ath gunge gaon ki katha 23 in Hindi Fiction Stories by ramgopal bhavuk books and stories PDF | अथ गूँगे गॉंव की कथा - 23

Featured Books
Categories
Share

अथ गूँगे गॉंव की कथा - 23

उपन्यास-  

रामगोपाल भावुक

 

 

 

                         अथ गूँगे गॉंव की कथा 23

               अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति

 

 

23

     गाँव में राहत कार्य तेजी से चलने लगा। दोनों तालाबों की मरम्मत का काम चल रहा था। मजदूर अपने-अपने घेरे बनाकर काम कर रहे थे। कुछ मिट्टी खोद रहे थे, कुछ लोग उस मिटटी को पिरियों एवं तस्सलों में भर रहे थे। कुछ पिरियों एवं तस्सलों की मिटटी को तालाब की पार पर ले जाकर डाल रहे थे। यों घर के बूढ़े- बड़े भी अपनी सामर्थ के अनुसार काम कर रहे थे।

मौजी ने सबसे अलग अपने परिवार को लगा रक्खा था। मौजी,रन्धीरा एवं पचरायवारी एक ही जगह पर काम कर रहे थे। रन्धीरा जरा टनका था तो मिटटी खोद रहा था एवं पिरियों में भरता भी जा रहा था। मौजी एवं पचरायवारी उसे सिर पर रखकर तालाब की पार पर लेजाकर डाल रहे थे। रास्ते में दानों में बाते होतीं चलतीं। मौजी पत्नी से कह रहा था-‘ री! तू अभी भी टनकी है।’

 वह बोली-‘ तुम्हें कौने चौख लये?’ उसने उत्तर दिया-‘अरे! अब मोय को चौखतो। बस चिन्ता मारैं डार रही है। जौं कहतयें-जनी को खसम जैसें आदमी होतो, बैसें ही आदमी को खसम ज कज्जा होतो। जनम जनम से मूड़ पै धरो ज कज्जा मेरे प्राण खायें लेतो। नहीं तो बैल बनकें पटानों परेंगो।’  

 सम्पतिया ने उसे समझाया-‘ ससुरो सब जिन्दगी पटाओ तोऊ बितकई धरो है। सरकार ने माफ कर दओ तोऊ साहूकार माँगिबे में चूक नहीं रहे।’

मौजी बोला-‘ अब जे हमेंशा की तरह मार-कूट कै बसूल करलें, सो कर नहीं सकत। अब तो जिनकी मथाई सी मर गई है। अरे! अब तो जे पइसा बारिन को दुश्मन है तो मौजी। जे समझत का हैं, अब तो मोसे अच्छे-अच्छे कपतयें।’

सम्पतिया को मौजी की शक्ति पर अपार विश्वास हो गया था। वह कुछ गुनते हुये बोली-‘मे मन में तो जो आते कै....।’

उसने रिरियाते हुये नम्र बन कर पूछा-‘ कह-कह का आते ते मन में।’

सम्पतिया ने अपने मन की बात कही-‘जई ,कै अब की बेर तुम चुनाव में मेम्मरी के काजें खड़े हो जइयो। हर बेर अपुन बिन्हें बोट देत आये हैं, एक बेर वे अपुन्ने बोट नहीं दंगे।’

मौजी पूरे उत्साह के साथ बोला-‘चुनाब में होनों ही है खड़े, अरे घर के ही इतैक बोट हैं कै कोऊ हराबे बारो नाने। पर चुप रह, बिन्हें ज बात पतो न चले, नहीं वे अपने सबरे बोट कटबा दंगे। वे बोट लेवो-लेवो जानतयें, एक बेर जीत गओ तो अपने ज गाँव की उन्नति में जी-जान लगा दंगो। फिर नेकाद ऊपर हू सुनी जायगी। अभै तो मोय सब जोईं जानतयें।’

सम्पतिया ने पुनः पति का साहस बढ़ाया-‘अपओ सरपंच अब तुमसे चुपरी-चुपरी बातें कत्तो।’यह सुनकर मौजी शान में तनते हुये बोला-‘ व सब जान गओ है, कल में वी0डि0यो0 से न मिलतो तो ज काम चलिवे बारो न हतो।’यह सुनकर सम्पतिया को लगा-जे अच्छे बने रहें फिर तो सब काम चल्त रहेगो।

दोपहर का समय होगया। काम में ढ़ीलापन आ गया। भूख भी लगने लगी है। सभी अपने-अपने काम का मूल्यांकन करने लगे। कितना काम हुआ है ,हिसाब लगाया जाने लगा। मौजी का काम किसी से कम न बैठ रहा था। रामहंसा हिसाब लगाते हुये बोला-‘मौजी कक्का तेंने तो मोसे हू ज्यादा काम करो है।’

मौजी ने उत्तर दिया-‘मोय का अभै जोंईं जानतओ, अरे! बूढ़ो एन हो गओ तोउ का है, जे हाड़ लोहे के बने हैं। खोड़ के राजा जिन्हें नवा नहीं पाये।’

सम्पतिया ने मौजी की वीरता का वर्णन बड़े उत्साह से किया-‘काम में तो जे ऐसे हतये कै अच्छे-अच्छे पट्ठा जिनके संग नहीं लग पातये। काम में जिन्हें कोऊ नवा नहीं पाओ।’

 मौजी के घर के लोग खाना खाने के लिये उसके ही पास आ गये। मौजी ने मुल्ला से काम का हिसाब जानना चाहा, मुल्ला उतना काम न कर पाया था। मौजी उससे बिगड़ते हुये बोला-ससुर को बहुरिया से बातें कत्त रहो होयगो। अरे! काम कत्त में बातें तो करो पर हाथ सोऊ चलाऊ।’

सम्पतिया ने लड़के का पक्ष लेते हुये कहा-‘दोऊ बातें कर रहे होंगे तो तुम्हें काये जलन होते।’

मौजी बोला-‘ अरे! काम के टेम पै काम सोऊ करो, तबहीं बातें अच्छीं लगतें। जब सरपंच गड्डा नापवे आयगो तब का नपाओगे?’

इनकी बातों का आनन्द लेने आसपास के लोग वहाँ आ गये। यह देखकर मौजी उन से बोला-‘ सब झें काये आ गये, तुम अपनो-अपनो काम देखो। नहीं भूखिन मरोगे। जे काल के दिना हैं, ज अकाल कटि गओ सोई सब जी गये।’

यह सुन कर सभी अपने-अपने काम पर चले गये। मौजी बड़बड़ाता रहा-

           ‘मुजिया सच्ची कह देतो सो सबै बुरी लगते।’

                      000