च पर अपनी पकड़ मज़बूत कर वापस वाशरूम की तरफ़ अपने कदम बढ़ाता है….

अविनाश(डरी सी आवाज़ मे)-कौन है?........कोई है यहाँ?


तभी वाशरूम में फ़ोन बजने की आवाज़ होती है और वो एकदम से डर जाता है…...तेज़ धड़कनों के साथ वो फ़ोन ढूंढता है जो की उसी टूटे बेसिन में पड़ा होता है

और बिना एक पल भी वहाँ और रुके वो फटाफट से फ्री होकर वापस प्रज्ञा के पास पहुंचता है और दोनों ही भीगे होने की वजह से ठंड से कपकपाने लगते हैं।


तभी वॉचमैन-मैंने आपसे कहा था न साहब सब बच्चे मौसम बिगड़ने से पहले ही यहाँ से निकल चुके थे।


लेकिन हमारा बेटा अब तक….. "प्रज्ञा वॉचमैन को जवाब दे ही रही होती है की "


अविनाश जेब से फ़ोन खींचते हुए -अच्छा! बच्चे निकल चुके थे, तो ये मेरे बेटे के दोस्त का फ़ोन यहाँ क्या कर रहा है????


प्रज्ञा और वॉचमैन दोनों फ़ोन की तरफ़ देखते हैं तो उसमें अमन की फोटोज का एक कोलाज वॉलपेपर पर लगा होता है जिसमें यश के साथ बाक़ी कई लोगों की भी तस्वीरे होती हैं….


प्रज्ञा-ये फ़ोन! फ़ोन तुम्हें कहाँ मिला अवि….यश कहाँ है? और अमन...अमन भी तो यहीं होगा।


अविनाश-ये तो वो वाशरूम में पड़ा हुआ था…. लेकिन वहाँ कोई नहीं है….

और हाँ वाशरूम में बेसिन टूटा पड़ा है(अविनाश वॉचमैन से)


वॉचमैन-क्या पता साहब! बच्चे हैं फेयरवेल में करते ही हैं...और हो सकता है जल्दबाज़ी में ये फ़ोन वहाँ गिर गया हो…


अविनाश गुस्से से-कहना क्या चाहते हो तुम….


वॉचमैन आवाज़ दबाता हुआ-कुछ नहीं साहब...मेरा वो मतलब नहीं था…

मेरी माने तो आपको पुलिस के पास जाना चाहिए"... वॉचमैन ने अविनाश की तरफ़ देखते हुए कहा।


अविनाश ने प्रज्ञा का हाथ थामा और वहां से मायूस होकर लौटने लगे….वॉचमैन भी अपनी बाहें अपने शरीर से लपेटकर उनके पीछे-पीछे ही बाहर की तरफ़ जाने लगा।


तीनों ख़ामोशी से चले जा रहे थे और तूफान की तेज़ ठंडी हवाएं उनके बीच से चिल्लाती हुई दौड़ रहीं थी।


लेकिन ठंड से ज़्यादा प्रज्ञा को टेंशन मारे डाल रही थी….अंदर ही अंदर उसका मन कह रहा था की यश यहीं कहीं उसके पास ही है….लेकिन वो करती भी क्या उसने ख़ुद ही स्कूल की हर जगह तलाश ली थी। वहां कहीं भी यश का नामो-निशान तक नहीं था….तीनों कॉरिडोर से होते हुए वापस आये और वापस हिम्मत जुटाकर बर्फ सी ठंडी बारिश में उतरने लगे…...तभी अविनाश का फ़ोन बज उठा और वापस कदम लेकर उसने जल्दी से अपना फ़ोन जेब से,फ़िर पन्नी से निकाला।...और एक नज़र नेटवर्क पर डालकर (जिसके दो डंडे लड़खड़ा रहे थे) उसने नाम देखते हुए तुरंत फ़ोन कान पर लगाया।


अविनाश-हल...हैलो!(कांपते हुए).....हैलो सर!


ह….ह...है…. ो प्रिंसिपल की घिरघिराती हुई हल्की सी आवाज़ फ़ोन से आते हुए।


अविनाश तुरंत ही अपनी ऊँगली से दूसरा कान बंद करते हुए एक क्लास के अंदर चला जाता है और प्रज्ञा और वॉचमैन भी।


हैलो अविनाश!...हैलो…तुम्हारी आवाज़ नहीं आ रही….हैलो (साफ़ आवाज़ में)


हैलो कार्तिक(प्रिंसिपल)!....कार्तिक मै अभी यहाँ स्कूल मे हूँ। (अविनाश आवाज़ तेज़ करते हुए)


कार्तिक-स्कूल में...वो भी इस वक़्त….???


उससे पूछो ना अवि यश के बारे में(प्रज्ञा बीच में बोलती हुई)


कार्तिक-अरे क्या प्रज्ञा भी तुम्हारे साथ है...और तुम कर क्या रहे हो स्कूल में वो भी इस मौसम में?


अविनाश-हम यश को ढूंढ़ रहे हैं….वो पार्टी के बाद घर नहीं पहुँचा….तो हम यहाँ उसे ढूंढ़ने चले आये….क्या यश तुम्हारे साथ है?


कार्तिक-क्या मतलब घर नहीं पहुँचा….वो तो__________


हैलो! हैलो कार्तिक….अविनाश फोन देखता है तो उसमें से नेटवर्क गायब हो चुका होता है और कुछ बोलने से पहले ही कॉल कट गया।


अविनाश ने दोबारा से कार्तिक का नंबर लगाया और फ़ोन को हवा में घुमाने लगा…..कई बार कोशिश करने के बाद भी उनका कॉल दोबारा कनेक्ट नहीं हुआ।


"साहब अब तो आपकी मालिक से भी बात हो चुकी है….मैंने आपसे पहले ही कहा था यहाँ कोई बच्चा नहीं है। आप मैडम को लेकर घर जाइये...क्या पता आपका बच्चा आपकी ही राह देखता हो...और मुझे भी जाने दीजिये….सब दरवाज़ों की कुंडी लगानी पड़ेगी अब जाकर।"वॉचमैन अपने हाथ मलते हुए बोला।


अविनाश और प्रज्ञा दोनों ही उसकी बात तो समझते हैं...लेकिन प्रज्ञा का दिल फ़िर गवाही नहीं देता की वो वहां से चली जाये…अविनाश उसके हाव-भाव समझता है और वॉचमैन को समझाते हुए कहता है-देखो कार्तिक!...मेरा मतलब तुम्हारा मालिक मेरा दोस्त है और तुम्हें चिंता है किसी बात की...तुम्हें जो करना है,,, करो मै फ़िर ट्राय करके देखता हूँ कोई मदद के लिए आ सके तो….अगर कुछ नहीं हुआ तो हम यहाँ से फ़िर सीधा पुलिस स्टेशन ही जाएंगे।



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"ठीक है साहब मुझे करना भी क्या है….मै चला कपड़े बदलने...आप करो जो करना हो...बात तो हो ही चुकी है आपकी मालिक से" इतना कहकर वॉचमैन वहां से फ़िर बारिश मे उतरते हुए जाने लगता है। ज़रा से आगे बढ़ते ही वो फ़िर मुड़कर अविनाश से कहता है "मेरे पास एक रेनकोट पड़ा है अगर आपको ज़रूरत हो तो लेते जाना…ऐसा तूफ़ान आज तक नहीं देखा" इतना कहकर वॉचमैन अपना सर घुमा ही पाता है की एक लोहे की टीन शेड कहीं से उड़ते हुए आकर उसके सामने से गुज़रती हुई जाकर एक पेड़ के तने को काटती हुई उसमें जाकर धंस जाती है….और वॉचमैन की आँखें फ़टी की फ़टी रह जाती हैँ...एक कदम आगे और उसका सर।


ये देखकर अविनाश उसका हाथ पकड़ कर उसे वापस खींच लाता है और अगले ही पल उस तूफ़ान में भयंकर शोर मचाती हुई कई एक टीन वहां आकर गिरने लगती हैँ….प्रज्ञा फटाफट अविनाश की जैकेट खींचते हुए ऑडीटोरियम में घुसती है और उसके साथ ही वो वॉचमैन भी खिंचा चला आता है जिसका हाथ अविनाश ने पकड़ रखा था।


"बच गया भगवान की कृपा से नहीं तो…." वॉचमैन गहरी सांस लेते हुए कहता है।


अविनाश बहुत समय बर्बाद हो रहा है….और मौसम ठीक होने की बजाय पल-पल में और ज़्यादा बिगड़ता जा रहा है। (प्रज्ञा फ़िर एक बार आँखों में आंसू लिए अविनाश से कहती है। )


अविनाश-प्रज्ञा को एक कुर्सी पर बैठाता है….वो ठंड से बुरी तरह कंप रही होती है… तो वो अपनी भीगी जैकेट ही उतारकर उसे पहनाते हुए उसके साथ ही सटकर बैठते हुए कहता है-मै और क्या करूँ प्रज्ञा? ये बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही है….ये फ़ोन ही अब तक एक सहारा था….अब बिना नेटवर्क के ये भी किसी काम का नहीं।


"वैसे भैया आपके बच्चे का नाम क्या है?" वॉचमैन…..डेकोरेशन के पर्दे खींचते हुए अविनाश से पूछता है…...।।।।