ath gunge gaon ki katha 18 in Hindi Fiction Stories by ramgopal bhavuk books and stories PDF | अथ गूँगे गॉंव की कथा - 18

Featured Books
Categories
Share

अथ गूँगे गॉंव की कथा - 18

उपन्यास-  

रामगोपाल भावुक

 

                          अथ गूँगे गॉंव की कथा 18

               अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति

 

18

        कुन्दन समझ गया माँ का पारा गरम है। उन्हें शान्त करते हुये बोला-‘ माँ छोड़ इन बातों को, पिताजी के दायित्व का एक यही काम बचा है। वह भी अब तो निपट ही जायेगा। फिर हम किसलिये हैं। बहन के प्रति हमारा भी कोई दायित्व है कि नहीं!’

        वे झट से बात काट कर बोलीं-‘ अभी तक सारे काम पुरखों की जायदाद बेच-बेच कर निपटाये हैं। मेरे बाप ने भी इतना दिया था कि सँभल नहीं रहा था। अब घर में कुछ भी नहीं बचा है। थोड़ी बहुत जमीन बची है वह भी बिची जाती है मुझे तो तुम लोगों का सोच है फिर तुम कैसे क्या करोगे? इस वर्ष अभी तक पानी की एक बूँद भी नहीं पड़़ी है।’

       लालूराम ने पत्नी को समझाना चाहा-‘बैंक वाले चढ़े थे सो गेंहँ बेचकर बैंक का कर्ज निपटा दिया। महावीर बब्बा की कृपा से सोना का ब्याह पक्का हो गया है, सो वे ही उसे पार लगायेंगे।’

       कुन्दन की माँ ने बदरा को गालियाँ दीं-‘जैसा आदमी बेईमान हो गया है बैसा ही ये बदरा हो गया है। पानी कहाँ से बरसे, सुनतयें काऊ बड़े सेठ ने पानी गहरे पर गाड दिया है।’

       कुन्दन ने यह बात पहली बार सुनी थी। पूछा-‘ यह क्या होता है माँ?’

       वे कुन्दन को समझाते हुये बोलीं-‘ होता क्या है? जे पइसा बारे एक घड़े में पानी भर कर जमीन में गाड़ देते हैं।  फिर वे अपना अनाज मुँह माँगे दामों में बेचते रहते हैं। जब उनका पेट भर जाता है , वे उसे गड़े हुये पानी को उखाड़ देते हैं तब पानी बरसने लगता है। ज बड़े आदमिन को तन्तोरा है।’

        माँ की बातें सुनकर सभी इस बात के सत्य को जानने के लिये अपने अन्तस् में डुबकी लगाने लगे। किसी को इसमें कोई वैज्ञानिक सोच पकड़ में नहीं आया। कुन्दन को तो यह सारा का सारा सोच अन्धविश्वास की परिधि में डूबा हुआ लग रहा था।

        गाँव भर में इस तरह वे-सिर पैर की बातें चल रहीं थीं। मौजी के प्रकरण के बहाने गाँव के दलित अपने पुराने घाव खुजलाने लगे। उनमें बूढ़े-पुराने लोग अपने शोषण की कथा इस तरह सुना रहे थे जैसे ब्राह्मण रटे रटाये वेद मंत्रों को सुनाते हैं। काशीराम तेली इस बात में पिर रहा था। एक गरीब आदमी के झूठे फसने का दुःख दोनों ही पक्षों में था। पानी न बरसने का कारण सभी की दृष्टि में ऐसे ही पाप हैं ,जो बड़ों के पाप गरीब के सिर मढ़ दिये जाते हैं। उससे जो आह निकलती है वही आह ही यह जुल्म ढाह रही है। गाँव के लोग इस बात को ही पानी न बरसने का कारण मान रहे हैं। कुछ अपने अनुभव से कह रहे हैं कि मौजी की टपरियों में आग तो उसके चूल्हे की आग से ही लगी है। वह तो काशीराम के सिर इसलिये मढ़ी है जिससे हमदर्दी में सरकार से मौजी को अधिक लाभ मिल सके।

         गाँव के बीच में एक प्राचीन माता मैया का मन्दिर है। मन्दिर में माता मैया की आदम कद मूर्ति देखते ही बनती है। माता मैया की बड़ी-बड़ी आँखें देखकर तो अच्छा-भला आदमी ही डर जाये। क्षेत्र भर के लोग मैया के दर्शन करने के लिये आते रहते हैं। यहाँ आकर लोगों की मनोकामना पूर्ण हो जातीं हैं, ऐसे अवधारणा जनश्रुति के रूप में व्याप्त है। यों प्रतिदिन लोगों का आना-जाना लगा रहता है।गाँव के लोग हनुमान मन्दिर के अलावा यही बैठकर चर्चायें करते रहते हैं। आज कुछ लोग यही बैठे चर्चा में व्यस्त दिख रहे हैं। सरदार खाँ ने बुलन्द आवाज में कहा-‘ज काशीराम साहू तो बड़े-बड़िन के चक्कर में झूठो फस गओ। जाको अवा तो सबसे दूर लगों है।’

      भरोसा मिर्धा बोला-‘ जे बड़े-बड़े आदमी ,ते गरीब बेल में आत जातो ताय एक एक करके फसात जातयें,अपुन सबै मिल के चलनों चहिये।’

      मनघन्टा बड़ी देर से इनकी बातें सुन रहा था, बोला-‘कोऊ काऊ के काजें पइसा लगायें नहीं देत। अरे! जाको मरै तइये रोनों पत्तो।’

      बाला प्रसाद शुक्ल बोले-‘अरे! ज जमाने से तो हमाये सिन्धिया को जमानों अच्छो हतो। आदमी काउये ऐसें झूठो नहीं फसातये। अरे! ऐसे अत्याचार तो न दिखतये।’

      रामदास ने उसकी बात का विरोध करते हुये कहा-‘अरे! सिन्धिया के राज्य में बड़ो अन्धेर हतो। किसान पै बदन ढाँकिवे कपड़ा-लत्ता हू नहीं पुजतये। आदमी पइसा के दर्शनन को तरसतये।’

      पाण्डे राम मोहन हनुमान मन्दिर के पुजारी थे। वे चुपचाप इन सब की बातों को  सुन रहे थे। वे कडक आवाज में बोले-‘जे तेलियन के मिजाज ज्यादा बढ़ गये हैं। वे काउये नहीं गिनतये। अरे! नेक तेल पेरकें, मेन्त-मजूरी करके दो टेम खान-पीन लगे सो दिमांग आसमान पै चढ़ गये हैं।’

      बाला प्रसाद शुक्ल ने राम मोहन को समझाने का प्रयास किया-‘गरीबन के बारे में पाण्डे जी ऐसे मत सोचिबै करो। नहीं काऊ गरीब की हाय ऐसे लगेगी कै कहूँ के नहीं रहोगे।’

     रामदास मजाकिया स्वभाव का था। वह बात का आनन्द लेने के मूड़ में आ गया था। बोला-‘ पाण्डेजी, तुम्हाई बहू काये नहीं आरही है?’

     पाण्डे राम मोहन ने उत्तर दिया-‘ हम तो तीन-चार बेर लेवे फिर आये, बाके मायके बारे बाय भेज ही नहीं रहे।’

     बाला प्रसाद शुक्ल ने अपनी बात रखी-‘ यार ,तुम्हें अपनी बहू को ऐसी बुरी तरह पिटवानों नहीं चहियतो।’

    पाण्डे राम मोहन को अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिये सफाई देना आवश्यक हो गया। बोले-‘अरे! मोड़ा और बहू लड़ पड़े, मोड़ा ने हाथ-पाँव चला दये। ज बात पै बहू को गुस्सा आ गई। बाने धतूरे के गटा खा लये। हमें ज बात को पतो चलो तो हम बाय अस्पताल ले भजे, सो व बच गई।’

     रामदास ने पूछा-‘पण्डित जी पुलिस ने दो-चार हजार तो झटक लये होंगे।’

     पाण्डे राम मोहन ने बात को असमय उखाड़ने वालों को मन ही मन गालियाँ देते हुये नरम पड़कर कहा-‘भइया, पुलिस काउये सूखो निकरन देते , ज तो तुम अच्छी तरह जानतओ।’ यह कहकर वे वहाँ से उठकर चले गये, किन्तु बात उनके जाने पर भी चलती रही।

     बाला प्रसाद शुक्ल ने अपनी चौधराहट कायम करने के लिये कहा-‘ ससुर चुकटिया ब्राह्मण हैं। बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। अरे! अपनो सुख देखतयें।’

    रामदास ने अपना निर्णय सुनाया-‘अपनो गाँव तो ऐसो बिगरो है, पूरे पंचमहल में ऐसो एकऊ नहीं बिगरो।’

     सरदार खाँ ने रामदास की बात पर अपनी पैनी करने के लिये कहा-‘गली-गाँव जही हाल हैं। पंचमहल के सब गाँवन में जही हो रहो है। सुनवई में तो सुनी है कै एक मोड़ी के संगे जाने कितेकन ने बलात्कार करो है।’

    बाला प्रसाद शुक्ल ने निराशा होकर कहा-‘ ज जमाने में ले दे कें सब बच गये होंगे।अरे! ऐसे दुष्टन ने तो फाँसी की सजा होनो चहिये, पर कहूँ कोऊ सुनवाई नाने।वोटन के चक्कर में बड़े-बड़े नेता चोर-उचक्कन को साथ खुल्लम-खुल्ला दे रहे हैं।’

    रामदास ने अपना अनुभव व्यक्त किया-‘हमाओ ज गाँव तो भइया गूँगो है। झें गरीब की कोऊ नहीं सुन रहो। सब गरीबन को खून चूसिवे में लगे हैं।’

    सरदार खाँ ने गाँव की राजनीति की ओर संकेत किया-‘जाटव मोहल्ले में बड़ी              भारी एकता है। सब एक सूत्र में बंधे हैं। उनकी तरफ कोई आँख उठाकर नहीं देख सकत। अरे! अब तो जो संगठित नाने बिनपै अब तो सबकी दाढ़ है।’

     बातों बातों में बात सूखे की समस्या पर आकर ठहर गई। रामदास ने इस विषय में सोचते हुये कहा-‘ अब पानी बरसने की आशा तो नाने। भज्जा, मैं तो कल बैंक से पम्प उठा रहो हों।’

    भरोसा मिर्धा बड़ी देर से कुछ कहने की सोच रहा था। बोला-‘मैंने तो कल से रहट चलावो शुरू कर दओ। देखें ,भगवान कैसें पार लगायगो। चौपे भूखें मरैं लेतयें।’

    भरोसा की बात सुनकर सभी चिन्तित हो गये। सभी की निगाहें शून्य आकाश को ताकने लगीं। उनके पास बैठी खजेलो कुतिया कूलने लगी। वह भी भूखी थी।

    छोटे किसानों और मजदूरों के घरों का अनाज समाप्त हो गया था। वे मजदूरी की तलाश में बैठे थे। इन दिनों गाँव में मजदूरी कहाँ रखी। कोई उन्हें टके सेर न पूछ रहा था। कोई काम न रहा तो आदमी ने अपने हाथ खीचना शुरू कर दिये। पैसे घिस-घिसकर निकलने लगे। कहीं कोई मजदूरी मिल भी जाती तो लोग मजदूरी देने में उन्हें चार-चार चक्कर लगवाते तब कहीं मजदूरी के पैसे देते। वह भी इस तरह देते जैसे भीख दे रहे हों। सरकार की ओर से सूखे की स्थिति का आकलन करने के लिये घोषणा कर दी गई, जिससे लोग राहत महसूस कर रहे थे।

    पन्द्रह दिन गुजर गये , तब कहीं सरकार ने इसे सूखाग्रस्त क्षेत्र घोषित किया। जिले बन्दी के आदेश हो गये। पशुओं के लिये चारे की समस्या खड़ी हो गई। लोगों ने पशुओं के लिये चरू बो दी। जिससे अकाल के समय पशुओं की रक्षा की जा सके।

    तेज घूप के कारण चरू सूखने लगी। ऐसी स्थिति में चरू लगने लगी। किसी के बैल चरू में जा लगे तो उनकी वहीं के वहीं मौत हो गई। यह खबर गाँव भर में फैल गई। सरपंच ने अपना दायित्व दुहाई फिरवाकर पूरा कर दिया। गाँव भर में दुहाई फिर गई-‘ सभी अपने-अपने चौपे सम्हार कर चरायें, चरू लगन लगी है।’ दुहाई सुनकर सभी की आँखों के सामने अन्धेरा छा गया। अब उनके पशु जीवित कैसे रहेंगे? 

    

     000