ath gunge gaon ki katha 9 in Hindi Fiction Stories by ramgopal bhavuk books and stories PDF | अथगूँगे गॉंव की कथा - 9

Featured Books
Categories
Share

अथगूँगे गॉंव की कथा - 9

उपन्यास-  

रामगोपाल भावुक

 

 

 

                         अथ गूँगे गॉंव की कथा 9

               अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति

 

 

 

9

     मौजी का सारा गाँव शोषण करने खड़ा है। ब्याज पर त्याज लगाकर उससे नौकरी करवाये जा रहे हैं। भोजन व्यवस्था हर बार उधार लेकर चलती है। घर के सभी सदस्य मजदूरी करने जाते हैं।

     मौजी का छोटा भाई रनधीरा अविवाहित है। भाई के परिवार के लिए ही समर्पित है। एक लड़का है मुल्ला, उसकी पत्नी का एक पैर खराब है, वह लगड़ाकर चलती है। लोग उसे इसीलिये लंगची के नाम से बुलाते हैं। उसके तीन लड़कियाँ हैं। बड़ी लड़की रधिया है ही, दूसरी लड़की सरजू और तीसरी कुन्ती है। तीनों दामाद मौजी के साथ ही रहते हैं। पहले रधिया कमला को ब्याही थी। बाद में वह उसके छोटे भाई जलिमा के लिये बैठ गई है। कमला के एक लड़का और एक लड़की हैं और जलिमा के भी दो लड़के हो गये हैं। कमला और जलिमा जी-जान से अपने परिवार का पालन-पोषण करने में लगे हैं। कमला की लड़की का ब्याह हो गया है। उसका पति भी यहीं रह कर नौकरी करता है।

      सरजू का पति देवीराम चिटौली गाँव के गूजरों के यहाँ नौकरी करता है। मौजी की छोटी लड़की कुन्ती का भी ब्याह हो चुका हैं, किन्तु वह दमाद मौजी के कहने में नहीं चलता है। मौजी गाँव के जमीदार ठाकुर लालसिंह से दमाद वंशी की नौकरी के बदले एडवाँन्स ले चुका है। वंशी उनके के घर नौकरी करने तैयार नहीं है। मौजी का उससे कहना है कि यातो तू उनके यहाँ नौकरी कर ,नहीं भाग यहाँ से। मैं कुन्ती को उसी के यहाँ बैठाऊँगा जो जमींदार साहब के यहाँ नौकार करैगा। ठाकुर साहब औरों से तीस रुपये महीने अधिक देने तैयार हैं। उन्होंने अधिक पैसे इसलिये दिये है क्योंकि वे वंशी सा टनकी और मेहनती आदमी चाहते हैं।

      वंशी भी इन बातों को खूब समझता है कि ठाकुर साहब उसे ही नौकर क्यों लगाना चाहते हैं। पत्नी की सुन्दरता इस बात की जड़ है। यह बात उसकी समझ में आ गई है। इसीलिये वह हट कर बैठा है कि वह जमींदार साहब के यहाँ नौकरी नहीं करेगा।

       मौजी ब्याना ले चुका है। इसलिये उसने इस बात को अपनी इज्जत मान लिया है। उसने सोचा ,सारे गाँव के सामने उसकी क्या इज्जत रहेगी कि मौजी के घर के लोग उसकी बात ही नहीं मानते। उसने यह सेचकर घोषणा कर दी-‘या तो वंशी जमींदार साहब के यहाँ नौकरी करै या फिर घर ही छोड़कर चला जाये। मैं उसकी जगह दूसरा आदमी ले आऊँगा।

       वंशी को पत्नी कुन्ती पर विश्वास था कि वह उसे छोड़ना नहीं चाहेगी। जब मौजी ने उसे घर से भाग जाने का आदेश दिया तो वह गाँव की पंचायत में चला गया।

        पंचायत हनुमान जी के मन्दिर पर जम गई। विषय रुचिकर था इसलिये कुछ बिन बुलाये मेहमान की तरह पंचायत में आ धमके। मौजी ने पंचायत के सामने अपना बयान जारी किया-‘पंचो, मैं अपये देश से रातों-रात भागकर यों अया था कि भें कै राजा साहब ने मोय टिकन नहीं दओ।’

      कुन्दन ने पूछा-‘ ऐसी बात भी क्या हो गई, जो...?’

      बात का उत्तर मौजी ने हरवार की तरह सहजता से दिया-‘अरे! महाराज कछू मत पूछो, मो पै उन दिनों नेक खून हतो। वे रोज मारई मार धरें रहतये। एक दिना मैंने तो कह दई कि पिटें और काम करैं। चाहे मार डारो ,अब काम नहीं हो सकत मोसे । बैसें बात तो कछू और ही हती।’

      कुछ लोग इन बातों को मौजी के मुँह से अनेक बार सुन चुके थे। किन्तु वे उसके मुँह से कहलवा कर बात का भरपूर आनन्द लेना चाहते थे। इसीलिये खुदाबक्स ने बात को उकसाया-‘हाँ, तो मौजी भज्जा का बात भई?

     मौजी ने शर्माते हुए कहा-‘अरे! ज पचरायवारी है ना, जा के चक्कर में बात फस गई। भाँ के राजा सहाब जाये, अपने पालतू आदमी के काजें राखें चाहतयें। ताके पहलें मैं जाय लेकें भज परो। ज गाँव को नाम मैंने भाँ सुन रखो। सोची, झें आकें रक्षा हो जायगी।  महाराज, कहूँ वे मोय पकर लेतये तो मार ही डात्तये। झें आकें प्रान बचा पाओ। झें आकें जे हनुमान बब्बा की शरण में आ डरो। तीन दिना के भूखे हतये। तिवाई महाराज ने रोटीं दईं। वा दिना को जस मैं बिनको कबहूँ नहीं भूलंगो। खरगा जीजा ने जगा बता दई, सो भेंई अपनी टपरिया डार लई।’

      उसकी बात समाप्त होते ही खरगा की बात चल पड़ी। पिछली साल ही वह चल बसा था। उसके सम्बन्ध में सब अपने-अपने संस्मरण सुनाने लगे। एक बोला-‘खरगा बड़ा दमदार आदमी था। वह किसी से दबा नहीं। जब चौपे चराबे जातो तब गाँव के बड़े-बड़िन कों वह छुटटा गालीं देत रहतो।’

       दूसरा बोला-‘ गाँव के सब जानतये कै व जा ने कैसी माटी को बनो है! एक बेर तो गाँव के सब बाय जेई गारिन के चक्कर में मारिवे फिरे, , पर बाको कोऊ बारउ टेढ़ो नहीं कर पाओ।’

       मौजी बोला-‘मैंने तो बाय जीजा मान लओ सो महाराज वई मेरी भूख-प्यास देखें रहो। बड़ो अच्छो आदमी हतो।’

       जो मर कर चला गया। उसके बारे में मौजी के निर्णय का किसी ने विरोध नहीं किया।

       कोई विषय पर आते हुये बोला-‘ ये इधर-उधर की बातें छोड़कर पंचायत क्यों बुलाई है। इस बारे में बात तो हो जाये।’

        उसकी यह बात सुनकर पंचायत शुरू हुई। कुछ ठाकुर साहब के डर से उनके पक्ष में चले गये। पंचायत में न्याय नहीं, गाँव वालों का हित किस बात में है, यही न्याय दिखने लगा। कुन्दन ने अपना निर्णय दिया-‘ निर्णय करने से पहले कुन्ती के मन की बात जान लेना आवश्यक है।’

       मौजी पूरे आत्मविश्वास के साथ बोला-‘कुन्ती का चाहत है, अरे! व मेरे खून से पैदा हैं। अपयें बाप की इज्जत थोड़े ही मेंटें चाहेगी।’

       सरपंच विशन महाराज को कुन्दन की बात भा गई। बोले-‘काये वंशी तें का चाहतो?’

       वंशी बोला-‘कुन्ती से तो पूछ लो, व का चाहत है?’

       कुन्ती को बुलाया गया। कुछ लोगों को यह अच्छा न लग रहा था, पर मन मसोस कर रह गये थे। कुछ सोच रहे थे-‘नीच जाति को यहाँ बुलाने में कौन सी इज्जत जातै!’

       कुन्ती आ गई। सभी उसे इस तरह देखने लगे जैसे कभी किसी ने उसे देखा ही न हो। सरपंच ने अपना दायित्व पूरा किया-‘ काये कुन्ती तू का चाहत है?’

       कुन्ती डूबते-उतराते मन से बोली-‘मैं का चाहती, जो दादा चाहे सो मैं चाहती।’

       यह सुनकर तो वंशी सन्न रह गया। उसको इस बात की आशा न थी। उसने उसे कितना समझाया था? उसकी कितनी खुशामद की थी। उसे मेरी एक बात याद न रही। मौजी कुन्ती की इस बात को सुनकर हिनहिनाया-‘ मैं तो कह रहो कै मेरो खून है। बाय पूछबे की कछू बात न हती।’

       कुन्दन सोचने लगा, वाह रे खून! बाप ने कह दिया यह नहीं तो बेटी ने भी कह दिया, यह नहीं। बाप की इज्जत का इतना ख्याल! आश्चर्य यहाँ शादी-विवाह के संस्कारों का भी कोई मूल्य नहीं रहा!

                       000