ath gunge gaon ki katha 21 in Hindi Fiction Stories by ramgopal bhavuk books and stories PDF | अथ गूँगे गॉंव की कथा - 21

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अथ गूँगे गॉंव की कथा - 21

उपन्यास-  

रामगोपाल भावुक

 

 

                         अथ गूँगे गॉंव की कथा 21

               अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति

 

21

आज रात मौजी को नींद नहीं आई। तरह-तरह के खट्टे-मीठे संकल्प-विकल्प बनते और मिटते रहे। कभी लगता गाँव में भारी-मारकाट मची है। गरीब और अमीर आमने-सामने लड़ रहे हैं। गरीब निहत्थे हैं। अमीरों ने एक सेना बना ली है, जिनके पास बन्दूकें और बम के गोले हैं। एक नये महाभारत की लड़ाई शुरू हो गई है। ज लड़ाई गाँव-गाँव फैल गई है। जाति, सम्प्रदाय, भाषा और धर्म के बन्धन जनता ने तोड़ डाले हैं। इस लड़ाई का कुछ न कुछ हल अवश्य ही निकलेगा। यों सोचते हुये वह रातभर करबटे बदलता रहा।

कुन्दन को विद्यालय जाते-आते समय सरपंच के दरवाजे से गुजरना पड़ता था। कुन्दन जब विद्यालय से वापस लौटा सरपंच के दरवाजे से गुजरा। दरवाजे पर पुलिस बैठी थी। दरोगा मौजी को डाँट रहा था-‘क्यों रे मुजिया! अब तो तू नेता बन गया है । सालेऽऽ...तेरी नेतागिरी तेरे दिमांग में से निकालकर तेरी.....में घुसेड़ दूंगा। साला मादर....और हाँ वो कौनसा बदमास मास्टर है, जो तुझे सिखा-पढ़ा रहा है।’

इसी समय मौजी ने मुड़कर देखा,कुन्दन तो वहाँ खड़ा ही था , उसके साथ में मौजी के अनेक साथी भी खड़े थे। यह देखकर उसमें अज्ञात शक्ति का संचार हुआ। वह पूरे आत्मविश्वास के साथ बोला-‘महाराज, मोय कोऊ का सिखयगो। ज सारी पढाई तो ज पेट ने सिखाई है। देख नहीं रहे ज भीड़ का बात की लगी है। जिन्हें बुलाकें को लाओ है? अरे!महाराज जिन्हें जिनकी भूख बुलाकें लाई है।’

  यह बात सुनकर दरोगा सब कुछ समझ गया, किन्तु उसे मिली रकम की भी बजानी थी। यह सोचकर सहज बनते हुये बोला-‘तुम लोग कानून को अपने हाथ में लेना चाहते हो।यह ठीक नहीं है। कानून के साथ खिलबाड़ करने वालों को मैं ठिकाने लगा दूंगा। समझे।’

  दरोगा कुन्दन की उपस्थिति से अबगत होगया था। उसने आवाज दी-‘ये कुन्दन कौन है? सामने आये।’

यह सुनकर कुन्दन दरोगा के सामने पहुँच गया, बोला-‘ जी, मैं हूँ कुन्दन, कहिये?’

दरोगा ने उसे फटकारा-‘तुम शासकीय सेवा में रहते हुये, नेतागिरी करते हो। लोगों को भड़का रहे हो। इस अपराध में मैं तुम्हें भी बन्द कर सकता हूँ। वे मौत मर जाओगे। बच्चे भूखे मर जायेंगे। लोगों को भड़काने के अपराध में तुम्हारी जमानत भी न होगी। हमें तुम्हारी सारीं चालें पता चल गईं हैं। चलो थाने चलो।’

कुन्दन आत्मविश्वास के साथ बोला-‘पहले मुझे सस्पेंन्ड कराओ। बारन्ट निकलवाओ, फिर मैं आपके साथ चलने को तैयार हूँ।’

दरोगा तैस में आ गया। बोला-‘तुम्हें थाने तो चलना ही पड़ेगा। वहाँ हम तुम्हें सब समझा देंगे, समझे।’

मौजी बोला-‘कुन्दन मास्टर के संगें हम सब सोऊ चलंगे।’

दरोगा ने उसे डाँटा-‘चुप रह साले, मार-मार कर तेरी...में भुस भर दूंगा।’

दरोगा स्थिति को समझते हुये बोला-‘कुन्दन, तुम कल थाने आ जाना और मौजी तू भी कल थाने आ ही जाना।’

 

मौजी बोला-‘ठीक है महाराज आ जांगो।’

दरोगा के जाते ही मौजी सोचने लगा-गरीबन से का छिन रहो है?सो डर रहे हैं। अरे! दरोगा मारइ तो डारेगो। सफाँ मारिवो खेल नाने। सो बाके सब करम होजांगे। सभी को सामने खड़े देख मौजी बोला-‘कै तो तुम सब मोय अध्यक्ष न बनातये। अब बना ही दओं हों तो तन-मन से संग देऊ। अरे! दरोगा सबको का कर सकतो। बाने कुन्दन मास्टर को गिरफतार करो तो सब जनै चलो, थाने को घिराव कन्नो परैगो। का समझतो दरोगा? मारै तो मार डारै। कुन मथाई बेर-बेर जन्मते। बोलो...मे संग को-को चल रहो है।’

उसने देखा, उसकी लताड़ का साथियों पर गहरा असर पड़ा है। कुछ तो उसके साथ चलने को तैयार हैं। कुछ सवर्ण गरीब साथ चलने से पीछे हट रहे हैं। जाटव मोहल्ले के गरीब मौजी के साथ चलने के लिये तैयार खड़े थे। मौजी बोला-‘अपुन सब कल सबेरें ही चल पडंगे।’ यह सुनकर सभी अपने-अपने घर चले गये।

दूसरे दिन सबेरे ही सभी हनुमानजी के मन्दिर पर जाने के लिये आ गये। पैदल ही थाने पहुँचने के लिये चल पड़े। बातों-बातों में तेरह किलोमीटर का रास्ता कट गया। रास्ते भर एक ही बात चलती रही-कुन्दन को कैसे बचाया जाये? मौजी बार-बार कह रहा था-‘कुन्दन कों बचावे में, मोय चाहे जान की बाजी लगानो परै, मैं पीछे नहीं हटंगो। काये कै कुन्दन ने बत्त मडरिया में से मेरी बछिया बचावे में अपने प्रानन की चिन्ता नहीं करी। मैं अब पीछें कैसे हट सकतों? पीछें हटे ताको पन घटे। अरे! ब फस रहो है तो हम सब के चक्कर में ही।’

यों मौजी पन्द्रह-बीस लोगों के साथ शहर पहुँच गया। मौजी शहर के बड़े-बड़े नेताओं से परिचित था। इस समय उनसे मिलना उसे उचित लगने लगा। ये लोग विधानसभा अथवा लोकसभा के चुनाव के समय बोट माँगने मेरे घर भी आये थे। निश्चय ही वे मुझे पहिचानते तो होंगे ही। आज इस मौके पर इन्हें भी परख कर देख लेता हूँ।यह सोचते हुये वह सबसे पहले अपनी काँग्रस पार्टी के नेता सुखरामजी से मिला। मौजी ने उनके सामने अपनी बात रखी। वे बोले-‘भई मौजी हम तुम्हारे साथा है। ये पुलिस वाले अपने बाप को भी नहीं छोड़ते। उन्हें तो हर काम का पैसा चाहिये। उनने इन्हें कुछ दे ले लिया होगा। इसीलिये वे इतने हाथ पैर चला रहे हैं। इस केस में दरोगा कम से कम हमारी बदोलत पाँच सौ रुपये पर मान सकता है। तुम कहो तो मैं तुम्हारे साथ चल सकता हूँ। वह अपने काम की मना नहीं करेगा। भई, उसके भी पेट है।’

वह बोला-‘हमारे पास रुपये तो हैं नहीं । हम इन्तजाम करके आते हैं।’ यह बहाना करके वहाँ से चले आये। उन्होंने नगर के समाज सेवी सेठ चेतनदास का नाम भी सुना था। वह उनके पास भी जा पहुँचा। अपनी व्यथा उनके सामने उड़ेल दी। वे भी पुलिस को देने के लिये रुपयों की बात करने लगे। मौजी उनकी बात सुनकर समझ गया- ये सब पुलिस की दलाली कर रहे हैं। मैं तो सोचता था ये बड़े नेता होंगे। गरीबन के काम कत्त होंगे।

सालवई गाँव की हवा सारे नगर में फैल गई। अब तो यह स्थिति पैदा हो गई कि शहर के साभी व्यापारी इस विद्रोह को कुचल देना चाहते थे। यह विद्रोह शीध्र न दवाया गया तो चल रही व्यवस्था चकनाचूर हो जायगी। व्यवस्था बनाये रखना सभी का फर्ज है। कानून उन्हीं की मदद करता है जो उसके अनुसार चलते हैं। मौजी पंण्डित चरणदास जी के यहाँ जा पहुँचा। उन्होंने मौजी और उसके साथियों की बात सुनी। वे बोले-‘आप लोगों को कानून हाथ में नहीं लेना चाहिये था। अरे! कोई गलत करै उसकी रिपोट हम शासन तक पहुँचा दें। बस हमारा इतना ही काम है। बाकी जुम्मेदारी शासन की। अब आप लोग फस तो गये ही हैं। मैं आपके साथ थाने चलता हूँ। टी0आई 0 मेरा अच्छा परिचित है। कम से कम में काम निपटवा दूंगा। इसके लिये आप लोग चन्दा कर लें। इससे एक आदमी पर बोझ भी नहीं पड़ेगा।’

खुदाबक्श बोला-‘हम पर कुछ होता तो आप के पास आने की जरूरत ही नहीं पड़ती।’

वे बोले-‘भइया, लड़ने के लिये चले हो तो चन्दा तो करना ही पड़ेगा। बिना पैसे के नेतागिरी नहीं चलती। अरे! तुम्हारे पर कुछ नहीं है तो जो फस रहा है वह भुगतेगा अपने आप। तुम लोग अपना समय खराब क्यों कर रहे हो? अपने घर जाओ। यह शान्ति भंग का मामला है। हाँ वह कौन है जिस के कारण आप सब परेशान है।’

मौजी बोला-‘वो तो आज सुबह ही थाने पहुँच गया है। उसके घर के लोग भी उसकी मदद करने वाले नहीं हैं। वह तो हम सब के चक्कर में मारा गया है।’

 पंण्डित चरणदास बोला-‘ फिर तो आप लोग अपने घर जाओ। पैसे का बन्दोवस्त हो जाये तो आ जाना।’ उनकी बात सुनकर सभी मुँह लटकाये चले आये। भटकते-भटकते शाम होने को हो गई। थाने जाने में सभी डर रहे थे कि थाने गये और पकडे लिये गये तो कोइ्र हमारी जमानत भी नहीं देगा। इन सब में कोई भी ऐसा नहीं है जिस पर जमानत जितनी भी जायदाद हो। पुलिस नंगे-भूखे लोगों की जमानत क्यों लेने लगी। सभी इसी उधेड़ेबुन में नगर के पोस्ट आफिस के पास से गुजरे। वहीं कुछ नाई फुटपाथ पर बैठकर ग्राहकों के बाल बना रहे थे। लालहंस अपनी ढोड़ी बनबावे नीम के पेड़ के नीचे बैठे नाई के पास ठिठक गया। बाल बनाते में वह नाई बातें करने लगा। वह नगर की कम्युनिष्ट पार्टी का सर्कीय सदस्य था। उसे लोग श्रीराम सेन के नाम से जानते थे। उसने इनकी बातें सुनी तो वह बोला-‘मैं तुम्हारी मदद करवा दूँ तो...।’

यह सुन डूबते को तिनके का सहारा मिला। खुदाबक्स झट से बोला-‘भाज्जा झें गरीब कौ कोऊ नाने। हम तेरों अहसान जिन्दगी भर नहीं भूलंगे।’

वह बोली-‘तो चलो मैं तुम्हें अपने साथियों से मिलवा देता हूँ।’

सभी उसके पीछे-पीछे चल पड़े। नगर के बाहर रेल के किनारे-किनारे गन्दी बस्ती में पहुँच गये। एक सकरी सी गली में घुस गये। वहाँ एक छोटी सी बैठक में ले जाकर उन्हें बैठाया गया। थोड़ी ही देर में चार-छह लोग और आ गये। यों कमरा छकाछक भर गया। बातें होने लगीं। श्रीराम सेन ने सभी को इनकी परेशानी से अवगत कराया। उनमें आपस में बातें होने लगीं। तय किया जाने लगा कि किस तरह से कार्यवाही की जाये, जिससे समाधान निकल सके।

 बातों-बातों में अनशन की बात चल निकली। अशोक शर्मा अनशन के लाभ-हानि का आकलन करने लगे। श्रीराम सेन को गाँव की जनता का ऐसा कोई काम हाथ न आया था जिसमें उनके दल की विचार धारा का ऐसा समन्वय अनायास मिल रहा था, फिर इसे क्यों न अच्छी तरह से भुनाया जाये। यह सोचकर बोला-‘ देखो, आप लोगों को भूख हडताल पर बैठना पड़ेगा। बात इतनी बढ़ गई है, बिना भूख हड़ताल के सुलझने वाली नहीं है। यदि तुम लोग कुन्दन को वे दाग बचाना चाहते हैं तो भैया इस रास्ते के अलावा कोई विकल्प नहीं है। हम जी‘जान से आप सब का सहयोग करेंगे। बोलों....हिम्मत है तो आगे बढ़ो, नहीं चुपचाप अपने घर चले जाओ।’

खुदाबक्स झट से बोला-‘ हमाओ ज अध्यक्ष अकेलो ऐसो है जितैक दिना तुम कहोगे ज अनशन पै बैठो रहेगो। ज बात से डिगिबे बारो नाने।’

मौजी बड़े आत्मविश्वास से बोला-‘महाराज ,सब जिन्दगी से भूख हड़ताल ही होत रही है। आठ दिना नों तो मैं अकेलो ही भूख हछ़ताल पै बैठो रहोंगो।’

यह सुनकर सभी के मुँह से एक स्वर में निकला-‘फिर तो तुम आमरण अनशन कर दो। एक दो दिन में ही सरकार हमारे सामने घुटने टेक देगी। कुन्दन को छोड़ते फिरेगी।.....और हमारी सारी बातें मानना पड़ेंगी। मौजी भैया, हम सब तुम्हारे साथ हैं। हमें चाहे कोई फाँसी पर चढ़ा दे । हम पीछे हटने वाले नहीं हैं।’

यह सुनकर मौजी का हौसला बुलंद होगया। बोला-‘मैं मरने को तैयार हों।’

मौजी की बात सुनकर सभी कार्यकर्ताओं के उत्सह का ठिकाना न रहा। प्रचार-प्रसार का काम उन्होंने अपने ऊपर ले लिया। कागज-पत्रों की खाना पूर्ति की जाने लगी।

मौजी ने अपनी आमरण अनशन पर बैठने की बात पर अपने मन को टटोला-कहीं मैं भूख से मर गया तो....। उसके अन्दर से आवाज आई-मर गया तो मर जाना अच्छा है पर उसने पीछे हटना जिन्दगी में नहीं सीखा है। रे! तें बा दिना की बात भूल रहो है ,जब कुन्दन ने भी मेरे हित में अपनी जान की बाजी लगा दी थी। तेरी प्यारी बछिया को जलती हुर्ह मड़रिया से बाहर निकाल लाया था। ऐसे आदमी के पीछे मर-मिटने में लाभ ही लाभ है। यों मेरे दोनों हाथों में लड्डू हैं। यह सोचकर तो उसमें अनन्त साहस का संचार हो गया। कहाँ क्या कार्यवाही की जा रही है? वह उन बातों पर भी नजर रखने लगा।

गाँव के सभी साथी सोच रहे थे - कहीं मौजी अपनी बात से पीछे न हट जाये। नहीं शहर के इन लोगों के सामने हमारी क्या इज्जत रह जायगी? इसी कारण उसके साहस को बढ़ाने का वे जी-जान से प्रयास करने लगे। वे मन ही मन यह भी सोच रहे थे-‘मौजी दिल को नेक है ,तईं सबकी सोचतो। वह गरीब जरूर है लेकिन बात को धनी आदमी है। जो बात कह देतो तापै चलिबे को जी-जान से प्रयास कत्तो।’

उधर पुलिस को अनशन की सूचना कर दी गई। कलेक्टर महोदय को भी सूचना भेज दी गई। श्रीराम सेन इन सभी बातों में राजनीति करते-करते माहिर हो गया था। तहसील प्रागण में पेड़ की छाया का सहारा लेकर फर्स बिछाकर बैठक व्यवस्था कर ली। नगर की भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी ने एक जलूस निकाला और मौजी का आमरण अनशन शुरू हो गया।

सभी अखबारों को विद्रोह के स्वर का एक ताजा समाचार मिल गया। सभी अखबार रंग गये। सभी के मुख्य पृष्ठ पर मौजी का अनशन करते हुये फोटो छपा था। रातों- रात बायरलेश खटखटाये। सुबह होते ही हिदायतें देकर कुन्दन को पुलिस ने छोड़ दिया। जब कुन्दन थाने से अनशन वाले स्थल पर पहुँचा, मौजी के चेहरे की आभा कई गुना बढ़ गई थी। पार्टी ने अपनी जीत मानकर, अन्य माँगें मानने के लिये जोर डाला जाने लगा। मौजी को बातों में लेकर अनशन पर बैठे रहने के लिये मजबूर कर दिया। सरकार ने गाँव की स्थिति को देखते हुये तत्काल राहत कार्य शुरू कर दिया। इससे अनशन का महत्व और बढ़ गया। पार्टी ने अपनी जीत का जलूस निकाला। मौजी को फूल- मालाओं से लाद दिया गया। पार्टी ने एस0डी0एम0 महोदय के द्वारा नाटकीय अभिनय के साथ मौजी को जूस पिलवाकर अनशन समाप्त करवा दिया। फूलों से लदा मौजी गाँव चला आया।

गाँव में मजदूरी चल निकली। गाँव का सनोरा तालाब बर्षों से फूट पड़ा था। उस पर मिटटी डालने का काम शुरू हो गया। काम के बदले अनाज मिलने लगा। मौजी भी दूसरे दिन से ही काम पर जाने लगा।

मौजी को काम करते में याद आने लगा- जब श्रीराम सेन ने अनशन समाप्ति के अवसर पर जो भाषण दिया था, वह उसे भूल नहीं पा रहा था। उस दिन श्रीराम सेन ने कहा था-‘मौजी कक्का ने और उसके साथियों ने अपने गाँव में जो पहल की है, ऐसी पहल करने वाले हर गाँव में हो जायें, समझ लो देश में शोषण मुक्त समाज का निर्माण होकर ही रहेगा। मौजी जैसे बहादुर आदमी इस धरती पर कितने हैं, जो दूसरों के लिये जी-जान से सघर्ष करने के लिये तैयार रहते हैं। हमें मौजी ने जो रास्ता दिखाया है, वह अनुकरणीय है। उसे हम कभी भुला नहीं पायेंगे।’

यह सोचकर मौजी में अनन्त गुना उत्साह का संचार हो गया। उसे लगा रहा था- ससुर मुजिया चमार का से का होगओ!

 

 

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